रायपुर: आजादी की लड़ाई में छत्तीसगढ़ का बड़ा योगदान रहा है. स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में बच्चों ने भी अपना अहम योगदान दिया. आजादी की लड़ाई को अंजाम तक पहुंचाने के लिए किशोरों ने वानर सेना नाम का संगठन बनाया. बहुत कम लोगों को ये पता हो होगा कि इस संगठन को किशोर उम्र के बच्चे ही चलाते थे. पूर्व आईएएस डॉ सुशील त्रिवेदी बताते हैं कि वर्ष 1931 के अंत में लंदन में गोलमेज सम्मेलन हुआ. जिसमें महात्मा गांधी भी शामिल हुए. सम्मलेन में संविधान सुधार पर चर्चा होनी थी, लेकिन बातचीत आगे नहीं बढ़ी. इसके बाद महात्मा गांधी वापस लौट कर आ गए. आने के बाद महात्मा गांधी को 4 जनवरी 1932 को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया. महात्मा गांधी की गिरफ्तारी पर पूरे भारत में प्रदर्शन चालू हो गया.सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत हुई.
कैसे पड़ी वानर सेना की नीव: पूर्व आईएएस डॉ सुशील त्रिवेदी कहते हैं कि छत्तीसगढ़ में भी गांधी जी की गिरफ्तारी के विरोध में आंदोलन जोर पकड़ने लगा. आंदोलन का नेतृत्व पंडित रविशंकर शुक्ल कर रहे थे. जिसके चलते अंग्रेजों ने रविशंकर शुक्ला सहित उनके अन्य साथियों को गिरफ्तार कर लिया. गोरों को लगा कि गिरफ्तारी के बाद आंदोलन शांत पड़ जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ. जेल में आंदोलनकारियों को सजाएं दी जाने लगी. उनको प्रताड़ित किया जाने लगा. इस बात की जानकारी जब जेल से बाहर आई तो लोगों का गुस्सा और बढ़ गया.
बलिराम भगत ने किया वानर सेना का नेतृत्व: पूर्व आईएएस डॉ सुशील त्रिवेदी कहते हैं कि साल 1932 में रायपुर के बच्चों ने एक संगठन तैयार किया जिसे नाम दिया गया वानर सेना. वानर सेना में स्कूली बच्चे शामिल थे. वानर सेवा का ठिकाना रायपुर के ब्राह्मण के घर में था. उस समय वानर सेना का नेतृत्व बलिराम आजाद कर रहे थे. बलिराम भगत की उम्र उस वक्त महज 14 साल की थी. वानर सेना में पंडित रविशंकर शुक्ल के परिवार के अवयस्क सदस्यों ने विशेष कर भगवतीचरण शुक्ल ने प्रमुखता से भाग लिया.
कैसे करती थी सेना अपना काम: पूर्व आईएएस डॉ सुशील त्रिवेदी कहते हैं कि इस वानर सेना में शामिल बच्चे एक जगह जमा होते थे और उसके बाद आंदोलन का संदेश लिखकर भारत की आजादी की इच्छा रखने वाले लोगों तक पहुंचाया करते. वानर सेना की कोशिश होती कि उनके काम भनक कानों कान किसी को भी नहीं हो. बच्चों के लिखे बैनर पोस्टर से लोगों न सिर्फ हिम्मत बढ़ती बल्कि आजादी के संघर्ष में वो शामिल भी होते. वानर सेना हर दिन लोगों तक अपना संदेश बड़ी ही बहादुरी और गोपनियता के साथ पहुंचाया करती थी.
आखिरकार अंग्रेजों को मिल गया सुराग: पूर्व आईएएस डॉ सुशील त्रिवेदी कहते हैं कि तमाम गोपनियता बरतने के बाद भी वानर सेना और उनके किए जा रहे कामों की जानकारी अंग्रेजों को लग गई. जिसके बाद अंग्रेजों ने बच्चों को पकड़ना शुरु कर दिया. अग्रेजी सेना बच्चों को पकड़ती और पीटती फिर छोड़ देती. ये सिलसिला चलता रहा. बच्चे छूटने और बेंत से पीटे जाने के बाद फिर अपने काम में लग जाते. अबतक अंग्रेज भी ये समझ चुके थे कि बच्चों को पकड़ने और पीटने से कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है. वानर सेना का नेतृत्व करने वाले बलिराम आजाद और उनके करीबी रामाधार को गिरफ्तार कर लिया गया.
बड़े नेता के बिना भी चलता रहा आजादी का आंदोलन: पूर्व आईएएस डॉ सुशील त्रिवेदी कहते हैं कि कोर्ट में बलिराम आजाद और रामाधार की पेशी हुई. कोर्ट ने अंग्रेजों के हक में फैसले देते हुए दोनों को 9 महीने की सजा सुनाई. अपने नेता के पकड़े जाने और सजा सुनाए जाने के बाद भी वानर सेना का काम जारी रहा. वो आजादी के संदेश लिखकर लोगों तक पहुंचाते रहे. पोस्टर बनाते रहे और उसे चिपकाते रहे. वानर सेना का ये आंदोलन सविनय अवज्ञा आंदोलन के साथ चलता रहा. पूर्व आईएएस डॉ सुशील त्रिवेदी कहते हैं कि रायपुर की खासियत है कि यहां पर कभी कोई नेता बड़ा नहीं हुआ बच्चे अपने आप आजादी की लड़ाई में अपना योगदार देते रहे.