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लॉकडाउन में 93 फीसदी तक साफ हो गई थी गंगा, ऋषिकेश में गौमुख जितना साफ था पानी, वाडिया ने की थी स्टडी

कोरोना काल में गंगा समेत अन्य नदियों पर वाडिया इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों की थी स्टडी. रिपोर्ट अब Geochemical Transactions में हुई पब्लिश.

ganga
कोरोना में साफ हुई थी गंगा. (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Oct 16, 2024, 2:54 PM IST

Updated : Oct 16, 2024, 4:38 PM IST

देहरादून: साल 2020 में कोरोना के कारण लगा लॉकडाउन इसानों के लिए भले ही मुश्किल भरा दौर रहा हो, लेकिन प्रकृति के लिए ये लॉकडाउन वारदान साबित हुआ था. वैज्ञानिकों की कुछ स्टडी रिपोर्ट इसकी तरफ इशारा रही है. लॉकडाउन में वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ़ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिकों ने गंगा नदी में कुछ अध्ययन किया था, जिसका रिपोर्ट अब Geochemical Transactions में पब्लिश हुई है. इस रिपोर्ट के आधार पर कहां जा सकता है कि लॉकडाउन में गंगा का प्रदूषण 93 प्रतिशत तक कम हो गया था.

पर्यावरण के लिए वरदान बना था लॉकडाउन: वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ़ हिमालयन जियोलॉजी की रिपोर्ट के अनुसार साल 1992 में रमेश और शरीन ने गंगा के पानी पर अध्ययन किया था. उस दौरान अलकनंदा नदी का वॉटर पॉल्यूशन इंडेक्स (WPI) 0.10 था. वहीं भागीरथी नदी का WPI 0.12 और गंगा का WPI 0.13 था. इसके बाद मानवीय हस्तक्षेप के कारण गंगा में प्रदूषण का स्तर बढ़ता गया है. वीडिया के वैज्ञानिकों की माने तो लॉकडाउन से पहले हरिद्वार में गंगा का वॉटर पॉल्यूशन इंडेक्स 115 के करीब था.

जानकारी देते हुए वाडिया इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक डॉ समीर तिवारी (ETV Bharat)

वहीं, साल 2020 में कोरोना काल में लॉकडाउन के कारण जब सभी तरह की गतिविधियां रूक गई तो गंगा समेत अन्य नदियों के वॉटर पॉल्यूशन इंडेक्स में काफी सुधार हुआ. जिसकी तस्दीक वाडिया की स्टडी रिपोर्ट करती है. दरअसल, लॉकडाउन में वाडिया इंस्टीट्यूट के कुछ वैज्ञानिक ने गंगा समेत अन्य नदियों पर अध्ययन किया.

93 फीसदी तक साफ हो गई थी गंगा: लॉकडाउन के दौरान वाडिया इंस्टीट्यूट के अध्ययन में अलकनंदा नदी का वॉटर पॉल्यूशन इंडेक्स (WPI) 0.15 मिला. वहीं भागीरथी का WPI 0.13, गंगा का WPI 0.14 और टौंस नदी का WPI 0.18 के आसपास मिला था. वाडिया इंस्टीट्यूट की स्टडी रिपोर्ट बताती है कि लॉकडाउन में अलकनंदा नदी में 21 फीसदी, भागीरथी नदी में 32 फीसदी और गंगा नदी में 93 फीसदी वॉटर पॉल्यूशन इंडेक्स कम हुआ है.

Wadia Institute of Himalayan Geology Report
साल 1992 की स्टडी रिपोर्ट.. (ETV Bharat)

वैज्ञानिकों ने इन जगहों से लिए थे गंगा-यमुना के सैंपल: वाडियो इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक डॉ समीर तिवारी बताते है कि उन्होंने और उनकी टीम ने लॉकडाउन के दौरान कुल 34 अलग-अलग जंगहों से गंगा और यमुना नदी के पानी का सैंपल लिया था. लॉकडाउन के पहले फेस यानी मई 2020 में गंगा रिवर सिस्टम के लिए 10 जगहों से सैंपल लिए थे. साथ ही यमुना रिवर सिस्टम के लिए 6 जगहों से सैंपल लिए थे.

गंगा और यमुना का पानी पूरी तरह साफ हो गया था: इसी तरह लॉकडाउन के दूसरे फेस यानी जून 2020 में गंगा रिवर सिस्टम के लिए 10 जगह और यमुना रिवर सिस्टम के लिए 8 जगहों से सैंपल लिए गए थे. साथ ही पानी की क्वालिटी का अध्ययन करने के लिए पानी के अंदर मौजूद 16 तत्वों की जांच की गई थी, जिसकी रिपोर्ट अब पब्लिश हुई है. इस दौरान देखने में आया कि गंगा और यमुना का पानी पूरी तरह से साफ हो गया था.

