देहरादून: उत्तराखंड में चारधाम यात्रा 2024 पूरे शबाब पर चल रही है, लेकिन अव्यवस्थाओं के चलते यात्रियों को समस्याओं से भी दो चार होना पड़ रहा है. ऐसे में पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की ओर से लाए गए उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड का जिक्र होने लगा है. इसी कड़ी में ईटीवी भारत से पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने खास बातचीत की. जिसमें उन्होंने बताया कि आज देवस्थानम बोर्ड से कैसे काम होता?
क्यों होने लगा देवस्थानम बोर्ड का जिक्र: उत्तराखंड में आज चारधाम यात्रा पर यात्रियों के अत्यधिक दबाव के चलते ऑफलाइन और ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन रोकने पड़े हैं. हरिद्वार से लेकर के सोनप्रयाग तक जगह-जगह पर यात्रियों को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. सरकार और पर्यटन विभाग की जरूरी तैयारियां न होने की चलते कई परेशानियों से यात्रियों को जूझना पड़ रहा है. ऐसे में चारधाम यात्रा के बेहतर मैनेजमेंट को लेकर देवस्थानम बोर्ड का जिक्र होने लगा है.
उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड (Uttarakhand Char Dham Devasthanam Management Board) को इससे पहले बीजेपी सरकार में ही बतौर मुख्यमंत्री रहते हुए त्रिवेंद्र सिंह रावत ने चारधाम यात्रा को लेकर एक बड़े रिफॉर्म के रूप में सरकार की तरफ से पेश किया था. लेकिन सदियों से उसी ढर्रे पर चली आ रही व्यवस्थाओं में बदलाव देख इसका विरोध होने लगा. विरोध को खुद सीएम रहते हुए त्रिवेंद्र सिंह रावत ने हावी नहीं होने दिया, लेकिन उनके मुख्यमंत्री पद से हटते ही सबसे पहले देवस्थानम बोर्ड को भंग कर दिया गया.
चारधाम यात्रा पर बढ़ते दबाव को देखकर लाया गया था देवस्थानम बोर्ड: आज जब चारधाम यात्रा के दौरान अव्यवस्थाएं नजर आ रही हैं, तो देवस्थानम बोर्ड इस तरह की स्थिति में किस तरह काम करता? इसे लेकर ईटीवी भारत ने पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत से जाने की कोशिश की. ईटीवी भारत से खास बातचीत में पूर्व सीएम त्रिवेंद्र रावत ने बताया कि देवस्थानम बोर्ड भविष्य की एक परिकल्पना थी.
उन्होंने कहा कि जिस तरह से उत्तराखंड में ऑल वेदर रोड, रेलवे लाइन, एयर कनेक्टिविटी आदि का विकास हुआ, उससे आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता था कि उत्तराखंड में आने वाले समय में चारधाम यात्रा को लेकर दबाव होगा. उन्होंने उस समय कई बार ये भी बयान दिया था कि आगामी 2025 में उत्तराखंड आने वाले यात्रियों की संख्या 1 करोड़ तक हो सकती है. आज हम इस स्थिति पर खड़े हैं.
न जाने क्यों सरकार ने देवस्थानम बोर्ड भंग कर दिया? पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि देवस्थानम बोर्ड के दूरगामी परिणामों को देखते हुए प्रदेश के लोगों ने भी इसका वृहद स्तर पर स्वागत किया, लेकिन न जाने वो कौन से कारण थे कि हमारी सरकार ने इस देवस्थानम बोर्ड को भंग कर दिया.
त्रिवेंद्र रावत ने कहा कि उनका आज भी ये मानना है कि उत्तराखंड आने वाले हर श्रद्धालु की यात्रा को सुखद और व्यवस्थित यात्रा करवाना सरकार का कर्तव्य है. सरकार को कुछ न कुछ इस तरह का प्रबंध करना होगा ताकि, चारधाम यात्रा पर आने वाला हर यात्री खुद को सुरक्षित महसूस करें.
