रांची: मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की परेशानी कम होने का नाम नहीं ले रही है. एक मुसीबत खत्म होती नहीं कि दूसरी सामने आ जाती है. यह सिलसिला सरकार बनने के कुछ दिन बाद से ही जो शुरू हो गया था.
हेमंत के सीएम बनने के बाद सबसे पहले उन्हें जिस समस्या का सामना करना पड़ा वह था कोरोना, कोविड-19 ने दस्तक दी तो बीमार को बचाना और मजदूरों को दूसरे प्रदेश से सकुशल वापस लाना, सबसे बड़ी चुनौती बन गई. झारखंड पहला राज्य बना, जिसने रेल के जरिए मजदूरों को वापस लाना शुरू किया. विमान का भी इस्तेमाल हुआ. लेकिन इस समस्या से सरकार अभी ठीक से उबरी भी नहीं थी कि पत्थर खनन पट्टा को लेकर चुनाव आयोग में ऑफिस ऑफ प्रॉफिट का मामला चलने लगा. इसी बीच साहिबगंज में अवैध पत्थर उत्खनन मामले में ईडी की कार्रवाई शुरू हो गयी. अब इसे सीबीआई देख रही है. फिर रांची के बड़गाईं अंचल में 8.86 एकड़ लैंड स्कैम का मामला इस कदर गरमाया कि हेमंत सोरेन को सीएम की कुर्सी छोड़कर जेल जाना पड़ा.
हालांकि, पांच माह बाद हाईकोर्ट से नियमित जमानत मिलने पर उन्होंने दोबारा सत्ता की कमान संभाल ली. जेल से निकलते ही उन्होंने बार-बार इस बात पर जोर दिया कि हाईकोर्ट के फैसले से साफ हो गया है कि उन्हें साजिश के तहत झूठे केस में जेल में रखा गया. लेकिन 8 जुलाई को कैबिनेट विस्तार के दिन ईडी द्वारा उनकी जमानत को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने से एक नई बहस छिड़ गई है. आम लोगों में चर्चा हो रही है कि कानूनी दाव पेंच में उलझी सरकार क्या निश्चिंतता के साथ जनहित के कार्य कर पाएगी. क्योंकि खुद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन कहते रहे हैं कि उन्हें जानबूझकर परेशान किया जा रहा है ताकि जनहित के कार्य को रफ्तार ना मिल सके.
केंद्र के इशारे पर सुप्रीम कोर्ट गई है एजेंसी- झामुमो
झामुमो प्रवक्ता मनोज पांडेय का कहना है कि ईडी के रुख से साफ हो गया है कि यह सब केंद्र सरकार के इशारे पर हो रहा है. हाईकोर्ट नियमित जमानत देते हुए 55 पन्नों के जजमेंट में स्पष्ट कर दिया है कि हेमंत सोरेन के खिलाफ कोई मामला नहीं बनता है. ऐसी परिस्थिति में सुप्रीम कोर्ट जाने का मतलब है कि आने वाले चुनाव को लेकर भाजपा भयभीत है. हेमंत सोरेन को फिर किसी तरह जेल में डालने की साजिश रची जा रही है. राजनीतिक लड़ाई रणनीतिक रूप से होनी चाहिए. अब भाजपा को हेमंत फोबिया हो गया है. बाबूलाल मरांडी का कद हेमंत के सामने छोटा हो गया है. लेकिन हमें भरोसा है कि सुप्रीम कोर्ट में ईडी की याचिका खारिज हो जाएगी.
