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आंखों में बेबसी और कमरों में गहरी खामोशी! वृद्धाश्रम में रहने वाले बुजुर्गों की दर्द भरी दास्तान - ELDERLY CELEBRATE NEW YEAR

बालासोर में बुजुर्गों ने एकांत में नए साल का जश्न मनाया. हालांकि, उनकी आंखों में अपनों से बिछड़ने का दर्द साफ दिख रहा था.

ODISHA
परिवार से बिछड़े बुजुर्गों ने सुनाई अपनी दर्द भरी कहानी (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jan 2, 2025, 4:43 PM IST

बालासोर: ओडिशा के बालासोर में वृद्धाश्रम में अकेले जिंदगी गुजर बसर कर रहे बुजुर्गों ने नए साल का जश्न एकांत में मनाया. इस दौरान उनकी आंखों में बेबसी और कमरों में गहरी खामोशी छाई हुई थी. पिछले साल भी उन्होंने अकेले ही जिंदगी गुजर बसर की थी.

पंचानन पांडा की आंखों में नए साल की शुरुआत करने की लालसा साफ झलक रही थी. उनके कमरे में एक अलग सी खामोशी छाई हुई थी. फिर भी, वे खुद को संभालते हैं, खिड़की के पास जाकर सूर्योदय देखते हैं. किसी भी अन्य दिन की तरह, और दिन के खुलने का इंतजार करते हैं.

धुंधली पड़ चुकी आंखों में आज भी उम्मीद की एक किरण है, वो आएगा....
ओडिशा के बालासोर जिले के बहनागा गोपालपुर के निवासी, पंचानन जानते हैं कि उन्हें अपना बाकी जीवन चांदमारी, सहदेवखुंटा में अमृतधारा वृद्धाश्रम में बिताना है. पंचानन की तरह, कई अन्य लोगों ने अपने जीवन के अंतिम वर्षों में अपने परिवार की देखभाल और प्यार से वंचित होकर अकेले रहने के लिए खुद को समर्पित कर दिया है.

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परिवार से बिछड़े बुजुर्गों ने सुनाई अपनी दर्द भरी कहानी (ETV Bharat)

बुजुर्ग पंचानन ने अकेलेपन का दर्द बयां करते हुए बताया कि, उनके बेटे का परिवार पश्चिम बंगाल में रहता है. इस दौरान बाप और बेटे के बीच पिछले 22 सालों से बात नहीं हुई. वे ज्यादार अकेले ही रहते हैं. उन्होंने कहा कि, जब उनका पैर फ्रैक्चर हो गया था तब भी बेटे ने उनकी सुध नहीं ली.

सहदेवखुंटा में अमृतधारा वृद्धाश्रम के निवासी
पंचानन के लिए नया साल खास तौर पर मुश्किल होता है. वे ऐसे समय में अक्सर अपने परिवार वालों के बारे में ही सोचते हैं. हालांकि, अब सोचने का भी कोई मतलब नहीं रह गया है. उन्हें पता है कि, उनका बेटा अब वापस उनसे मिलने नहीं आएगा. ऐसे में वे दूसरी चीजों में अपना ध्यान लगाने की कोशिश करते हैं.

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इन कमरों में रहते हैं बेसहारा बुजुर्ग (ETV Bharat)

बेटे के मरने के बाद बहू ने घर से निकाला
जलेश्वर की एक बुज़ुर्ग महिला रुक्मणी बेहरा का दावा है कि कोविड-19 के कारण अपने इकलौते बेटे को खोने के बाद उनकी बहू ने उन्हें घर से निकाल दिया था. उन्होंने बताया कि, जब तक उनका बेटा जीवित रहा, तब तक उसने उनकी देखभाल की. बेटे की मौत के बाद बहू ने उन्हें खाना देने से मना कर दिया और घर से बाहर का रास्ता दिखा दिया.

हालांकि, पंचानन, रुक्मणी और उनके जैसे कई लोगों के लिए, इस नए साल की शुरुआत एक खुशी के पल के साथ हुई. वृद्धाश्रम में उपहार और शुभकामनाएं लेकर आगंतुक आने लगे. उनमें फकीर मोहन सरकारी मेडिकल कॉलेज की डॉ. विजयलक्ष्मी साहू भी थीं, जिन्होंने सर्दियों के कपड़े बांटे.

मां-बाप को अकेले क्यों छोड़ देते हैं?
उन्होंने कहा, "माता-पिता को इस तरह से अकेला छोड़ दिया जाना दिल दहला देने वाला है." "वे अपने अंतिम वर्षों में देखभाल और प्यार के हकदार हैं, लेकिन इसके बजाय, वे खुद को यहां पाते हैं, उन परिवारों के लिए तरसते हैं जिन्होंने उन्हें पीछे छोड़ दिया."