अगर देवस्थानम बोर्ड होता तो क्या होता? चारधाम यात्रा के अभी के हालातों और देवस्थानम बोर्ड की कार्य प्रणाली की तुलना करने पर क्या कुछ तकनीकी तौर पर फर्क होता है? इस पर पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने बताया कि सरकार और शासन में किसी भी काम को करने के लिए एक प्रक्रिया से होकर गुजरना पड़ता है. ये तय है कि वो प्रक्रिया धीमी होती है.
अगर देवस्थानम बोर्ड होता तो वो पूरी तरह से डेडिकेटेड होकर किस तरह से यात्रा चले, यात्रियों को सुरक्षित माहौल कैसे मिले और यात्रा प्रबंधन आदि को लेकर तेज गति से काम करता. उन्होंने कहा बोर्ड में सभी काम त्वरित गति से होते हैं और वो एक खास मकसद के लिए ही बनाया जाता है.
उन्होंने बताया कि देवस्थानम बोर्ड को लाने से पहले देश के अन्य धार्मिक स्थलों का भी सर्वे किया गया था. वहां पर उन सभी चीजों का ध्यान रखा गया था, जो कि हमारी परंपराओं से जुड़ी हुई है, लेकिन अभी यात्रियों का रजिस्ट्रेशन पर्यटन विभाग करवा रहा है. जबकि, व्यवस्थाएं एडमिनिस्ट्रेशन करवा रहा है और विभागों का आपस में सामंजस्य नहीं है. यही वजह है कि यात्रा सुव्यवस्थित तरीके से नहीं चल रही है.
देवस्थानम बोर्ड का नहीं था विरोध, यह केवल एक गफलत: देवस्थानम बोर्ड को भंग किए जाने पर पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि यह केवल एक गफलत है कि देवस्थानम बोर्ड का प्रदेश में विरोध था. देवस्थानम बोर्ड लाए जाने के डेढ़ साल बाद तक किसी तरह का कोई विवाद नहीं था. प्रदेश के सभी लोगों ने इसका तहे दिल से स्वागत किया था, लेकिन उसके बावजूद भी उनके मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद इसे भंग किया गया.
उन्हें लगता है कि देवस्थानम बोर्ड को लेकर जो संवाद लोगों से होना चाहिए था, उसमें शायद कमी रही. उन्होंने कहा कि जब हम भविष्य को देखते हुए कोई बड़े फैसले लेते हैं तो हमें व्यक्तिगत हितों को ज्यादा तवज्जो देने की जरूरत नहीं होती है. देवस्थानम बोर्ड में किसी के भी हकों को लेकर किसी तरह का प्रावधान नहीं था. उसमें दस्तूरान करके एक प्रावधान किया गया था, जिसमें सभी परंपराओं को निहित किया गया था.
उन्होंने कहा कि हमारे पास कई उदाहरण हैं. देश में जितने भी बड़े धार्मिक स्थलों पर श्राइन बोर्ड बनाए गए हैं, वहां पर बोर्ड बनने के बाद बड़े बदलाव आए हैं. व्यवस्थाएं सुधरी हैं और इन बोर्ड के माध्यम से कई विश्वविद्यालय, अस्पताल और धार्मिक कार्य करवाए जा रहे हैं. क्योंकि, यह हिंदू धार्मिक स्थल का बोर्ड है तो इसलिए सनातन धर्म और हिंदू धर्म के लिए ही कार्य करवाए जाने थे.
यात्रा के हालातों पर त्रिवेंद्र ने जताई चिंता: पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि आज जिस तरह से सोशल मीडिया और तमाम समाचारों के माध्यम से यात्रियों की स्थितियों की जानकारी मिल रही हैं, वो बेहद गंभीर हैं. उन्होंने कहा कि यात्रा पर ज्यादा से ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है. यह हमारे प्रदेश की एक निष्ठा का भी सवाल है.
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