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'उन्होंने मेरी जिंदगी बना दी', जाकिर हुसैन को लेकर ऐसा क्यों बोले हरिदास वटकर - ZAKIR HUSSAIN

जाकिर हुसैन के लिए तबला बनाने वाले हरिदास वटकर ने कहा कि वह तबले बनाने के साथ-साथ उनकी मरम्मत भी करते हैं.

हरिदास वटकर
हरिदास वटकर (PTI)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Dec 16, 2024, 3:04 PM IST

नई दिल्ली: तबला बनाने वाले हरिदास वटकर अपने सबसे मशहूर ग्राहक उस्ताद जाकिर हुसैन के निधन पर शोक मना रहे है. 73 साल के जाकिर हुसैन ने 15 दिसंबर को अमेरिका के सैन फ्रैंसिस्को में अंतिम सांस ली. 59 साल के वटकर ने बताया कि उन्होंने सबसे पहले जाकिर हुसैन के पिता अल्ला रक्खा के लिए तबले बनाना शुरू किया था.

उन्होंने न्यूज एजेंसी पीटीआई से कहा, "मैंने सबसे पहले उनके पिता अल्ला रक्खा के लिए तबले बनाना शुरू किया था और 1998 से जाकिर हुसैन साहब के लिए तबले बना रहा था." मुंबई के कांजुरमार्ग में अपनी वर्कशॉप से बात करते हुए वटकर ने कहा कि वह 73 वर्षीय तबला वादक से आखिरी बार इस साल अगस्त में मुंबई में मिले थे.

वटकर ने कहा, "वह गुरु पूर्णिमा का दिन था और हम एक हॉल में मिले, जहां उनके कई फैंस भी मौजूद थे. अगले दिन मैं नेपियन सी रोड पड़ोस में शिमला हाउस कोऑपरेटिव सोसाइटी में उनके घर गया और कुछ घंटों तक बातचीत में मशगूल रहा."

'ट्यूनिंग' पहलू पर बहुत ध्यान देते थे जाकिर
पश्चिमी महाराष्ट्र के मिराज से आने वाले तीसरी पीढ़ी के तबला निर्माता वटकर ने कहा, "वे इस बात को लेकर बहुत सजग रहते थे कि उन्हें किस तरह का तबला चाहिए और कब? वे संगीत वाद्ययंत्र के 'ट्यूनिंग' पहलू पर बहुत ध्यान देते थे."

जब उनसे पूछा गया कि पिछले दो दशकों में उन्होंने जाकिर हुसैन के लिए कितने तबले बनाए हैं, तो उनका जवाब था, "अनगिनत." उन्होंने कहा कि उनके पास कई तबले हैं, जो उस्ताद ने उनके लिए छोड़े थे. "नए वाद्ययंत्र बनाने के अलावा, मैं पुराने वाद्ययंत्रों के क्लेकशन को बनाए रखने के लिए उनके मरम्मत का भी काम करता था."

'उन्होंने मेरी जिंदगी बना दी'
तबला निर्माता ने कहा, "मैंने उनके लिए तबले बनाए और उन्होंने मेरी जिंदगी बना दी." यह पूछे जाने पर कि क्या वह और जाकिर हुसैन नियमित संपर्क में थे तो वटकर ने कहा, "वास्तव में नहीं. जब भी जरूरत होती थी, वे नए तबले के बारे में या कुछ पुराने वाद्ययंत्रों की मरम्मत के बारे में पूछने के लिए फोन करते थे."

अपने दादा केराप्पा रामचंद्र वटकर और पिता रामचंद्र केराप्पा वटकर के नक्शेकदम पर चलते हुए तबला बनाने में शामिल हुए वटकर ने कहा, "हमारी बातचीत महीनों के अंतराल के बाद होती थी और इसे आप नियमित कॉल नहीं कह सकते."

उनके बेटे किशोर और मनोज ने भी तबला बनाने की पारिवारिक परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं. हरिदास ने कम उम्र में ही तबला बनाने की कला सीख ली थी और उनमें इनोवेशन और परफेक्शन की गहरी समझ विकसित हो गई थी. वे 1994 में मुंबई आए और मुंबई में प्रसिद्ध हरिभाऊ विश्वनाथ कंपनी के लिए तबला निर्माता के रूप में काम करना शुरू कर दिया.

अपनी पीढ़ी के सबसे महान तबला वादक माने जाने वाले जाकिर हुसैन का सोमवार को सैन फ्रांसिस्को के एक अस्पताल में निधन हो गया, उनके परिवार ने यह जानकारी दी. मुंबई में जन्मे तबला वादक के परिवार में उनकी पत्नी एंटोनिया मिनेकोला और बेटियां अनीसा कुरैशी और इसाबेला कुरैशी हैं.

