हरिद्वार: आदि शंकराचार्य द्वारा बनाए गए चार शंकराचार्य पीठों में से दो पीठों पर विवाद चल रहा हैं. ज्योतिर्मठ पर जगद्गुरु शंकराचार्य के रूप में स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद, स्वामी प्रज्ञानानंद और स्वामी वासुदेवानंद दावेदार हैं. वहीं, द्वारिका पीठ पर भी स्वामी सदानंद दावेदार हैं, लेकिन इन दोनों ही पीठ को लेकर विवाद चल रहा है. जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद के निधन के बाद ज्योतिर्मठ पर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद और द्वारिका पीठ पर सदानंद महाराज आसीन हुए. ऐसे में कौन शंकराचार्य बन सकता है, उसके क्या नियम है और उसे किस तरह का त्याग करना होगा, इसको लेकर 20 अगस्त को दिल्ली में धर्म संसद का आयोजन किया जा रहा है. इसकी जानकारी शंकराचार्य परिषद के अध्यक्ष और काली सेना के प्रमुख स्वामी आनंद स्वरूप ने दी है.
संन्यासी अखाड़ों के आचार्य और महामंडलेश्वर होंगे शामिल: शंकराचार्य परिषद के अध्यक्ष और काली सेना के प्रमुख स्वामी आनंद स्वरूप ने बताया कि इस धर्म संसद में श्रृंगेरी और पूरी पीठ के शंकराचार्य, सभी संन्यासी अखाड़ों के आचार्य, महामंडलेश्वर, अध्यक्ष और सचिव को आमंत्रित किया जा रहा है. धर्म संसद में चर्चा के बाद यह तय होगा कि कौन शंकराचार्य बन सकता है? उन्होंने कहा कि धर्म संसद तभी होती है, जब विषय बहुत क्लिष्ट हो जाता है.
स्वरूपानंद सरस्वती महाराज के निधन के बाद उपजा विवाद: स्वामी आनंद स्वरूप ने बताया कि स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज का निधन होने के बाद दोनों पीठों पर विवाद शुरू हुआ, जिसमें से एक पीठ पर तो विवाद बहुत दिनों से चल रहा है. शंकराचार्य का जो पद है, वह संन्यासियों का पद है. ऐसे में सारे संन्यासी अखाड़ों को लेकर आचार्य महामंडलेश्वर, संत समाज, काशी विद्वत परिषद, मैथिली विद्वत परिषद और अखिल भारतीय विद्वत परिषद को इकट्ठा करके दिल्ली में धर्म संसद में लाया जाएगा.
उन्होंने कहा कि शंकराचार्य का पद सर्वोच्च है, इसलिए कोई विवादित व्यक्ति उस पद पर नहीं बैठ सकता. ऐसे में शंकराचार्य के पद पर बैठने वाले व्यक्ति को बहुत त्याग और नियम करने होते हैं. श्रृंगेरी और पूरी छोड़कर नियमों की मान्यता कहीं नहीं हो रही है, इसीलिए शंकराचार्य के पद पर जो व्यक्ति बैठे, वह उतना ही त्यागी, विद्वान और ब्राह्मण होना चाहिए.
अविमुक्तेश्वरानंद महाराज पर उठे प्रश्न: स्वामी आनंद स्वरूप ने स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद महाराज के ऊपर एक प्रश्न खड़े किए हैं कि वह ब्राह्मण नहीं ब्रह्म भट्ट हैं. अगर वो ब्राह्मण हैं तो कौन से ब्राह्मण हैं और उनके सूत्र और गोत्र क्या हैं. ये सब स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को बताना होगा, तभी वो शंकराचार्य के पद पर आसीन हो सकते हैं.
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