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बुजुर्गों को सहारे और प्यार की जरूरत है (ETV Bharat)

ये बजुर्ग सड़कों पर भीख नहीं मांगेंगे...
घर की देखरेख करने वाले डॉ. सरोज मोहपात्रा इसे बुज़ुर्गों के लिए 'घर से दूर घर' कहते हैं. वे कहते हैं, "ये लोग सड़कों पर भीख नहीं मांगेंगे, लेकिन उनके दिल में अपने परिवारों के लिए दर्द है." "हम गतिविधियों और सैर-सपाटे के जरिए उनके दर्द को कम करने की पूरी कोशिश करते हैं, लेकिन अपने प्रियजनों के लिए उनकी लालसा कभी कम नहीं होती."

अकेलेपन का एहसास नहीं होने देते
कई बार घर के बुजुर्गों को आस-पास के मंदिरों में सैर पर ले जाया जाता है. जैसे कि इस नए साल के दिन, वे एक मंदिर गए, जिससे उन्हें खुशी हुई. पंचानन कहते हैं, "हमारे लिए, घड़ी की टिक-टिक, मिनट दर मिनट, दिन दर दिन देखना मुश्किल होता जा रहा है. ऐसे समय में, थोड़ी देर के लिए बाहर जाना और मंदिर में कुछ घंटे बिताना हमें बहुत संतुष्टि देता है." वृद्धाश्रम में अकेले, बुजुर्ग एकांत में नया साल मनाते हैं, दर्द और लालसा की कहानियां साझा करते हैं.

महापात्रा ने कहा, त्योहारों और महत्वपूर्ण दिनों के दौरान, बुजुर्गों को भाग लेने और आनंद लेने में मदद करने के लिए एक या दूसरे कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है. "हमारा उद्देश्य उन्हें महसूस कराना है कि उनके साथ प्रेम भाव आज भी बरकरार है. उनमें से अधिकांश के पास अपना कहने के लिए कोई नहीं है. इसलिए हम उन्हें उत्सवों और जीवन की छोटी-छोटी खुशियों में घुलने-मिलने में मदद करते हैं.

झुर्रीदार गालों पर आंसू की बूंद
पंचानन और रुक्मणी की तरह, वृद्धाश्रम के अधिकांश अन्य बुजुर्ग जीवन की इस काली सच्चाई को स्वीकार करते दिखते हैं कि वे अकेले हैं. रुक्मणी ने झुर्रीदार गालों पर आंसू की बूंद गिराते हुए कहा, "हम अकेले आए हैं और हम जानते हैं कि हम अकेले ही जाएंगे. लेकिन जिन बच्चों को हमने जन्म दिया और आत्मनिर्भर बनाया, आज वे हमें छोड़कर चले गए हैं. वे अपने जीवन में इतने व्यस्त हैं कि न तो उन्हें हमारी परवाह है और न ही वे फोन करके यह जानना चाहते हैं कि हम अभी जीवित हैं या नहीं."

ये भी पढ़ें: गर्ल्स हॉस्टल के बाथरूम में हिडन कैमरा, 300 से ज्यादा प्राइवेट वीडियो रिकॉर्ड करने का आरोप, धरने पर छात्राएं

बालासोर: ओडिशा के बालासोर में वृद्धाश्रम में अकेले जिंदगी गुजर बसर कर रहे बुजुर्गों ने नए साल का जश्न एकांत में मनाया. इस दौरान उनकी आंखों में बेबसी और कमरों में गहरी खामोशी छाई हुई थी. पिछले साल भी उन्होंने अकेले ही जिंदगी गुजर बसर की थी.

पंचानन पांडा की आंखों में नए साल की शुरुआत करने की लालसा साफ झलक रही थी. उनके कमरे में एक अलग सी खामोशी छाई हुई थी. फिर भी, वे खुद को संभालते हैं, खिड़की के पास जाकर सूर्योदय देखते हैं. किसी भी अन्य दिन की तरह, और दिन के खुलने का इंतजार करते हैं.

धुंधली पड़ चुकी आंखों में आज भी उम्मीद की एक किरण है, वो आएगा....
ओडिशा के बालासोर जिले के बहनागा गोपालपुर के निवासी, पंचानन जानते हैं कि उन्हें अपना बाकी जीवन चांदमारी, सहदेवखुंटा में अमृतधारा वृद्धाश्रम में बिताना है. पंचानन की तरह, कई अन्य लोगों ने अपने जीवन के अंतिम वर्षों में अपने परिवार की देखभाल और प्यार से वंचित होकर अकेले रहने के लिए खुद को समर्पित कर दिया है.

ODISHA
परिवार से बिछड़े बुजुर्गों ने सुनाई अपनी दर्द भरी कहानी (ETV Bharat)

बुजुर्ग पंचानन ने अकेलेपन का दर्द बयां करते हुए बताया कि, उनके बेटे का परिवार पश्चिम बंगाल में रहता है. इस दौरान बाप और बेटे के बीच पिछले 22 सालों से बात नहीं हुई. वे ज्यादार अकेले ही रहते हैं. उन्होंने कहा कि, जब उनका पैर फ्रैक्चर हो गया था तब भी बेटे ने उनकी सुध नहीं ली.

