देहरादून: उत्तराखंड में चल रहे मानसून सीजन को लेकर राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (USDMA) ने सभी केंद्रीय तकनीकी और रिसर्च संस्थानों के साथ मिलकर आपदा से लड़ने का फुलप्रूफ प्लान तैयार किया है. इस प्लान में अलग अलग तरह की आपदाओं, रिस्क एसेसमेंट, मिटिगेशन, सर्च और रेस्क्यू पर फोकस किया गया है.
उत्तराखंड में प्राकृतिक आपदाएं हर साल कई चुनौतियों के साथ आती और कई जिंदगियां अपने साल ले जाती हैं. मानसून के दौरान बाढ़ और भूस्खलन से हर साल बेतहाशा जानमाल का नुकसान होता है. इस बार आपदा प्रबंधन की तैयारियों को हमने खंगाला, तो हम ने पाया कि आपदा प्रबंधन एक विभाग का कार्य नहीं है, बल्कि सभी महत्वपूर्ण विभागों के आपसी सामंजस्य और तालमेल से ही आपदा की चुनौतियों से निपटा जा सकता है. जब हमने आपदा प्रबंधन सचिव से इस बार के प्लान के बारे में जाना, तो बताया गया कि इस बार विभिन्न अनुसंधान संस्थानों की रिसर्च के दम पर आपदा से प्रभावी तरीके से निपटने तैयारी की गई हैं.
सचिव आपदा प्रबंधन डॉ. रंजीत सिन्हा ने बताया कि भूस्खलन के साथ ही अन्य आपदाओं से निपटने के लिए विभिन्न संस्थानों द्वारा किए जा रहे कार्यों और उनके अनुभवों के अलावा उनके द्वारा प्रयोग की जा रही तकनीकियों को इंटीग्रेट किया गया है. इसमें जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों से पूर्वानुमान को लेकर एक मॉडल विकसित करने को कहा गया है. जिससे यह पता लग सके कि कितनी बारिश होने पर भूस्खलन की आशंका हो सकती है. उन्होंने कहा कि आपदाओं के प्रभावों को कम करने के लिए प्रभाव आधारित पूर्वानुमान बेहद जरूरी है.
आईआईटी रुड़की के प्रोजेक्ट का सत्यापन होगा: आपदा प्रबंधन सचिव डॉ. सिन्हा ने मिनिस्ट्री ऑफ अर्थ साइंस के नियंत्रणाधीन नेशनल सेंटर फॉर सिस्मोलॉजी को आईआईटी रुड़की द्वारा विकसित भूकंप पूर्व चेतावनी प्रणाली का वेलीडेशन करने को कहा. उन्होंने इस प्रोजेक्ट से जुड़े डाटा को एमईएस को भेजने के निर्देश दिए, जिससे यह पता लग सके कि यह कितना कारगर है.
बाढ़ को लेकर एक विस्तृत प्लान बनाएं: सचिव डॉ. सिन्हा ने कहा कि इनसार तकनीक (इंटरफेरोमेट्रिक सिंथेटिक एपर्चर रडार) आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में व्यापक बदलाव ला सकती है. उन्होंने एनजीआरआई (National Geophysical Research Institute) के वैज्ञानिकों से इस पर उत्तराखंड के दृष्टिकोण से कार्य करने को कहा. उन्होंने एनआईएच रुड़की के वैज्ञानिकों को फ्लड प्लेन जोनिंग की रिपोर्ट तथा डाटा के इस्तेमाल कर उत्तराखंड के लिए फ्लड मैनेजमेंट प्लान बनाने के निर्देश दिए. नेशनल सेंटर फॉर सिस्मोलॉजी के निदेशक डॉ. ओपी मिश्रा ने बताया कि रियल टाइम लैंडस्लाइड अर्ली वार्निंग सिस्टम पर अमृता विश्वविद्यालय ने कार्य किया है. उनके रिसर्च का लाभ उत्तराखंड में भूस्खलन की रोकथाम में उठाया जा सकता है.
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