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'अदालत को अपने एजेंडे में न घसीटें', सुप्रीम कोर्ट ने NCPCR को लगाई फटकार, जानें क्या है मामला - SC On NCPCR

SC rejects NCPCR plea: सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की एक याचिका को खारिज करते हुए कहा कि अदालत को अपने एजेंडे में न घसीटें. एनसीपीसीआर ने याचिका में झारखंड में आश्रय गृहों की जांच एसआईटी से कराने की मांग की थी.

SC rejects NCPCR plea for probe into Jharkhand shelter homes
सुप्रीम कोर्ट (Etv Bharat)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Sep 24, 2024, 10:42 PM IST

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें झारखंड में आश्रय गृहों द्वारा बच्चों को बेचे जाने के आरोपों की एसआईटी से जांच कराने की मांग की गई थी. याचिका में मदर टेरेसा द्वारा स्थापित मिशनरीज ऑफ चैरिटी द्वारा संचालित आश्रय गृहों का भी जिक्र था.

शीर्ष अदालत ने एक अलग मामले में राज्यों को अक्टूबर 2021 में शिक्षा मंत्रालय द्वारा जारी स्कूल सुरक्षा पर दिशा-निर्देशों का पालन करने का भी निर्देश दिया.

जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस एनके सिंह की पीठ ने याचिका ठुकराते हुए एनसीपीसीआर पर सख्त टिप्पणी भी की और बाल अधिकार अधिकार से अपने 'एजेंडे' में न्यायपालिका का सहारा लेने के खिलाफ आगाह किया.

पीठ ने एनसीपीसीआर के वकील से कहा, "सुप्रीम कोर्ट को अपने एजेंडे में मत घसीटिए. आपकी याचिका में किस तरह की राहत मांगी गई है?"

झारखंड सरकार की ओर से अधिवक्ता तूलिका मुखर्जी ने शीर्ष अदालत में पैरवी की.

2020 में, एनसीपीसीआर ने संविधान के अनुच्छेद 23 के तहत मौलिक अधिकारों को लागू करने की मांग करते हुए एक याचिका दायर की थी, जो मानव तस्करी को रोकता है. आयोग ने दावा किया कि झारखंड सहित विभिन्न राज्यों में बाल गृहों में विसंगतियां हैं और राज्यों को याचिका में पक्ष बनाया गया था.

सुनवाई के दौरान पीठ ने एनसीपीसीआर के वकील से कहा कि वह याचिका में दी गई दलीलों से सहमत नहीं है. एनसीपीसीआर ने झारखंड में बाल अधिकारों के उल्लंघन को उजागर किया था.

शीर्ष अदालत ने मामले में बाल अधिकार आयोग के दृष्टिकोण पर असंतोष व्यक्त किया और याचिका में मांगी गई राहत को अस्पष्ट बताया. पीठ ने पूछा, "हम ऐसे निर्देश कैसे दे सकते हैं?"

एनसीपीसीआर ने आरोप लगाया था कि उसकी जांच के दौरान पीड़ितों ने चौंकाने वाले खुलासे किए, जिसमें यह भी शामिल है कि इन बाल गृहों में बच्चों को बेचा जा रहा था.

आयोग के पास जांच और कार्रवाई करने का अधिकार
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस मामले में अदालत के हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है और बाल अधिकार निकाय के पास बाल अधिकार संरक्षण आयोग (सीपीसीआर) अधिनियम, 2005 के तहत जांच करने और कार्रवाई करने का अधिकार है.

शुरुआत में, बच्चों की सुरक्षा की आवश्यकता पर जोर देते हुए बाल अधिकार आयोग के वकील ने झारखंड के सभी आश्रय गृहों की अदालत की निगरानी में निर्धारित समय में जांच का अनुरोध किया था. एनसीपीसीआर ने शीर्ष अदालत को सूचित किया कि राज्य में संबंधित अधिकारी नाबालिगों की सुरक्षा के संबंध में उदासीन रवैया अपना रहे हैं.

मामले में दलीलें सुनने के बाद शीर्ष अदालत ने बाल अधिकार आयोग की याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया.

'बचपन बचाओ आंदोलन' की याचिका पर राज्यों को निर्देश
एनजीओ 'बचपन बचाओ आंदोलन' द्वारा अधिवक्ता जगजीत सिंह छाबड़ा के जरिये दायर एक अलग याचिका पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने सभी राज्यों को स्कूल सुरक्षा पर 2021 के दिशा-निर्देशों का पालन करने और उनके कार्यान्वयन का निर्देश दिया.

एनजीओ की याचिका में इस बात पर जोर दिया गया था कि दिशा-निर्देशों के पीछे उद्देश्य और लक्ष्य सभी बच्चों को सभी प्रकार के शोषण और दुर्व्यवहार से सुरक्षा प्रदान करने तथा उनके शारीरिक, सामाजिक, मनोवैज्ञानिक और नैतिक कल्याण की गारंटी देने के लिए एक आत्मनिर्भर व्यापक कानून बनाना है.

