चंडीगढ़: इस साल सितंबर-अक्टूबर में हरियाणा विधानसभा चुनाव (Haryana assembly election 2024) होने हैं. जिसके लिए सभी सियासी दल अपने-अपने समीकरणों को साधने में जुटे हैं. लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद विधानसभा चुनाव में सियासी दल अपनी कमियों को मजबूत करने में भी जुट गए हैं. नेताओं के बीच बयानबाजी और दल बदल का दौर भी जारी है. एक तरफ बीजेपी और कांग्रेस अकेले दम पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुकी है, तो वहीं इनेलो अब बसपा से गठबंधन की तैयारी में है.
इनेलो बसपा का गठबंधन: इंडियन नेशनल लोकदल यानी इनेलो हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन करने जा रही है. जिसे लेकर दोनों पार्टी के प्रमुखों के बीच बैठकें (Mayawati Abhya Chautala Meeting) हो चुकी है. इनेलो और बीएसपी गठबंधन की घोषणा वीरवार यानी 11 जुलाई को की जा सकती है. हरियाणा में अभी तक इनेलो और बसपा के बीच दो बार गठबंधन हो चुका है, लेकिन दोनों ही बार ये फेल रहा. अब तीसरी बार दोनों गठबंधन करने जा रहे हैं.
इनेलो बसपा तीसरी बार होंगे एक साथ: पहले भी हरियाणा में इनेलो और बसपा के बीच गठबंधन हो चुका है. लेकिन ये दोनों एक साथ लंबा सफर तय नहीं कर पाए. पिछले विधानसभा चुनाव से पहले बसपा ने भी हरियाणा में तीन दलों के साथ गठबंधन किया था. पहली बार इनेलो और बसपा ने 1998 में लोकसभा चुनाव से पहले गठबंधन किया था. जिसमें बीएसपी एक सीट जीती थी, लेकिन विधानसभा चुनाव में इनेलो का गठबंधन (INLD BSP Alliance) बीजेपी से हुआ.
हरियाणा में बसपा कर चुकी कई गठबंधन: साल 2018 में इनेलो और बसपा के बीच गठबंधन हुआ था, लेकिन दिसंबर 2018 में इनेलो ही दो फाड़ हो गई थी. जिसके बाद बसपा ने इनेलो से गठबंधन तोड़ दिया था. उसके बाद राजकुमार सैनी की लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी से भी बसपा ने नाता जोड़ा, लेकिन ये भी ज्यादा नहीं चला. उसके बाद जेजेपी और बसपा साथ रही, लेकिन चुनाव से पहले ही दोनों अलग हो गए. अब इनेलो और बसपा फिर से एक बार साथ आ रहे हैं.
बसपा का हरियाणा में जनाधार: जातीय समीकरण देखें, तो हरियाणा में दलित वोट 21 फीसदी और जाट वोट 22 फीसदी है. अब बसपा और इनेलो दोनों दलों की नजरें इन्हीं 43 फीसदी वोटों पर है. बसपा ने हरियाणा में पांच विधानसभा चुनाव में 3 से 6 प्रतिशत से अधिक वोट हासिल किए हैं. 4 चुनाव में तो पार्टी चार फीसदी से अधिक वोट लेने में कामयाब हुई है. हालांकि इस बार के लोकसभा चुनाव में इनेलो को 1.74 फीसदी और बसपा को 1.28 फीसदी ही वोट मिल सके.
क्या कहते हैं राजनीतिक जानकार? इनेलो और बसपा के गठबंधन पर राजनीतिक जानकार अवस्थी ने कहा कि इनेलो के सामने सबसे बड़ी चुनौती उसका क्षेत्रीय दल का वजूद बचाना है. चुनाव आयोग के नियमों के हिसाब से उसे अगर विधानसभा चुनाव में वोट नहीं मिले, तो उसको पार्टी सिंबल बचाना भी मुश्किल हो जाएगा. बसपा से इनेलो का गठबंधन करना उसकी मजबूरी को दिखता है, क्योंकि बीएसपी का हरियाणा में चार फीसदी से अधिक का वोट पिछले चुनावों में रहा है. अगर इनेलो को उसका साथ मिलने से वो वोट इनेलो के खाते में आता है, तो वो अपने पार्टी सिंबल को बचाने में शायद कामयाब हो जायेगी. इस बार हरियाणा में भले ही मैदान में कितने भी दल उतर जाएं, लेकिन असल मुकाबला तो बीजेपी और कांग्रेस में ही दिखाई देता है.
'दोनों पार्टी की मजबूरी बना गठबंधन': वरिष्ठ पत्रकार राजेश मोदगिल ने कहा कि इनेलो पिछले विधानसभा चुनाव के बाद प्रदेश में कमजोर हुई है. पार्टी में हुई टूट से उसका ज्यादा नुकसान हुआ है. ऐसे में उसका बीएसपी के साथ जाना पार्टी के लिए फायदेमंद रहेगा, क्योंकि इनेलो का वोट शेयर भी काम हुआ है. हरियाणा विधानसभा चुनाव में अगर क्षेत्रीय दल के लिए चुनाव आयोग के नियमों के हिसाब से इनेलो को वोट शेयर और विधायक नहीं जीत पाए, तो उसके लिए पार्टी का अस्तित्व बचाना भी चुनौती होगी. वहीं बसपा भी हरियाणा में अभी तक कुछ खास प्रभाव नहीं डाल पाई है. ऐसे में ये गठबंधन दोनों दलों की जरूरत दिखाई देता है.