देहरादून (उत्तराखंड): उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में बुधवार को सुबह ईडी की छापेमारी की खबर ने हड़कंप मचा दिया. खबर है कि पूर्व कैबिनेट मंत्री समेत प्रदेश के कई अधिकारियों के ठिकानों पर भी एनफोर्समेंट डायरेक्टरेट के अफसरों ने छापेमारी की है. इस दौरान कॉर्बेट से जुड़े तमाम वित्तीय विषयों को लेकर ईडी जरूरी जानकारियां जुटा रही है.
उत्तराखंड में ईडी ने पूर्व कैबिनेट मंत्री समेत प्रदेश के कुछ अधिकारियों के ठिकानों पर रेड की है. जानकारी के अनुसार 10 से ज्यादा ठिकानों पर छापेमारी की जा रही है. इसमें पूर्व कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत के घर पर भी ईडी की टीम पहुंची है. इतना ही नहीं उनके सहसपुर स्थित कॉलेज में भी ईडी ने कॉलेज के डायरेक्टर से पूछताछ की है.पूर्व कैबिनेट मंत्री के साथ ही राज्य के कुछ आईएफएस अधिकारियों के ठिकानों पर भी ईडी की छापेमारी की खबर है.वहीं हरक सिंह के दिल्ली वाले आवास पर भी छापेमारी हुई है.
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बताया जा रहा है कि 10 से ज्यादा जगहों पर छापेमारी हो रही है. इस दौरान जरूरी दस्तावेजों को खंगाला जा रहा है. इसके अलावा वित्तीय लेनदेन के मामलों की जानकारी जुटाने के लिए इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेजों को भी देख रही.दरअसल, कॉर्बेट टाइगर रिजर्व मामले में ईडी ने अपनी कार्रवाई शुरू कर दी है और इस मामले में वित्तीय लेनदेन और मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़े विषयों को ईडी देख रही है. हाल ही में एनफोर्समेंट डायरेक्टरेट ने उत्तराखंड वन मुख्यालय को भी एक पत्र लिखकर प्रदेश के कई अधिकारियों की जानकारी मांगी थी. जिसको शासन को भेज दिया गया था. उधर अब ईडी ने देर किए बिना बुधवार सुबह ही छापेमारी की कार्रवाई शुरू कर दी.
जानिए क्या है मामला: त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार ने साल 2019 में पाखरो में टाइगर सफारी निर्माण के लिए केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से मंजूरी मांगी थी. साल 2019-20 में पाखरो में 106 हेक्टेयर वन भूमि पर कार्य शुरू किया गया था. प्रदेश सरकार की ओर से कहा गया था कि इस योजना के लिए केवल 163 पेड़ काटे जाएंगे, लेकिन बाद में हुई जांच में पता चला कि इस दौरान बड़ी संख्या में पेड़ काटे गए.
इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट में वन्यजीव कार्यकर्ता गौरव बंसल ने सबसे पहले उठाया था.इस संबंध में साल 2021 में दिल्ली हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) को निर्देशति किया था. राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण की ओर से गठित समिति ने सितंबर 2021 में कॉर्बेट पार्क का निरीक्षण किया और 22 अक्टूबर 2021 को अपनी रिपोर्ट सौंपी. रिपोर्ट में एनटीसीए ने मामले की विजिलेंस जांच और जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की बात कही थी. जिसके बाद उत्तराखंड हाईकोर्ट ने अक्टूबर 2021 में मामले का स्वत: संज्ञान लिया था.
इसके बाद उत्तराखंड वन विभाग ने फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया को जांच करवाई. फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया ने पूरे एरिया (ने पाखरो, कालू शहीद, नलखट्टा और कालागढ़ ब्लॉक) का सैटेलाइट इमेज के जरिए और फील्ड निरीक्षण से पता लगाया कि 163 की जगह 6,903 पेड़ काट दिए गए. फिर इस मामले ने तूल पकड़ा. लेकिन वन विभाग ने इस रिपोर्ट को नहीं माना.
साल 2022 में राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (NGT) ने मामले का स्वत: संज्ञान लेते हुए 3 सदस्यीय कमेटी बनाई गई. इस समिति में एडीजी वाइल्ड लाइफ विभाग, एडीजी प्रोजेक्ट टाइगर और डीजी फॉरेस्ट शामिल थे. मार्च 2023 में इस कमेटी ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल को रिपोर्ट सौंपी और निर्माण के नाम पर अवैध कार्यों की पूरी जानकारी दी और जिम्मेदार अधिकारियों के नाम भी रिपोर्ट में लिखे. उस रिपोर्ट में तत्कालीन वन मंत्री हरक सिंह रावत और आठ अन्य अधिकारियों का नाम था.
उधर, सुप्रीम कोर्ट की सेंट्रल एम्पॉवर्ड कमेटी ने इन सभी जांचों को आधार बनाकर जनवरी 2023 में अपनी एक रिपोर्ट तैयार कर सुप्रीम कोर्ट में सौंपी थी. रिपोर्ट में बताया गया था कि कॉर्बेट फाउंडेशन के करीब ₹200 करोड़ से ज्यादा के बजट का भी उपयोग किया गया. सेंट्रल एम्पॉवर्ड कमेटी ने इस रिपोर्ट में तब वन मंत्री रहे हरक सिंह रावत को भी जिम्मेदार बताया था. तमाम जांच रिपोर्ट्स के बाद उत्तराखंड वन विभाग ने कॉर्बेट में तैनात रेंजर बृज बिहारी, डीएफओ किशन चंद, चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन जेएस सुहाग को निलंबित किया गया. तत्कालीन पीसीसीएफ हॉफ राजीव भरतरी को भी उनके पद से हटाया गया था.