नई दिल्ली: कांग्रेस पार्टी ने बुधवार को 1975 के आपातकाल के खिलाफ लोकसभा में पारित प्रस्ताव पर नाराजगी जताई और कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को यह कठोर कदम उठाने के लिए मजबूर होना पड़ा, क्योंकि उन्हें अत्यधिक उत्तेजक परिस्थितियों का सामना करना पड़ा था. कांग्रेस ने 18वीं लोकसभा का पहला सत्र 24 जून को शुरू होने के दो दिन बाद एनडीए सरकार द्वारा लाए गए प्रस्ताव के समय पर भी सवाल उठाया.
कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य हरीश रावत ने ईटीवी भारत से कहा कि 'कोई भी कभी नहीं कहेगा कि आपातकाल अच्छा था. पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के विवादास्पद कदम को लेकर बहस अभी भी जारी है. कई लोगों का माननाहै कि उन्हें बेहद उत्तेजक परिस्थितियों में यह कठोर कदम उठाने के लिए मजबूर होना पड़ा था और यह कदम जरूरी था.'
उन्होंने कहा कि 'इंदिरा गांधी को आपातकाल का विकल्प चुनना पड़ा, क्योंकि तत्कालीन विपक्षी नेता जयप्रकाश नारायण जिन्हें जेपी के नाम से जाना जाता था और अन्य लोगों ने उनकी सरकार के खिलाफ छात्रों के नेतृत्व में एक मजबूत आंदोलन शुरू किया था. साथ ही, इस कदम से कुछ दिन पहले दिल्ली में आयोजित एक सार्वजनिक रैली में जेपी ने सेना और पुलिस से केंद्र सरकार के आदेशों की अवहेलना करने का आग्रह किया था.'
उन्होंने कहा कि 'मुझे लगता है कि ऐसा आह्वान करना न केवल एक निर्वाचित सरकार के लिए बल्कि लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए भी खतरा था.' पूर्व केन्द्रीय मंत्री और उत्तराखंड की पूर्व मुख्यमंत्री रावत के अनुसार, यदि पूर्व प्रधानमंत्री ने कोई कठोर कदम उठाने का आदेश दिया होता, तो उसे समाप्त करने वाली भी वही होतीं, भले ही इसमें बहुत बड़ा राजनीतिक जोखिम शामिल हो.
रावत ने कहा कि 'जैसे ही उन्हें एहसास हुआ कि आपातकाल का सत्ता प्रतिष्ठान के कुछ वर्गों द्वारा दुरुपयोग किया जा रहा है, उन्होंने 1977 में नए राष्ट्रीय चुनाव कराने का आदेश दिया. उन्हें चुनाव न कराने की सलाह दी गई और चेतावनी दी गई कि वे बुरी तरह हार सकती हैं, लेकिन इंदिरा गांधी लोकतांत्रिक प्रक्रिया को वापस लाने के लिए दृढ़ थीं.'
कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य हरीश रावत ने अध्यक्ष के प्रस्ताव के समय पर सवाल उठाया. रावत ने कहा कि 'मुझे आश्चर्य है कि क्या प्रस्ताव की उस दिन कोई आवश्यकता थी, जब नए अध्यक्ष का चुनाव हुआ था और दोनों पक्ष इस बात पर चर्चा कर रहे थे कि कैसे सहयोग किया जाए और संसद को सुचारू रूप से चलाया जाए.'
उन्होंने कहा कि 'ऐसा लगता है कि सरकार अभी भी टकराव के मूड में है और लोकसभा में कम संख्याबल के बाद भी अपनी कार्यशैली में कोई बदलाव नहीं करेगी. पीएम मोदी संविधान बदलने के लिए लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान 400 सीटें मांग रहे थे, लेकिन लोगों ने उन्हें केवल 240 सीटें दीं, जो कि साधारण बहुमत से 32 कम थीं. यह अपने आप में एक सबक होना चाहिए था.'