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उत्तराखंड में कैस्केडिंग हजार्ड कॉन्सेप्ट पर होगा काम, IIT कानपुर के साथ काम करेंगी कई संस्थाएं, जानिये प्रोजक्ट डिटेल - Cascading Hazard in Uttarakhand

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Sep 15, 2024, 5:01 PM IST

Updated : Sep 15, 2024, 10:49 PM IST

Cascading Hazard in Uttarakhand, What is Cascading Hazard Concept आईआईटी कानपुर, आईआईटी खड़गपुर और दून यूनिवर्सिटी तमाम संस्थाओं के साथ मिलकर उत्तराखंड में कैस्केडिंग हजार्ड के कॉन्सेप्ट पर काम करने जा रहे हैं. ये प्रोजेक्ट सितंबर महीने में शुरू होगा. इसमें जोशीमठ से श्रीनगर के बीच के क्षेत्र का अध्ययन किया जाएगा. जिसमें लैंडस्लाइड, फ्लैश फ्लड और डाउनस्ट्रीम फ्लडिंग के साथ ही भूकंप के डेटा का अध्ययन किया जाएगा.

CASCADING HAZARD IN UTTARAKHAND
उत्तराखंड में कैस्केडिंग हजार्ड कॉन्सेप्ट पर होगा काम (ETV BHARAT)

देहरादून: हिमालय क्षेत्रों में विषम भौगोलिक परिस्थितियों के चलते आपदा जैसे हालात बनते रहे हैं. हिमालयी क्षेत्रों की अलग-अलग समस्याएं हैं. इन समस्याओं को राज्य सरकारें और वैज्ञानिक अलग-अलग नजरिए से देखते रहे हैं. लैंडस्लाइड एक्सपर्ट, भूकंप एक्सपर्ट, फ्लड एक्सपर्ट समेत अन्य समस्याओं से जुड़े अलग-अलग एक्सपर्ट हैं जो अपने-अपने क्षेत्र से संबंधित जोखिम या आपदा पर रिसर्च करते हैं. हाल ही में अर्थ साइंस के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए अध्ययन से यह पता चला है कि हिमालयी राज्यों में होने वाले सभी हजार्ड एक दूसरे से जुड़े हुए हैं. ऐसे में आईआईटी कानपुर, तमाम संस्थाओं के साथ मिलकर कैस्केडिंग हजार्ड कॉन्सेप्ट को लेकर अध्ययन करने जा रही है. जिसकी शुरुआत उत्तराखंड से होगी.

उत्तराखंड में कैस्केडिंग हजार्ड कॉन्सेप्ट पर होगा काम (video-ETV Bharat)

उत्तराखंड समेत हिमालयी राज्यों में जब भी कोई आपदा आती है तो उस दौरान राहत बचाव के कार्य तत्काल प्रभाव से किया जाना सबसे महत्वपूर्ण काम होता है. जिससे ह्यूमन लॉस को कम किया जा सके. आपदा की स्थिति सामान्य होने के बाद आपदा के वास्तविक वजहों पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता. भले ही वैज्ञानिक तमाम अध्ययन कर रिपोर्ट तैयार कर रहे हो लेकिन उन रिपोर्ट्स के आधार पर आपदा से निपटने के लिए विस्तृत कार्य योजना तैयार नहीं की जाती है. जिसके कारण हिमालयी राज्यों को हर साल आपदा का दंश झेलना पड़ता है.

CASCADING HAZARD IN UTTARAKHAND
पर्यटन स्थलों पर भी संकट के बादल (ETV BHARAT)

आईआईटी कानपुर, दून विश्वविद्यालय के साथ जुड़ेगे दूसरे संस्थान: आईआईटी कानपुर तमाम संस्थाओं के साथ मिलकर उत्तराखंड में अध्ययन के लिए एक प्रोजेक्ट तैयार कर रहा है. आईआईटी कानपुर तमाम संस्थाओं के साथ मिलकर अर्थ साइंस मंत्रालय, भारत सरकार के सहयोग से कैस्केडिंग हजार्ड कॉन्सेप्ट पर अध्ययन करने जा रहा है. इस प्रोजेक्ट के तहत जोशीमठ से श्रीनगर के बीच में फिलहाल अध्ययन किया जाएगा. यह पूरा प्रोजेक्ट करीब 4 साल का है. अगले एक साल से ही तमाम जानकारियां इससे मिलनी शुरू हो जाएंगी. ऐसे में अध्ययन पूरा होने के बाद ये रिपोर्ट उत्तराखंड आपदा विभाग के साथ भी साझा की जाएगी. जिससे भविष्य में इसका इस्तेमाल किया जा सके.

