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Watch: टैगोर की 'गीतांजलि' का पहला अंग्रेजी अनुवाद कोलकाता पुस्तक मेले में प्रदर्शित किया गया - गीतांजलि अंग्रेजी संस्करण

Tagores Gitanjali in Kolkata Book Fair stall : रवींद्रनाथ टैगोर के कविता संग्रह गीतांजलि के अंग्रेजी संस्करण की एक प्रति बची है जो कोलकाता अंतरराष्ट्रीय पुस्तक मेले 2024 में प्रदर्शित की गई है. इसी संग्रह के लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार मिला था. ईटीवी भारत की सौमिता भट्टाचार्जी की रिपोर्ट.

Tagores Gitanjali in Kolkata Book Fair stall
रवींद्रनाथ टैगोर
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jan 29, 2024, 9:12 PM IST

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कोलकाता: कोलकाता अंतरराष्ट्रीय पुस्तक मेले में कई यूएसपी हैं, लेकिन जो बात सबसे खास है वह है रबींद्रनाथ टैगोर की नोबेल विजेता रचना गीतांजलि के अंग्रेजी संस्करण के पहले संस्करण की मौजूदगी. कविताओं का संग्रह, जिसने 1913 में उन्हें प्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कार दिलाया.

स्टॉल नंबर 529 पर दुर्लभ कृति, जो आपके लिए टैगोर का जादू है. शहर के साहित्य प्रेमियों के लिए इसे लाने का श्रेय सबुजपत्र प्रकाशन को जाता है. हालांकि कहानी में एक ट्विस्ट है. किताब बिक्री के लिए नहीं है. मालिक सुभाशीष भट्टाचार्य ने कहा, 'मैं इस किताब को खोना नहीं चाहता, यह अद्वितीय है.'

गीतांजलि का पहली बार अनुवाद 1912 में किया गया था. हालांकि, इसका अनावरण 1913 में किया गया था. भट्टाचार्य ने कहा कि 'विशिष्टता पर ध्यान केंद्रित करने के अपने प्रयास के तहत हम इस वर्ष पुस्तक मेले में 1913 का संस्करण लाए हैं.'

और यह कोई भी अनुमान लगा सकता है कि लोग पुस्तक की एक झलक पाने के लिए बड़ी संख्या में उमड़ रहे हैं. लेकिन चूंकि यह बिक्री के लिए नहीं है, इसलिए वे स्टॉल के अंदर इसे ढूंढने में घंटों बिता रहे हैं.

भट्टाचार्य ने कहा कि 'मैं किसी भी तरह से इस पुस्तक को खोने का जोखिम नहीं उठा सकता. यह बहुत दुर्लभ है. मुझे इस 'रत्न के टुकड़े' से पैसा कमाने की कोई रुचि नहीं है.'

प्रकाशन के क्षेत्र में अनुभवी भट्टाचार्य पिछले 27 वर्षों से पुस्तक मेले में भाग ले रहे हैं. हर साल, वह एक आश्चर्य लेकर आते हैं और 2024 कोई अपवाद नहीं है. लेकिन, प्रसिद्ध कार्यक्रम का यह संस्करण विशेष है क्योंकि उनके संग्रह में कुछ ऐसा है जो हर बंगाली के दिल के करीब है और सिर्फ बंगाली ही क्यों? टैगोर बाधाओं से परे हैं, है ना?

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गीतांजलि का पहली बार अनुवाद 1912 में किया गया था. हालांकि, इसका अनावरण 1913 में किया गया था. भट्टाचार्य ने कहा कि 'विशिष्टता पर ध्यान केंद्रित करने के अपने प्रयास के तहत हम इस वर्ष पुस्तक मेले में 1913 का संस्करण लाए हैं.'

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भट्टाचार्य ने कहा कि 'मैं किसी भी तरह से इस पुस्तक को खोने का जोखिम नहीं उठा सकता. यह बहुत दुर्लभ है. मुझे इस 'रत्न के टुकड़े' से पैसा कमाने की कोई रुचि नहीं है.'

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