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हरियाणा में गैरों से नहीं अपनों से ही परेशान बीजेपी और कांग्रेस? भीतरघात का सता रहा डर! - Lok Sabha Election 2024

Lok Sabha Election 2024: हरियाणा में छठे चरण के तहत 25 मई को लोकसभा चुनाव के लिए मतदान होना है. इसके लिए सभी राजनीतिक पार्टियां चुनाव प्रचार में जुटी हैं. हरियाणा कांग्रेस और बीजेपी के बीच मुकाबला देखा जा रहा है. चर्चा है कि दोनों पार्टियों के सामने बड़ी चुनौती अपनों की बगावत से बचना है.

Lok Sabha Election 2024
Lok Sabha Election 2024 (Etv Bharat)
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By ETV Bharat Haryana Team

Published : May 3, 2024, 1:47 PM IST

चंडीगढ़: लोकसभा चुनाव को लेकर हरियाणा में इस बार मुख्य मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच माना जा रहा है. एक तरफ बीजेपी 2019 की तरह सभी दस सीटें जीतने का दावा कर रही है. दूसरी तरफ कांग्रेस बीजेपी को इतिहास बनाने से रोकने के लिए पसीना बहा रही है. इस बीच कांग्रेस के लिए अपनों से खतरा ज्यादा बना हुआ है. हालांकि बीजेपी भी इससे अछूती नहीं है.

दस में से करीब पांच सीट पर कांग्रेस को अपनों से खतरा! लोकसभा चुनाव में हरियाणा कांग्रेस को कुछ सीटों पर अपनों से ही भीतरघात का डर बना हुआ है. इसमें सबसे बड़ी भीतरघात वाली सीट हिसार लोकसभा क्षेत्र की है. जहां पर बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए चौधरी बीरेंद्र सिंह का परिवार है. उन्हें उम्मीद थी कि कांग्रेस उनके बेटे बृजेंद्र को हिसार से टिकट देगी, लेकिन उनकी जगह कांग्रेस ने जयप्रकाश को टिकट दिया है. इसके बाद बृजेंद्र सिंह का टिकट ना मिलने का दर्द मीडिया के सामने आ चुका है. इसकी वजह से हिसार सीट पर पार्टी के लिए उनका रुख चिंता का सबब बन सकता है.

भिवानी महेंद्रगढ़ लोकसभा सीट: दूसरी सीट भिवानी महेंद्रगढ़ लोकसभा सीट है. यहां पर पार्टी ने वरिष्ठ नेता किरण चौधरी की बेटी श्रुति चौधरी को टिकट ना देकर राव दान सिंह को उम्मीदवार बनाया है. जिसके बाद किरण चौधरी और उनकी बेटी श्रुति चौधरी का टिकट ना मिलने का दर्द मीडिया के सामने आया. हालांकि वे खुलकर पार्टी के खिलाफ नहीं बोलीं. वे पार्टी के साथ होने की बात तो कर रही हैं, लेकिन पार्टी को उनसे भी भितरघात का खतरा बना हुआ है.

फरीदाबाद लोकसभा सीट: तीसरी सीट फरीदाबाद की है. जहां पर पार्टी ने महेंद्र प्रताप सिंह को मैदान में उतारा है. यहां से टिकट की उम्मीद कर रहे पार्टी के वरिष्ठ नेता और हुड्डा के समधी करण दलाल अपना मुखर रूप दिखा चुके हैं. हालांकि वे टिकट न मिलने के बाद महापंचायत कर अपना रुख भी साफ कर चुके हैं. वो आगे क्या करेंगे. इसका भी इंतजार है. वहीं उनके रुख की वजह से फरीदाबाद लोकसभा सीट पर भी पार्टी को भितरघात का खतरा बना हुआ है.