CASCADING HAZARD IN UTTARAKHAND
वरुणावत पर्वत लैंडस्लाइड ने बढ़ाई चिंता (ETV BHARAT)

क्या है कैस्केडिंग हजार्ड का कॉन्सेप्ट: कैस्केडिंग हजार्ड का कॉन्सेप्ट किसी भी एक जोखिम के बाद दूसरी, फिर तीसरी घटना से हैं. दरअसल, उत्तराखंड में कई बड़ी आपदाएं आई हैं जो कैस्केडिंग हजार्ड की तरफ ही इशारा कर रही हैं. वैज्ञानिकों के अनुसार, जब पर्वतीय क्षेत्रों में भारी बारिश होती है तो उस दौरान भूस्खलन का सिलसिला भी बढ़ जाता है. कई बार ऐसा भी होता है कि भूस्खलन होने के बाद मलबा किसी नदी या नाले को बाधित कर देता है. जिसके चलते उस ब्लॉक के पीछे बड़ी मात्रा में पानी एकत्रित हो जाता है. फिर इस ब्लॉक (block) के टूटने से बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है. ऐसे में यह पूरा चक्र कैस्केडिंग हजार्ड का कांसेप्ट बन जाता है.

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जोशीमठ पर अब भी खतरा बरकरार (ETV BHARAT)

रैणी आपदा के दौरान बनी थी कैस्केडिंग हजार्ड: उत्तराखंड की बात करें तो यहां कई बड़ी आपदाएं आ चुकी हैं, जो कैस्केडिंग हजार्ड के कॉन्सेप्ट की पुष्टि करती हैं. 2021 रैणी आपदा की मुख्य वजह रौंथी ग्लेशियर कैचमेंट में रॉक मास के साथ एक लटकता हुआ ग्लेशियर था, जो टूट गया था. जिसने एक बड़ी तबाही मचाई थी. दरअसल, उस दौरान बर्फ, ग्लेशियर, चट्टान के टुकड़े, मोरेनिक मलबे आदि चीजें एक साथ मिक्स हो गई थी, जो करीब 8.5 किमी रौंथी धारा की ओर नीचे आ गये. इसने करीब 2,300 मीटर की ऊंचाई पर ऋषिगंगा नदी को अवरुद्ध कर दिया. जिससे ऋषिगंगा नदी में झील का निर्माण हो गया. ऐसे में फिर इस झील के टूटने से पानी पूरे मलबे के साथ रैणी गांव की तरफ बढ़ा. जिसने इतनी बड़ी तबाही मचाई. इस आपदा में करीब 204 लोगों की मौत हुई थी.

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रैणी आपदा (ETV BHARAT)


अर्थ साइंस मंत्रालय और यूके की एजेंसी कर रही फंडिंग: ईटीवी भारत से एक्सक्लूसिव बातचीत करते हुए आईआईटी कानपुर के अर्थ साइंस प्रो राजीव सिन्हा ने बताया हिमालय में बहुत तरह के हजार्ड्स आते हैं. जिसमें भूकंप, भूस्खलन, बाढ़ समेत अन्य खतरे शामिल हैं. ऐसे में अभी तक इन तमाम तरह के खतरों को अलग-अलग नजरिए से देखा जाता रहा है. क्योंकि, अलग-अलग खतरों पर अलग-अलग एक्सपोर्ट्स या वैज्ञानिक काम करते हैं, लेकिन हाल ही में आईआईटी कानपुर ने कुछ अध्ययन किए हैं, जिसमें यह पाया गया है कि सभी हजार्ड्स एक दूसरे से कहीं ना कहीं जुड़े हुए हैं. जिसे कैस्केडिंग हजार्ड का कॉन्सेप्ट देना चाह रहे हैं. जिसको लेकर आईआईटी कानपुर ने एक नया प्रोजेक्ट शुरू किया है. जिसे अर्थ साइंस मंत्रालय, भारत सरकार और यूके की एक एजेंसी NARIC ने सहयोग दिया है.

