कांकेर : कैफे का नाम सुनने के बाद आपके मन में कॉफी और फास्ट फूड की तस्वीर उभरती होगी.लेकिन कांकेर का कैफे इससे बिल्कुल अलग है.यहां पर स्वाद के साथ सेहत का भी समावेश है.क्योंकि इस कैफे में मिलने वाले व्यंजन मिलेट्स से बनाए जाते हैं.इस कैफे का नाम भी मावा मिलेट्स महतारी कैफे रखा गया है.जिसका संचालन आदिवासी महिला गृहिणी समूह करता है. कैफे की खासियत ये है कि महज 3 महीनों में ही ये लाखों की आमदनी कर चुका है. इस कैफे में डोसा से लेकर सेंडविच, लड्डू सभी चीजें मिलेट्स के बने होते हैं.
कैसा है मिलेट्स कैफे ? : कांकेर जिला मुख्यालय में स्थित मिलेट्स कैफे को आदिवासी महिला गृहिणी समूह संचालित करते हैं. समूह के सदस्य मीनू वट्टी ने ईटीवी भारत को बताया कि कांकेर में बहुत सारे कैफे तो है लेकिन मिलेट्स का अपना जो न्यूट्रिशन वैल्यू है वो अलग है. आज कल लोग अनहेल्दी फूड खा रहे हैं. जो लोगों को बीमारी की ओर लेकर जा रही है. आज के समय मे ब्लड ब्रेशर, शुगर जैसी बीमारियां बढ़ रही है. इन्ही कारणों को देखते हुए हमने मिलेट कैफे की शुरुआत की.मिलेट महतारी कैफे में इडली, डोसा, फरा, चीला, उपमा, चाउमीन और पास्ता मिल रहा है. ये सभी मिलेट्स से बनाए जाते हैं.इनको बनाने में रागी, ज्वार, कोदो का इस्तेमाल होता है.
कितने लोग करते हैं काम ? : इस कैफे में 12 आदिवासी महिलाओं का समूह है. जिन्होंने कांकेर जिले को बीमारी मुक्त और बेरोजगारी मुक्त बनाने के संकल्प के साथ मिलेट्स कैफे की शुरुआत की.यहां पर रागी, कंगनी, ज्वार के स्वादिष्ट लड्डू भी बनते हैं. जिसका 1 किलो 1 हजार रुपए में बेचा जाता है. कैफे में लड्डू के ऑर्डर भी आते हैं. कैफे चलाने वाली संचालिका की माने तो तीन महीने में करीब एक लाख की आमदनी हो चुकी है. इस कैफे में कुटकी का खीर बहुत फेमस है. जिसका स्वाद चखने लोग एक बार जरूर आते हैं. साथ ही साथ रागी का केक भी बनाया जाता है.
मिलेट्स में पोषक तत्वों की भरमार : कांकेर जिले के कृषि वैज्ञानिक बीरबल साहू के मुताबिक मिलेट्स लघु धन्य होते हैं .उसमें अन्य अनाजों की तुलना में पोषण की दृष्टि से कैल्शियम, फास्फोरस, आयरन की प्रचुर मात्रा पाई जाती है. साथ ही साथ फाइबर की मात्रा भी होती है. जो पाचन में मदद करता है .कुपोषित बच्चे या महिलाओं के लिए रागी का सेवन लाभदायक है.
70 के दशक में होती थी मिलेट्स की खेती : आपको बता दें कि 70 के दशक तक कांकेर जिले में मिलेट्स का रकबा 45 हजार हेक्टेयर था. इसके बाद हाईब्रिड चावल का दौर आया, किसानों ने मिलेट्स छोड़कर चावल की खेती करनी शुरू की. इससे 2020 में मिलेट का रकबा घटकर 3 हजार हेक्टेयर रह गया. कृषि विज्ञान केंद्र ने मिलेट फसल लेने वाले किसानों को संगठित कर बाजार उपलब्ध कराया. पारंपरिक ढेकी, जाता से प्रोसेसिंग की जगह मशीनें लगाई. 2023 में रकबा तीन गुना बढ़कर 10 हजार हेक्टेयर पहुंच गया. 50-60 साल पहले कांकेर जिले के लोग केवल मिलेट्स यानी कोदो, कुटकी, चावल ही उगाते थे. धान-मक्के की तरह खेत बनाने जरूरत नहीं होती. यह टिकरा-अनुपजाऊ जमीन में भी हो जाता है. हाईब्रिड चावल का दौर आया तो किसानों ने मिलेट्स की खेती कम कर दी.