सहदेवखुंटा में अमृतधारा वृद्धाश्रम के निवासी
पंचानन के लिए नया साल खास तौर पर मुश्किल होता है. वे ऐसे समय में अक्सर अपने परिवार वालों के बारे में ही सोचते हैं. हालांकि, अब सोचने का भी कोई मतलब नहीं रह गया है. उन्हें पता है कि, उनका बेटा अब वापस उनसे मिलने नहीं आएगा. ऐसे में वे दूसरी चीजों में अपना ध्यान लगाने की कोशिश करते हैं.

ODISHA
इन कमरों में रहते हैं बेसहारा बुजुर्ग (ETV Bharat)

बेटे के मरने के बाद बहू ने घर से निकाला
जलेश्वर की एक बुज़ुर्ग महिला रुक्मणी बेहरा का दावा है कि कोविड-19 के कारण अपने इकलौते बेटे को खोने के बाद उनकी बहू ने उन्हें घर से निकाल दिया था. उन्होंने बताया कि, जब तक उनका बेटा जीवित रहा, तब तक उसने उनकी देखभाल की. बेटे की मौत के बाद बहू ने उन्हें खाना देने से मना कर दिया और घर से बाहर का रास्ता दिखा दिया.

हालांकि, पंचानन, रुक्मणी और उनके जैसे कई लोगों के लिए, इस नए साल की शुरुआत एक खुशी के पल के साथ हुई. वृद्धाश्रम में उपहार और शुभकामनाएं लेकर आगंतुक आने लगे. उनमें फकीर मोहन सरकारी मेडिकल कॉलेज की डॉ. विजयलक्ष्मी साहू भी थीं, जिन्होंने सर्दियों के कपड़े बांटे.

मां-बाप को अकेले क्यों छोड़ देते हैं?
उन्होंने कहा, "माता-पिता को इस तरह से अकेला छोड़ दिया जाना दिल दहला देने वाला है." "वे अपने अंतिम वर्षों में देखभाल और प्यार के हकदार हैं, लेकिन इसके बजाय, वे खुद को यहां पाते हैं, उन परिवारों के लिए तरसते हैं जिन्होंने उन्हें पीछे छोड़ दिया."

ODISHA
बुजुर्गों को सहारे और प्यार की जरूरत है (ETV Bharat)

ये बजुर्ग सड़कों पर भीख नहीं मांगेंगे...
घर की देखरेख करने वाले डॉ. सरोज मोहपात्रा इसे बुज़ुर्गों के लिए 'घर से दूर घर' कहते हैं. वे कहते हैं, "ये लोग सड़कों पर भीख नहीं मांगेंगे, लेकिन उनके दिल में अपने परिवारों के लिए दर्द है." "हम गतिविधियों और सैर-सपाटे के जरिए उनके दर्द को कम करने की पूरी कोशिश करते हैं, लेकिन अपने प्रियजनों के लिए उनकी लालसा कभी कम नहीं होती."

अकेलेपन का एहसास नहीं होने देते
कई बार घर के बुजुर्गों को आस-पास के मंदिरों में सैर पर ले जाया जाता है. जैसे कि इस नए साल के दिन, वे एक मंदिर गए, जिससे उन्हें खुशी हुई. पंचानन कहते हैं, "हमारे लिए, घड़ी की टिक-टिक, मिनट दर मिनट, दिन दर दिन देखना मुश्किल होता जा रहा है. ऐसे समय में, थोड़ी देर के लिए बाहर जाना और मंदिर में कुछ घंटे बिताना हमें बहुत संतुष्टि देता है." वृद्धाश्रम में अकेले, बुजुर्ग एकांत में नया साल मनाते हैं, दर्द और लालसा की कहानियां साझा करते हैं.

महापात्रा ने कहा, त्योहारों और महत्वपूर्ण दिनों के दौरान, बुजुर्गों को भाग लेने और आनंद लेने में मदद करने के लिए एक या दूसरे कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है. "हमारा उद्देश्य उन्हें महसूस कराना है कि उनके साथ प्रेम भाव आज भी बरकरार है. उनमें से अधिकांश के पास अपना कहने के लिए कोई नहीं है. इसलिए हम उन्हें उत्सवों और जीवन की छोटी-छोटी खुशियों में घुलने-मिलने में मदद करते हैं.

झुर्रीदार गालों पर आंसू की बूंद
पंचानन और रुक्मणी की तरह, वृद्धाश्रम के अधिकांश अन्य बुजुर्ग जीवन की इस काली सच्चाई को स्वीकार करते दिखते हैं कि वे अकेले हैं. रुक्मणी ने झुर्रीदार गालों पर आंसू की बूंद गिराते हुए कहा, "हम अकेले आए हैं और हम जानते हैं कि हम अकेले ही जाएंगे. लेकिन जिन बच्चों को हमने जन्म दिया और आत्मनिर्भर बनाया, आज वे हमें छोड़कर चले गए हैं. वे अपने जीवन में इतने व्यस्त हैं कि न तो उन्हें हमारी परवाह है और न ही वे फोन करके यह जानना चाहते हैं कि हम अभी जीवित हैं या नहीं."

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