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विकास पर तबाही भारी! (ETV BHARAT)

जोशीमठ से श्रीनगर के बीच तमाम खतरों का अध्ययन: राजीव सिन्हा ने बताया ये करीब 4 साल का प्रोजेक्ट है, जो सितंबर महीने से ही जल्द शुरू होने जा रहा है. इस प्रोजेक्ट के तहत जोशीमठ से श्रीनगर के बीच के क्षेत्र का अध्ययन किया जाएगा. इस क्षेत्र में लैंडस्लाइड, फ्लैश फ्लड और डाउनस्ट्रीम फ्लडिंग के साथ ही भूकंप डाटा का भी अध्ययन किया जाएगा. जिससे यह जाना जा सके कि इन सभी खतरों का एक दूसरे से क्या कनेक्शन है? किस तरह से एक हजार्ड से दूसरे हजार्ड की उत्पत्ति होती है? ऐसे में इसका अध्ययन करने के बाद तमाम जानकारियां आपदा विभाग को दी जाएगी ताकि वह बेहतर मिटीगेशन मेथड ला सके.

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जोशीमठ भू धंसाव की खबरों ने डराया. (ETV BHARAT)

वहीं, इस पूरे मामले पर ईटीवी भारत ने दून विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो सुरेखा डंगवाल से बात की. उन्होंने कहा इस प्रोजेक्ट के तहत हिमालयन हजार्ड का अध्ययन किया जाएगा. साथ ही जोशीमठ आपदा, क्षेत्र सेंसेटिव जोन को लेकर भी इससे स्थितियां स्पष्ट होंगी. दून यूनिवर्सिटी का डॉ नित्यानंद हिमालय शोध एवं अध्ययन केंद्र, लगातार हिमालई राज्यों में शोध कर रहा है. वर्तमान समय में हिमालय इकोलॉजी को लेकर अध्ययन चल रहा है. ऐसे में अब अर्थ साइंस मंत्रालय की ओर से एक और प्रोजेक्ट शुरू किया जा रहा है. जिसमे आईआईटी खड़गपुर, आईआईटी कानपुर और दून यूनिवर्सिटी भी शामिल है.साथ ही सुरेखा डंगवाल ने कहा हिमालय इतना सेंसिटिव जोन है जहां अत्यधिक ह्यूमन सेटलमेंट नहीं चल सकता. लिहाजा, हिमालई क्षेत्रों में 10,000 या उससे कम आबादी के साथ छोटे-छोटे टाउन विकसित करना पड़ेगा, ये भविष्य की जरूरत है. इसको जल्द से जल्द समझने की जरूरत है.

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उत्तराखंड में लैंडस्लाइड की घटनाएं (ETV BHARAT)

पढ़ें- बदनाम नहीं वरदान है हिमालय की भांग, उत्तराखंड में हो रहा इंडस्ट्रियल इस्तेमाल, कई राज्यों ने हेंप पॉलिसी पर शुरू किया काम - hemp farming in uttarakhand

देहरादून: हिमालय क्षेत्रों में विषम भौगोलिक परिस्थितियों के चलते आपदा जैसे हालात बनते रहे हैं. हिमालयी क्षेत्रों की अलग-अलग समस्याएं हैं. इन समस्याओं को राज्य सरकारें और वैज्ञानिक अलग-अलग नजरिए से देखते रहे हैं. लैंडस्लाइड एक्सपर्ट, भूकंप एक्सपर्ट, फ्लड एक्सपर्ट समेत अन्य समस्याओं से जुड़े अलग-अलग एक्सपर्ट हैं जो अपने-अपने क्षेत्र से संबंधित जोखिम या आपदा पर रिसर्च करते हैं. हाल ही में अर्थ साइंस के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए अध्ययन से यह पता चला है कि हिमालयी राज्यों में होने वाले सभी हजार्ड एक दूसरे से जुड़े हुए हैं. ऐसे में आईआईटी कानपुर, तमाम संस्थाओं के साथ मिलकर कैस्केडिंग हजार्ड कॉन्सेप्ट को लेकर अध्ययन करने जा रही है. जिसकी शुरुआत उत्तराखंड से होगी.

उत्तराखंड में कैस्केडिंग हजार्ड कॉन्सेप्ट पर होगा काम (video-ETV Bharat)

उत्तराखंड समेत हिमालयी राज्यों में जब भी कोई आपदा आती है तो उस दौरान राहत बचाव के कार्य तत्काल प्रभाव से किया जाना सबसे महत्वपूर्ण काम होता है. जिससे ह्यूमन लॉस को कम किया जा सके. आपदा की स्थिति सामान्य होने के बाद आपदा के वास्तविक वजहों पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता. भले ही वैज्ञानिक तमाम अध्ययन कर रिपोर्ट तैयार कर रहे हो लेकिन उन रिपोर्ट्स के आधार पर आपदा से निपटने के लिए विस्तृत कार्य योजना तैयार नहीं की जाती है. जिसके कारण हिमालयी राज्यों को हर साल आपदा का दंश झेलना पड़ता है.

