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पत्नी ने पति की मर्दानगी पर उठाए सवाल, कोर्ट ने दी पोटेंसी टेस्ट कराने की इजाजत, जानें पूरा मामला - Supreme Court

Supreme Court: ब्रिटेन से लौटने के बाद पति-पत्नी साथ रहे. महिला अपने पिता के घर में रह रही थी, जहां उसके साथ उसका पति भी रहता था. हालांकि, इस दौरान दोनों के बीच विवाद हो गए और दोनों के रिश्ते में दरार आ गई. 2021 में, पति ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 9 के तहत चेन्नई की एक परिवार अदालत में आवेदन दायर किया और वैवाहिक अधिकारों की बहाली की मांग की.

Supreme Court
सुप्रीम कोर्ट
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Apr 6, 2024, 10:03 PM IST

Updated : Apr 6, 2024, 10:28 PM IST

नई दिल्ली: तमिलनाडु के एक जोड़े ने 2013 में चेन्नई में शादी की और बाद में दोनों ब्रिटेन चले गए, जहां वे साढ़े सात साल तक एक साथ रहे. बाद में उनके रिश्ते में दरार आ गई और वे अप्रैल 2021 में अलग हो गए. पत्नी ने पति से सारे रिश्ते तोड़ लिए और बातचीत भी बंद कर दी. इस बीच दंपती का मामला अदालत में पहुंचा और पति ने वैवाहिक अधिकारों की बहाली की मांग की. हालांकि पत्नी ने पति को नपुंसक बताते हुए तलाक की मांग की. सुप्रीम कोर्ट ने इसी सप्ताह की शुरुआत में पति की उस याचिका को मंजूर कर लिया, जिसमें पति ने अपना पोटेंशियलिटी टेस्ट कराने की मांग की थी.

मामले में सुनवाई कर रही जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने कहा, हम पति की अपील को आंशिक रूप से ट्रायल कोर्ट द्वारा 27 जून, 2023 को पारित आदेश को बरकरार रखते हुए स्वीकार करते हैं. पीठ ने कहा कि आज से चार सप्ताह के भीतर ट्रायल कोर्ट द्वारा निर्धारित निर्देश के तहत परीक्षण किया जाए और उसके बाद दो सप्ताह के भीतर शीर्ष अदालत को रिपोर्ट सौंपी जाए.

ब्रिटेन से लौटने के बाद भी पति-पत्नी साथ रहे. महिला अपने पिता के घर में रह रही थी, जहां उसके साथ उसका पति भी रहता था. हालांकि, इस दौरान दोनों के बीच विवाद हो गए और दोनों के रिश्ते में दरार आ गई. 2021 में, पति ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 9 के तहत चेन्नई की एक परिवार अदालत में आवेदन दायर किया और वैवाहिक अधिकारों की बहाली की मांग की. हालांकि, पत्नी ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13(1) (आईए) के तहत तलाक की याचिका इस आधार पर दायर की कि पति की नपुंसकता के कारण उनका विवाह अधूरा है.

इसके बाद पति ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 45 के तहत ट्रायल कोर्ट के समक्ष आवेदन दायर किया और खुद के पोटेंशियलिटी टेस्ट की मांग की. साथ ही पत्नी के प्रजनन परीक्षण और मानसिक स्वास्थ्य परीक्षण की मांग की. ट्रायल कोर्ट ने पति के आवेदनों को इस शर्त पर मंजूर कर लिया कि पति-पत्नी का परीक्षण करने के लिए चेन्नई के राजीव गांधी गवर्नमेंट जनरल हॉस्पिटल के डीन द्वारा मेडिकल बोर्ड का गठन किया जाएगा. कोर्ट ने कहा कि मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट एडवोकेट कमिश्नर के जरिये सीलबंद लिफाफे में अदालत को सौंपी जाएगी। साथ ही अदालत ने निर्देश कि दोनों पक्ष परीक्षण के नतीजे किसी तीसरे पक्ष को नहीं बताएंगे और गोपनीयता बनाए रखेंगे.

