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झारखंड में सियासी गदर, ताजा हुई उत्तराखंड 'संकट' की यादें, नौ विधायकों ने किया 'खेला', लगा था राष्ट्रपति शासन

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Feb 1, 2024, 1:35 PM IST

President rule in Uttarakhand झारखंड में मचे सियासी तूफान के बीच उत्तराखंड के 'संकट' की यादें ताजा हो गई हैं. साल 2016 में कांग्रेस के नौ विधायकों ने हरीश रावत के साथ खेला कर दिया था. जिसके बाद उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा था.

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उत्तराखंड 'संकट' की यादें

देहरादून: झारखंड में बीते दो दिनों से राजनीतिक उथल पुथल जारी है. ED की पूछताछ के बाद हेमंत सोरेन ने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया है. उनकी जगह चंपई सोरेने को झारखंड का मुख्यमंत्री बनाया गया है. मनी लॉन्ड्रिंग केस में फंसे हेमंत सोरेन की कभी भी गिरफ्तारी हो सकती है. हेमंत सोरेन पर ईडी की कार्रवाई से सियासी संकट खड़ा हो गया है. पॉलिटिक्ल पार्टीज घटनाक्रम पर नजर बनाये हुए हैं. ऐसा ही कुछ घटनाक्रम उत्तराखंड में साल 2016 में हरीश रावत की सरकार में भी हुआ था. तब मामला दल बदल से जुड़ा था. इस घटनाक्रम के कारण उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगा था. पूरे देश की निगाहें तब उत्तराखंड में चल रहे पॉलिटिकल स्टंट पर टिक गई थी. क्या था ये पूरा मामला आईये आपको बताते हैं.

18 मार्च 2016 को नौ विधायकों ने की बगावत: दरअसल, 18 मार्च 2016 को बजट सत्र के दौरान हरीश रावत सरकार के नौ विधायकों ने बगावत कर दी. इन विधायकों में विजय बहुगुणा, हरक सिंह रावत, कुंवर प्रणव सिंह चैंपियन, शैला रानी रावत, उमेश शर्मा, शैलेंद्र मोहन, अमृता रावत, सुबोध उनियाल, प्रदीप बत्रा शामिल थे. इनके बगावती तेवरों की आंच से सरकार अल्पमत में आ गई. इतना ही नहीं तब बगावत करने वाले विधायक विधानसभा में भी हरीश रावत सरकार को निलंबित करने की मांग को लेकर धरने पर बैठ गये थे.

27 मार्च को लगा राष्ट्रपति शासन: इसके बाद 20 मार्च 2016 को विधानसभा अध्यक्ष ने दल बदल कानून के तहत बगावती विधायकों को निलंबित कर दिया. इसके बाद ये मामला राष्ट्रपति के पास पहुंचा. बागी विधायकों ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग की. इस दौरान पूरा राष्ट्रीय मीडिया देहरादून में जमा रहा. इसके बाद 27 मार्च को तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगा दिया.

10 मई 2016 को हुआ फ्लोर टेस्ट: कांग्रेस ने राष्ट्रपति शासन के खिलाफ उत्तराखंड हाईकोर्ट की एकल पीठ में अपील की. कोर्ट ने अपने फैसले में बहुमत साबित करने की तारीख आगे बढ़ाकर 31 मार्च 2016 की. अपील के विरोध में केंद्र ने उत्तराखंड हाईकोर्ट की डबल बेंच में अपील की. जिसके बाद कोर्ट ने 30 मार्च 2026 को शक्ति परीक्षण के अपने ही आदेश पर रोक लगाई. 6 मई 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने हरीश रावत को 10 मई 2016 को फ्लोर टेस्ट करने के आदेश दिये. कांग्रेस के 9 बागी विधायकों के वोटिंग में हिस्सा लेने पर भी रोक लगाई. 10 मई 2016 को उत्तराखंड विधानसभा में फ्लोर टेस्ट हुआ. जिसमें हरीश रावत को बहुमत साबित करना था. इस फ्लोर टेस्ट में हरीश रावत ने जीत हासिल की. हरीश रावत ने गैर कांग्रेसी विधायकों के गुट प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक फ्रंट की मदद से बहुमत साबित किया. जिससे उन्होंने अपनी सरकार बचाई.

डेढ़ महीने बनी रही असमंजस की स्थिति: 18 मार्च से लेकर 10 मई तक उत्तराखंड में घटे इस सियासी घटनाक्रम पर पूरे देश की नजर थी. उत्तराखंड की हर पॉलिटिकल अपडेट तब समाचार पत्रों की सुर्खियां बन रही थी. इस दौरान उत्तराखंड में सरकार बनाने को लेकर सियासी खेल भी चलता रहा. हरीश रावत का स्टिंग प्रकरण भी इसी बीच सामने आया था. अब ऐसा ही घमासान झारखंड में मचा है. झारखंड में ईडी की कार्रवाई के बाद बहुत कुछ बदलेगा. जिसका असर लोकसभा चुनाव के साथ ही विधानसभा चुनाव में भी देखने को मिलेगा.