गुरुग्राम लोकसभा सीट: चौथी सीट गुरुग्राम है. यहां पर पार्टी ने राज बब्बर को मैदान में उतारा है. इस सीट पर पार्टी के वरिष्ठ नेता कैप्टन अजय यादव दावेदारी पेश कर रहे थे, लेकिन पार्टी ने राज बब्बर को मैदान में उतार दिया. कैप्टन राज बब्बर को टिकट मिलने से पहले भी इस मामले में अपना रिएक्शन सोशल मीडिया के जरिए जाहिर कर चुके थे. वहीं उन्होंने रेवाड़ी में गुरुवार अपने कार्यकर्ताओं की बैठक भी बुलाई थी. जिसमें वो खुद तो शामिल नहीं हुए, लेकिन उनके बेटे चिरंजीवी यादव इस बैठक में मौजूद रहे. जिसमें उन्होंने कहा कि वो राज बब्बर का साथ देंगे. भले ही राज बब्बर का साथ देने की बात कर रहे हों, लेकिन अजय यादव खुद इस बैठक में नहीं पहुंचे थे. जो कहीं ना कहीं पार्टी के लिए चिंता का सबब जरूर बन सकते हैं.

करनाल लोकसभा सीट: पांचवी सीट करनाल लोकसभा है. जहां से पार्टी के वरिष्ठ नेता कुलदीप शर्मा के बेटे चाणक्य पंडित दावेदार थे. पार्टी के राष्ट्रीय सचिव वीरेंद्र राठौर भी दावेदार थे, लेकिन पार्टी ने टिकट टूथ कांग्रेस के अध्यक्ष दिव्यांशु बुद्धिराजा को दे दिया. इसके बाद अब कांग्रेस को भितरघात का खतरा इस सीट पर भी बना हुआ है.

बीजेपी की भी राह नहीं आसान! ऐसा नहीं है कि कांग्रेस के लिए ही भितरघात का खतरा बना हुआ है. बीजेपी के लिए भी अपने नेताओं की नाराजगी के साथ किसानों की तरफ से हो रहा विरोध परेशानी का सबब बना हुआ है. बीजेपी के लिए सबसे बड़ी चिंता हिसार सीट बनी हुई है. भले ही पार्टी का कोई भी नेता कोई बयान पार्टी विरोधी ना दे रहा हो, लेकिन इस सीट पर चुनाव लड़ने की चाह रखने वाले कैप्टन अभिमन्यु पार्टी के लिए अभी तक पहेली बने हुए हैं.

हालांकि उनके पास असम का प्रभार है. वे वहां व्यस्त हैं. इसके अलावा पार्टी नेता कुलदीप बिश्नोई भी इस सीट पर दावेदार थे, वे भी टिकट ना मिलने से नाराज दिखाई दिए. हालांकि मुख्यमंत्री दिल्ली में उनके घर पर गए थे, इसके बाद भव्य बिश्नोई को युवा मोर्चा का प्रभारी बनाया गया. इसके बावजूद रणजीत सिंह चौटाला के नामांकन पर कुलदीप बिश्नोई नहीं पहुंचे.

बीजेपी से अनिल विज नाराज! बीजेपी के लिए बड़ी परेशानी अंबाला सीट पर पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व गृह मंत्री अनिल विज की नाराजगी भी बनी हुई है. हालांकि वे पार्टी के मंचों पर अंबाला में अपने लोकसभा क्षेत्र में दिख रहे हैं, लेकिन उनका दर्द वे सार्वजनिक मंचों से भी जाहिर कर रहे हैं. ऐसे में उनकी नाराजगी पार्टी के लिए इस सीट पर चिंता का सबब बनी हुई है. बीजेपी के लिए सिरसा सीट भी चुनौती बनी हुई है.

सिरसा लोकसभा सीट पर पार्टी ने वर्तमान सांसद सुनीता दुग्गल का टिकट काटकर आप से बीजेपी में आए डॉक्टर अशोक तंवर को उम्मीदवार बनाया है. सुनीता दुग्गल भी अपना दर्द बयां कर चुकीं हैं. हालांकि वे भी खुलकर कुछ बोल नहीं पा रही हैं. वहीं किसानों के विरोध का सामना अशोक तंवर को भी करना पड़ रहा है. ऐसे में इस सीट से पार्टी के लिए अशोक तंवर को लोकसभा तक पहुंचा आसान नहीं है.

