देहरादून (उत्तराखंड): पड़ोसी राज्य हिमाचल की एक पॉलिसी ने उत्तराखंड से बड़े निवेश का मौका छीन लिया है. हैरत की बात यह है कि उत्तराखंड ने ही सबसे पहले इस पॉलिसी पर काम शुरू किया था. बावजूद इसके हिमाचल भांग के व्यवसायिक उपयोग के मामले में आगे निकल गया है. उधर उत्तराखंड सरकार अभी भांग की पॉलिसी को लेकर स्थिति स्पष्ट ही नहीं कर पाई है. राजनीतिक इच्छा शक्ति की कमी के कारण मामला पॉलिसी के ड्राफ्ट में ही फंसा हुआ है.
हिमाचल ने मारी बाजी: उत्तराखंड की पहल के बावजूद भांग के औद्योगिक उपयोग के मामले में पड़ोसी राज्य हिमाचल ने बाजी मार ली. करीब 6 साल पहले इस मामले में उत्तराखंड देश के लीडर के तौर पर सामने आया था, लेकिन राजनीतिक इच्छा शक्ति की कमी के कारण उत्तराखंड राज्य हिमाचल से पिछड़ गया. दरअसल हिमाचल में भांग के व्यावसायिक और मेडिकल उपयोग से जुड़े प्रस्ताव को विधानसभा में पारित करवा लिया गया है. इस प्रस्ताव को हिमाचल के राजस्व मंत्री जगत सिंह नेगी ने विधानसभा में रखा था. जिसे इसी साल सितंबर महीने में पारित करवाया गया. इसके बाद हिमाचल प्रदेश में भांग के व्यावसायिक और मेडिकल उपयोग के दरवाजे खुल गए हैं.
त्रिवेंद्र सरकार में शुरू हुई कवायद: हिमाचल प्रदेश ने जो काम अब किया है, उस पर करीब 6 साल पहले उत्तराखंड में भाजपा की ही त्रिवेंद्र सरकार ने कवायद शुरू कर दी थी. साल 2018 में त्रिवेंद्र सरकार ने भांग के औद्योगिक उपयोग को मजबूत नीति के साथ शुरू करने का प्रयास किया था. जिसके लिए 2016 की ही नीति को बेहतर संशोधन के साथ लाया जाना था. लेकिन त्रिवेंद्र सरकार की यह पहल कभी परवान नहीं चढ़ पाई. स्थिति ये रही कि त्रिवेंद्र सिंह रावत की मुख्यमंत्री पद से विदाई हो गई और यह नीति कागजों तक ही सीमित रही. आज करीब 6 साल बाद भी अब तक यह मामला नीति के ड्राफ्ट में ही फंसा हुआ है और राज्य सरकार इस पर कोई अंतिम निर्णय ही नहीं ले पा रही है.
निवेशकों का अब हिमाचल की तरफ होगा रुख: भांग के व्यावसायिक और मेडिकल उपयोग को लेकर जो निवेशक अब तक उत्तराखंड को टकटकी लगाए देख रहे थे, वह अब हिमाचल का रुख करने को तैयार हैं. दरअसल उत्तराखंड ने इसकी शुरुआत की थी और इसके साथ ही देश और दुनिया भर में तमाम ऐसी बड़ी कंपनियां उत्तराखंड में बड़े निवेश को लेकर मौका तलाश रही थी. खास बात यह है कि कई कंपनियों ने तो इन्वेस्टर समिट के दौरान भी सरकार को अप्रोच किया था. लेकिन इस मामले में नीति न होने के कारण उत्तराखंड में निवेश का कोई रास्ता ही नहीं था. काफी इंतजार के बाद अब निवेशकों को उत्तराखंड से मायूसी हाथ लगी है और हिमाचल ने इन्हें निवेश का बड़ा मौका दे दिया है.
