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एग्जिट पोल और ओपिनियन पोल क्या होते हैं, दोनों में प्रमुख अंतर क्या है, जानें सब कुछ - Exit Polls and Opinion Polls

चुनावों के दौरान मतदाताओं के रुझान को समझने के लिए ओपिनियन पोल और एग्जिट पोल बहुत महत्वपूर्ण होते हैं. हालांकि, ओपिनियन पोल और एग्जिट पोल दोनों की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए गए हैं. दोनों में प्रमुख अंतर को समझने के लिए पढ़ें पूरी खबर.

Difference Between Exit Polls and Opinion Polls
प्रतीकात्मक तस्वीर (फोटो- ANI)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : May 29, 2024, 11:05 PM IST

Updated : Jun 1, 2024, 2:08 PM IST

हैदराबाद: एग्जिट पोल और ओपिनियन पोल मतदाताओं के झुकाव को समझने और चुनाव परिणामों की भविष्यवाणी करने के लिए अहम माने जाते हैं. ओपिनियन पोल और एग्जिट पोल दोनों ही मतदाताओं की पसंद को जानने के लिए किए जाते हैं, लेकिन दोनों अलग-अलग होते हैं. एग्जिट पोल चुनाव के अंतिम चरण के बाद जारी किए जा सकते हैं. विभिन्न मीडिया संगठन और पोल एजेंसियां चुनाव के दौरान एग्जिट पोल कराती हैं और नतीजों को लेकर भविष्यवाणी करती हैं. लेकिन अनुमान कितने सटीक होंगे, इसका पता मतगणना के दिन ही चलता है.

ओपिनियन पोल चुनाव से पहले या मतदाता के वोट डालने से पहले किया जाता है. इसमें आम लोगों से पूछा जाता है कि वे इस बार किस पार्टी या उम्मीदवार का समर्थन या उनके लिए वोट करेंगे. जबकि एग्जिट पोल वोटिंग के दिन मतदाता के वोट डालने के बाद पोलिंग बूथ से बाहर निकलने के तुरंत बाद किए जाते हैं. हालांकि, ओपिनियन पोल और एग्जिट पोल दोनों के अनुमान या आंकड़ों की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए जा चुके हैं.

ओपिनियन पोल: ओपिनियन पोल को चुनाव पूर्व या मतदान पूर्व पोल भी कहा जाता है. चुनाव से कुछ दिन पहले या हफ्तों या महीनों पहले किए जाते हैं. ऐसे सर्वे का उद्देश्य आम जनता या कुछ मतदाता से राजनीतिक विकल्पों पर उनकी प्रतिक्रिया जाना है.

समय: चुनाव से बहुत पहले मतदाताओं को अपने विचार और धारणा व्यक्त करने का मौका देने के लिए जनमत सर्वेक्षण किए जाते हैं. इससे राजनीतिक माहौल के बारे में अंदाजा लगाया जा सकता है.

नमूना चयन: ओपिनियन पोल में अक्सर मतदाताओं की प्राथमिकताओं का अंदाजा लगाने के लिए रजिस्टर्ड वोटर्स के रैंडम सैंपल लिया जाता है.

प्रश्न: सर्वे में शामिल लोगों की मतदान योजना, पसंदीदा राजनीतिक दल और कभी-कभी नीतिगत विषयों को लेकर सवाल पूछे जाते हैं. सर्वे के आंकड़ों से आम जनता और चुनाव परिणामों पर इसके संभावित प्रभाव का आकलन किया जाता है.

त्रुटि की गुंजाइश: ओपिनियन पोल में त्रुटि की गुंजाइश (Margin of Error) यह दर्शाती है कि निष्कर्ष पर कितना संदेह हो सकता है. त्रुटि का मार्जिन लोगों की नुमाइंदगी और नमूने के आकार द्वारा निर्धारित किया जाता है.

पूर्वानुमान का महत्व: ओपिनियन पोल सूचना का उपयोगी स्रोत हो सकते हैं, लेकिन वे चुनाव परिणामों का सटीक अनुमान नहीं हो सकते हैं. ओपिनियन पोल के निष्कर्ष मतदाता भागीदारी और जनमत में अंतिम समय में होने वाले बदलावों सहित कई चर (Variables) से प्रभावित हो सकते हैं.

