फरीदाबाद: हरियाणा के फरीदाबाद में तिलपत गांव में एक ऐसी व्यायामशाला जहां पर छोटे बच्चों से लेकर बड़े बच्चों को कोच अशोक कुमार मलखंब की प्रैक्टिस करवाते हैं. इस छोटी सी जगह में लड़का लड़की दोनों एक साथ मलखंब की प्रैक्टिस करते हैं. हालांकि इस व्यायामशाला में ज्यादा सुविधाएं नहीं है. लेकिन उसके बावजूद भी यहां के बच्चे नेशनल गेम में पार्टिसिपेट कर चुके हैं और इस खेल की प्रैक्टिस वहां मौजूद कोच अशोक करवाते हैं. यहां पर मलखंब की कोचिंग बहुत कम पैसों में दी जाती है. यदि किसी के पास पैसे न हो तो उनको अशोक फ्री में मलखंब की कोचिंग देते हैं.
2019 में हुई व्यायामशाला की स्थापना: ईटीवी भारत से बातचीत में कोच अशोक कुमार ने बताया कि मैं खुद एक मलखंब का नेशनल प्लेयर रह चुका हूं. मैंने सोचा क्यों ना यहां बच्चों को फ्री टाइम में मलखंब की कोचिंग दी जाए. इसके बाद 2019 में मैंने इसकी स्थापना की और मेरे पास कोई जगह नहीं थी. उसके बाद मुझे यह पार्क मिला. हालांकि यह पार्क मेरे दादा परदादा का है. जिसमें मैंने बच्चों को सीखना शुरू किया और मिनिमम फी रख दिया. जिन बच्चों के पास पैसे नहीं होते हैं. उनको भी मैं फ्री में यहां पर ट्यूशन देता हूं.
हजारों खामियों के बाद भी आगे बढ़ते रहे: उन्होंने बताया कि यहां पर समस्याएं बहुत हैं. क्योंकि पहले हमारे पास खेल नर्सरी थी. जिसमें सरकार ने हमें 1 साल तक सैलरी दी और बच्चों के डायट के लिए पैसे मिलते थे. लेकिन यह गेम एशियाई और कॉमनवेल्थ गेम में शामिल नहीं हैं. इसलिए हमसे यह नर्सरी ले ली गई. फिर भी मैंने पीछे मुड़कर नहीं देखा. मैंने बच्चों को सिखाना जारी रखा. समाज के लोग भी सेवा करते हैं. जो भी कुछ पैसे आते हैं, उन पैसों को मैं इसी व्यायामशाला में लगा देता हूं. सरकार की तरफ से मुझे कोई सहायता नहीं मिल रही है. मेरी मांग है कि सरकार हमें सहायता प्रदान करें. ताकि हमारे बच्चे इस खेल में और आगे बढ़ सके और देश के लिए अच्छा खेल सके.
राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचे बच्चे: अशोक ने कहा कि उन्होंने सरकार से लेकर यहां के स्थानीय सांसद विधायक तक गुहार लगाई कि हमें एक जगह मुहैया करवा दें. जहां पर बच्चे प्रेक्टिस कर सकें खुले आसमानों के नीचे बच्चों को मैं सिखाता हूं. यहां पर छत भी नहीं है. बारिश के दिनों में पानी भर जाता है और बच्चे प्रैक्टिस नहीं कर पाते हैं. हमारे पास जो मैट है. वह भी फटी हुई है. दर-दर की ठोकरें खाकर मैं हार चुका हूं. लेकिन बच्चे को देखकर मेरा हौसला बढ़ जाता है. बच्चे भी कहते हैं कि कोई दिक्कत नहीं है, जो सुविधाएं हैं उसी में हम बेहतर करेंगे और हमारे बच्चे बेहतर कर भी रहे हैं. हमारे बच्चे नेशनल गेम तक खेल चुके हैं.
नेशनल खिलाड़ियों को नहीं मिल रही सुविधाएं: इसी व्यायामशाला से नेशनल खेल चुकी नैंसी ने बताया कि मैं नेशनल खेल चुकी हूं और यहां पर प्रैक्टिस की सुविधा कम है. लेकिन सर बढ़िया सीखाते हैं और यही वजह है कि मैं नेशनल खेल चुकी हूं. खेलो इंडिया में पार्टिसिपेट कर चुकी हूं. वहीं, कृतिका ने बताया कि मैं भी नेशनल खेल चुकी हूं और मैंने भी कोचिंग कहीं से नहीं ली. यहीं पर सर सिखाते हैं और जो भी सीखा है यहीं पर सीखा है.
बुनियादी सुविधाओं से वंचित है व्यायामशाला: आपको बता दें इस छोटे से व्यायामशाला में जिस तरह से छोटे से लेकर बड़े बच्चे तक मलखंब की प्रैक्टिस करते हैं. वह अपने आप में हैरान करने वाली है. क्योंकि यहां पर सुविधाओं के नाम पर कुछ भी नहीं है. ना पीने का पानी ना वॉशरूम प्रैक्टिस करने के इंस्ट्रूमेंट सारे फटे पुराने हैं. लेकिन उसके बावजूद भी बच्चों में हौसला है और इस हौसला को बढ़ाए रखते हैं उनके कोच अशोक जिसकी वजह से बच्चे नेशनल गेम तक खेल चुके हैं. अगर सरकार इस स्वायामशाला की तरफ ध्यान देती है, तो जरूर इस पर स्वायामशाला से बढ़िया खिलाड़ी निकल कर देश और प्रदेश का नाम रोशन करेंगे.