पटना: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पलटी ने सियासी समीकरण को पूरी तरह से चेंज कर दिया है. बिहार में लोकसभा चुनाव को लेकर गुणा भाग लगाए जाने लगे हैं. 2019 में जब नीतीश कुमार एनडीए में थे और लोकसभा का चुनाव बीजेपी के साथ लड़े तो वह 40 में से 39 सीट एनडीए को मिली थी.
नीतीश के आने से एनडीए को फायदा: जब नीतीश कुमार महागठबंधन में चले गए तो एनडीए को नुकसान होने की बात कही जाने लगी. राजनीतिक विशेषज्ञ भी कहने लगे कि बिहार में इंडिया गठबंधन को 17 -18 सीटों का फायदा हो सकता है. विशेषज्ञ भी कह रहे हैं कि नीतीश कुमार के एनडीए में आने से एक बड़ा वोट बैंक इंडिया गठबंधन से अलग हो गया है, जिसका एनडीए को जरूर फायदा मिलेगा
नीतीश जिधर सरकार उधर: बिहार में नीतीश कुमार जिस गठबंधन के साथ रहे हैं, अब तक उसी की सरकार बनती रही है. वहीं लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार 2004 से ही बीजेपी के साथ रहे हैं या फिर 2014 में अकेले चुनाव लड़े हैं.
नीतीश को भी मिलता है फायदा: 2014 में जब अकेले जदयू ने 38 सीटों चुनाव लड़ा था तो केवल दो सीटों पर जीत हासिल हुई थी. लेकिन उसके अगले लोकसभा चुनाव यानी 2019 में नीतीश कुमार फिर भाजपा के साथ आ गए और 17 सीटों पर चुनाव लड़े थे जिसमें से 16 पर जदयू को जीत मिली.
2004 और 2009 में भी जब नीतीश कुमार बीजेपी के साथ चुनाव लड़े थे तो जदयू को उसका लाभ मिला था. लालू प्रसाद यादव के साथ अब तक लोकसभा का चुनाव नीतीश कुमार एक बार ही नहीं लड़े हैं. विधानसभा का चुनाव 2015 में जरूर लड़े थे जिसमें महागठबंधन को प्रचंड बहुमत मिली थी. इसलिए राजनीतिक विशेषज्ञ भी कह रहे थे कि इस बार इंडिया गठबंधन को नीतीश कुमार के कारण बिहार में लाभ मिल जाएगा.
18 साल से विपक्ष बदला पर सीएम नहीं: नीतीश कुमार के पाला बदलने के बाद अब विशेषज्ञ कह रहे हैं कि नीतीश कुमार के एनडीए में आने से एक बड़ा वोट बैंक भी इंडिया गठबंधन से अलग हो गया है. नीतीश कुमार के साथ लव कुश वोट बैंक तो है ही है. साथ ही अति पिछड़ा वोट बैंक का एक बड़ा हिस्सा भी रहा है. इसी कारण नीतीश कुमार पिछले 18 सालों से बिहार में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर कब्जा किए हुए हैं.
विशेषज्ञ एन के चौधरी कह रहे हैं कि बीजेपी को लेकर एक परसेप्शन है कि अपर कास्ट इसके साथ है. इसीलिए अभी हाल ही में जननायक कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की घोषणा की गई और अब नीतीश कुमार जब बीजेपी के साथ आ गए हैं तो उनका वोट बैंक लवकुश और अति पिछड़ा वह भी इधर पूरी तरह से शिफ्ट हो जाएगा.
"इसलिए जो 2019 का प्रदर्शन था कमोबेश वही स्थिति बिहार में लोकसभा की 40 सीटों में होगा. ऐसे राष्ट्रीय स्तर पर नीतीश कुमार के चेहरे को और भी नुकसान पहुंचेगा. लेकिन अब एनडीए के साथ कमंडल और मंडल भी हो गया है."- एन के चौधरी,राजनीतिक विशेषज्ञ
वहीं राजनीतिक विशेषज्ञ रवि उपाध्याय का कहना है कि विभिन्न सर्वे में भी यह बात सामने आई थी कि नीतीश कुमार इंडिया गठबंधन के साथ रहते हैं तो 17- 18 सीट इंडिया गठबंधन को मिल जाएगी. बीजेपी ने भी अपने सर्वे में कमोबेश यही स्थिति पाया था.
