नई दिल्ली: शिवसेना (यूबीटी) सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने सोमवार को विपक्ष पर कच्चातिवु द्वीप पर मतभेद का आरोप लगाया. इस मुद्दे ने लोकसभा चुनाव से ठीक पहले विवाद खड़ा कर दिया है. उनका ये बयान विदेश मंत्री जयशंकर के यह कहने के कुछ ही घंटों बाद कि 'जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी जैसे नेताओं ने 1974 में समुद्री सीमा समझौते के तहत श्रीलंका को सौंपे गए कच्चातिवु को एक छोटा द्वीप या छोटी चट्टान कहा था.'
शिवसेना नेता ने 2015 के आरटीआई जवाब का हवाला दिया, जहां यह जिक्र किया गया था कि कच्चातिवु द्वीप का न तो अधिग्रहण किया गया था और न ही इसे सौंपा गया था. यह भारत-श्रीलंका अंतरराष्ट्रीय सीमा समुद्री रेखा के श्रीलंकाई पक्ष पर स्थित है.
'एक्स' पर एक पोस्ट में चतुर्वेदी ने कहा, 'शायद विदेश मंत्रालय 2015 की तुलना में 2024 में अपनी आरटीआई प्रतिक्रिया में इस विसंगति को संबोधित करने में सक्षम होगा. 2015 में आरटीआई प्रतिक्रिया के अनुसार जब वर्तमान विदेश मंत्री एफएस के रूप में कार्यरत थे, तो यह कहा गया था 'इसमें भारत से संबंधित क्षेत्र का अधिग्रहण या उसे छोड़ना शामिल नहीं था क्योंकि प्रश्न में क्षेत्र का कभी सीमांकन नहीं किया गया था. समझौतों के तहत, कच्चातिवु द्वीप भारत-श्रीलंका अंतरराष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा के श्रीलंकाई हिस्से पर स्थित है.'
'आज विदेश मंत्री और कल प्रधानमंत्री ने दावा किया कि इसे 'सौंप दिया गया' है. उन्होंने पूछा, 'तो क्या उनकी चुनावी राजनीति के रुख में बदलाव आया है या मोदीजी ने श्रीलंका के लिए मामला बनाया है.'
मुझे वे दिन याद आते हैं जब पंडित नेहरू हमारी उत्तरी सीमा को ऐसी जगह बताते थे जहां घास का एक तिनका भी नहीं उगता. मैं पीएम को याद दिलाना चाहूंगा कि पीएम नेहरू के इस ऐतिहासिक बयान के बाद, उन्हें कभी भी देश का विश्वास दोबारा हासिल नहीं हुआ. प्रधानमंत्री (इंदिरा गांधी) के साथ भी ऐसा ही होने वाला है जब वह कहती हैं कि यह केवल एक छोटी सी बात है और हमारे देश के क्षेत्रों के बारे में चिंता करने की कोई बात नहीं है.'उन्होंने कहा कि 'तो, यह सिर्फ एक प्रधानमंत्री नहीं है... यह उपेक्षापूर्ण रवैया... कच्चातिवु के प्रति कांग्रेस का ऐतिहासिक रवैया था.'
उन्होंने यहां भाजपा मुख्यालय नई दिल्ली में एक प्रेस वार्ता के दौरान कहा, 'पिछले 20 वर्षों में 6184 भारतीय मछुआरों को श्रीलंका द्वारा हिरासत में लिया गया है और 1175 भारतीय मछली पकड़ने वाली नौकाओं को श्रीलंका द्वारा जब्त, हिरासत में लिया गया है या पकड़ा गया है. यह उस मुद्दे की पृष्ठभूमि है जिस पर हम चर्चा कर रहे हैं.'
इसके अलावा शिवसेना (यूबीटी) नेता चतुर्वेदी ने कच्चातिवु द्वीप पर पीएम मोदी की बेबाक टिप्पणी की आलोचना करते हुए कहा, 'एक मौजूदा प्रधानमंत्री ने एक आरटीआई के जवाब का हवाला देते हुए भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पर कच्चातीवु द्वीप श्रीलंका को 'सौंपने' का गंभीर आरोप लगाया है. अपनी कुर्सी और आरोपों के बारे में सोचे बिना, वह इस उम्मीद में आगामी चुनावों में राजनीतिक फायदा उठा रहे हैं कि वे तमिलनाडु में कुछ सीटें जीत सकते हैं. दोषारोपण करके मतदाताओं को विभाजित करने की मंशा है.'
उन्होंने कहा कि 'आइए याद रखें कि ऐसे निर्णय सरकारों द्वारा लिए जाते हैं, जिसमें राजनयिकों, सैन्य अधिकारियों, कानूनी सलाहकारों और नौकरशाहों जैसे पेशेवरों के इनपुट और सलाह शामिल होते हैं. उन्हें एक नेता या एक पार्टी तक सीमित कर देना अलोकतांत्रिक है क्योंकि सरकार सिर्फ एक व्यक्ति से बढ़कर होती है. हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि आरटीआई एक भाजपा पदाधिकारी द्वारा दायर की गई थी जो तमिलनाडु से चुनाव लड़ रहा है और साझा की गई जानकारी केंद्र में भाजपा सरकार द्वारा कुछ राजनीतिक लाभ के लिए है.'
