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30 जून को मनाया जाता है अंतरराष्ट्रीय संसदीय दिवस, जानिए क्या है इसका उद्देश्य? - International Parliamentarism Day

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jun 30, 2024, 5:01 PM IST

International Day of Parliamentarism: अंतरराष्ट्रीय संसदीय दिवस (IDP) अंतर-संसदीय संघ (IPU) की वर्षगांठ का प्रतीक है. आईडीपी की स्थापना 30 जून 1889 को हुई थी.

International Day of Parliamentarism
अंतरराष्ट्रीय संसदीय दिवस (ANI)

नई दिल्ली: हर साल 30 जून को अंतरराष्ट्रीय संसदीय दिवस मनाया जाता है. इसका उद्देश्य देशों की संसदों के बीच संबंध स्थापित करना और आपसी सहयोग को बढ़ावा देना है. इस अवसर पर कई संसदें अपने सदस्यों को अंतर-संसदीय संगठनों, द्विपक्षीय आदान-प्रदान और अन्य कूटनीति पहलों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करती हैं.

अंतरराष्ट्रीय संसदीय दिवस की स्थापना 30 जून 1889 को हुई थी. संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव के अनुसार संसदों के लिए एक अंतरराष्ट्रीय दिवस की स्थापना संसदीय लोकतंत्र के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि लोगों का राजनीतिक संस्थाओं में विश्वास खत्म हो रहा है और लोकतंत्र स्वयं लोकलुभावन और राष्ट्रवादी आंदोलनों से चुनौतियों का सामना कर रहा है.

संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव में कहा गया है कि अगर लोकतंत्र को फलना-फूलना है तो संसदों को मजबूत, पारदर्शी, जवाबदेह और प्रतिनिधित्वपूर्ण होना चाहिए. अंतरराष्ट्रीय संसदीय दिवस अंतर-संसदीय संघ (IPU) की वर्षगांठ का भी प्रतीक है.

बता दें कि संसदीय शासन प्रणालियों के औपचारिक प्रतिनिधित्व के रूप में 1889 में स्थापित किया गया IPU एक ग्लोबल ओर्गनाइजेशन है जो लोकतांत्रिक शासन, मानव प्रतिनिधित्व, लोकतांत्रिक मूल्यों और समाज की नागरिक आकांक्षाओं को बढ़ावा देने के लिए काम करती है.

संसद के काम में जनता की भागीदारी
तीसरी वैश्विक संसदीय रिपोर्ट संसद के काम में जनता की भागीदारी की जांच करती है. यह मान्यता देती है कि आज की तेजी से बदलती दुनिया की चुनौतियों का समाधान करने में संसदों की महत्वपूर्ण भूमिका है. इससे लोगों को कानून बनाने, नीति निर्माण और निगरानी प्रक्रियाओं से जुड़ने और उनमें भाग लेने में सक्षम बनाया जा सकता है, जो उनके वर्तमान और भविष्य के जीवन को प्रभावित करती हैं.

पब्लिक इंगेजमेंट के लाभ
ग्लोबल पार्लियामेंट्री रिपोर्ट 2022 के अनुसार, संसद, सांसदों और समुदाय के लिए पब्लिक इंगेजमेंट पारस्परिक रूप से लाभकारी होने के कई कारण हैं. यह प्रतिनिधित्व, कानून बनाने, सार्वजनिक नीति निर्माण और लोगों की अपेक्षाओं और आकांक्षाओं को पूरा करने वाली आवश्यक जानकारी और विचारों की व्यापकता और गहराई तक पहुच प्रदान करके संसद के मुख्य कार्यों का समर्थन करता है.

रियल डायलोग से बढ़ता है विश्वास
आजकल सूचना के ओवलोड के बीच पार्लियामेंट को विजिबल बनाने के लिए हर संभव प्रयास करने की आवश्यकता है. ताकि लोगों और उनके निर्वाचित प्रतिनिधियों के बीच संवाद के लिए वास्तविक अवसर मिल सकें. लोगों के साथ बातचीत करने और उनकी बात सुनने पर जोर दिया जाना चाहिए, न कि केवल सूचना देने पर.

संसदों को भविष्य पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता
वैश्विक संसदीय रिपोर्ट संसदों से भविष्य पर ध्यान केंद्रित करने का आह्वान करती है. इसमें संसदों के लिए युवाओं को गंभीरता से लेने, किसी को पीछे न छोड़ने, टेक्नोलॉजी के माध्यम से बदलाव लाने, इनोवेस को प्रोत्साहित करने, साथ मिलकर काम करने और काम करने के लिए कुछ प्रमुख पहलों की रूपरेखा दी गई है.

संसद में महिलाएं
आईपीयू की लेटेस्ट रिपोर्ट के अनुसा 2023 में हुए चुनावों और नियुक्तियों के आधार पर महिला सांसदों का वैश्विक अनुपात 26.9 प्रतिशत तक बढ़ गया है. यह साल दर साल 0.4 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है. हालांकि, यह वृद्धि पिछले सालों की तुलना में धीमी है. 2021 और 2020 के चुनावों में महिला सांसदों की संख्या में 0.6 प्रतिशत अंकों की वृद्धि देखी गई है.

भारतीय का क्या है हाल?
हाल ही में हुए संसदीय चुनाव में 74 महिला सांसद चुनी गई हैं. यह संख्या 2019 की तुलना में चार कम है और 1952 में भारत के पहले चुनावों की तुलना में 52 अधिक है. बता दें कि 1952 में महिलाओं की संख्या निचले सदन की शक्ति का केवल 4.41 प्रतिशत थी. वहीं, 74 महिलाओं की वर्तमान संख्या निचले सदन की निर्वाचित सदस्यों का केवल 13.63 प्रतिशत है.

