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हेमा समिति की रिपोर्ट: कार्रवाई में देरी के लिए हाईकोर्ट ने सरकार की आलोचना की - Hema Committee Report

Hema Committee Report: पूरी रिपोर्ट के अलावा, अदालत ने ट्रांसक्रिप्ट सहित पूरी जानकारी उपलब्ध कराने का आदेश दिया है. अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि रिपोर्ट के बाद सरकार द्वारा उठाए गए कदमों का विवरण, जिसमें विशेष जांच दल के बारे में जानकारी शामिल है, प्रदान किया जाए.

Hema Committee Report
केरल हाई कोर्ट (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Sep 10, 2024, 8:44 PM IST

कोच्चि: केरल हाईकोर्ट ने हेमा समिति की रिपोर्ट से निपटने के तरीके को लेकर राज्य सरकार की तीखी आलोचना की है और कार्रवाई में देरी पर सवाल उठाए हैं. कोर्ट ने रिपोर्ट में बताए गए गंभीर मुद्दों पर सरकार की प्रतिक्रिया की कमी पर आश्चर्य जताया और पूरी रिपोर्ट विशेष जांच दल (SIT) को सौंपने की मांग की. इसके साथ ही कोर्ट ने जांच दल को रिपोर्ट गोपनीय रखने का भी निर्देश दिया. हेमा समिति की पूरी, बिना संपादित रिपोर्ट की एसआईटी समीक्षा करेगी और इस पर फैसला लिया जाएगा कि एफआईआर दर्ज की जाए या नहीं.

जस्टिस ए.के. जयशंकर नांबियार और जस्टिस सी.एस. सुधा की विशेष खंडपीठ हेमा समिति की रिपोर्ट से जुड़े मामलों की निगरानी कर रही है. कोर्ट ने कहा कि मीडिया को रिपोर्टिंग से नहीं रोका जा सकता, लेकिन इस बात पर जोर दिया कि मीडिया को जांच दल पर दबाव नहीं डालना चाहिए. कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि महिलाएं अल्पसंख्यक नहीं बल्कि बहुसंख्यक हैं.

मंगलवार सुबह सुनवाई के दौरान कोर्ट ने जानना चाहा कि रिपोर्ट के निष्कर्षों के जवाब में सरकार ने क्या कार्रवाई की है. जवाब में एडवोकेट जनरल (एजी) ने कोर्ट को बताया कि मामले की जांच के लिए विशेष जांच दल गठित किया गया है. हालांकि, कोर्ट इस बात से चिंतित है कि हेमा कमेटी की रिपोर्ट के खुलासे के आधार पर कोई ठोस कार्रवाई की गई है या नहीं.

महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मामलों में आपराधिक प्रक्रिया के तहत मामला दर्ज किया जा सकता है. लेकिन, रिपोर्ट पर कोई कार्रवाई किए बिना ही जांच दल गठित कर दिया गया. कोर्ट ने यह सवाल एजी के इस बयान के बाद उठाया कि हेमा कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद सार्वजनिक मंचों पर लगाए गए आरोपों के आधार पर कार्रवाई की गई है.

इसके बाद हाईकोर्ट ने पूछा कि कार्रवाई में देरी क्यों हुई और रिपोर्ट काफी पहले मिलने के बावजूद सरकार की चुप्पी पर सवाल उठाया. कोर्ट ने यह भी पूछा कि क्या यह निष्क्रियता उचित है. एजी ने बताया कि पूरी रिपोर्ट के प्रकाशन पर रोक लगाने वाले आदेश के कारण कोई कार्रवाई नहीं की गई. अदालत ने सरकार की निष्क्रियता को आश्चर्यजनक पाया और कहा कि जब पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) को फरवरी 2021 में रिपोर्ट की एक प्रति प्राप्त हुई थी, तब कार्रवाई शुरू की जानी चाहिए थी.

सरकार ने संबंधित दस्तावेजों सहित रिपोर्ट को सीलबंद लिफाफे में उच्च न्यायालय की विशेष खंडपीठ को सौंप दिया था. हालांकि, पीड़ितों के बयानों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई. रिपोर्ट में जो कुछ भी शामिल था, उससे परे, जिसके कारण व्यापक आलोचना हुई. इसके बाद, उच्च न्यायालय ने हस्तक्षेप किया और निर्देश दिया कि बिना किसी आलोचना के 9 सितंबर तक रिपोर्ट प्रस्तुत की जाए.