प्रियंका चतुर्वेदी ने साधा निशाना : उन्होंने 'एक्स' पर पोस्ट किया, 'इसके अलावा, बीजेपी के तर्क के अनुसार, क्या पीएम की झूला कूटनीति और उनकी घोषणा के बाद अरुणाचल प्रदेश या लद्दाख से कोई भी चीन द्वारा जमीन हड़पने के संबंध में आरटीआई दाखिल करेगा? है हिम्मत? क्या भाजपा का कोई व्यक्ति यह जानकारी पाने के लिए आरटीआई दाखिल करेगा कि कैसे नेपाल ने कालापानी क्षेत्र के तीन गांवों पर दावा किया है और कैसे काठमांडू ने भारत के लिपुलेख, कालापानी और लिमिपियाधुरा को अपने क्षेत्र के हिस्से के रूप में दिखाते हुए एक नया नक्शा प्रकाशित किया है?
अब कच्चातिवु के इस मुद्दे पर पीएम के ट्वीट के संबंध में 'अब संदर्भ के लिए भारत ने 1974 में रिश्ते को सामान्य बनाने के लिए श्रीलंका के साथ बातचीत के दौरान इस द्वीप पर अपना दावा वापस ले लिया था, जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं और तमिलनाडु में डीएमके सरकार ने इस प्रस्ताव पर कोई आपत्ति नहीं जताई थी. भारत पाक जलडमरूमध्य में इस द्वीप पर मछली पकड़ने के ऐतिहासिक अधिकार के दस्तावेजी सबूत पेश नहीं कर सका जबकि श्रीलंका के पास अपने दावे को साबित करने के लिए दस्तावेजी सबूत थे.'
उन्होंने कहा कि 'इस द्वीप की कुल भूमि 150 एकड़ थी. इसके साथ ही प्रधानमंत्री के रूप में इंदिरा गांधी ने 6 लाख तमिलों की भारत वापसी भी सुनिश्चित की. 2015 की बात करें, जब प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी ने बांग्लादेश के नियंत्रण में 112 परिक्षेत्रों को सौंप दिया था और बांग्लादेश के नियंत्रण में 55 परिक्षेत्रों को बांग्लादेश के साथ एक सीमा विवाद को हल करने के लिए प्राप्त कर लिया था, जो विभाजन के समय से एक गलत परिभाषा के कारण लंबित था. सुंदरबन डेल्टा में विभाजन रेखा. कुल मिलाकर भारत ने पड़ोसी के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने के लिए बांग्लादेश को 15000 एकड़ से अधिक भूमि सौंपी.'
चतुर्वेदी ने कहा कि 'इसे पथप्रदर्शक बताया गया और यह सही भी है क्योंकि इस समझौते में बड़े पड़ोसी भारत को उदार और विशाल हृदय वाला माना गया है. जिस तरह से प्रधानमंत्री इस द्वीप पर अपना दावा वापस लेने के लिए 1974 के समझौते को सार्वजनिक रूप से उछाल रहे हैं और पिछली सरकार को नीचा दिखाने की कोशिश कर रहे हैं और एक पड़ोसी के साथ भारत के अंतरराष्ट्रीय समझौते पर सवाल उठा रहे हैं, वह भारत की पड़ोस की सुरक्षा और अंतरराष्ट्रीय संबंधों के लिए अच्छा नहीं है. संयोग से अक्टूबर 2014 में सुप्रीम कोर्ट में भारत सरकार (भाजपा) का प्रतिनिधित्व करने वाले अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने श्रीलंका द्वारा इस द्वीप के तट पर मछली पकड़ रहे भारतीय मछुआरों को गिरफ्तार करने के सवाल पर कहा था कि द्वीप का दावा वापस ले लिया गया है और द्वीप को उचित प्रक्रिया और अंतरराष्ट्रीय कानून के बाद श्रीलंका सौंप दिया गया है.'
आज सुबह, पीएम मोदी ने इस मुद्दे पर डीएमके और कांग्रेस की आलोचना की और कहा, 'बयानबाजी के अलावा, डीएमके ने तमिलनाडु के हितों की रक्षा के लिए कुछ नहीं किया है. कच्चातिवु पर सामने आए नए विवरणों ने डीएमके के दोहरे मानकों को उजागर कर दिया है.' पीएम ने के 'एक्स' पर लिखा, 'कांग्रेस और द्रमुक पारिवारिक इकाइयां हैं. उन्हें केवल इस बात की परवाह है कि उनके बेटे-बेटियां आगे बढ़ें. उन्हें किसी और की परवाह नहीं है. कच्चातिवु पर उनकी संवेदनहीनता ने विशेष रूप से हमारे गरीब मछुआरों और मछुआरा महिलाओं के हितों को नुकसान पहुंचाया है.'