वहीं कुरुक्षेत्र सीट पर पार्टी ने आखिरी वक्त में पार्टी में शामिल हुए कांग्रेस के नेता रहे नवीन जिंदल को मैदान में उतारा है. यहां पर पहले तो पार्टी के नेताओं में इस बात को लेकर नाराजगी की चर्चा रही, लेकिन धीरे धीरे स्थिति अब सामान्य दिखाई दे रही है. यहां पर भी किसानों का विरोध का पार्टी को सामना करना पड़ रहा है. ऐसे में इस सीट पर भी स्थिति एक तरफा दिखाई नहीं दे रही है.

क्या कहते हैं राजनीतिक जानकार? कांग्रेस और बीजेपी के भीतरघात के खतरे पर राजनीतिक मामलों के जानकार धीरेंद्र अवस्थी ने कहा "कांग्रेस हो या बीजेपी दोनों दलों के लिए इस वक्त हरियाणा में अपनों का खतरा कमोबेश एक सा बना हुआ है. फर्क सिर्फ इतना है कि कांग्रेस के नेता जहां अपने स्तर मंच से अपना दर्द बयां कर रहे हैं. वहीं बीजेपी के वरिष्ठ नेता अनिल विज हो या फिर रामबिलास शर्मा. खुलकर पार्टी के बड़े नेताओं के सामने अपना दर्द बयां कर रहे हैं. बीजेपी अब मनोहर लाल के आस पास घूम रही है, वहीं कांग्रेस के पास अभी हुड्डा के अलावा कोई विकल्प नहीं है. ऐसे हालात में दोनों दलों के लिए अपने चिंता का सबब तो जरूर बने हुए हैं."

राजनीतिक मामलों के जानकार प्रोफेसर गुरमीत सिंह ने कहा "कांग्रेस हो या बीजेपी अभी लगभग दस में से आधी सीटों पर अपनों के भीतरघात से डरे हुए हैं, हालांकि मुख्य मुकाबला ही इन्हीं में दिखाई देता है. जो नेता दोनों पार्टियों के अपना दर्द मीडिया में और मंचों से जाहिर कर रहे हैं, वे भले ही ये भी कह रहे हों कि वे अपनी अपनी पार्टी के साथ खड़े हैं, लेकिन उनका संदेश उनके समर्थकों में तो जा ही रहा है. इस वजह से दोनों दलों को चुनाव के आगे बढ़ने से पहले अपनों को मनाना चुनौती होगा. नहीं तो वे किसी न किसी स्तर पर तो नुकसान कर ही सकते हैं.

ये भी पढे़ं- हरियाणा कांग्रेस में 3 लोकसभा उम्मीदवारों के खिलाफ बगावत, नाराज नेता बोले- ईंट से ईंट बजा देंगे, उम्मीदवार बदलने का अल्टीमेटम - Revolt in Haryana Congress

ये भी पढ़ें- "कई लोगों के फोन आ रहे हैं, हमें मायूस नहीं होना है, अभी ज़िंदगी बहुत लंबी पड़ी हुई है" - Kuldeep Bishnoi Post on X

चंडीगढ़: लोकसभा चुनाव को लेकर हरियाणा में इस बार मुख्य मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच माना जा रहा है. एक तरफ बीजेपी 2019 की तरह सभी दस सीटें जीतने का दावा कर रही है. दूसरी तरफ कांग्रेस बीजेपी को इतिहास बनाने से रोकने के लिए पसीना बहा रही है. इस बीच कांग्रेस के लिए अपनों से खतरा ज्यादा बना हुआ है. हालांकि बीजेपी भी इससे अछूती नहीं है.

दस में से करीब पांच सीट पर कांग्रेस को अपनों से खतरा! लोकसभा चुनाव में हरियाणा कांग्रेस को कुछ सीटों पर अपनों से ही भीतरघात का डर बना हुआ है. इसमें सबसे बड़ी भीतरघात वाली सीट हिसार लोकसभा क्षेत्र की है. जहां पर बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए चौधरी बीरेंद्र सिंह का परिवार है. उन्हें उम्मीद थी कि कांग्रेस उनके बेटे बृजेंद्र को हिसार से टिकट देगी, लेकिन उनकी जगह कांग्रेस ने जयप्रकाश को टिकट दिया है. इसके बाद बृजेंद्र सिंह का टिकट ना मिलने का दर्द मीडिया के सामने आ चुका है. इसकी वजह से हिसार सीट पर पार्टी के लिए उनका रुख चिंता का सबब बन सकता है.