Wadia Institute of Himalayan Geology Report
वाडिया इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों की स्टडी रिपोर्ट. (ETV Bharat)

नदियों पर लॉकडाउन का असर: वैज्ञानिक डॉ समीर तिवारी के मुताबिक कोविड काल सब कुछ बंद होने पर आसमान भी पूरी तरह से साफ हो गया था, जिसका मतलब यह था कि ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कम हो रहा है. ऐसे में वाडिया संस्थान ने यह जानने का प्रयास किया कि लॉकडाउन का गंगा और यमुना पर क्या असर पड़ा है. इसके लिए 05 मई 2020 और 13 जून 2020 में अध्ययन किया गया.

इस दौरान गंगा और यमुना के अध्ययन के लिए दो टीमों का गठन किया गया और दोनों ही टीमों को एक साथ अध्ययन के लिए भेजा गया. गंगा नदी के लिए भागीरथी नदी से करीब 25 किलोमीटर ऊपर कोटेश्वर डैम से देवप्रयाग तक, अलकनंदा नदी से करीब 10 किलोमीटर ऊपर मूल्या (mulya) क्षेत्र से सैंपल एकत्र किया गया. इसके साथ ही टॉस नदी और यमुना नदी का भी सैंपल लिया गया.

Wadia Institute of Himalayan Geology Report
गंगा पर वाडिया की स्टडी रिपोर्ट Geochemical Transactions पब्लिश हुई हैं. (फोटो- वाडिया इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट)

पहली स्टडी रिपोर्ट से की गई तुलना: डॉ समीर तिवारी ने बताया कि गंगा के पानी की क्वालिटी को लेकर पहले भी अध्ययन किया जा चुके हैं, जिसमें साल 1992 में रमेश और शरीन ने गंगा के पानी पर मेजर एंड केमिस्ट्री का अध्ययन किया था. लिहाजा उनकी रिपोर्ट के आधार पर उस दौरान गंगा के पानी की क्वालिटी को निकाला गया. इसके अलावा साल 2005 में चक्रपाणि ने भी अध्ययन किया था. इन सभी रिपोर्ट को उनकी टीम ने अपनी नई रिपोर्ट के साथ अध्ययन किया.

Wadia Institute of Himalayan Geology Report
गंगा पर की गई वाडिया इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों की रिपोर्ट. (फोटो- वाडिया इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट)

पीने योग्य हो गया था गंगा का पानी: इस अध्ययन में यह पाया गया कि 2020 में लगे दो महीने के लॉकडाउन के दौरान गंगा करीब 93 फ़ीसदी साफ हुई थी. यानी गंगा में पॉल्यूशन की मात्रा 93 फीसदी कम हो गई थी. मात्र दो महीने मानवीय हस्तक्षेप बंद होने से गंगा का पानी पीने योग्य हो गया था.

Wadia Institute of Himalayan Geology Report
लॉकडाउन के दौरान नदियों से सैंपल लेते हुए वाडिया इंस्टीट्यूट की टीम के सदस्य (फोटो- वाडिया इंस्टीट्यूट)

Geochemical Transactions में पब्लिश हुई वीडियो की रिपोर्ट: डॉ समीर तिवारी का कहना है यदि छोटी-छोटी नदियों और गाद गदेरे में भी मानवीय हस्तक्षेप बंद कर दिया जाए तो उनको भी आसानी से पुनर्जीवित किया जा सकता है. समीर ने बताया कि उनकी ये अध्ययन रिपोर्ट Geochemical Transactions में पब्लिश हुई है.

Wadia Institute of Himalayan Geology Report
वाडिया के वैज्ञानिकों ने गंगा और यमुना के पानी के कई जगहों से सैंपल लिए थे. (फोटो- वाडिया इंस्टीट्यूट)

ऋषिकेश में गंगा का पानी गोमुख जितना साफ हो गया था: साथ ही बताया कि कोविड काल से पहले जब ऋषिकेश और हरिद्वार में गंगा नदी का सैंपल लिया गया था, उस दौरान पानी का टीडीएस (Total dissolved solids) करीब 150 मिलीग्राम/लीटर था, लेकिन कोविड काल के दौरान हरिद्वार के श्यामपुर में गंगा के पानी का टीडीएस (Total dissolved solids) करीब 35 मिलीग्राम/लीटर हो गया था. यानी अगर वर्तमान समय में अगर गंगोत्री उद्गम स्थल से पानी का सैंपल लिया जाता है तो उसका टीडीएस करीब 30 से 35 मिलीग्राम प्रति लीटर होगा. अध्ययन के दौरान यह भी पता चला की गंगा के पानी में अधिकांश कंट्रीब्यूशन गंगोत्री ग्लेशियर का था. साथ ही बताया कि हरिद्वार तक पानी इतना अधिक साफ हो गया था कि उसको मात्र छानकर पिया जा सकता था.