यह भी पढ़ें- कितने नंबर तक वेटिंग टिकट हो सकती है कंफर्म? रेलवे ने समझाया पूरा गणित, यात्रा प्लान करने से पहले समझ लें फॉर्मूला

नई दिल्ली: तबला बनाने वाले हरिदास वटकर अपने सबसे मशहूर ग्राहक उस्ताद जाकिर हुसैन के निधन पर शोक मना रहे है. 73 साल के जाकिर हुसैन ने 15 दिसंबर को अमेरिका के सैन फ्रैंसिस्को में अंतिम सांस ली. 59 साल के वटकर ने बताया कि उन्होंने सबसे पहले जाकिर हुसैन के पिता अल्ला रक्खा के लिए तबले बनाना शुरू किया था.

उन्होंने न्यूज एजेंसी पीटीआई से कहा, "मैंने सबसे पहले उनके पिता अल्ला रक्खा के लिए तबले बनाना शुरू किया था और 1998 से जाकिर हुसैन साहब के लिए तबले बना रहा था." मुंबई के कांजुरमार्ग में अपनी वर्कशॉप से बात करते हुए वटकर ने कहा कि वह 73 वर्षीय तबला वादक से आखिरी बार इस साल अगस्त में मुंबई में मिले थे.

वटकर ने कहा, "वह गुरु पूर्णिमा का दिन था और हम एक हॉल में मिले, जहां उनके कई फैंस भी मौजूद थे. अगले दिन मैं नेपियन सी रोड पड़ोस में शिमला हाउस कोऑपरेटिव सोसाइटी में उनके घर गया और कुछ घंटों तक बातचीत में मशगूल रहा."

'ट्यूनिंग' पहलू पर बहुत ध्यान देते थे जाकिर
पश्चिमी महाराष्ट्र के मिराज से आने वाले तीसरी पीढ़ी के तबला निर्माता वटकर ने कहा, "वे इस बात को लेकर बहुत सजग रहते थे कि उन्हें किस तरह का तबला चाहिए और कब? वे संगीत वाद्ययंत्र के 'ट्यूनिंग' पहलू पर बहुत ध्यान देते थे."

जब उनसे पूछा गया कि पिछले दो दशकों में उन्होंने जाकिर हुसैन के लिए कितने तबले बनाए हैं, तो उनका जवाब था, "अनगिनत." उन्होंने कहा कि उनके पास कई तबले हैं, जो उस्ताद ने उनके लिए छोड़े थे. "नए वाद्ययंत्र बनाने के अलावा, मैं पुराने वाद्ययंत्रों के क्लेकशन को बनाए रखने के लिए उनके मरम्मत का भी काम करता था."

'उन्होंने मेरी जिंदगी बना दी'
तबला निर्माता ने कहा, "मैंने उनके लिए तबले बनाए और उन्होंने मेरी जिंदगी बना दी." यह पूछे जाने पर कि क्या वह और जाकिर हुसैन नियमित संपर्क में थे तो वटकर ने कहा, "वास्तव में नहीं. जब भी जरूरत होती थी, वे नए तबले के बारे में या कुछ पुराने वाद्ययंत्रों की मरम्मत के बारे में पूछने के लिए फोन करते थे."

अपने दादा केराप्पा रामचंद्र वटकर और पिता रामचंद्र केराप्पा वटकर के नक्शेकदम पर चलते हुए तबला बनाने में शामिल हुए वटकर ने कहा, "हमारी बातचीत महीनों के अंतराल के बाद होती थी और इसे आप नियमित कॉल नहीं कह सकते."

उनके बेटे किशोर और मनोज ने भी तबला बनाने की पारिवारिक परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं. हरिदास ने कम उम्र में ही तबला बनाने की कला सीख ली थी और उनमें इनोवेशन और परफेक्शन की गहरी समझ विकसित हो गई थी. वे 1994 में मुंबई आए और मुंबई में प्रसिद्ध हरिभाऊ विश्वनाथ कंपनी के लिए तबला निर्माता के रूप में काम करना शुरू कर दिया.

अपनी पीढ़ी के सबसे महान तबला वादक माने जाने वाले जाकिर हुसैन का सोमवार को सैन फ्रांसिस्को के एक अस्पताल में निधन हो गया, उनके परिवार ने यह जानकारी दी. मुंबई में जन्मे तबला वादक के परिवार में उनकी पत्नी एंटोनिया मिनेकोला और बेटियां अनीसा कुरैशी और इसाबेला कुरैशी हैं.

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