देहरादून: झारखंड में बीते दो दिनों से राजनीतिक उथल पुथल जारी है. ED की पूछताछ के बाद हेमंत सोरेन ने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया है. उनकी जगह चंपई सोरेने को झारखंड का मुख्यमंत्री बनाया गया है. मनी लॉन्ड्रिंग केस में फंसे हेमंत सोरेन की कभी भी गिरफ्तारी हो सकती है. हेमंत सोरेन पर ईडी की कार्रवाई से सियासी संकट खड़ा हो गया है. पॉलिटिक्ल पार्टीज घटनाक्रम पर नजर बनाये हुए हैं. ऐसा ही कुछ घटनाक्रम उत्तराखंड में साल 2016 में हरीश रावत की सरकार में भी हुआ था. तब मामला दल बदल से जुड़ा था. इस घटनाक्रम के कारण उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगा था. पूरे देश की निगाहें तब उत्तराखंड में चल रहे पॉलिटिकल स्टंट पर टिक गई थी. क्या था ये पूरा मामला आईये आपको बताते हैं.

18 मार्च 2016 को नौ विधायकों ने की बगावत: दरअसल, 18 मार्च 2016 को बजट सत्र के दौरान हरीश रावत सरकार के नौ विधायकों ने बगावत कर दी. इन विधायकों में विजय बहुगुणा, हरक सिंह रावत, कुंवर प्रणव सिंह चैंपियन, शैला रानी रावत, उमेश शर्मा, शैलेंद्र मोहन, अमृता रावत, सुबोध उनियाल, प्रदीप बत्रा शामिल थे. इनके बगावती तेवरों की आंच से सरकार अल्पमत में आ गई. इतना ही नहीं तब बगावत करने वाले विधायक विधानसभा में भी हरीश रावत सरकार को निलंबित करने की मांग को लेकर धरने पर बैठ गये थे.

27 मार्च को लगा राष्ट्रपति शासन: इसके बाद 20 मार्च 2016 को विधानसभा अध्यक्ष ने दल बदल कानून के तहत बगावती विधायकों को निलंबित कर दिया. इसके बाद ये मामला राष्ट्रपति के पास पहुंचा. बागी विधायकों ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग की. इस दौरान पूरा राष्ट्रीय मीडिया देहरादून में जमा रहा. इसके बाद 27 मार्च को तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगा दिया.

10 मई 2016 को हुआ फ्लोर टेस्ट: कांग्रेस ने राष्ट्रपति शासन के खिलाफ उत्तराखंड हाईकोर्ट की एकल पीठ में अपील की. कोर्ट ने अपने फैसले में बहुमत साबित करने की तारीख आगे बढ़ाकर 31 मार्च 2016 की. अपील के विरोध में केंद्र ने उत्तराखंड हाईकोर्ट की डबल बेंच में अपील की. जिसके बाद कोर्ट ने 30 मार्च 2026 को शक्ति परीक्षण के अपने ही आदेश पर रोक लगाई. 6 मई 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने हरीश रावत को 10 मई 2016 को फ्लोर टेस्ट करने के आदेश दिये. कांग्रेस के 9 बागी विधायकों के वोटिंग में हिस्सा लेने पर भी रोक लगाई. 10 मई 2016 को उत्तराखंड विधानसभा में फ्लोर टेस्ट हुआ. जिसमें हरीश रावत को बहुमत साबित करना था. इस फ्लोर टेस्ट में हरीश रावत ने जीत हासिल की. हरीश रावत ने गैर कांग्रेसी विधायकों के गुट प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक फ्रंट की मदद से बहुमत साबित किया. जिससे उन्होंने अपनी सरकार बचाई.

डेढ़ महीने बनी रही असमंजस की स्थिति: 18 मार्च से लेकर 10 मई तक उत्तराखंड में घटे इस सियासी घटनाक्रम पर पूरे देश की नजर थी. उत्तराखंड की हर पॉलिटिकल अपडेट तब समाचार पत्रों की सुर्खियां बन रही थी. इस दौरान उत्तराखंड में सरकार बनाने को लेकर सियासी खेल भी चलता रहा. हरीश रावत का स्टिंग प्रकरण भी इसी बीच सामने आया था. अब ऐसा ही घमासान झारखंड में मचा है. झारखंड में ईडी की कार्रवाई के बाद बहुत कुछ बदलेगा. जिसका असर लोकसभा चुनाव के साथ ही विधानसभा चुनाव में भी देखने को मिलेगा.

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