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देहरादून: साल 2020 में कोरोना के कारण लगा लॉकडाउन इसानों के लिए भले ही मुश्किल भरा दौर रहा हो, लेकिन प्रकृति के लिए ये लॉकडाउन वारदान साबित हुआ था. वैज्ञानिकों की कुछ स्टडी रिपोर्ट इसकी तरफ इशारा रही है. लॉकडाउन में वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ़ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिकों ने गंगा नदी में कुछ अध्ययन किया था, जिसका रिपोर्ट अब Geochemical Transactions में पब्लिश हुई है. इस रिपोर्ट के आधार पर कहां जा सकता है कि लॉकडाउन में गंगा का प्रदूषण 93 प्रतिशत तक कम हो गया था.

पर्यावरण के लिए वरदान बना था लॉकडाउन: वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ़ हिमालयन जियोलॉजी की रिपोर्ट के अनुसार साल 1992 में रमेश और शरीन ने गंगा के पानी पर अध्ययन किया था. उस दौरान अलकनंदा नदी का वॉटर पॉल्यूशन इंडेक्स (WPI) 0.10 था. वहीं भागीरथी नदी का WPI 0.12 और गंगा का WPI 0.13 था. इसके बाद मानवीय हस्तक्षेप के कारण गंगा में प्रदूषण का स्तर बढ़ता गया है. वीडिया के वैज्ञानिकों की माने तो लॉकडाउन से पहले हरिद्वार में गंगा का वॉटर पॉल्यूशन इंडेक्स 115 के करीब था.

जानकारी देते हुए वाडिया इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक डॉ समीर तिवारी (ETV Bharat)

वहीं, साल 2020 में कोरोना काल में लॉकडाउन के कारण जब सभी तरह की गतिविधियां रूक गई तो गंगा समेत अन्य नदियों के वॉटर पॉल्यूशन इंडेक्स में काफी सुधार हुआ. जिसकी तस्दीक वाडिया की स्टडी रिपोर्ट करती है. दरअसल, लॉकडाउन में वाडिया इंस्टीट्यूट के कुछ वैज्ञानिक ने गंगा समेत अन्य नदियों पर अध्ययन किया.

93 फीसदी तक साफ हो गई थी गंगा: लॉकडाउन के दौरान वाडिया इंस्टीट्यूट के अध्ययन में अलकनंदा नदी का वॉटर पॉल्यूशन इंडेक्स (WPI) 0.15 मिला. वहीं भागीरथी का WPI 0.13, गंगा का WPI 0.14 और टौंस नदी का WPI 0.18 के आसपास मिला था. वाडिया इंस्टीट्यूट की स्टडी रिपोर्ट बताती है कि लॉकडाउन में अलकनंदा नदी में 21 फीसदी, भागीरथी नदी में 32 फीसदी और गंगा नदी में 93 फीसदी वॉटर पॉल्यूशन इंडेक्स कम हुआ है.

Wadia Institute of Himalayan Geology Report
साल 1992 की स्टडी रिपोर्ट.. (ETV Bharat)

वैज्ञानिकों ने इन जगहों से लिए थे गंगा-यमुना के सैंपल: वाडियो इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक डॉ समीर तिवारी बताते है कि उन्होंने और उनकी टीम ने लॉकडाउन के दौरान कुल 34 अलग-अलग जंगहों से गंगा और यमुना नदी के पानी का सैंपल लिया था. लॉकडाउन के पहले फेस यानी मई 2020 में गंगा रिवर सिस्टम के लिए 10 जगहों से सैंपल लिए थे. साथ ही यमुना रिवर सिस्टम के लिए 6 जगहों से सैंपल लिए थे.

गंगा और यमुना का पानी पूरी तरह साफ हो गया था: इसी तरह लॉकडाउन के दूसरे फेस यानी जून 2020 में गंगा रिवर सिस्टम के लिए 10 जगह और यमुना रिवर सिस्टम के लिए 8 जगहों से सैंपल लिए गए थे. साथ ही पानी की क्वालिटी का अध्ययन करने के लिए पानी के अंदर मौजूद 16 तत्वों की जांच की गई थी, जिसकी रिपोर्ट अब पब्लिश हुई है. इस दौरान देखने में आया कि गंगा और यमुना का पानी पूरी तरह से साफ हो गया था.

