नई दिल्लीः दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि किसी मीडिया संस्थान के खिलाफ निरोधात्मक आदेश तभी दिया जा सकता है जब ट्रायल की निष्पक्षता पर खासा खतरा मंडरा रहा हो. सोमवार को जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद की बेंच ने दो अखबारों पर प्रतिबंधात्मक आदेश की मांग करने वाले याचिकाकर्ता पर 10 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया.
दरअसल, हाईकोर्ट दो अखबारों के खिलाफ याचिकाकर्ता से संबंधित खबरें छापने से रोकने की मांग पर सुनवाई कर रहा था. अपने फैसले में कोर्ट ने कहा कि किसी खबर में दो पूर्वाग्रह दो किस्म की हो सकती है. पहला जिस खबर में कोर्ट की विश्वसनीयता संदेह के घेरे में हो और दूसरा जिस खबर में यह पता चले कि कोर्ट सच्चाई पर नहीं पहुंच सकती है. बिना इन दोनों वजहों के किसी मीडिया प्लेटफार्म पर प्रतिबंधात्मक आदेश नहीं लगया जा सकता है.
याचिकाकर्ता अजय कुमार ने दो अखबारों के खिलाफ निरोधात्मक कार्रवाई करने की मांग की थी. याचिका में कहा गया था कि दोनों अखबारों में छपी खबरों पर रोक लगाई जाए. कहा गया था कि दिल्ली पुलिस के एक एसीपी का बुराड़ी के भूमाफिया से सांठगांठ है और पुलिस अधिकारी की नजर उसकी संपत्ति पर है. पुलिस अधिकारी याचिकाकर्ता को उसकी संपत्ति पर काबिज नहीं होने देना चाहता है. दोनों अखबारों ने एक पुलिस अधिकारी के कहने पर याचिकाकर्ता का नाम लेते हुए खबर छापी थी.
याचिकाकर्ता की मां ने संबंधित पुलिस अधिकारी के खिलाफ केस दर्ज किया है. ऐसे में पुलिस अधिकारी के कहने पर याचिकाकर्ता का नाम लेकर खबर छापना ट्रायल कोर्ट को प्रभावित करने की कोशिश है. याचिका में कहा था कि पुलिस अधिकारी ने पत्रकारों को लखनऊ के एक उपभोक्ता फोरम में लंबित केस की जानकारी दी थी. हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता ने न तो लखनऊ के उपभोक्ता फोरम में लंबित केस की विस्तृत जानकारी दी और न ही उनकी मां की ओर से दिल्ली पुलिस के अधिकारी के खिलाफ दायर याचिका का विवरण. कोर्ट ने कहा कि दोनों अखबारों में छपी खबरों से ऐसा नहीं लगता है कि वो कोर्ट के फैसले को प्रभावित करने की कोशिश है.
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