देहरादूनः उत्तराखंड की पांचों लोकसभा सीटों को लेकर केंद्र और राज्य सरकार बेहद गंभीर नजर आ रही हैं. भले ही प्रदेश छोटा हो, लेकिन राजनीति में इस छोटे से प्रदेश की पांच लोकसभा सीटों ने बड़े-बड़े राजनेताओं को सिंहासन पर बिठाया है. उत्तराखंड की पांच लोकसभा सीटों में से नैनीताल-उधमसिंह नगर लोकसभा सीट महत्वपूर्ण सीट मानी गई है. इसी सीट से अजय भट्ट सांसद हैं जिन्हें केंद्र में रक्षा एवं पर्यटन राज्य मंत्री का दर्जा दिया गया है. खास बात ये है कि भाजपा हाईकमान ने एक बार फिर अजय भट्ट पर नैनीताल-उधमसिंह नगर सीट से दांव खेला है.
साल 2008 के बाद इस सीट को नैनीताल-उधमसिंह नगर सीट की पहचान मिली. जबकि इससे पहले यह सीट नैनीताल लोकसभा सीट के नाम से जानी जाती थी. यह सीट इसलिए भी खास है, क्योंकि कहा जाता है कि अगर नारायण दत्त तिवारी (पूर्व मुख्यमंत्री उत्तराखंड) अपना लोकसभा चुनाव यहां से जीत जाते, तो शायद वह देश के प्रधानमंत्री बनते. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. 1991 के लोकसभा चुनाव में एनडी तिवारी भाजपा के बलराज पासी से हार गए. उस दौरान बरेली की बहेड़ी विधानसभा सीट भी नैनीताल लोकसभा सीट में आती थी. एनडी तिवारी का बहेड़ी विधानसभा क्षेत्र में कम जनाधार ही हार का बड़ा कारण बना था.
नैनीताल-लोकसभा सीट के राजनीति समीकरण: नैनीताल-उधमसिंह नगर लोकसभा सीट उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल से आती है. नैनीताल (6 विधानसभा सीट) और उधमसिंह नगर (9 विधानसभा सीट) जिले को कवर करने वाली इस लोकसभा सीट में कुल 15 विधानसभा सीटें हैं. कहा जाता है कि सबसे अधिक तराई की 13 विधानसभा सीट के वोटर ही यहां के लोकसभा प्रत्याशी का भविष्य तय करते हैं. पलायन करके तराई के क्षेत्र में बसे पहाड़ के लोग इन 13 विधानसभा सीटों में अच्छी खासी संख्या में रहते हैं. इसीलिए तराई के लोग ही इस लोकसभा सीट पर निर्णायक भूमिका में नजर आते हैं.
नैनीताल-उधमसिंह नगर लोकसभा सीट पर लगभग 19 लाख वोटर हैं. जिसमें लगभग 10 लाख पुरुष वोटर और 9 लाख महिला वोटर शामिल हैं. 30 वोटर इस क्षेत्र में थर्ड जेंडर हैं. यह लोकसभा क्षेत्र अपनी खूबसूरती के लिए जाना जाता है. विश्व प्रसिद्ध नैनीताल पर्यटक स्थल भी इसी लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है.
सीट से जुड़े इतिहास और पहचान: इस लोकसभा सीट के अंतर्गत ही देश की जानी-मानी एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी पंतनगर यूनिवर्सिटी भी आती है. इसके अलावा जलियांवाला हत्याकांड में शामिल जनरल डायर को लंदन में मारकर बदला लेने वाले उधमसिंह के नाम से ही जिले का नाम उधमसिंह नगर रखा गया है. उधमसिंह नगर जिले में औद्योगिक क्षेत्र काशीपुर, रुद्रपुर और सितारगंज भी शामिल हैं. कुछ मिलाकर एक हजार से अधिक औद्योगिक इकाई लगी हुई हैं.
उधमसिंह नगर का खटीमा शहर नेपाल देश से लगा हुआ है जबकि दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश की सीमा से सटा हुआ है. इस लोकसभा क्षेत्र में विश्व प्रसिद्ध जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क भी आता है. एक लिहाज से देखा जाए तो यह लोकसभा क्षेत्र उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की आर्थिकी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. उत्तराखंड के साथ-साथ उत्तर प्रदेश से कई कर्मचारी यहां स्थित फैक्ट्री में काम करते हैं.
लोकसभा क्षेत्र की आबादी: नैनीताल-उधमसिंह नगर क्षेत्र में ग्रामीण आबादी 63.11 फीसदी है. जबकि 36.89 फीसदी शहरी जनसंख्या है. इसमें 16.08 प्रतिशत अनुसूचित जाति के लोगों की हिस्सेदारी है. जबकि 5.17 फीसदी अनुसूचित जनजाति की आबादी है. 17-18 प्रतिशत ओबीसी और 15 से 18 फीसदी क्षत्रिय और ब्राह्मण हैं. इस लोकसभा क्षेत्र में 15 फीसदी मुस्लिम समुदाय निवास करता है. क्षेत्र की कुल आबादी 25 लाख है.
अक्सर चर्चा में रही सीट: नैनीताल-उधमसिंह नगर लोकसभा सीट भारत रत्न पंडित गोविंद बल्लभ पंत की कर्मस्थली रही है. यही कारण है कि 1951 में हुए पहले चुनाव से लेकर 1957 तक के चुनाव में उनके दामाद यहां से सांसद चुनते आए. इसके बाद 1962, 1967 और 1971 के लोकसभा चुनाव में पंत के बेटे केसी पंत ने लगातार तीन बार जीत दर्ज की.
राम लहर में हारे तिवारी: केसी पंत ने कांग्रेस के टिकट पर यहां से चुनाव लड़ा. लेकिन 1977 में लोक दल के नेता भारत भूषण ने केसी पंत के जीत के रिकॉर्ड को तोड़ते हुए अपनी जीत दर्ज करवाई. इसके बाद 1980 के चुनाव में एनडी तिवारी ने भारत भूषण को भारी मतों से हराया. इसके बाद 1984 के चुनाव में एनडी तिवारी ने अपने खास और करीबी सत्येंद्र चंद्र को यहां से बड़ी जीत दर्ज करवाई. नारायण तिवारी को तब तक लोग देश का बड़ा नेता मान चुके थे. लेकिन एनडी तिवारी की इस सीट पर 1989 में जनता दल के डॉक्टर महेंद्र पाल ने जीत दर्ज की. इस दौरान 1991 की राम लहर में नारायण दत्त तिवारी को इस सीट पर बलराज पासी के हाथों हार का सामना करना पड़ा.
भाजपा ने फिर खेला अजय भट्ट पर दांव: इसके बाद 1998 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की इला पंत ने एनडी तिवारी को बड़े अंतर से हराया. साल 2002 में कांग्रेस के डॉ महेंद्र पाल ने इस सीट पर जीत दर्ज की. इसके उपचुनाव में भी दोबारा वही जीते. लेकिन साल 2004 और 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के केसी सिंह बाबा ने लगातार दो बार कांग्रेस को ही जीत दिलाई. लेकिन उनका जीत का ये रथ 2014 के लोकसभा चुनाव में थम गया. भगत सिंह कोश्यारी ने सीट भाजपा की झोली में डाली. इसके बाद साल 2019 के चुनाव में भाजपा के अजय भट्ट ने जीत दर्ज कराई. 2024 के चुनाव में भी भाजपा ने अजय भट्ट को अपना उमीदवार बनाया है.
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