Wadia Institute of Himalayan Geology Report
वाडिया इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों की स्टडी रिपोर्ट. (ETV Bharat)

नदियों पर लॉकडाउन का असर: वैज्ञानिक डॉ समीर तिवारी के मुताबिक कोविड काल सब कुछ बंद होने पर आसमान भी पूरी तरह से साफ हो गया था, जिसका मतलब यह था कि ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कम हो रहा है. ऐसे में वाडिया संस्थान ने यह जानने का प्रयास किया कि लॉकडाउन का गंगा और यमुना पर क्या असर पड़ा है. इसके लिए 05 मई 2020 और 13 जून 2020 में अध्ययन किया गया.

इस दौरान गंगा और यमुना के अध्ययन के लिए दो टीमों का गठन किया गया और दोनों ही टीमों को एक साथ अध्ययन के लिए भेजा गया. गंगा नदी के लिए भागीरथी नदी से करीब 25 किलोमीटर ऊपर कोटेश्वर डैम से देवप्रयाग तक, अलकनंदा नदी से करीब 10 किलोमीटर ऊपर मूल्या (mulya) क्षेत्र से सैंपल एकत्र किया गया. इसके साथ ही टॉस नदी और यमुना नदी का भी सैंपल लिया गया.

Wadia Institute of Himalayan Geology Report
गंगा पर वाडिया की स्टडी रिपोर्ट Geochemical Transactions पब्लिश हुई हैं. (फोटो- वाडिया इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट)

पहली स्टडी रिपोर्ट से की गई तुलना: डॉ समीर तिवारी ने बताया कि गंगा के पानी की क्वालिटी को लेकर पहले भी अध्ययन किया जा चुके हैं, जिसमें साल 1992 में रमेश और शरीन ने गंगा के पानी पर मेजर एंड केमिस्ट्री का अध्ययन किया था. लिहाजा उनकी रिपोर्ट के आधार पर उस दौरान गंगा के पानी की क्वालिटी को निकाला गया. इसके अलावा साल 2005 में चक्रपाणि ने भी अध्ययन किया था. इन सभी रिपोर्ट को उनकी टीम ने अपनी नई रिपोर्ट के साथ अध्ययन किया.

Wadia Institute of Himalayan Geology Report
गंगा पर की गई वाडिया इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों की रिपोर्ट. (फोटो- वाडिया इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट)

पीने योग्य हो गया था गंगा का पानी: इस अध्ययन में यह पाया गया कि 2020 में लगे दो महीने के लॉकडाउन के दौरान गंगा करीब 93 फ़ीसदी साफ हुई थी. यानी गंगा में पॉल्यूशन की मात्रा 93 फीसदी कम हो गई थी. मात्र दो महीने मानवीय हस्तक्षेप बंद होने से गंगा का पानी पीने योग्य हो गया था.

Wadia Institute of Himalayan Geology Report
लॉकडाउन के दौरान नदियों से सैंपल लेते हुए वाडिया इंस्टीट्यूट की टीम के सदस्य (फोटो- वाडिया इंस्टीट्यूट)

Geochemical Transactions में पब्लिश हुई वीडियो की रिपोर्ट: डॉ समीर तिवारी का कहना है यदि छोटी-छोटी नदियों और गाद गदेरे में भी मानवीय हस्तक्षेप बंद कर दिया जाए तो उनको भी आसानी से पुनर्जीवित किया जा सकता है. समीर ने बताया कि उनकी ये अध्ययन रिपोर्ट Geochemical Transactions में पब्लिश हुई है.

Wadia Institute of Himalayan Geology Report
वाडिया के वैज्ञानिकों ने गंगा और यमुना के पानी के कई जगहों से सैंपल लिए थे. (फोटो- वाडिया इंस्टीट्यूट)

ऋषिकेश में गंगा का पानी गोमुख जितना साफ हो गया था: साथ ही बताया कि कोविड काल से पहले जब ऋषिकेश और हरिद्वार में गंगा नदी का सैंपल लिया गया था, उस दौरान पानी का टीडीएस (Total dissolved solids) करीब 150 मिलीग्राम/लीटर था, लेकिन कोविड काल के दौरान हरिद्वार के श्यामपुर में गंगा के पानी का टीडीएस (Total dissolved solids) करीब 35 मिलीग्राम/लीटर हो गया था. यानी अगर वर्तमान समय में अगर गंगोत्री उद्गम स्थल से पानी का सैंपल लिया जाता है तो उसका टीडीएस करीब 30 से 35 मिलीग्राम प्रति लीटर होगा. अध्ययन के दौरान यह भी पता चला की गंगा के पानी में अधिकांश कंट्रीब्यूशन गंगोत्री ग्लेशियर का था. साथ ही बताया कि हरिद्वार तक पानी इतना अधिक साफ हो गया था कि उसको मात्र छानकर पिया जा सकता था.

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Last Updated : Oct 16, 2024, 4:38 PM IST
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