हैदराबाद : भारत सहित पूरी दुनिया में भाषा और बोलियां लगातार विलुप्त हो रही हैं. जैसे-जैसे भाषाएं लुप्त हो रही हैं, भाषाई विविधता पर खतरा बढ़ता जा रहा है. इसे रोकने व संरक्षित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र की ओर से 21 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय मातृ भाषा दिवस मनाया जाता है. इसका मुख्य उद्देश्य भाषाई विविधता की जरूरत के बारे में लोगों को जागरूक करना है. इसके लिए मातृ भाषा में व्यवहारिक और तकनीकी शिक्षा पर फोकस करते हुए इसे रोजगार से जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है.
वर्तमान में वैश्विक स्तर पर 40 फीसदी आबादी के पास अपनी मूल भाषा (मातृ भाषा) में शिक्षा उपलब्ध नहीं है. यह आंकड़ा कुछ क्षेत्रों में 90 फीसद से अधिक है. मातृ भाषा में शिक्षा और शोध के बेहतर परिणाम होते हैं. इससे एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में शिक्षा और संस्कृति का प्रसार होता है. बहुभाषी और बहुसांस्कृतिक समाज अपनी भाषाओं के संरक्षण के माध्यम से आगे बढ़ते हैं. साथ ही पारंपरिक ज्ञान और सांस्कृतिक विरासत को आगे बढ़ाते हैं.
अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पहले यूनेस्को की ओर से घोषित किया गया था और बाद में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने इसे अपनाने का निर्णय लिया. यह दिवस समावेशन को बढ़ावा देने और सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने में भाषाओं की भूमिका को रेखांकित करता है. 2024 की थीम 'बहुभाषी शिक्षा - सीखने और अंतर-पीढ़ीगत सीखने का एक स्तंभ' बहुभाषी शिक्षा नीतियां, समावेशी शिक्षा और स्वदेशी भाषाओं के संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण हैं. शिक्षार्थी की मातृभाषा में शिक्षा शुरू करने और धीरे-धीरे अन्य भाषाओं को शामिल करने से, घर और स्कूल के बीच की बाधाएं दूर हो जाती हैं. इससे प्रभावी शिक्षण की सुविधा मिलती है.
बहुभाषी शिक्षा न केवल समावेशी समाज को बढ़ावा देती है बल्कि गैर-प्रमुख, अल्पसंख्यक और स्वदेशी भाषाओं के संरक्षण में भी सहायता करती है. यह सभी व्यक्तियों के लिए शिक्षा तक समान पहुंच और आजीवन सीखने के अवसर प्राप्त करने की आधारशिला है.
संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) के एक सम्मेलन के दौरान नवंबर 1999 में अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की घोषणा की गई थी. अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाने का विचार बांग्लादेश की पहल पर हुई थी. संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2002 के अपने प्रस्ताव में इस दिन की घोषणा का स्वागत किया.
16 मई 2007 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने एक प्रस्ताव के माध्यम से सदस्य राज्यों से 'दुनिया के लोगों की ओर से उपयोग की जाने वाली सभी भाषाओं के संरक्षण और संरक्षण को बढ़ावा देने' का आह्वान किया था. संकल्प के माध्यम से महासभा ने बहुभाषावाद और बहुसंस्कृतिवाद के माध्यम से विविधता में एकता और अंतरराष्ट्रीय समझ को बढ़ावा देने के लिए 2008 को अंतरराष्ट्रीय भाषा वर्ष के रूप में घोषित किया. इस वार्षिक आयोजन के लिए नोडल एजेंसी के लिए यूनेस्को को नामित किया गया था.
देश में 559 मातृभाषाओं का है प्रचलन
- आजादी से पहले भारत में 179 भाषाएं और 544 बोलियां थीं.
- 2011 की जनगणना के अनुसार देश में 22 अनुसूचित भाषाएं हैं.
- वहां गैर अनुसूचित भाषाओं की संख्या 99 से ज्यादा है.
- देश में प्रचलित भाषाएं 121 से ज्यादा है.
- देश भर में मातृभाषा की स्थिति के अध्ययन के लिए के लिए केंद्र सरकार की ओर से निर्णय लिया गया था.
- इसके आधार पर 12वीं पंचवर्षीय योजना से 'भारत की मातृभाषा सर्वेक्षण' कराया गया.
- इस दौरान देश के अलग-अलग राज्यों के भौगोलिक दायरे में बोली जाने वाली भाषाओं का अध्ययन किया गया.
- मातृभाषा सर्वेक्षण के आधार पर पता किया गया कि एक बोली किस-किस इलाके में बोली जाती है.
- 559 मातृभाषाओं का वर्गीकरण कर विस्तृत सर्वेक्षण किया गया.
- सभी मातृभाषाओं का इतिहास, विवरण, लिपि सहित दस्तावेजों को तैयार किया गया.
- सर्वेक्षण दस्तावेज में व्याकरण सहित अन्य जानकारी हिंग्लिश में भी उपलब्ध है.
- इसे तैयार करने के लिए भाषा विद् के साथ-साथ स्थानीय विशेषज्ञों की भी मदद ली गई है.
भाषा एटलस है भाषाओं का लेखा-जोखा
- भाषा एटलस का प्रकाशन रजिस्ट्रार जनरल और जनगणना आयुक्त के कार्यालय की ओर से होता है.
- भारत में पहली बार 1991 की जनगणना के आधार पर भाषा एटलस का प्रकाशन किया गया था.
- इसके बाद से नियमित रूप से भाषा एटलस का प्रकाशन हो रहा है.
- यह अंतिम बार 2011 जनगणना के आधार पर प्रकाशित हुआ था.
- भाषा एटलस से देश की विभिन्न भाषाओं के भौगोलिक विवरण की जानकारी मिलती है.
- एटलस की मदद से भाषाओं का वितरण, भाषाओं की वर्तमान स्थिति को समझने में मदद मिलती है.
- 2011 में मातृभाषा और अनुसूचित जनजातियों से जुड़ा अतिरिक्त भाग जोड़ा गया है.