नई दिल्लीः इस बार दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी (AAP) की हार हुई. और 27 साल बाद दिल्ली की सत्ता में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की वापसी हो रही है. आखिर दिल्ली की जनता ने आम आदमी पार्टी पर इस बार क्यों भरोसा नहीं जताया. यहां तक की पार्टी के मुखिया व पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, पूर्व उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया, मंत्री रहे सौरभ भारद्वाज समेत अन्य कई बड़े नेताओं को हार मिली है.
दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के हार के कई कारण माने जा रहे हैं, जिसमें पिछले चुनावों में जो वादे किए थे, उनमें से कई पूरे नहीं हो हुए, जिससे जनता में पार्टी के प्रति अविश्वास बढ़ा. शराब नीति घोटाला और आप नेताओं के जेल में जाने से भी पार्टी को नुकसान पहुंचा. भाजपा व कांग्रेस विपक्षी दलों की मजबूत रणनीतियों से भी आम आदमी पार्टी को नुकसान पहुंचा. आम आदमी पार्टी को 2025 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा है. इस बार भाजपा सरकार बना रही है.
बता दें कि 2013 में पहली बार चुनावी मैदान में उतरी आम आदमी पार्टी ने अपनी अनूठी राजनीति और जनता के बीच पैठ बनाकर आश्चर्यजनक सफलता हासिल की थी. पहले चुनाव में ही पार्टी ने दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों में से 28 सीटों पर विजय हासिल की. तब कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई थी. लेकिन 49 दिन के भीतर इस्तीफा दे दिया था. वर्ष 2015 में हुए दिल्ली विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी ने को 70 में से 67 सीटों पर जीत दर्ज की थी. अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में पार्टी ने दिल्ली में शिक्षा, स्वास्थ्य व बिजली के क्षेत्र में सुधार के वादे किए और इन मुद्दों को अपनी राजनीति का अहम हिस्सा बनाया. आम आदमी पार्टी ने 2020 में दिल्ली विधानसभा चुनाव में 70 में से 62 सीट पर जीत दर्ज की थी. इस बार दिल्ली विधानसभा चुनाव में हार से आम आदमी पार्टी के सामने चुनौतीपूर्ण अध्याय सामने आया है.
1. जनता का विश्वास खोया: आम आदमी पार्टी ने पिछले विधानसभा चुनावों में जो वादे किए थे, उनमें से कुछ वादे पूरे नहीं हुए. इससे दिल्ली के लोगों का पार्टी से विश्वास कमजोर हुआ. वायु प्रदूषण, यमुना नदी की सफाई, साफ पेयजल की आपूर्ति आदि शामिल है.
2. प्रभावशाली व मजबूत विपक्ष: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस जैसे बड़े विपक्षी दलों ने इस बार अपने चुनावी रणनीतियों में सुधार किया. आम आदमी पार्टी पर भ्रष्टाचार के आरोपों का प्रभावी प्रचार किया. भाजपा ने मोदी सरकार की योजनाओं को जन-जन तक पहुंचाने में अच्छी सफलता हासिल की.
3. गठबंधन ने होने से भी नुकसानः लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा, लेकिन हार मिली थी. विधानसभा चुनाव अकेले ही चुनाव लड़ा. कांग्रेस के अलग चुनाव लड़ने से आम आदमी पार्टी का वोट कटा. इससे भी आम आदमी पार्टी को कई सीटों पर हार का सामना करना पड़ा.
4. आप सरकार के कार्य से असंतुष्टताः कुछ क्षेत्रों में आप सरकार के कार्य का प्रदर्शन बहुत अच्छा नहीं रहा. काम के नाम पर वोट मांगने वाली आम आदमी पार्टी के सामने शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी सुविधाओं को लेकर लोगों में नाराजगी थी. कई इलाकों में इन सुविधाओं पर ठीक काम नहीं हुआ. गंदे पेयजल, गंदगी आदी समस्या भी आप की हार का प्रमुख कारण बनी.
5. दर्जनों नेताओं का पार्टी छोड़नाः विधानसभा चुनाव से पहले कई नेता जिसमें मंत्री भी शामिल हैं. वो आम आदमी पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए. इन नेताओं के साथ मतदाता भी आम आदमी पार्टी से भाजपा में शिफ्ट हुए. ये भी आम आदमी पार्टी के हार का एक प्रमुख कारण है.
6. जनता की पहुंच से दूर रहे आप नेता: आम आदमी पार्टी के नेता खुद को आम आदमी बताते रहे, लेकिन हकीकत ये है कि वह आम जनता की पहुंच से हमेशा दूर रहे. ये बात खुद दिल्ली सरकार में मंत्री रहे कैलाश गहलोत ने पार्टी छोड़ते समय अरविंद केजरीवाल को लिखे पत्र में कहा था. पटपड़गंज विधानसभा में मनीष सिसोदिया पहुंच ज्यादा एक्टिव नहीं रहे. यहां से अवध ओझा को भी हार मिली. मनीष सिसोदिया को जंगपुरा से भी हार मिली.
7. भ्रष्टाचार के आरोपों से पार्टी को लगा डेंटः दिल्ली में आम आदमी पार्टी पर शराब घोटाले व अन्य कई घोटाले का आरोप लगा. पार्टी के शीर्ष नेता इन आरोपों में लंबे समय तक जेल में रहे. इससे पार्टी को काफी डेंट लगा. इन आरोपों को विपक्ष ने मजबूती से विधानसभा चुनाव में मुद्दा बनाया और आरोपों को बढ़-चढ़कर प्रचारित किया.
8. केंद्र सरकार के विरोध से नुकसान: आम आदमी पार्टी ने हमेशा केंद्र सरकार व नरेंद्र मोदी की नीतियों के खिलाफ विरोध किया. यहां तक की योजनाओं को लागू करने में भी विरोध किया. इसने आम आदमी पार्टी को एक सीमित दायरे में बांध दिया, जिससे कुछ वर्गों के बीच में पार्टी की स्थिति कमजोर हुई.
9. क्षेत्रीय मुद्दे की जगह केंद्रीय मुद्दों पर ध्यान: दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने स्थानीय मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने की बजाय, राष्ट्रीय मुद्दों पर अधिक ध्यान दिया. इससे कुछ स्थानीय मतदाताओं का समर्थन खो दिया. पार्टी ने हमेशा केंद्रीय मुद्दों पर ध्यान देने व केंद्र पर हमला बोलने पर ध्यान दिया.
10. पार्टी के अंदर भी विवादः आम आदमी पार्टी के अंदर आपसी विवाद भी समय-समय पर दिखाई दिया. आपसी कलह के चलते कई नेता पार्टी छोड़ गए. राज्यसभा सांसद स्वाति मालीवाल ने पार्टी से बगावत कर दी और केजरीवाल व आम आदमी पार्टी के खिलाफ समस्याओं को लेकर विधानसभा चुनाव में प्रचार भी शुरू कर दिया.
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