CASCADING HAZARD IN UTTARAKHAND
पर्यटन स्थलों पर भी संकट के बादल (ETV BHARAT)

आईआईटी कानपुर, दून विश्वविद्यालय के साथ जुड़ेगे दूसरे संस्थान: आईआईटी कानपुर तमाम संस्थाओं के साथ मिलकर उत्तराखंड में अध्ययन के लिए एक प्रोजेक्ट तैयार कर रहा है. आईआईटी कानपुर तमाम संस्थाओं के साथ मिलकर अर्थ साइंस मंत्रालय, भारत सरकार के सहयोग से कैस्केडिंग हजार्ड कॉन्सेप्ट पर अध्ययन करने जा रहा है. इस प्रोजेक्ट के तहत जोशीमठ से श्रीनगर के बीच में फिलहाल अध्ययन किया जाएगा. यह पूरा प्रोजेक्ट करीब 4 साल का है. अगले एक साल से ही तमाम जानकारियां इससे मिलनी शुरू हो जाएंगी. ऐसे में अध्ययन पूरा होने के बाद ये रिपोर्ट उत्तराखंड आपदा विभाग के साथ भी साझा की जाएगी. जिससे भविष्य में इसका इस्तेमाल किया जा सके.

CASCADING HAZARD IN UTTARAKHAND
वरुणावत पर्वत लैंडस्लाइड ने बढ़ाई चिंता (ETV BHARAT)

क्या है कैस्केडिंग हजार्ड का कॉन्सेप्ट: कैस्केडिंग हजार्ड का कॉन्सेप्ट किसी भी एक जोखिम के बाद दूसरी, फिर तीसरी घटना से हैं. दरअसल, उत्तराखंड में कई बड़ी आपदाएं आई हैं जो कैस्केडिंग हजार्ड की तरफ ही इशारा कर रही हैं. वैज्ञानिकों के अनुसार, जब पर्वतीय क्षेत्रों में भारी बारिश होती है तो उस दौरान भूस्खलन का सिलसिला भी बढ़ जाता है. कई बार ऐसा भी होता है कि भूस्खलन होने के बाद मलबा किसी नदी या नाले को बाधित कर देता है. जिसके चलते उस ब्लॉक के पीछे बड़ी मात्रा में पानी एकत्रित हो जाता है. फिर इस ब्लॉक (block) के टूटने से बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है. ऐसे में यह पूरा चक्र कैस्केडिंग हजार्ड का कांसेप्ट बन जाता है.

CASCADING HAZARD IN UTTARAKHAND
जोशीमठ पर अब भी खतरा बरकरार (ETV BHARAT)

रैणी आपदा के दौरान बनी थी कैस्केडिंग हजार्ड: उत्तराखंड की बात करें तो यहां कई बड़ी आपदाएं आ चुकी हैं, जो कैस्केडिंग हजार्ड के कॉन्सेप्ट की पुष्टि करती हैं. 2021 रैणी आपदा की मुख्य वजह रौंथी ग्लेशियर कैचमेंट में रॉक मास के साथ एक लटकता हुआ ग्लेशियर था, जो टूट गया था. जिसने एक बड़ी तबाही मचाई थी. दरअसल, उस दौरान बर्फ, ग्लेशियर, चट्टान के टुकड़े, मोरेनिक मलबे आदि चीजें एक साथ मिक्स हो गई थी, जो करीब 8.5 किमी रौंथी धारा की ओर नीचे आ गये. इसने करीब 2,300 मीटर की ऊंचाई पर ऋषिगंगा नदी को अवरुद्ध कर दिया. जिससे ऋषिगंगा नदी में झील का निर्माण हो गया. ऐसे में फिर इस झील के टूटने से पानी पूरे मलबे के साथ रैणी गांव की तरफ बढ़ा. जिसने इतनी बड़ी तबाही मचाई. इस आपदा में करीब 204 लोगों की मौत हुई थी.