यह भी पढ़ें- 'धोखाधड़ी खत्म होनी चाहिए', सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की पंजाब सरकार की याचिका

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें झारखंड में आश्रय गृहों द्वारा बच्चों को बेचे जाने के आरोपों की एसआईटी से जांच कराने की मांग की गई थी. याचिका में मदर टेरेसा द्वारा स्थापित मिशनरीज ऑफ चैरिटी द्वारा संचालित आश्रय गृहों का भी जिक्र था.

शीर्ष अदालत ने एक अलग मामले में राज्यों को अक्टूबर 2021 में शिक्षा मंत्रालय द्वारा जारी स्कूल सुरक्षा पर दिशा-निर्देशों का पालन करने का भी निर्देश दिया.

जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस एनके सिंह की पीठ ने याचिका ठुकराते हुए एनसीपीसीआर पर सख्त टिप्पणी भी की और बाल अधिकार अधिकार से अपने 'एजेंडे' में न्यायपालिका का सहारा लेने के खिलाफ आगाह किया.

पीठ ने एनसीपीसीआर के वकील से कहा, "सुप्रीम कोर्ट को अपने एजेंडे में मत घसीटिए. आपकी याचिका में किस तरह की राहत मांगी गई है?"

झारखंड सरकार की ओर से अधिवक्ता तूलिका मुखर्जी ने शीर्ष अदालत में पैरवी की.

2020 में, एनसीपीसीआर ने संविधान के अनुच्छेद 23 के तहत मौलिक अधिकारों को लागू करने की मांग करते हुए एक याचिका दायर की थी, जो मानव तस्करी को रोकता है. आयोग ने दावा किया कि झारखंड सहित विभिन्न राज्यों में बाल गृहों में विसंगतियां हैं और राज्यों को याचिका में पक्ष बनाया गया था.

सुनवाई के दौरान पीठ ने एनसीपीसीआर के वकील से कहा कि वह याचिका में दी गई दलीलों से सहमत नहीं है. एनसीपीसीआर ने झारखंड में बाल अधिकारों के उल्लंघन को उजागर किया था.

शीर्ष अदालत ने मामले में बाल अधिकार आयोग के दृष्टिकोण पर असंतोष व्यक्त किया और याचिका में मांगी गई राहत को अस्पष्ट बताया. पीठ ने पूछा, "हम ऐसे निर्देश कैसे दे सकते हैं?"

एनसीपीसीआर ने आरोप लगाया था कि उसकी जांच के दौरान पीड़ितों ने चौंकाने वाले खुलासे किए, जिसमें यह भी शामिल है कि इन बाल गृहों में बच्चों को बेचा जा रहा था.

आयोग के पास जांच और कार्रवाई करने का अधिकार
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस मामले में अदालत के हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है और बाल अधिकार निकाय के पास बाल अधिकार संरक्षण आयोग (सीपीसीआर) अधिनियम, 2005 के तहत जांच करने और कार्रवाई करने का अधिकार है.

शुरुआत में, बच्चों की सुरक्षा की आवश्यकता पर जोर देते हुए बाल अधिकार आयोग के वकील ने झारखंड के सभी आश्रय गृहों की अदालत की निगरानी में निर्धारित समय में जांच का अनुरोध किया था. एनसीपीसीआर ने शीर्ष अदालत को सूचित किया कि राज्य में संबंधित अधिकारी नाबालिगों की सुरक्षा के संबंध में उदासीन रवैया अपना रहे हैं.

मामले में दलीलें सुनने के बाद शीर्ष अदालत ने बाल अधिकार आयोग की याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया.

'बचपन बचाओ आंदोलन' की याचिका पर राज्यों को निर्देश
एनजीओ 'बचपन बचाओ आंदोलन' द्वारा अधिवक्ता जगजीत सिंह छाबड़ा के जरिये दायर एक अलग याचिका पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने सभी राज्यों को स्कूल सुरक्षा पर 2021 के दिशा-निर्देशों का पालन करने और उनके कार्यान्वयन का निर्देश दिया.

एनजीओ की याचिका में इस बात पर जोर दिया गया था कि दिशा-निर्देशों के पीछे उद्देश्य और लक्ष्य सभी बच्चों को सभी प्रकार के शोषण और दुर्व्यवहार से सुरक्षा प्रदान करने तथा उनके शारीरिक, सामाजिक, मनोवैज्ञानिक और नैतिक कल्याण की गारंटी देने के लिए एक आत्मनिर्भर व्यापक कानून बनाना है.

यह भी पढ़ें- 'धोखाधड़ी खत्म होनी चाहिए', सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की पंजाब सरकार की याचिका

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