पत्नी ने ट्रायल कोर्ट के आदेश के खिलाफ दो अलग-अलग संशोधनों के जरिये ट्रायल कोर्ट के आदेश के खिलाफ मद्रास हाईकोर्ट का रुख किया, जिसे हाईकोर्ट ने अनुमति दे दी. इसके बाद पति ने हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. याची के वकील ने शीर्ष अदालत में सुनवाई के दौरान कहा कि जब उनके मुवक्किल पोटेंशियलिटी टेस्ट से गुजरने को तैयार है, ऐसे में हाईकोर्ट द्वारा ट्रायल कोर्ट के आदेश को रद्द करने का कोई कारण नहीं दिखता है. वहीं, महिला के वकील ने कहा कि जब उनकी मुवक्किल किसी भी परीक्षण से गुजरने को तैयार नहीं है, चाहे वह प्रजनन परीक्षण हो या मानसिक स्वास्थ्य जांच, तो उन्हें ऐसे परीक्षणों के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है.

दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद शीर्ष अदालत ने पांच अप्रैल को दिए अपने फैसले में कहा कि पत्नी द्वारा दायर पुनर्विचार याचिकाओं को स्वीकार करते समय हाईकोर्ट ने कोई ठोस कारण नहीं बताया कि पति को पोटेंशियलिटी टेस्ट के लिए क्यों नहीं भेजा जा सकता है. शीर्ष अदालत ने कहा कि ट्रायल कोर्ट द्वारा तय किए गए अंतरिम आवेदनों के गुण-दोष पर पक्षों की दलीलों पर ध्यान देने के बजाय, हाईकोर्ट ने उनके आचरण पर ध्यान केंद्रित किया, जो कि ट्रायल कोर्ट के आदेश की वैधता पर निर्णय लेने के लिए बिल्कुल भी उपयुक्त नहीं था.

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को संशोधित करते हुए कहा, मामले की तथ्यात्मक स्थिति को ध्यान में रखते हुए हम संतुष्ट हैं कि जब पति पोटेंशियलिटी टेस्ट से गुजरने को तैयार है, तो हाईकोर्ट को उस सीमा तक ट्रायल कोर्ट के आदेश को बरकरार रखना चाहिए था.

यह भी पढ़ें- पुलिस का अभियोजन गवाहों को प्रशिक्षित करना शक्ति का घोर दुरुपयोग : सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली: तमिलनाडु के एक जोड़े ने 2013 में चेन्नई में शादी की और बाद में दोनों ब्रिटेन चले गए, जहां वे साढ़े सात साल तक एक साथ रहे. बाद में उनके रिश्ते में दरार आ गई और वे अप्रैल 2021 में अलग हो गए. पत्नी ने पति से सारे रिश्ते तोड़ लिए और बातचीत भी बंद कर दी. इस बीच दंपती का मामला अदालत में पहुंचा और पति ने वैवाहिक अधिकारों की बहाली की मांग की. हालांकि पत्नी ने पति को नपुंसक बताते हुए तलाक की मांग की. सुप्रीम कोर्ट ने इसी सप्ताह की शुरुआत में पति की उस याचिका को मंजूर कर लिया, जिसमें पति ने अपना पोटेंशियलिटी टेस्ट कराने की मांग की थी.

मामले में सुनवाई कर रही जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने कहा, हम पति की अपील को आंशिक रूप से ट्रायल कोर्ट द्वारा 27 जून, 2023 को पारित आदेश को बरकरार रखते हुए स्वीकार करते हैं. पीठ ने कहा कि आज से चार सप्ताह के भीतर ट्रायल कोर्ट द्वारा निर्धारित निर्देश के तहत परीक्षण किया जाए और उसके बाद दो सप्ताह के भीतर शीर्ष अदालत को रिपोर्ट सौंपी जाए.