पूर्व में, लोकसभा चुनावों के लिए जनमत सर्वेक्षणों की सटीकता अनिश्चित रही है. सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) ने कहा है कि जनमत सर्वेक्षण और सीटों के पूर्वानुमान सफलताओं और असफलताओं का मिलाजुला समूह रहे हैं. विश्लेषण के अनुसार, 1998 के लोकसभा चुनाव परिणाम पूर्व जनमत सर्वेक्षण के अनुमान के लगभग करीब थे, लेकिन 1999 के चुनाव के अनुमानों ने भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के प्रदर्शन को थोड़ा अधिक आंका. 2004 के लोकसभा चुनाव परिणाम बहुत से जनमत समीक्षकों के लिए चौंकाने वाले थे. उस चुनाव में ओपिनियन पोल और एग्जिट पोल दोनों में कांग्रेस के नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) को बहुत कम करके आंका गया था.

पांच साल बाद, 2009 के लोकसभा चुनावों में, ओपिनियन पोल एक बार फिर कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए की जीत का पूर्वानुमान लगाने में विफल रहे. उस समय भी अनुमनों में कांग्रेस को कम आंका गया था. जबकि 2004 में 222 सीटों से बढ़कर 2009 में यूपीए की कुल सीटें 262 हो गई थीं.

इस बीच, 2014 के लोकसभा चुनावों में एनडीए को 257 से 340 सीटों के बीच जीतने का अनुमान लगाया गया था. जबकि चुनाव परिणाम में एनडीए को 336 से ज्यादा सीटें मिली थीं. 2019 के लोकसभा चुनावों में, जनमत सर्वेक्षणों में अनुमान लगाया गया था कि एनडीए लगभग 285 सीटें जीतेगा. हालांकि, भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन ने 353 सीटें जीती थीं, जबकि अकेले भाजपा को 303 सीटें मिली थी.

एग्जिट पोल: इसका अभ्यास मतदान केंद्रों के बाहर किया जाता है और वोट डाल कर पोलिंग बूथ से बाहर आने वाले मतदाताओं से उनके मतदान विकल्पों के बारे में पूछा जाता है. इस अभ्यास के समय मतदाता द्वारा सच्चाई बताने की अधिक संभावना होती है कि उन्होंने किसे वोट किया. ओपिनियन पोल के उलट एग्जिट पोल मतदान के बाद किए जाते हैं और चुनाव के तुरंत बाद उनका विश्लेषण जारी किया जाता है. हालांकि, सरकारी अधिकारियों के बजाय निजी कंपनियों या मीडिया समूहों द्वारा एग्जिट पोल किए जाते हैं.

समय: एग्जिट पोल के परिणाम आखिरी चरण की वोटिंग के बाद पूरी होने के तुरंत बाद जारी किए जाते हैं. वे मतदान पैटर्न की झलक देते हैं.

नमूना चयन: एग्जिट पोल में उन मतदाताओं से डेटा हासिल किए जाते हैं, जो पहले ही अपना मत डाल चुके हैं. जबकि जनमत सर्वेक्षणों में पंजीकृत मतदाताओं के रैंडम सैंपल का साक्षात्कार लिया जाता है. एग्जिट पोल के आंकड़े मतदाताओं की वास्तविक प्राथमिकताओं को दर्शाते हैं.

प्रश्न: एग्जिट पोल में मतदाताओं से उम्मीदवारों को लेकर उनकी पसंद के बारे में पूछा जाता है और साथ ही कुछ मामलों में उनकी पसंद को प्रभावित करने वाले सवाल भी पूछते हैं. इन सर्वेक्षणों का उद्देश्य चुनाव के तत्काल परिणामों पर प्रकाश डालना है.

त्रुटि की गुंजाइश: एग्जिट पोल में आम तौर पर एग्जिट पोल की तुलना में त्रुटि की गुंजाइश अधिक होती है.

पूर्वानुमान: एग्जिट पोल के आंकड़े अधिक सटीक होते हैं, क्योंकि वे वास्तविक मतदान व्यवहार को जानने की कोशिश करते हैं.

कानून: निष्पक्ष व्यवहार की गारंटी के लिए एग्जिट पोल जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 126A द्वारा शासित होते हैं. यह खंड मतदान की शुरुआत और अंतिम मतदान चरण के समापन के तीस मिनट बाद किसी भी राज्य में एग्जिट पोल आयोजित करने और प्रसारित करने पर रोक लगाता है. मतदाता व्यवहार पर शुरुआती प्रभाव से बचने के लिए, इन कानूनों की देखरेख भारत के चुनाव आयोग (ECI) द्वारा की जाती है.