भिवानी महेंद्रगढ़ लोकसभा सीट: दूसरी सीट भिवानी महेंद्रगढ़ लोकसभा सीट है. यहां पर पार्टी ने वरिष्ठ नेता किरण चौधरी की बेटी श्रुति चौधरी को टिकट ना देकर राव दान सिंह को उम्मीदवार बनाया है. जिसके बाद किरण चौधरी और उनकी बेटी श्रुति चौधरी का टिकट ना मिलने का दर्द मीडिया के सामने आया. हालांकि वे खुलकर पार्टी के खिलाफ नहीं बोलीं. वे पार्टी के साथ होने की बात तो कर रही हैं, लेकिन पार्टी को उनसे भी भितरघात का खतरा बना हुआ है.

फरीदाबाद लोकसभा सीट: तीसरी सीट फरीदाबाद की है. जहां पर पार्टी ने महेंद्र प्रताप सिंह को मैदान में उतारा है. यहां से टिकट की उम्मीद कर रहे पार्टी के वरिष्ठ नेता और हुड्डा के समधी करण दलाल अपना मुखर रूप दिखा चुके हैं. हालांकि वे टिकट न मिलने के बाद महापंचायत कर अपना रुख भी साफ कर चुके हैं. वो आगे क्या करेंगे. इसका भी इंतजार है. वहीं उनके रुख की वजह से फरीदाबाद लोकसभा सीट पर भी पार्टी को भितरघात का खतरा बना हुआ है.

गुरुग्राम लोकसभा सीट: चौथी सीट गुरुग्राम है. यहां पर पार्टी ने राज बब्बर को मैदान में उतारा है. इस सीट पर पार्टी के वरिष्ठ नेता कैप्टन अजय यादव दावेदारी पेश कर रहे थे, लेकिन पार्टी ने राज बब्बर को मैदान में उतार दिया. कैप्टन राज बब्बर को टिकट मिलने से पहले भी इस मामले में अपना रिएक्शन सोशल मीडिया के जरिए जाहिर कर चुके थे. वहीं उन्होंने रेवाड़ी में गुरुवार अपने कार्यकर्ताओं की बैठक भी बुलाई थी. जिसमें वो खुद तो शामिल नहीं हुए, लेकिन उनके बेटे चिरंजीवी यादव इस बैठक में मौजूद रहे. जिसमें उन्होंने कहा कि वो राज बब्बर का साथ देंगे. भले ही राज बब्बर का साथ देने की बात कर रहे हों, लेकिन अजय यादव खुद इस बैठक में नहीं पहुंचे थे. जो कहीं ना कहीं पार्टी के लिए चिंता का सबब जरूर बन सकते हैं.

करनाल लोकसभा सीट: पांचवी सीट करनाल लोकसभा है. जहां से पार्टी के वरिष्ठ नेता कुलदीप शर्मा के बेटे चाणक्य पंडित दावेदार थे. पार्टी के राष्ट्रीय सचिव वीरेंद्र राठौर भी दावेदार थे, लेकिन पार्टी ने टिकट टूथ कांग्रेस के अध्यक्ष दिव्यांशु बुद्धिराजा को दे दिया. इसके बाद अब कांग्रेस को भितरघात का खतरा इस सीट पर भी बना हुआ है.

बीजेपी की भी राह नहीं आसान! ऐसा नहीं है कि कांग्रेस के लिए ही भितरघात का खतरा बना हुआ है. बीजेपी के लिए भी अपने नेताओं की नाराजगी के साथ किसानों की तरफ से हो रहा विरोध परेशानी का सबब बना हुआ है. बीजेपी के लिए सबसे बड़ी चिंता हिसार सीट बनी हुई है. भले ही पार्टी का कोई भी नेता कोई बयान पार्टी विरोधी ना दे रहा हो, लेकिन इस सीट पर चुनाव लड़ने की चाह रखने वाले कैप्टन अभिमन्यु पार्टी के लिए अभी तक पहेली बने हुए हैं.

