सरगुजा: कभी लाल आतंक के साए में रहने वाले छत्तीसगढ़ के वनांचल क्षेत्र सरगुजा के युवाओं की धमक पूरे देश में सुनाई देती थी. अम्बिकापुर के दो युवाओं की जोड़ी, जिसने बॉलीवुड के साथ साउथ फिल्म इंडस्ट्री में भी धूम मचाई है. स्कूल में बनी ये जोड़ी आज अपने म्यूजिक के कारण मायानगरी में चमक रही है. दरअसल, हम बात कर रहे हैं म्यूजिक डायरेक्टर सौरभ-वैभव की. फिल्म सोनू के टीटू की स्वीटी के सुपरहिट गाने का संगीत इस जोड़ी ने ही दिया है. ये गाना इतना हिट हुआ कि आइफा अवॉर्ड में इस म्यूजिक को बेस्ट म्यूजिक ऑफ द ईयर का अवॉर्ड मिला. इसके अलावा इस युवा संगीतकार की जोड़ी के कई गाने हिट हुए हैं और इन्हें कई अवॉर्ड मिल चुके हैं.
हिन्दी के साथ साउथ की मूवी में भी दे चुके हैं संगीत: बड़ी बात ये है की हिंदी भाषी सौरभ और वैभव अब साउथ फिल्म इंडस्ट्री में भी म्यूजिक दे चुके हैं. बतौर प्रोड्यूसर वो साउथ की एक फिल्म भी कर चुके हैं. इन दोनों की जोड़ी में कमाल की बात ये है कि एक का जॉनर वेस्टर्न म्यूजिक का है तो दूसरे का जॉनर इंडियन क्लासिकल है. दो विपरीत टेस्ट के साथ जब इन्होंने म्यूजिक बनाई तो लोगों तक गानों का एक ऐसा कॉकटेल पहुंचा जिसमें दोनों ही बात थी. आज के युवाओं के लिए वेस्टर्न टच भी था. संगीत की समझ रखने वाले लोगों को लिए इंडियन क्लासिकल म्यूजिक का भी फील मिला.
सक्सेस पर जानिए क्या कहते हैं वैभव: ईटीवी भारत ने सौरभ और वैभव से खास बातचीत की. बातचीत के दौरान दोनों ने अपने-अपने अनुभव साझा किए. ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान वैभव ने कहा कि " जब मैं 12वीं में था, तब हमारी जोड़ी की शुरुआत हुई. तब तक सौरभ खैरागढ़ से संगीत की पढ़ाई कर अम्बिकापुर आ चुके थे. यहां एक प्राइवेट स्कूल में बतौर म्यूजिक टीचर पढ़ा रहे थे. यहां से हम दोनों की शुरुआत हुई. दोनों ही म्यूजिक के अलग-अलग टेस्ट के थे, तो साथ जम गया. मैं आगे की पढ़ाई करने पुणे चला गया और फिर सौरभ भी साथ हो लिया. साल 2012 से मुम्बई में दोनों ने साथ में स्ट्रगल शुरू किया. तब ना तो इंटरनेट में इतनी फैसिलिटी थी और ना ही इतनी जानकारी थी. उस समय हमारी जोड़ी ने डोर टू डोर अपने गानों को पहुंचाने का प्रयास किया."
सौरभ ने बताया अपना अनुभव: ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान सौरभ ने कहा कि, "साल 2012 से 2015 तक का सफर काफी स्ट्रगल भरा रहा. साल 2016 में हमको पहला काम मिला, एक वेब सीरीज थी. लव प्रोडक्शन हाउस की 'लाइफ सही है'. उसका हमने टाइटल ट्रैक तैयार किया. इसके बाद लव प्रोडक्शन हाउस के जो डायरेक्टर और प्रोड्यूसर हैं लव रंजन उनसे हमारा बहुत अच्छा रिलेशन बन गया. उन्होंने अपनी अगली मूवी "सोनू के टीटू की स्वीटी" के लिए हम लोगों को एक गाना दिया. उस गाने के लिए हमने उनको 8 से 10 धुन बनाकर दिए, तब एक सेलेक्ट हुआ. तब ये गाना हिट हुआ और इस गाने के लिए हमें आइफा अवॉर्ड और म्यूजिक मिर्ची अवॉर्ड मिला. इसके अलावा हमने एक शॉर्ट मूवी की थी. जिसके लिए हमें ऑस्ट्रेलिया में मेलबर्न फिल्म सिटी अवॉर्ड मिल चुका है. हमने कुछ साउथ की मूवी में म्यूजिक देने के साथ बतौर प्रोड्यूसर भी काम किया. बीच मे कोरोना आया और काफी चीजें बन्द हो गई. अब फिर से सब शुरू हुआ है, तो पिछले साल एक केके मेनन की मूवी रिलीज हुई "लव ऑल" उसमें हमने काम किया है. उर्वशी रौतेला की एक फिल्म "वर्जिन भानू प्रिया' आई थी, उसमें भी हमने काम किया. ये कुछ बड़ी मूवी थी, अभी अप कमिंग मूवी आ रही है 'वाइल्ड बाई पंजाब' उसमें भी हमारा म्यूजिक सुनने को मिलेगा."
इन जोड़ियों ने किया है कमाल: इंडियन म्यूजिक इंडस्ट्री में काफी पहले से ये देखा जाता है कि म्यूजिक डायरेक्टर की जोड़ियों ने ही कमाल किया है. फिर चाहे वो शंकर-जयकिशन हों, या कल्याण जी-आनंद जी, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल, आनंद-मिलिंद, नदीम-श्रवण, जतिन-ललित, शाजिद-वाजिद, सलीम-सुलेमान, विशाल-शेखर. इन जोड़ियों ने इंडियन म्यूजिक इंडस्ट्री में धूम मचाई है. अब ऐसी ही एक जोड़ी इंडस्ट्री में धूम मचा रही है. जोड़ियों के लॉजिक के सवाल पर सौरभ कहते हैं कि "हम खुशनसीब हैं कि हमारी जोड़ी हिट है क्योंकि हमारी अंडरस्टैंडिंग बेहतर है. वरना जो जोड़ियां हुई हैं, उनमें ईगो क्लैश होने के बाद क्या हुआ ये तो वहीं लोग जानते हैं, लेकिन हमारे बीच मे ऐसा कुछ नहीं है."
ये है इनका फैमिली बैकग्राउंड: इन दो युवा म्यूजिक डायरेक्टर के संबंध में रोचक बात ये है कि छत्तीसगढ़ की ये पहली जोड़ी है, जिसने म्यूजिक इंडस्ट्री में आइफा जैसा अवॉर्ड हासिल किया है. दोनों की पारिवारिक पृष्ठभूमि की बात करें तो सौरभ के परिवार में ही म्यूजिक था. पिता स्व. राजेन्द्र प्रसाद खुद एक अच्छे संगीतकार थे. वो वन विभाग की शासकीय सेवा में थे, लेकिन संगीत के प्रति उनकी रुचि के कारण प्रशासन ने अक्सर उनसे संगीत से जुड़ी सेवाएं ली, फिर चाहे वो शासकीय आयोजन हो या फिर आकशवाणी के कार्यक्रम. इसके ठीक उलट वैभव के पिता एक जाने माने डॉक्टर हैं. वैभव के पिता वरिष्ठ हड्डी रोग विशेषज्ञ हैं. बावजूद इसके वैभव ने एमबीबीएस न चुनकर अपने मन का काम चुना और आज वो इससे बेहद संतुष्ट हैं.