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रैणी आपदा (ETV BHARAT)


अर्थ साइंस मंत्रालय और यूके की एजेंसी कर रही फंडिंग: ईटीवी भारत से एक्सक्लूसिव बातचीत करते हुए आईआईटी कानपुर के अर्थ साइंस प्रो राजीव सिन्हा ने बताया हिमालय में बहुत तरह के हजार्ड्स आते हैं. जिसमें भूकंप, भूस्खलन, बाढ़ समेत अन्य खतरे शामिल हैं. ऐसे में अभी तक इन तमाम तरह के खतरों को अलग-अलग नजरिए से देखा जाता रहा है. क्योंकि, अलग-अलग खतरों पर अलग-अलग एक्सपोर्ट्स या वैज्ञानिक काम करते हैं, लेकिन हाल ही में आईआईटी कानपुर ने कुछ अध्ययन किए हैं, जिसमें यह पाया गया है कि सभी हजार्ड्स एक दूसरे से कहीं ना कहीं जुड़े हुए हैं. जिसे कैस्केडिंग हजार्ड का कॉन्सेप्ट देना चाह रहे हैं. जिसको लेकर आईआईटी कानपुर ने एक नया प्रोजेक्ट शुरू किया है. जिसे अर्थ साइंस मंत्रालय, भारत सरकार और यूके की एक एजेंसी NARIC ने सहयोग दिया है.

CASCADING HAZARD IN UTTARAKHAND
विकास पर तबाही भारी! (ETV BHARAT)

जोशीमठ से श्रीनगर के बीच तमाम खतरों का अध्ययन: राजीव सिन्हा ने बताया ये करीब 4 साल का प्रोजेक्ट है, जो सितंबर महीने से ही जल्द शुरू होने जा रहा है. इस प्रोजेक्ट के तहत जोशीमठ से श्रीनगर के बीच के क्षेत्र का अध्ययन किया जाएगा. इस क्षेत्र में लैंडस्लाइड, फ्लैश फ्लड और डाउनस्ट्रीम फ्लडिंग के साथ ही भूकंप डाटा का भी अध्ययन किया जाएगा. जिससे यह जाना जा सके कि इन सभी खतरों का एक दूसरे से क्या कनेक्शन है? किस तरह से एक हजार्ड से दूसरे हजार्ड की उत्पत्ति होती है? ऐसे में इसका अध्ययन करने के बाद तमाम जानकारियां आपदा विभाग को दी जाएगी ताकि वह बेहतर मिटीगेशन मेथड ला सके.

CASCADING HAZARD IN UTTARAKHAND
जोशीमठ भू धंसाव की खबरों ने डराया. (ETV BHARAT)

वहीं, इस पूरे मामले पर ईटीवी भारत ने दून विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो सुरेखा डंगवाल से बात की. उन्होंने कहा इस प्रोजेक्ट के तहत हिमालयन हजार्ड का अध्ययन किया जाएगा. साथ ही जोशीमठ आपदा, क्षेत्र सेंसेटिव जोन को लेकर भी इससे स्थितियां स्पष्ट होंगी. दून यूनिवर्सिटी का डॉ नित्यानंद हिमालय शोध एवं अध्ययन केंद्र, लगातार हिमालई राज्यों में शोध कर रहा है. वर्तमान समय में हिमालय इकोलॉजी को लेकर अध्ययन चल रहा है. ऐसे में अब अर्थ साइंस मंत्रालय की ओर से एक और प्रोजेक्ट शुरू किया जा रहा है. जिसमे आईआईटी खड़गपुर, आईआईटी कानपुर और दून यूनिवर्सिटी भी शामिल है.साथ ही सुरेखा डंगवाल ने कहा हिमालय इतना सेंसिटिव जोन है जहां अत्यधिक ह्यूमन सेटलमेंट नहीं चल सकता. लिहाजा, हिमालई क्षेत्रों में 10,000 या उससे कम आबादी के साथ छोटे-छोटे टाउन विकसित करना पड़ेगा, ये भविष्य की जरूरत है. इसको जल्द से जल्द समझने की जरूरत है.

CASCADING HAZARD IN UTTARAKHAND
उत्तराखंड में लैंडस्लाइड की घटनाएं (ETV BHARAT)

पढ़ें- बदनाम नहीं वरदान है हिमालय की भांग, उत्तराखंड में हो रहा इंडस्ट्रियल इस्तेमाल, कई राज्यों ने हेंप पॉलिसी पर शुरू किया काम - hemp farming in uttarakhand

Last Updated : Sep 15, 2024, 10:49 PM IST
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