भागलपुर: बिहार के सरकारी शिक्षक का हाल बेहाल है. ये हम नहीं बल्कि भागलपुर के एक शिक्षक की तस्वीर बयां कर रही है. युवक सरकारी शिक्षक की नौकरी तो कर ही रहे हैं, साथ ही साथ पार्ट टाइम डिलीवरी बॉय का काम करते हुए लोगों के घर-घर खाना पहुंचा रहे हैं.
सरकारी शिक्षक कर रहे डिलीवरी बॉय का काम: अमित रंजन भागलपुर के मध्य विद्यालय रजनन्दीपुर सबौर में सरकारी फिजिकल टीचर हैं, जो रोज रात को डिलीवरी बॉय बन जाते हैं. शिक्षक अमित को सरकारी स्कूल में केवल 8 हजार रुपये की सैलरी मिलती है. इतनी कम सैलरी में अमित अपना और अपने परिवार का खर्च उठाने में खुदको बेबस महसूस करते हैं. ऐसे में इस सरकारी शिक्षक ने एक्स्ट्रा इनकम के लिए फूड डिलीवरी बॉय बनने का फैसला लिया.
"ढाई साल पहले (2022) जब सरकारी नौकरी मिली, तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था. नवंबर 2019 में परीक्षा दी थी और 2020 में रिजल्ट आया, जिसमें उन्होंने 74 नंबर प्राप्त किए. इसके बाद परिवार में खुशी की लहर दौड़ गई, लेकिन जब पता चला कि वेतन केवल 8 हजार रुपये होगा, तो यह खुशी बहुत जल्दी गम में बदल गई."- अमित रंजन, फिजिकल टीचर, मध्य विद्यालय रजनन्दीपुर सबौर
'महज 8 हजार में नहीं हो रहा गुजारा': अमित के अनुसार, शुरुआत में वे बच्चों को खेल में भाग लेने के लिए प्रेरित करते थे और बच्चों ने भी अच्छा प्रदर्शन किया, लेकिन ढाई साल बीतने के बाद भी सरकार ने उनका वेतन नहीं बढ़ाया और न ही कोई अन्य सुविधा दी. पूर्व के शिक्षकों को 42 हजार रुपये वेतन मिल रहा है, जबकि अमित जैसे शिक्षकों को महज 8 हजार रुपये पर काम करना पड़ रहा है.
'शाम 5 बजे से रात 1 बजे तक डिलीवरी बॉय का काम': अमित ने आगे बताया कि फरवरी के बाद से चार महीने तक वेतन नहीं मिला, जिससे उनका आर्थिक संकट और बढ़ गया. इस दौरान उन्होंने दोस्तों से उधारी ली, लेकिन वह भी काफी बढ़ गई. एक दिन उनकी पत्नी के कहने पर अमित ने इंटरनेट पर फूड डिलीवरी बॉय का काम ढूंढा, जिसमें समय की कोई बाध्यता नहीं थी. इसके बाद, उन्होंने फूड डिलीवरी का काम शुरू किया. अब वे स्कूल के बाद शाम 5 बजे से रात 1 बजे तक लोगों के घर-घर जाकर उनका खाना पहुंचाते हैं.
'नहीं बढ़ाई गई सैलरी': अमित का कहना है कि इस नौकरी में पार्ट टाइम का टैग लगा दिया गया है. सिर्फ दो घंटे ही हमें रुकना होता है. हालांकि हमसे सारा काम लिया जाता है. हम से पहले के शिक्षक फुल टाइम पर हैं और 40 से 42 हजार उनकी सैलरी है. ढाई साल बीतने के बाद भी सरकार ने हमारी सैलरी नहीं बढ़ाई और ना ही पात्रता परीक्षा ही ले रही है.
स्थानीय लोगों में नाराजगी: वहीं अमित की बदहाल स्थिति को देख स्थानीय लोगों में भी मलाल है. खाने की डिलीवरी करने पहुंचे अमित का हाल देख ग्राहक डॉक्टर श्यामानंद कुमार का गुस्सा सरकार पर फूट पड़ा. उन्होंने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि अमित के बारे में सुनकर मुझे बहुत दुख पहुंचा है. सरकार की नीति जो बनी है, उसमें ये लोग कहां फिट होते हैं? पढ़े लिखे सक्षम होने के बावजूद इनलोगों को लटका कर रखा गया है. बाहर कहीं दूसरा काम कर नहीं सकते हैं.
"आज के समय में 8 हजार रुपये में क्या होता है? एक मजदूर की कमाई भी 12 हजार हो जाती है. 8 हजार में अपना और अपने परिवार का पेट कैसे पालेंगे. सरकार खुद क्या चाहती है क्लियर नहीं है. सरकार को ऐसे लोगों के बारे में सोचना चाहिए."- डॉ श्यामानंद कुमार, स्थानीय निवासी
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