नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि कार्यस्थल पर यौन प्रताड़ना का आरोप एक गंभीर मसला है. केंद्र सरकार को ऐसे आरोपियों को नियुक्त करने में सावधानी बरतनी चाहिए. चीफ जस्टिस मनमोहन की अध्यक्षता वाली बेंच ने यह टिप्पणी शुक्रवार को की. बेंच यूनियन बैंक ऑफ इंडिया में एक निदेशक के पद पर यौन प्रताड़ना के आरोपी की नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी. मामले की अगली सुनवाई नवंबर में होगी.
हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार की ओर से पेश एएसजी चेतन शर्मा से पूछा कि आखिर यौन प्रताड़ना के आरोपी को यूनियन बैंक ऑफ इंडिया में निदेशक के पद पर नियुक्ति की हरी झंडी कैसे मिली? हम केंद्र सरकार से ये उम्मीद करते हैं कि वो इसे लेकर ज्यादा सतर्क होगी. हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा कि आपको एक आदर्श नियोक्ता की तरह दफ्तर की गरिमा को बरकरार रखने के लिए कदम उठाना चाहिए.
कोर्ट ने कहा कि उच्च पदों पर आसीन लोगों के बारे में समाज में स्पष्ट संदेश जाना चाहिए कि वे लैंगिक रूप से संवेदनशील हैं. सुनवाई के दौरान जब चेतन शर्मा ने कहा कि ये जनहित याचिका सुनवाई योग्य नहीं है तब हाईकोर्ट ने कहा कि जिस व्यक्ति के खिलाफ यौन प्रताड़ना के आरोप लगे हों उनकी नियुक्ति को हरी झंडी कैसे मिल गई? अगर किसी व्यक्ति के खिलाफ कार्यस्थल पर यौन प्रताड़ना का आरोप हो तो उसे बैंक का निदेशक कैसे बनाया जा सकता है? क्या ऐसी संस्थानों में महिलाएं सुरक्षित रहेंगी?
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में निदेशक के पद पर नियुक्ति के लिए विजिलेंस की मंजूरी जरूरी होती है. उस व्यक्ति को विजिलेंस की मंजूरी नहीं मिल सकती जिसके खिलाफ कार्यस्थल पर यौन प्रताड़ना का आरोप हो.
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