यह भी पढ़ें- राष्ट्रीय सांख्यिकी दिवस : जानें इस दिवस का पीसी महालनोबिस से कैसा था संबंध

नई दिल्ली: हर साल 30 जून को अंतरराष्ट्रीय संसदीय दिवस मनाया जाता है. इसका उद्देश्य देशों की संसदों के बीच संबंध स्थापित करना और आपसी सहयोग को बढ़ावा देना है. इस अवसर पर कई संसदें अपने सदस्यों को अंतर-संसदीय संगठनों, द्विपक्षीय आदान-प्रदान और अन्य कूटनीति पहलों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करती हैं.

अंतरराष्ट्रीय संसदीय दिवस की स्थापना 30 जून 1889 को हुई थी. संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव के अनुसार संसदों के लिए एक अंतरराष्ट्रीय दिवस की स्थापना संसदीय लोकतंत्र के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि लोगों का राजनीतिक संस्थाओं में विश्वास खत्म हो रहा है और लोकतंत्र स्वयं लोकलुभावन और राष्ट्रवादी आंदोलनों से चुनौतियों का सामना कर रहा है.

संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव में कहा गया है कि अगर लोकतंत्र को फलना-फूलना है तो संसदों को मजबूत, पारदर्शी, जवाबदेह और प्रतिनिधित्वपूर्ण होना चाहिए. अंतरराष्ट्रीय संसदीय दिवस अंतर-संसदीय संघ (IPU) की वर्षगांठ का भी प्रतीक है.

बता दें कि संसदीय शासन प्रणालियों के औपचारिक प्रतिनिधित्व के रूप में 1889 में स्थापित किया गया IPU एक ग्लोबल ओर्गनाइजेशन है जो लोकतांत्रिक शासन, मानव प्रतिनिधित्व, लोकतांत्रिक मूल्यों और समाज की नागरिक आकांक्षाओं को बढ़ावा देने के लिए काम करती है.

संसद के काम में जनता की भागीदारी
तीसरी वैश्विक संसदीय रिपोर्ट संसद के काम में जनता की भागीदारी की जांच करती है. यह मान्यता देती है कि आज की तेजी से बदलती दुनिया की चुनौतियों का समाधान करने में संसदों की महत्वपूर्ण भूमिका है. इससे लोगों को कानून बनाने, नीति निर्माण और निगरानी प्रक्रियाओं से जुड़ने और उनमें भाग लेने में सक्षम बनाया जा सकता है, जो उनके वर्तमान और भविष्य के जीवन को प्रभावित करती हैं.

पब्लिक इंगेजमेंट के लाभ
ग्लोबल पार्लियामेंट्री रिपोर्ट 2022 के अनुसार, संसद, सांसदों और समुदाय के लिए पब्लिक इंगेजमेंट पारस्परिक रूप से लाभकारी होने के कई कारण हैं. यह प्रतिनिधित्व, कानून बनाने, सार्वजनिक नीति निर्माण और लोगों की अपेक्षाओं और आकांक्षाओं को पूरा करने वाली आवश्यक जानकारी और विचारों की व्यापकता और गहराई तक पहुच प्रदान करके संसद के मुख्य कार्यों का समर्थन करता है.

रियल डायलोग से बढ़ता है विश्वास
आजकल सूचना के ओवलोड के बीच पार्लियामेंट को विजिबल बनाने के लिए हर संभव प्रयास करने की आवश्यकता है. ताकि लोगों और उनके निर्वाचित प्रतिनिधियों के बीच संवाद के लिए वास्तविक अवसर मिल सकें. लोगों के साथ बातचीत करने और उनकी बात सुनने पर जोर दिया जाना चाहिए, न कि केवल सूचना देने पर.

संसदों को भविष्य पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता
वैश्विक संसदीय रिपोर्ट संसदों से भविष्य पर ध्यान केंद्रित करने का आह्वान करती है. इसमें संसदों के लिए युवाओं को गंभीरता से लेने, किसी को पीछे न छोड़ने, टेक्नोलॉजी के माध्यम से बदलाव लाने, इनोवेस को प्रोत्साहित करने, साथ मिलकर काम करने और काम करने के लिए कुछ प्रमुख पहलों की रूपरेखा दी गई है.

संसद में महिलाएं
आईपीयू की लेटेस्ट रिपोर्ट के अनुसा 2023 में हुए चुनावों और नियुक्तियों के आधार पर महिला सांसदों का वैश्विक अनुपात 26.9 प्रतिशत तक बढ़ गया है. यह साल दर साल 0.4 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है. हालांकि, यह वृद्धि पिछले सालों की तुलना में धीमी है. 2021 और 2020 के चुनावों में महिला सांसदों की संख्या में 0.6 प्रतिशत अंकों की वृद्धि देखी गई है.

भारतीय का क्या है हाल?
हाल ही में हुए संसदीय चुनाव में 74 महिला सांसद चुनी गई हैं. यह संख्या 2019 की तुलना में चार कम है और 1952 में भारत के पहले चुनावों की तुलना में 52 अधिक है. बता दें कि 1952 में महिलाओं की संख्या निचले सदन की शक्ति का केवल 4.41 प्रतिशत थी. वहीं, 74 महिलाओं की वर्तमान संख्या निचले सदन की निर्वाचित सदस्यों का केवल 13.63 प्रतिशत है.

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