हालांकि उनके पास असम का प्रभार है. वे वहां व्यस्त हैं. इसके अलावा पार्टी नेता कुलदीप बिश्नोई भी इस सीट पर दावेदार थे, वे भी टिकट ना मिलने से नाराज दिखाई दिए. हालांकि मुख्यमंत्री दिल्ली में उनके घर पर गए थे, इसके बाद भव्य बिश्नोई को युवा मोर्चा का प्रभारी बनाया गया. इसके बावजूद रणजीत सिंह चौटाला के नामांकन पर कुलदीप बिश्नोई नहीं पहुंचे.

बीजेपी से अनिल विज नाराज! बीजेपी के लिए बड़ी परेशानी अंबाला सीट पर पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व गृह मंत्री अनिल विज की नाराजगी भी बनी हुई है. हालांकि वे पार्टी के मंचों पर अंबाला में अपने लोकसभा क्षेत्र में दिख रहे हैं, लेकिन उनका दर्द वे सार्वजनिक मंचों से भी जाहिर कर रहे हैं. ऐसे में उनकी नाराजगी पार्टी के लिए इस सीट पर चिंता का सबब बनी हुई है. बीजेपी के लिए सिरसा सीट भी चुनौती बनी हुई है.

सिरसा लोकसभा सीट पर पार्टी ने वर्तमान सांसद सुनीता दुग्गल का टिकट काटकर आप से बीजेपी में आए डॉक्टर अशोक तंवर को उम्मीदवार बनाया है. सुनीता दुग्गल भी अपना दर्द बयां कर चुकीं हैं. हालांकि वे भी खुलकर कुछ बोल नहीं पा रही हैं. वहीं किसानों के विरोध का सामना अशोक तंवर को भी करना पड़ रहा है. ऐसे में इस सीट से पार्टी के लिए अशोक तंवर को लोकसभा तक पहुंचा आसान नहीं है.

वहीं कुरुक्षेत्र सीट पर पार्टी ने आखिरी वक्त में पार्टी में शामिल हुए कांग्रेस के नेता रहे नवीन जिंदल को मैदान में उतारा है. यहां पर पहले तो पार्टी के नेताओं में इस बात को लेकर नाराजगी की चर्चा रही, लेकिन धीरे धीरे स्थिति अब सामान्य दिखाई दे रही है. यहां पर भी किसानों का विरोध का पार्टी को सामना करना पड़ रहा है. ऐसे में इस सीट पर भी स्थिति एक तरफा दिखाई नहीं दे रही है.

क्या कहते हैं राजनीतिक जानकार? कांग्रेस और बीजेपी के भीतरघात के खतरे पर राजनीतिक मामलों के जानकार धीरेंद्र अवस्थी ने कहा "कांग्रेस हो या बीजेपी दोनों दलों के लिए इस वक्त हरियाणा में अपनों का खतरा कमोबेश एक सा बना हुआ है. फर्क सिर्फ इतना है कि कांग्रेस के नेता जहां अपने स्तर मंच से अपना दर्द बयां कर रहे हैं. वहीं बीजेपी के वरिष्ठ नेता अनिल विज हो या फिर रामबिलास शर्मा. खुलकर पार्टी के बड़े नेताओं के सामने अपना दर्द बयां कर रहे हैं. बीजेपी अब मनोहर लाल के आस पास घूम रही है, वहीं कांग्रेस के पास अभी हुड्डा के अलावा कोई विकल्प नहीं है. ऐसे हालात में दोनों दलों के लिए अपने चिंता का सबब तो जरूर बने हुए हैं."

राजनीतिक मामलों के जानकार प्रोफेसर गुरमीत सिंह ने कहा "कांग्रेस हो या बीजेपी अभी लगभग दस में से आधी सीटों पर अपनों के भीतरघात से डरे हुए हैं, हालांकि मुख्य मुकाबला ही इन्हीं में दिखाई देता है. जो नेता दोनों पार्टियों के अपना दर्द मीडिया में और मंचों से जाहिर कर रहे हैं, वे भले ही ये भी कह रहे हों कि वे अपनी अपनी पार्टी के साथ खड़े हैं, लेकिन उनका संदेश उनके समर्थकों में तो जा ही रहा है. इस वजह से दोनों दलों को चुनाव के आगे बढ़ने से पहले अपनों को मनाना चुनौती होगा. नहीं तो वे किसी न किसी स्तर पर तो नुकसान कर ही सकते हैं.

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