"एनडीए की बिहार को लेकर असहज स्थिति बन गई थी. नीतीश कुमार को लाने की कोशिश बीजेपी की तरफ से हो रही थी."- रवि उपाध्याय , राजनीतिक विशेषज्ञ
लोकसभा चुनाव में JDU का अब तक का प्रदर्शन: लोकसभा चुनाव में जदयू के प्रदर्शन की बात करें तो साल 2004 में जदयू ने 24 सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन 6 सीटों पर ही जीत मिली. वहीं 2009 में 25 पर प्रत्याशी उतारे जिनमें से 20 सीटों पर जदयू ने कब्जा किया. 2014 में जदयू ने 38 सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन 2 ही सीट पर जीत मिली. इस दौरान जदयू का वोट प्रतिशत 16.04% रहा. वहीं 2019 में 17 सीटों में से 16 पर जदयू ने 22.26% वोट प्रतिशत के साथ कब्जा किया.
लोकसभा चुनाव में BJP का अब तक का प्रदर्शन: लोकसभा चुनाव में भाजपा के अब तक के प्रदर्शन की बात करें तो 2004 में 5 सीट पर बीजेपी की जीत हुई और 14.57% वोट प्रतिशत रहा. वहीं 2009 में 12 सीट पर 13.93% वोट प्रतिशत के साथ जीत दर्ज की. 2014 में 22 सीट पर 29.40% और 2019 में 17 सीट पर 23.58% वोट प्रतिशत के साथ जीत दर्ज की.
RJD का परफॉर्मेंस: लोकसभा चुनाव में 2004 में राजद को 40 में से 22 सीटों पर जीत मिली थी और कुल वोट प्रतिशत 30.67% था. 2009 लोकसभा चुनाव में राजद को मात्र चार सीट पर जीत मिली और 2014 में भी आरजेडी को केवल चार सीट पर ही जीत मिली थी. 2019 में तो खाता तक नहीं खुला.
बिहार में कांग्रेस की स्थिति बेहतर नहीं रही: कांग्रेस की बात करें तो 1984 के बाद कभी भी पार्टी बिहार में लोकसभा की दहाई अंक पार नहीं कर सकी. 1984 में जब बिहार झारखंड एक था 54 में से 48 सीट पर जीत मिली थी. वहीं 2004 में तीन सीटों पर, 2009 में दो सीटों पर, 2014 में दो सीटों पर और 2019 में केवल एक सीट पर जीत मिली.
2014 में स्थिति: 2014 के लोकसभा चुनाव में राजद और कांग्रेस एक साथ चुनाव लड़े थे, जिसमें राजद को 20.46 प्रतिशत वोट मिला था और चार सीट पर जीत मिली थी. कांग्रेस को इस चुनाव में 8.56% वोट मिला था और दो सीट कांग्रेस जीती थी. 2014 में राजद जदयू कांग्रेस और वाम दलों के प्रतिशत को मिलाकर देखें तो कुल वोट प्रतिशत 46% था.
2019 में जदयू को 22.26% वोट: वहीं दूसरी ओर एनडीए में भाजपा 29.5% उसमें कुशवाहा की पार्टी रालोसपा 3.05% और लोजपा 6.50% कुल मिलाकर 39% वोट ही मिला था. लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में जदयू को 22.26% भाजपा को 24.05% और लोजपा 8.5% कुल 54% वोट मिला था. वहीं राजद, कांग्रेस और हम के साथ रालोसपा महागठबंधन को केवल 27% ही वोट मिला था और इसका असर सीटों पर भी साफ दिखा. कांग्रेस को छोड़कर किसी का खाता तक नहीं खुला.
नीतीश कुमार के एनडीए में आने से क्या होगा?: 36% अति पिछड़ा वोट बैंक पर सीधा असर पड़ेगा इसका लाभ एनडीए को होगा. लव कुश वोट बैंक पर भी असर पड़ेगा और इससे भी एनडीए को लाभ होगा. नीतीश कुमार ने जातीय गणना का रिपोर्ट के आधार पर आरक्षण की सीमा बढ़ाई है. साथ ही गरीबों के लिए योजना शुरू की है उसका भी लाभ मिल सकता है. बड़े पैमाने पर शिक्षकों की नियुक्ति और अन्य बहाली भी हुई है जिसका लाभ ही एनडीए को मिल सकता है.
महागठबंधन को उठाना पड़ सकता है खामियाजा: राजनीतिक जानकार का यह भी कहना है कि पूरे देश के साथ बिहार में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चेहरा तो रहेगा ही साथ ही अब अति पिछड़ा के साथ पिछड़ा का एक बड़ा वोट बैंक और अपर कास्ट का वोट बैंक भी एनडीए के साथ जुड़ जाएगा. ऐसे में लोकसभा की अधिकांश सीटों पर जीत मिलना तय है और इस बार भी बिहार में महागठबंधन को लोकसभा की सीटों के लिए तरसना पड़ सकता है.
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