खूंटी: वन प्रमंडल क्षेत्र में जनसंख्या वृद्धि और जंगलों पर इंसानी गतिविधियों के बढ़ने से मानव-हाथी संघर्ष के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. वन विभाग इस समस्या को रोकने के लिए तमाम प्रयास कर रहा है, लेकिन शहरीकरण और औद्योगीकरण के कारण जगंल में पेड़-पौधों की अंधाधुंध कटाई ने जंगली हाथियों को उनके प्राकृतिक आवास से वंचित कर दिया है. जिसके चलते हाथियों का उत्पात बढ़ता जा रहा है और इसका खामियाजा ग्रामीण क्षेत्रों में रह रहे लोगों को भुगतना पड़ रहा है.
वनों की कटाई से गांव की ओर बढ़ रहे हैं हाथी
जानकारों का कहना है कि गर्मी के मौसम में जंगली हाथियों का आतंक और बढ़ जाता है. जंगलों में प्राकृतिक जल स्रोत सूखने और भोजन की कमी के कारण हाथी आबादी वाले क्षेत्रों में प्रवेश कर जाते हैं, लेकिन इस बार ठंड के मौसम में भी हाथियों का झुंड जंगलों से बाहर निकलकर ग्रामीण क्षेत्रों की ओर बढ़े हैं. ये जंगली हाथी रास्ते में आने वाले घरों को ध्वस्त कर रहे हैं.
अनाज और फसलों को भी काफी नुकसान पहुंचा रहे हैं. हाथियों के हमले का एक मुख्य कारण ग्रामीण क्षेत्रों में खेत खलिहान में रखे धान, महुआ से बनी देसी शराब की महक भी है, जो उन्हें आकर्षित करती है. कभी-कभी ग्रामीण खुद जंगली हाथियों को भगाने की कोशिश करते हैं, जिससे हाथी उग्र होकर लोगों पर हमला कर देते हैं. इतना ही नहीं ये हाथी कई लोगों की जान भी ले चुके हैं.
ग्रामीणों को हो रहा नुकसान
ग्रामीणों का कहना है कि धान की फसल हाथियों का पसंदीदा भोजन है. वे खेतों में तैयार फसल और खलिहानों में रखे धान को खाकर भारी नुकसान पहुंचाते हैं. जिससे किसान जल्दबाजी में अपनी फसल औने-पौने दामों में बेचने को मजबूर हो जाते हैं. यदि वे धान को चावल में परिवर्तित करते, तो बेहतर कीमत मिल सकती थी, लेकिन हाथियों के भय से उन्हें घाटा उठाना पड़ रहा है.
हाथियों के उत्पात से जुड़े मामले
इधर, वन विभाग ने ग्रामीणों से अवैध गतिविधियों की जानकारी प्रशासन को देने और जंगलों को बचाने का सहयोग करने की अपील की है. वन प्रमंडल क्षेत्र और रांची जिले के बुंडू, सोनाहातू और राहे इलाके गंभीर रूप से हाथी प्रभावित हैं. खूंटी जिले में गिरगा, रनिया, तोरपा, कर्रा और जरिया जैसे क्षेत्रों में हाथियों का आतंक सबसे ज्यादा है. इस वर्ष जंगली हाथियों के कारण खूंटी और आसपास के क्षेत्रों में चार लोगों की मौत हुई है. इसके अलावा 402 मामलों में फसल बर्बादी, 227 मामलों में अनाज क्षति और 147 मामलों में मकान क्षति दर्ज की गई है.
वन विभाग द्वारा मृतकों के परिजनों को मुआवजा देने की प्रक्रिया शुरू की गई है. अब तक दो मृतकों के परिजनों को चार-चार लाख रुपये का मुआवजा दिया जा चुका है, जबकि बाकी दो मामलों की प्रक्रिया चल रही है. फसल क्षति के 402 मामलों में लगभग 30.94 लाख रुपये का मुआवजा वितरित किया गया है. वन विभाग जंगली हाथियों से होने वाले नुकसान को कम करने के लिए लगातार प्रयासरत है. गांव स्तर पर वन सुरक्षा समितियों का गठन किया गया है. इन समितियों को हाथी भगाने के लिए पटाखे, हाई बीम टॉर्च और अन्य उपकरण उपलब्ध कराए गए हैं.
ग्रामीणों को दिया जा रहा है मुआवजा: डीएफओ
वन प्रमंडल के डीएफओ दिलीप कुमार ने कहा कि हाथियों के कारण हुए नुकसान का भुगतान त्वरित गति से किया जा रहा है. साथ ही वन विभाग लोगों को जागरूक करने और हाथियों से बचाव के उपाय भी सीखा रहा है. डीएफओ का कहना है कि हाथियों का ग्रामीण क्षेत्रों में प्रवेश करना, जंगलों की अवैध कटाई के कारण नहीं हो सकता. हालांकि उन्होंने जंगलों की कटाई से इंकार नहीं किया. उन्होंने कहा कि कुछ जगहों को छोड़ दिया जाए तो क्षेत्र में ग्रामीण खुद निजी जमीन पर पेड़ों को लगाते हैं. जंगलों से हाथियों का झुंड ग्रामीण क्षेत्रों में आने का यह कोई नया कारण नहीं है. हाथी वर्षों से आते-जाते रहे हैं, लेकिन हाथियों पर रिपोर्टिंग ज्यादा होती है, जिसके कारण उनकी संख्या बढ़ती दिखती है.
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