हिमाचल के खस्ताहाल वित्तीय हालात को मिलेगी ताकत: हिमाचल प्रदेश पिछले कुछ समय से लगातार खराब वित्तीय हालात से गुजर रहा है. बड़ी बात यह है कि पिछले कुछ समय में हिमाचल सरकार कर्मचारियों के वेतन भत्ते देने तक के लिए भारी दबाव में रही है. अब हिमाचल ने जिस तरह भांग के व्यावसायिक और मेडिकल उपयोग को लेकर दरवाजे खोले हैं, उसके बाद हिमाचल में इसके जरिए सैकड़ों करोड़ के निवेश की संभावना बन गई है. इससे हिमाचल की आर्थिक स्थिति में टर्निंग प्वाइंट आने की भी संभावना जताई जा रही है.
दुनिया में भांग का व्यावसायिक और मेडिकल बाजार तेजी से बढ़ा: भांग को Cannabis के नाम से जाना जाता है. इसका दुनिया भर में व्यावसायिक और मेडिकल का बाजार बेहद बड़ा है. खासतौर पर इसकी मेडिकल डिमांड काफी ज्यादा है. माना जाता है कि करीब 2028 तक मेडिकल कैनाबिस का बाजार दुनिया भर में 58 बिलियन डॉलर का होगा. इसके बाद भी इसके बाजार में करीब 2.10% की वार्षिक दर से बढ़ोत्तरी की उम्मीद लगाई गई है. इस तरह 2029 तक मेडिकल कैनाबिस का बाजार दुनिया भर में करीब 22.46 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंचाने का अनुमान है. इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि हिमाचल में इसके लिए दरवाजे खुलने के बाद यहां निवेश की स्थिति कितनी आगे बढ़ सकती है.
राजनीतिक इच्छा शक्ति की कमी के कारण पिछड़ा उत्तराखंड: उत्तराखंड में भांग के व्यावसायिक और मेडिकल उपयोग पर जो बात शुरू हुई, वह अब तक अंजाम तक नहीं पहुंच पाई. इसके पीछे की वजह राजनीतिक इच्छा शक्ति की कमी को भी माना जा रहा है. दरअसल त्रिवेंद्र सरकार ने जब इसकी शुरुआत की थी तब भांग को एक नशीले पौधे के रूप में देखते हुए इसका दुष्प्रचार हुआ था. विपक्ष ने कह दिया कि राज्य सरकार प्रदेश में नशे को बढ़ावा दे रही है. इस तरह की चर्चाएं भी आम हुई थी. माना जाता है कि बस इसी बदनामी ने राजनीतिक इच्छा शक्ति को धराशाई कर दिया. उसके बाद राज्य सरकार इस पर काम को आगे बढ़ाने की हिम्मत ही नहीं जुटा पाई और आज भी यही स्थिति बनी हुई है.
दुनिया भर के कई देशों में भांग की खेती को किया गया है वैध: दुनिया भर के ऐसे कई देश हैं, जो भांग की खेती को कानूनी मंजूरी देते हैं. इसे व्यावसायिक रूप से इस्तेमाल भी कर रहे हैं. ऐसे करीब 40 देश हैं, जहां भांग की खेती हो रही है. दरअसल इस पौधे के रेशे से लेकर तने और बीज तक का इस्तेमाल व्यावसायिक रूप से किया जाता है. खास तौर पर मेडिकल क्षेत्र में इसका उपयोग दर्द निवारक दवाई बनाने के लिए किया जाता है. जो देश इस पर काम कर रहे हैं, उनमें मुख्य रूप से अमेरिका, चीन, कनाडा, नीदरलैंड, जर्मनी, थाईलैंड और डेनमार्क शामिल हैं.
पहाड़ी किसानों के लिए वरदान साबित हो सकती है भांग: भांग का यह पौधा पहाड़ों पर किसानों के लिए वरदान साबित हो सकता है. ऐसा इसलिए क्योंकि पर्वतीय जनपदों में किसानों के लिए खेती करना बड़ा चुनौती पूर्ण रहा है. यहां सिंचित भूमि की कमी के अलावा जंगली जानवरों के खेती खराब करने के चलते किसानों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है. कम पानी की जरूरत और जंगली जानवरों को दूर रखने वाले इस पौधे की खेती के जरिए किसान अपनी आर्थिक को सुधार सकते हैं.
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