झामुमो प्रवक्ता के मुताबिक उन्हें नहीं लगता है कि ऐसे मामले में ईडी को सुप्रीम कोर्ट जाने की जरुरत थी. उन्होंने कहा कि हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी का अंजाम लोकसभा चुनाव में भाजपा देख चुकी है. भाजपा सभी एसटी सीटों पर हार गई. इसके बावजूद जिस तरह से कानूनी दांव-पेंच खेला जा रहा है, उससे आगामी विस चुनाव में इंडिया गठबंधन को जबरदस्त फायदा होगा. झामुमो प्रवक्ता ने चुटकी लेते हुए कहा कि अब तो भाजपा के सलाहकारों पर तरस आ रहा है. उन्होंने कहा कि वर्तमान सरकार तत्परता के साथ जनता से किए वादे पूरा करेगी. साथ ही ईडी की चुनौती का जवाब सुप्रीम कोर्ट में भी दिया जाएगा.
जमानत को बरी की तरह पेश कर रहा है झामुमो- भाजपा
प्रदेश भाजपा प्रवक्ता प्रदीप सिन्हा ने झामुमो के आरोपों पर अपनी प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट से मिली जमानत को झामुमो के लोग ऐसे प्रचारित कर रहे हैं, जैसे लैंड स्कैम मामले में उन्हें बरी कर दिया गया है. अब ईडी ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. जाहिर है कि ईडी अब सुप्रीम कोर्ट में उन सारी बातों को रखेगी जो हेमंत सोरेन के खिलाफ हैं. लेकिन हेमंत सोरेन के रुख से लग रहा है कि वह सीएम पद की आड़ में खुद को संरक्षित करना चाह रहे हैं. इसी वजह से उन्होंने आनन फानन में सीएम पद की शपथ ली. इससे पहले भी उन्होंने सीएम के पद पर रहते हुए ईडी की कार्रवाई को बाधित करने की कोशिश की थी. उन्होंने उम्मीद जताई है कि सुप्रीम कोर्ट में ईडी यह जरूर बताने की कोशिश करेगी कि सीएम के पद पर बैठकर एक शख्स कैसे कानूनी संस्थाओं को ठेंगा दिखाने का काम कर रहा है.
दांव पर लगी है ईडी की साख- वरिष्ठ पत्रकार
वरिष्ठ पत्रकार शंभुनाथ चौधरी का कहना है कि ईडी अगर सुप्रीम कोर्ट नहीं जाती तो उसकी जांच पर सवाल उठते. क्योंकि ईडी ने इस केस में हेमंत सोरेन को दस समन भेजे थे. दो बार पूछताछ हुई थी. करीब छह माह तक चले कानूनी खेल के बाद 10वें समन पर पूछताछ के दौरान हेमंत की गिरफ्तारी हुई थी. इस मामले में चार्जशीट भी फाइल हो चुकी है. लिहाजा, ईडी के सामने अपनी साख बचाने की चुनौती है. अब आगे दो बातें हो सकती हैं. हेमंत सोरेन को राहत मिल सकती है या जमानत रद्द हो सकती है. दोनों सूरत में राजनीतिक रूप से झामुमो को फायदा मिलने की संभावना ज्यादा है.
शंभुनाथ कहते हैं कि राहत मिलने पर क्या होगा, यह बताने की जरूरत नहीं. अगर उन्हें फिर जेल जाना पड़ता है, तब भी झामुमो का कोर वोटर यही समझेगा कि उसके नेता को फिर जेल में डाल दिया गया. वह और ज्यादा एग्रेसिव होगा. यह भी संभव है कि अरविंद केजरीवाल की तरह इस बार हेमंत सोरेन सीएम का पद ना छोड़ें. खास बात है कि इन पांच महीनों में हेमंत सोरेन अपना प्लान बी तैयार करने में सफल रहे हैं. क्योंकि कल्पना सोरेन अब विधायक बन चुकीं हैं. हेमंत सोरेन उनके जरिए डैमेज कंट्रोल कर सकते हैं. वहीं, भाजपा के रुख से लग रहा है कि वह संथाल में हुई डेमोग्राफिक चेंज को लेकर परसेप्शन बनाना चाह रही है. लिहाजा, यह कहा जा सकता है कि इस बार का विधानसभा चुनाव बेहद दिलचस्प होगा.
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