जोधपुर. सूर्यनगरी जोधपुर के अंतराष्ट्रीय क्रिकेटर रवि बिश्नोई अपने ठेठ राजस्थानी अंदाज के लिए जान जाते हैं. वह कभी अपनी माटी को नहीं भूलते. यही कारण है कि अब उन्होंने सोशल मीडिया पर अपना 'हम हैं सो हम हैं' मूवमेंट शुरू किया है, जिसमें वे अपने दिल की बातें अपने फॉलोवर्स को बताते हैं. इसी कड़ी में अब पूरी राजस्थानी में रवि कह रहे हैं कि आप अगर राजस्थान के हैं और आपने दाल बाटी नहीं खाई तो आप राजस्थानी नहीं हैं.
रवि अपना एक अनुभव बताते हैं कि आईपीएल में लखनउ की टीम जयपुर आई तो मैंने कहा कि आज दालबाटी खाओ. उनको जब एक रेस्टोरेंट में लेकर गया तो वो चम्मच से खाना खाने लगे. मैंने इस पर टोककर कहा कि चम्मच साइड में रखो और हाथ से दाल बाटी खाओ. तब सभी खिलाड़ियों ने हाथ से दाल बाटी का चस्का लिया. मैंने कहा था कि दाल बाटी अगर हाथ से नहीं खाई तो इसका स्वाद नहीं आता.
रवि कहते हैं कि 'हम हैं सो हम हैं' मूवमेंट मेरा सबसे बड़ा और चहेता मूवमेंट है. अगर आपके पास भी ऐसा ही मूवमेंट है तो उन्हें शेयर करें. साथ ही उन्होंने दो राजस्थानी लोगों को इसके लिए इनवाइट किया है. कहा जा सकता है कि रवि ने अपने मूवमेंट में राजस्थानी और दाल बाटी को तवज्जो देकर इसे प्रमोट करने का काम किया है. रवि के इंस्टाग्राम पर पांच लाख से ज्यादा फॉलोवर्स हैं. 23 फरवरी को उन्होंने अपना यह मूवमेंट शुरू किया है, जिसे काफी सराहना भी मिल रही है. उल्लेखनीय है कि रवि को बीसीसीआई ने हाल ही में सी-कैटेगरी के साथ सालाना अनुबंधित भी कर लिया है.
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निकोलस पूरन को आया मजा : दरअसल, रवि विश्नोई ने अपने मूवमेंट में जिस बात का जिक्र किया, वो विगत साल की ही है, जब आईपीएल में जयपुर खेलने आए वेस्टइंडीज के क्रिकेटर निकोलस पूरन के साथ वे होटल में रुके थे. वेस्ट इंडिज के क्रिकेटर निकोलस पूरन रवि के साथ हाथ से दाल बाटी खाए थे और अपने अंदाज में 'दाल बाटी' शब्द संबोधित करते हुए आनंद भी ले रहे थे. इस पोस्ट पर प्रशंसकों ने उनकी खूब सराहना भी की. इस पर एक कमेंट ये भी था कि बाटी के साथ पूरन को राजस्थानी चूरमा भी खिलाना चाहिए.
मारवाड़ की देन है दाल बाटी : दाल बाटी मारवाड़ की देन है. संसाधनों के अभाव में यहां के लोग जब बाहर काम पर जाते थे तो रास्ते में रूककर आटे की रोटी की जगह गोल बाटी बनाकर आग में सेकते थे, जिसे बाटा कहते थे. उस समय दाल के अभाव में मिर्च, प्याज नमक के साथ इसको खाते थे. इसके दो फायदे होते थे. रास्ते में सामान कम ले जाना पड़ता था और यह भोजन जल्दी तैयार होता था, पानी भी कम लगता था. धीरे-धीरे इसमें परिवर्तन होने लगा. यह आम घरों में बनने वाली फेमस डिश हो गई. बाटी के साथ दाल भी बनने लगी. समय के साथ बाटी के प्रकार भी बदल गए और दाल की वैरायटी भी. जोधपुर में आज भी दर्जनों होटलें सिर्फ दाल बाटी ही उपलब्ध करवाती हैं.