ब्रिटेन से लौटने के बाद भी पति-पत्नी साथ रहे. महिला अपने पिता के घर में रह रही थी, जहां उसके साथ उसका पति भी रहता था. हालांकि, इस दौरान दोनों के बीच विवाद हो गए और दोनों के रिश्ते में दरार आ गई. 2021 में, पति ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 9 के तहत चेन्नई की एक परिवार अदालत में आवेदन दायर किया और वैवाहिक अधिकारों की बहाली की मांग की. हालांकि, पत्नी ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13(1) (आईए) के तहत तलाक की याचिका इस आधार पर दायर की कि पति की नपुंसकता के कारण उनका विवाह अधूरा है.

इसके बाद पति ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 45 के तहत ट्रायल कोर्ट के समक्ष आवेदन दायर किया और खुद के पोटेंशियलिटी टेस्ट की मांग की. साथ ही पत्नी के प्रजनन परीक्षण और मानसिक स्वास्थ्य परीक्षण की मांग की. ट्रायल कोर्ट ने पति के आवेदनों को इस शर्त पर मंजूर कर लिया कि पति-पत्नी का परीक्षण करने के लिए चेन्नई के राजीव गांधी गवर्नमेंट जनरल हॉस्पिटल के डीन द्वारा मेडिकल बोर्ड का गठन किया जाएगा. कोर्ट ने कहा कि मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट एडवोकेट कमिश्नर के जरिये सीलबंद लिफाफे में अदालत को सौंपी जाएगी। साथ ही अदालत ने निर्देश कि दोनों पक्ष परीक्षण के नतीजे किसी तीसरे पक्ष को नहीं बताएंगे और गोपनीयता बनाए रखेंगे.

पत्नी ने ट्रायल कोर्ट के आदेश के खिलाफ दो अलग-अलग संशोधनों के जरिये ट्रायल कोर्ट के आदेश के खिलाफ मद्रास हाईकोर्ट का रुख किया, जिसे हाईकोर्ट ने अनुमति दे दी. इसके बाद पति ने हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. याची के वकील ने शीर्ष अदालत में सुनवाई के दौरान कहा कि जब उनके मुवक्किल पोटेंशियलिटी टेस्ट से गुजरने को तैयार है, ऐसे में हाईकोर्ट द्वारा ट्रायल कोर्ट के आदेश को रद्द करने का कोई कारण नहीं दिखता है. वहीं, महिला के वकील ने कहा कि जब उनकी मुवक्किल किसी भी परीक्षण से गुजरने को तैयार नहीं है, चाहे वह प्रजनन परीक्षण हो या मानसिक स्वास्थ्य जांच, तो उन्हें ऐसे परीक्षणों के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है.

दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद शीर्ष अदालत ने पांच अप्रैल को दिए अपने फैसले में कहा कि पत्नी द्वारा दायर पुनर्विचार याचिकाओं को स्वीकार करते समय हाईकोर्ट ने कोई ठोस कारण नहीं बताया कि पति को पोटेंशियलिटी टेस्ट के लिए क्यों नहीं भेजा जा सकता है. शीर्ष अदालत ने कहा कि ट्रायल कोर्ट द्वारा तय किए गए अंतरिम आवेदनों के गुण-दोष पर पक्षों की दलीलों पर ध्यान देने के बजाय, हाईकोर्ट ने उनके आचरण पर ध्यान केंद्रित किया, जो कि ट्रायल कोर्ट के आदेश की वैधता पर निर्णय लेने के लिए बिल्कुल भी उपयुक्त नहीं था.

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को संशोधित करते हुए कहा, मामले की तथ्यात्मक स्थिति को ध्यान में रखते हुए हम संतुष्ट हैं कि जब पति पोटेंशियलिटी टेस्ट से गुजरने को तैयार है, तो हाईकोर्ट को उस सीमा तक ट्रायल कोर्ट के आदेश को बरकरार रखना चाहिए था.

यह भी पढ़ें- पुलिस का अभियोजन गवाहों को प्रशिक्षित करना शक्ति का घोर दुरुपयोग : सुप्रीम कोर्ट

Last Updated : Apr 6, 2024, 10:28 PM IST
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