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झीरम नक्सल हमला, 11 साल बाद भी अनसुलझी पहेली बना देश का सबसे बड़ा नक्सली हमला - jhiram attack anniversary

Jhiram Naxal Attack Anniversary 25 मई 2013 शनिवार का दिन आज भी कोई भूल नहीं सकता, जब जवानों और आम लोगों से हटकर बड़े नेताओं को नक्सलियों ने निशाना बनाया था. देश के इस सबसे बड़े नक्सली हमले में कांग्रेस नेताओं सहित 30 लोगों की मौत हुई थी.11 years Of Jheeram Naxalite Attack

Jhiram
झीरम नक्सली हमला (ETV Bharat Chhattisgarh)
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : May 25, 2024, 7:34 AM IST

रायपुर: झीरम नक्सली हमले को आज 11 बरस बीत हो चुके हैं, लेकिन इसका सच अब तक अधूरा है. इस नक्सली हमले का सच आज भी सामने नहीं आ सका है. ऐसा नहीं है कि नक्सली हमले के जांच के लिए कोई प्रयास नहीं किए गए. एनआईए जांच शुरू की गई, फिर मामला कोर्ट गया, फिर भाजपा ने इस मामले को लेकर कोर्ट से स्टे ले लिया और अब तक इस मामले में स्टे लगा हुआ है. इस मामले पर जमकर सियासत हुई, पक्ष विपक्ष ने एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाए. इस तरह देश के इस बड़े नक्सली हमले को 11 साल हो गए लेकिन जांच अधूरी है. आज भी जीराम नक्सली हमला एक अनसुलझी पहली बनकर रह गई है.

2013 को झीरम नक्सली हमले में नंदकुमार पटेल, महेंद्र कर्मा, विद्याचरण शुक्ल की हुई थी मौत:

छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव 2013 के पहले कांग्रेस ने अपने पक्ष में माहौल बनाने के लिए परिवर्तन यात्रा की शुरुआत की थी. उस दौरान राज्य में भाजपा सरकार थी. इस परिवर्तन यात्रा के जरिए कांग्रेस सत्ता पर काबिज होना चाह रही थी, लेकिन इसी बीच 25 मई 2013 को एक ऐसी नक्सली घटना हुई जिसने न सिर्फ छत्तीसगढ़ को बल्कि पूरे देश को हिला कर रख दिया. इस घटना में नक्सलियों ने एक साथ छत्तीसगढ़ कांग्रेस के प्रथम पंक्ति के कई नेताओं को मौत के घाट उतार दिया. मरने वालों में तत्कालीन कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार पटेल, विद्या चरण शुक्ल, महेंद्र कर्मा, उदय मुदलियार सहित लगभग 30 से ज्यादा नेता, कार्यकर्ता और कई जवान शामिल थे. इतना बड़ा राजनीतिक नरसंहार देश में इससे पहले नहीं हुआ.

11 साल बाद भी भाजपा और कांग्रेस सरकार, झीरम का सच नहीं ला सकी सामने:

झीरम घाटी नक्सल घटना को लेकर छत्तीसगढ़ की तत्कालीन भाजपा सरकार ने जांच का आश्वासन दिया. समय बिताता गया, साल 2013 विधानसभा चुनाव भी संपन्न हो गया और भाजपा एक बार फिर सत्ता पर काबिज हो गई. इसके बाद 5 साल भाजपा सरकार रही. फिर साल 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में सत्ता परिवर्तन हुआ,और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार बनी. यह सरकार झीरम का सच सामने लाने का दावा कर रही थी लेकिन कांग्रेस सरकार के भी 5 साल बीत गए और फिर साल 2023 में विधानसभा चुनाव हुए इसके बाद दोबारा प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी.

घटना के दो दिन बाद ही एनआईए को सौंपी गई थी जांच, जो अब तक है अधूरी:

साल 2013 में हुए झीरम नक्सली हमले की जांच की जिम्मेदारी केंद्र सरकार ने घटना के दो बाद ही 27 मई 2013 को एनआईए को सौंप दी. एनआईए ने इस मामले की पहली चार्ज सीट 24 सितंबर 2014 को विशेष अदालत में दाखिल की. इस मामले में 9 गिरफ्तार नक्सली सहित कुल 39 लोगों को आरोपी बनाया गया. इसके बाद 28 सितंबर 2015 को सप्लीमेंट्री चार्जशीट दाखिल की गई. जिसमें 88 और आरोपियों के नामों को शामिल किया गया. इस मामले में जैसे ही चार्जशीट कोर्ट में दाखिल की गई, अधूरी जांच, राजनीतिक दबाव, नक्सली लीडर्स को बचाने जैसे आरोप लगने शुरू हो गए.