प्रमुख तथ्य: भारतीय जनमत संस्थान ने 1957 में दूसरे लोकसभा चुनाव के दौरान देश का पहला एग्जिट पोल किया था.

ये भी पढ़ें- लोकसभा चुनाव: एग्जिट पोल क्या होता है, 2019 में कितने सटीक साबित हुए, जानें सब कुछ

हैदराबाद: एग्जिट पोल और ओपिनियन पोल मतदाताओं के झुकाव को समझने और चुनाव परिणामों की भविष्यवाणी करने के लिए अहम माने जाते हैं. ओपिनियन पोल और एग्जिट पोल दोनों ही मतदाताओं की पसंद को जानने के लिए किए जाते हैं, लेकिन दोनों अलग-अलग होते हैं. एग्जिट पोल चुनाव के अंतिम चरण के बाद जारी किए जा सकते हैं. विभिन्न मीडिया संगठन और पोल एजेंसियां चुनाव के दौरान एग्जिट पोल कराती हैं और नतीजों को लेकर भविष्यवाणी करती हैं. लेकिन अनुमान कितने सटीक होंगे, इसका पता मतगणना के दिन ही चलता है.

ओपिनियन पोल चुनाव से पहले या मतदाता के वोट डालने से पहले किया जाता है. इसमें आम लोगों से पूछा जाता है कि वे इस बार किस पार्टी या उम्मीदवार का समर्थन या उनके लिए वोट करेंगे. जबकि एग्जिट पोल वोटिंग के दिन मतदाता के वोट डालने के बाद पोलिंग बूथ से बाहर निकलने के तुरंत बाद किए जाते हैं. हालांकि, ओपिनियन पोल और एग्जिट पोल दोनों के अनुमान या आंकड़ों की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए जा चुके हैं.

ओपिनियन पोल: ओपिनियन पोल को चुनाव पूर्व या मतदान पूर्व पोल भी कहा जाता है. चुनाव से कुछ दिन पहले या हफ्तों या महीनों पहले किए जाते हैं. ऐसे सर्वे का उद्देश्य आम जनता या कुछ मतदाता से राजनीतिक विकल्पों पर उनकी प्रतिक्रिया जाना है.

समय: चुनाव से बहुत पहले मतदाताओं को अपने विचार और धारणा व्यक्त करने का मौका देने के लिए जनमत सर्वेक्षण किए जाते हैं. इससे राजनीतिक माहौल के बारे में अंदाजा लगाया जा सकता है.

नमूना चयन: ओपिनियन पोल में अक्सर मतदाताओं की प्राथमिकताओं का अंदाजा लगाने के लिए रजिस्टर्ड वोटर्स के रैंडम सैंपल लिया जाता है.

प्रश्न: सर्वे में शामिल लोगों की मतदान योजना, पसंदीदा राजनीतिक दल और कभी-कभी नीतिगत विषयों को लेकर सवाल पूछे जाते हैं. सर्वे के आंकड़ों से आम जनता और चुनाव परिणामों पर इसके संभावित प्रभाव का आकलन किया जाता है.

त्रुटि की गुंजाइश: ओपिनियन पोल में त्रुटि की गुंजाइश (Margin of Error) यह दर्शाती है कि निष्कर्ष पर कितना संदेह हो सकता है. त्रुटि का मार्जिन लोगों की नुमाइंदगी और नमूने के आकार द्वारा निर्धारित किया जाता है.

पूर्वानुमान का महत्व: ओपिनियन पोल सूचना का उपयोगी स्रोत हो सकते हैं, लेकिन वे चुनाव परिणामों का सटीक अनुमान नहीं हो सकते हैं. ओपिनियन पोल के निष्कर्ष मतदाता भागीदारी और जनमत में अंतिम समय में होने वाले बदलावों सहित कई चर (Variables) से प्रभावित हो सकते हैं.

पूर्व में, लोकसभा चुनावों के लिए जनमत सर्वेक्षणों की सटीकता अनिश्चित रही है. सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) ने कहा है कि जनमत सर्वेक्षण और सीटों के पूर्वानुमान सफलताओं और असफलताओं का मिलाजुला समूह रहे हैं. विश्लेषण के अनुसार, 1998 के लोकसभा चुनाव परिणाम पूर्व जनमत सर्वेक्षण के अनुमान के लगभग करीब थे, लेकिन 1999 के चुनाव के अनुमानों ने भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के प्रदर्शन को थोड़ा अधिक आंका. 2004 के लोकसभा चुनाव परिणाम बहुत से जनमत समीक्षकों के लिए चौंकाने वाले थे. उस चुनाव में ओपिनियन पोल और एग्जिट पोल दोनों में कांग्रेस के नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) को बहुत कम करके आंका गया था.