पूरी रिपोर्ट के अलावा, अदालत ने ट्रांसक्रिप्ट सहित पूरी जानकारी उपलब्ध कराने का आदेश दिया है. अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि रिपोर्ट के बाद सरकार द्वारा उठाए गए कदमों का विवरण, जिसमें विशेष जांच दल के बारे में जानकारी शामिल है, प्रदान किया जाए.

ये भी पढ़ें: केरल हाईकोर्ट ने पेरिन्थालमन्ना विधानसभा चुनाव को रद्द करने की याचिका की खारिज

कोच्चि: केरल हाईकोर्ट ने हेमा समिति की रिपोर्ट से निपटने के तरीके को लेकर राज्य सरकार की तीखी आलोचना की है और कार्रवाई में देरी पर सवाल उठाए हैं. कोर्ट ने रिपोर्ट में बताए गए गंभीर मुद्दों पर सरकार की प्रतिक्रिया की कमी पर आश्चर्य जताया और पूरी रिपोर्ट विशेष जांच दल (SIT) को सौंपने की मांग की. इसके साथ ही कोर्ट ने जांच दल को रिपोर्ट गोपनीय रखने का भी निर्देश दिया. हेमा समिति की पूरी, बिना संपादित रिपोर्ट की एसआईटी समीक्षा करेगी और इस पर फैसला लिया जाएगा कि एफआईआर दर्ज की जाए या नहीं.

जस्टिस ए.के. जयशंकर नांबियार और जस्टिस सी.एस. सुधा की विशेष खंडपीठ हेमा समिति की रिपोर्ट से जुड़े मामलों की निगरानी कर रही है. कोर्ट ने कहा कि मीडिया को रिपोर्टिंग से नहीं रोका जा सकता, लेकिन इस बात पर जोर दिया कि मीडिया को जांच दल पर दबाव नहीं डालना चाहिए. कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि महिलाएं अल्पसंख्यक नहीं बल्कि बहुसंख्यक हैं.

मंगलवार सुबह सुनवाई के दौरान कोर्ट ने जानना चाहा कि रिपोर्ट के निष्कर्षों के जवाब में सरकार ने क्या कार्रवाई की है. जवाब में एडवोकेट जनरल (एजी) ने कोर्ट को बताया कि मामले की जांच के लिए विशेष जांच दल गठित किया गया है. हालांकि, कोर्ट इस बात से चिंतित है कि हेमा कमेटी की रिपोर्ट के खुलासे के आधार पर कोई ठोस कार्रवाई की गई है या नहीं.

महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मामलों में आपराधिक प्रक्रिया के तहत मामला दर्ज किया जा सकता है. लेकिन, रिपोर्ट पर कोई कार्रवाई किए बिना ही जांच दल गठित कर दिया गया. कोर्ट ने यह सवाल एजी के इस बयान के बाद उठाया कि हेमा कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद सार्वजनिक मंचों पर लगाए गए आरोपों के आधार पर कार्रवाई की गई है.

इसके बाद हाईकोर्ट ने पूछा कि कार्रवाई में देरी क्यों हुई और रिपोर्ट काफी पहले मिलने के बावजूद सरकार की चुप्पी पर सवाल उठाया. कोर्ट ने यह भी पूछा कि क्या यह निष्क्रियता उचित है. एजी ने बताया कि पूरी रिपोर्ट के प्रकाशन पर रोक लगाने वाले आदेश के कारण कोई कार्रवाई नहीं की गई. अदालत ने सरकार की निष्क्रियता को आश्चर्यजनक पाया और कहा कि जब पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) को फरवरी 2021 में रिपोर्ट की एक प्रति प्राप्त हुई थी, तब कार्रवाई शुरू की जानी चाहिए थी.

सरकार ने संबंधित दस्तावेजों सहित रिपोर्ट को सीलबंद लिफाफे में उच्च न्यायालय की विशेष खंडपीठ को सौंप दिया था. हालांकि, पीड़ितों के बयानों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई. रिपोर्ट में जो कुछ भी शामिल था, उससे परे, जिसके कारण व्यापक आलोचना हुई. इसके बाद, उच्च न्यायालय ने हस्तक्षेप किया और निर्देश दिया कि बिना किसी आलोचना के 9 सितंबर तक रिपोर्ट प्रस्तुत की जाए.

पूरी रिपोर्ट के अलावा, अदालत ने ट्रांसक्रिप्ट सहित पूरी जानकारी उपलब्ध कराने का आदेश दिया है. अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि रिपोर्ट के बाद सरकार द्वारा उठाए गए कदमों का विवरण, जिसमें विशेष जांच दल के बारे में जानकारी शामिल है, प्रदान किया जाए.

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