झीरम जांच के लिए बनाया आयोग, धरमलाल कौशिक ने लिया स्टे:

झीरम हमले की जांच के लिए हाई कोर्ट के जस्टिस प्रशांत मिश्रा की अध्यक्षता में आयोग का गठन किया गया. जिसमें सुरक्षा में हुई चूक की जांच चल रही थी, मामले में काफी लंबी सुनवाई हुई लेकिन इसी बीच जस्टिस प्रशांत मिश्रा का प्रमोशन हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के रूप में हो गया. इस दौरान जस्टिस प्रशांत मिश्रा ने जांच रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंप दी. इस रिपोर्ट को कांग्रेस की सरकार ने अधूरा बताया, फिर कांग्रेस की तत्कालीन सरकार ने रिपोर्ट को बिना सार्वजनिक किये जस्टिस सतीश अग्निहोत्री और रिटायर्ड जज मिन्हाजुद्दीन की 2 सदस्यीय जांच कमेटी गठित की. इस जांच कमेटी के खिलाफ भाजपा नेता धरमलाल कौशिक ने हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की, जिस पर अब तक स्थगन मिला हुआ है.

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2013 को झीरम नक्सली हमले में नंदकुमार पटेल, महेंद्र कर्मा, विद्याचरण शुक्ल की हुई थी मौत:

छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव 2013 के पहले कांग्रेस ने अपने पक्ष में माहौल बनाने के लिए परिवर्तन यात्रा की शुरुआत की थी. उस दौरान राज्य में भाजपा सरकार थी. इस परिवर्तन यात्रा के जरिए कांग्रेस सत्ता पर काबिज होना चाह रही थी, लेकिन इसी बीच 25 मई 2013 को एक ऐसी नक्सली घटना हुई जिसने न सिर्फ छत्तीसगढ़ को बल्कि पूरे देश को हिला कर रख दिया. इस घटना में नक्सलियों ने एक साथ छत्तीसगढ़ कांग्रेस के प्रथम पंक्ति के कई नेताओं को मौत के घाट उतार दिया. मरने वालों में तत्कालीन कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार पटेल, विद्या चरण शुक्ल, महेंद्र कर्मा, उदय मुदलियार सहित लगभग 30 से ज्यादा नेता, कार्यकर्ता और कई जवान शामिल थे. इतना बड़ा राजनीतिक नरसंहार देश में इससे पहले नहीं हुआ.

11 साल बाद भी भाजपा और कांग्रेस सरकार, झीरम का सच नहीं ला सकी सामने:

झीरम घाटी नक्सल घटना को लेकर छत्तीसगढ़ की तत्कालीन भाजपा सरकार ने जांच का आश्वासन दिया. समय बिताता गया, साल 2013 विधानसभा चुनाव भी संपन्न हो गया और भाजपा एक बार फिर सत्ता पर काबिज हो गई. इसके बाद 5 साल भाजपा सरकार रही. फिर साल 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में सत्ता परिवर्तन हुआ,और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार बनी. यह सरकार झीरम का सच सामने लाने का दावा कर रही थी लेकिन कांग्रेस सरकार के भी 5 साल बीत गए और फिर साल 2023 में विधानसभा चुनाव हुए इसके बाद दोबारा प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी.

घटना के दो दिन बाद ही एनआईए को सौंपी गई थी जांच, जो अब तक है अधूरी:

साल 2013 में हुए झीरम नक्सली हमले की जांच की जिम्मेदारी केंद्र सरकार ने घटना के दो बाद ही 27 मई 2013 को एनआईए को सौंप दी. एनआईए ने इस मामले की पहली चार्ज सीट 24 सितंबर 2014 को विशेष अदालत में दाखिल की. इस मामले में 9 गिरफ्तार नक्सली सहित कुल 39 लोगों को आरोपी बनाया गया. इसके बाद 28 सितंबर 2015 को सप्लीमेंट्री चार्जशीट दाखिल की गई. जिसमें 88 और आरोपियों के नामों को शामिल किया गया. इस मामले में जैसे ही चार्जशीट कोर्ट में दाखिल की गई, अधूरी जांच, राजनीतिक दबाव, नक्सली लीडर्स को बचाने जैसे आरोप लगने शुरू हो गए.

झीरम जांच के लिए बनाया आयोग, धरमलाल कौशिक ने लिया स्टे:

झीरम हमले की जांच के लिए हाई कोर्ट के जस्टिस प्रशांत मिश्रा की अध्यक्षता में आयोग का गठन किया गया. जिसमें सुरक्षा में हुई चूक की जांच चल रही थी, मामले में काफी लंबी सुनवाई हुई लेकिन इसी बीच जस्टिस प्रशांत मिश्रा का प्रमोशन हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के रूप में हो गया. इस दौरान जस्टिस प्रशांत मिश्रा ने जांच रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंप दी. इस रिपोर्ट को कांग्रेस की सरकार ने अधूरा बताया, फिर कांग्रेस की तत्कालीन सरकार ने रिपोर्ट को बिना सार्वजनिक किये जस्टिस सतीश अग्निहोत्री और रिटायर्ड जज मिन्हाजुद्दीन की 2 सदस्यीय जांच कमेटी गठित की. इस जांच कमेटी के खिलाफ भाजपा नेता धरमलाल कौशिक ने हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की, जिस पर अब तक स्थगन मिला हुआ है.

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