पांच साल बाद, 2009 के लोकसभा चुनावों में, ओपिनियन पोल एक बार फिर कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए की जीत का पूर्वानुमान लगाने में विफल रहे. उस समय भी अनुमनों में कांग्रेस को कम आंका गया था. जबकि 2004 में 222 सीटों से बढ़कर 2009 में यूपीए की कुल सीटें 262 हो गई थीं.

इस बीच, 2014 के लोकसभा चुनावों में एनडीए को 257 से 340 सीटों के बीच जीतने का अनुमान लगाया गया था. जबकि चुनाव परिणाम में एनडीए को 336 से ज्यादा सीटें मिली थीं. 2019 के लोकसभा चुनावों में, जनमत सर्वेक्षणों में अनुमान लगाया गया था कि एनडीए लगभग 285 सीटें जीतेगा. हालांकि, भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन ने 353 सीटें जीती थीं, जबकि अकेले भाजपा को 303 सीटें मिली थी.

एग्जिट पोल: इसका अभ्यास मतदान केंद्रों के बाहर किया जाता है और वोट डाल कर पोलिंग बूथ से बाहर आने वाले मतदाताओं से उनके मतदान विकल्पों के बारे में पूछा जाता है. इस अभ्यास के समय मतदाता द्वारा सच्चाई बताने की अधिक संभावना होती है कि उन्होंने किसे वोट किया. ओपिनियन पोल के उलट एग्जिट पोल मतदान के बाद किए जाते हैं और चुनाव के तुरंत बाद उनका विश्लेषण जारी किया जाता है. हालांकि, सरकारी अधिकारियों के बजाय निजी कंपनियों या मीडिया समूहों द्वारा एग्जिट पोल किए जाते हैं.

समय: एग्जिट पोल के परिणाम आखिरी चरण की वोटिंग के बाद पूरी होने के तुरंत बाद जारी किए जाते हैं. वे मतदान पैटर्न की झलक देते हैं.

नमूना चयन: एग्जिट पोल में उन मतदाताओं से डेटा हासिल किए जाते हैं, जो पहले ही अपना मत डाल चुके हैं. जबकि जनमत सर्वेक्षणों में पंजीकृत मतदाताओं के रैंडम सैंपल का साक्षात्कार लिया जाता है. एग्जिट पोल के आंकड़े मतदाताओं की वास्तविक प्राथमिकताओं को दर्शाते हैं.

प्रश्न: एग्जिट पोल में मतदाताओं से उम्मीदवारों को लेकर उनकी पसंद के बारे में पूछा जाता है और साथ ही कुछ मामलों में उनकी पसंद को प्रभावित करने वाले सवाल भी पूछते हैं. इन सर्वेक्षणों का उद्देश्य चुनाव के तत्काल परिणामों पर प्रकाश डालना है.

त्रुटि की गुंजाइश: एग्जिट पोल में आम तौर पर एग्जिट पोल की तुलना में त्रुटि की गुंजाइश अधिक होती है.

पूर्वानुमान: एग्जिट पोल के आंकड़े अधिक सटीक होते हैं, क्योंकि वे वास्तविक मतदान व्यवहार को जानने की कोशिश करते हैं.

कानून: निष्पक्ष व्यवहार की गारंटी के लिए एग्जिट पोल जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 126A द्वारा शासित होते हैं. यह खंड मतदान की शुरुआत और अंतिम मतदान चरण के समापन के तीस मिनट बाद किसी भी राज्य में एग्जिट पोल आयोजित करने और प्रसारित करने पर रोक लगाता है. मतदाता व्यवहार पर शुरुआती प्रभाव से बचने के लिए, इन कानूनों की देखरेख भारत के चुनाव आयोग (ECI) द्वारा की जाती है.

प्रमुख तथ्य: भारतीय जनमत संस्थान ने 1957 में दूसरे लोकसभा चुनाव के दौरान देश का पहला एग्जिट पोल किया था.

ये भी पढ़ें- लोकसभा चुनाव: एग्जिट पोल क्या होता है, 2019 में कितने सटीक साबित हुए, जानें सब कुछ

Last Updated : Jun 1, 2024, 2:08 PM IST
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