देहरादून (उत्तराखंड): उत्तराखंड में ततैया या मधुमक्खी ने आपको काटा तो सरकार इसका मुआवजा देगी. यही नहीं वन विभाग अब ततैया और मधुमक्खी के हर डंक का हिसाब भी रखेगा. जी हां यह सब उत्तराखंड वन विभाग की उस संसोधित नई नियमावली के कारण हुआ है, जिसमें मानव वन्यजीव संघर्ष के तौर पर लोगों को मिलने वाली राहत राशि के लिए ततैया और मधुमक्खी को भी शामिल किया गया है. उत्तराखंड में क्यों हुई ये पहल और कैसी होगी राहत, आइए आपको बताते हैं.
ततैया के काटने पर मिलेगा हर्जाना: उत्तराखंड में ततैया या मधुमक्खी के काटने का हर्जाना धामी सरकार भरेगी. खुद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के सुझाव पर प्रदेश में इस नई पहल को शुरू किया गया है. खास बात यह है कि उत्तराखंड वन विभाग ने इसके मद्देनजर नियमावली में संशोधन भी कर लिया है. ततैया या मधुमक्खी के काटने पर मिलने वाली राहत रकम भी तय कर ली है. दरअसल ततैया और मधुमक्खी को मानव वन्य जीव संघर्ष के दायरे में लाया गया है. यानी उत्तराखंड में टाइगर, लेपर्ड, भालू या एलीफेंट के साथ होने वाले संघर्ष की तरह ही ततैया और मधुमक्खी को भी विशेष वरीयता दी जाएगी. इतना ही नहीं उत्तराखंड वन विभाग इसका खाका तैयार कर होने वाली घटनाओं पर भी न केवल नजर रखेगा बल्कि इसे कम करने के लिए भी विशेष प्रयास किए जाएंगे. उत्तराखंड के वन मंत्री सुबोध उनियाल कहते हैं कि मधुमक्खियों और ततैया के काटने से राज्य में कई मौतें हुई हैं. कई लोग घायल भी हुए हैं. ऐसे में व्यावहारिक दृष्टिकोण को देखते हुए राज्य सरकार द्वारा यह निर्णय लिया गया है.
उत्तराखंड में बढ़ रहे ततैया के हमले: प्रदेश में ततैया और मधुमक्खियों को लेकर लिया गया यह फैसला बेवजह नहीं है. इसके पीछे का कारण पिछले कुछ सालों में मधुमक्खी और ततैया के कारण किसानों और पशुपालकों की मौत होना है. शायद यही कारण है कि करीब 1 साल पहले ही मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने राज्य में मधुमक्खी और ततैया से होने वाली मानव क्षति पर राहत राशि देने का मन बना लिया था.
मधुमक्खी और ततैया के काटने की घटनाएं-
- साल 2022 में अकेले पिथौरागढ़ में हुई थी तीन लोगों की मौत.
- राज्य में साल 2022 में 6 लोगों ने मधुमक्खी और ततैया के काटने से गंवाई जान.
- चंपावत टिहरी और बागेश्वर जिले में भी हुई थी मौतें.
- 2022 में 6 से ज्यादा लोग मधुमक्खी और ततैया के काटने से हुए थे घायल.
- अमेरिका समेत दुनिया के तमाम देशों में मधुमक्खी और ततैया बनती है लोगों की मौत की वजह.
- CM धामी ने लोगों के अनुरोध पर करीब 1 साल पहले ही पिथौरागढ़ में राहत देने की कर दी थी घोषणा.
वैसे तो उत्तराखंड में 11 नवंबर 2019 को अधिसूचना जारी करते हुए मानव वन्य जीव संघर्ष को राज्य आपदा घोषित कर दिया गया था. जबकि इससे पहले साल 2014 में मानव वन्य जीव संघर्ष के दायरे में जहरीले सांपों को भी जोड़ा गया था. अब तक मधुमक्खी और ततैया को लेकर कभी कोई विचार नहीं हुआ था. ऐसे में अब इसके लिए राहत राशि को लेकर यह निर्णय लिया गया है.
मधुमक्खी और ततैया के काटने पर राहत राशि-
- साधारण घायल होने की स्थिति में ₹15,000 की मिलेगी राहत राशि.
- मानव वन्य जीव संघर्ष में गंभीर घायल होने पर एक लाख का मिलेगा मुआवजा.
- आंशिक रूप से अपंग होने पर भी 100,000 की मिलती है मदद.
- पूर्ण रूप से अपंग होने पर 3 लाख की मदद का है प्रावधान.
- मृत्यु होने की स्थिति में 6 लाख रुपए का सरकार देगी हर्जाना.
भालू के हमले पर भी मिलेगा हर्जाना: मानव वन्य जीव संघर्ष राहत वितरण निधि नियमावली 2024 में एक तरफ जहां मधुमक्खी और ततैया जोड़े गए हैं तो वहीं आम लोगों के घरों को नुकसान पहुंचाने वाले भालुओं को लेकर भी नई पहल हुई है. संशोधित नियमावली में अब घरों को नुकसान पहुंचाने वाले हाथियों की तरह ही भालुओं द्वारा घरों को नुकसान पहुंचाये जाने की स्थिति में राहत राशि दी जाएगी. अब तक केवल लोगों के घरों को हाथियों द्वारा नुकसान पहुंचा जाने की स्थिति में ही लोगों को मुआवजा मिलता था जबकि भालू द्वारा घरों को नुकसान पहुंचाये जाने पर राहत राशि का कोई प्रावधान नहीं था. अब भालू द्वारा घरों को नुकसान पहुंचाये जाने पर 15,000 रुपए से डेढ़ लाख रुपए तक का मुआवजा देने का प्रावधान रखा गया है.
ये भी पढ़ें:
- आंगन में खेल रहे दो सगे भाइयों पर ततैया के झुंड ने किया हमला, एक की मौत
- ये भी पढ़ें: स्कूल से लौट रहे 8 छात्रों पर ततैया ने किया हमला, 3 की हालत गंभीर
किसानों और पशुपालकों को मिलेगी राहत: प्रदेश में ततैया और मधुमक्खी को भी मानव वन्य जीव संघर्ष के दायरे में ले जाने की मांग लोगों द्वारा की गई थी जिसे अब पूरा कर दिया गया है. वैसे उत्तराखंड के साथ ही हिमाचल प्रदेश में भी मधुमक्खी और ततैया के काटने पर मुआवजा देने के लिए प्रयास किया गया है. उधर अब सरकार के फैसले के बाद किसानों और पशुपालकों को राहत मिलेगी क्योंकि कई जगह ततैया और मधुमक्खी खेतों में उनके लिए आतंक का पर्याय बनी हुई हैं. अब वन विभाग भी इससे जुड़े आंकड़े इकट्ठे करेगा और इसके बाद इस पर अध्ययन का कार्य भी हो सकेगा.
ये भी पढ़ें: