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युवा: देश-विदेश में हैदराबाद की दो बहनें कुचिपुड़ी डांस में मचा रहीं धूम - DANCING BEYOND BORDERS

हैदराबाद की दो बहनें वामसवार्थिनी और विष्णुवंदना ने कुचिपुड़ी डांस में अपनी असाधारण प्रतिभा से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर रही हैं.

हैदराबाद की बहनें कुचिपुड़ी में मचा रहीं धूम
हैदराबाद की बहनें कुचिपुड़ी में मचा रहीं धूम (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Dec 17, 2024, 7:19 PM IST

हैदराबाद: तेलंगाना के हैदराबाद की दो बहनें वामसवार्थिनी और विष्णुवंदना ने कुचिपुड़ी डांस में अपनी असाधारण प्रतिभा से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर रही हैं. बचपन से ही शास्त्रीय नृत्य में ट्रेनिंग लेने वाली दोनों बहनों ने अब तक भारत और विदेशों में 300 से अधिक मंचों पर शानदार परफोर्मेंस दी हैं.

इस दौरान उन्होंने अपने एक्स्परेसिव मूव और त्रुटिहीन तकनीक से दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया है. उनके समर्पण ने उन्हें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार दिलाए हैं, जिसमें गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में मान्यता भी शामिल है.

बचपन से डांस का शौक
मुशीराबाद निर्वाचन क्षेत्र के आदिकामेट के एक दंपति बाबूराव और धनलक्ष्मी ने अपनी बेटियों के डांस के प्रति जुनून को कम उम्र से ही पोषित किया. वे 10-11 साल की उम्र से ही दर्शकों को प्रभावित कर रही हैं और अपने कुशल प्रदर्शन के लिए प्रशंसा प्राप्त कर रही हैं.

अकादमिक रूप से उत्कृष्ट होने के बावजूद दोनों बहनें अपनी कला के प्रति गहराई से प्रतिबद्ध रहीं. उन्होंने अपनी पढ़ाई को कठोर डांस प्रैक्टिस के साथ संतुलित किया और अंततः भारतीय नाट्यमयूरी (2009), नृत्य कला रत्न पुरस्कार (2011) और स्त्री शक्ति पुरस्कार (2023) जैसे कई प्रतिष्ठित पुरस्कार अर्जित किए.

अकादमिक एक्सीलेंस: मास्टर डिग्री से लेकर पीएचडी तक
वामसावर्तिनी और विष्णुवंदना ने अपनी अकादमिक और कलात्मक दोनों ही गतिविधियों में उल्लेखनीय सफलता हासिल की है. अपने शानदार डांस करियर के साथ-साथ, उन्होंने उच्च शिक्षा भी हासिल की है.वामसावर्तिनी के पास इकोनॉमिक और पब्लिक एडिमिनिस्ट्रेशन में एमए की डिग्री है.

साथ ही वह तेलुगु यूनिवर्सिटी से MPA की डिग्री हासिल की है. उन्होंने पीएचडी भी की है. विष्णुवंदना भी उतनी ही निपुण हैं, उनके पास साइक्लॉजी और हिस्ट्री में एमएकी डिग्री है. उन्होंने भी पीएचडी की है. उनकी अकादमिक उपलब्धियां विविध क्षेत्रों में उत्कृष्टता हासिल करने के उनके दृढ़ संकल्प को रेखांकित करती हैं, जो साबित करती हैं कि समर्पण पारंपरिक कला और आधुनिक शिक्षा दोनों में सफलता की ओर ले जा सकता है.

सीमाओं से परे पहचान
दोनों बहनों ने कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्लेटफॉर्म पर परफोर्म किया है, पुरस्कार जीते हैं और रिकॉर्ड बनाए हैं. गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में अपनी जगह बनाने के अलावा, उन्हें सिलिकॉन आंध्र और थाईलैंड कल्चरल ट्रस्ट जैसी संस्थाओं द्वारा मान्यता दी गई है. उनके पास संस्कृति के संरक्षण के लिए ग्रुप डांस का रिकॉर्ड भी है और उन्हें इंटरनेशनल वंडर बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में शामिल किया गया है.

कला और समाज के प्रति प्रतिबद्धता
बहनें अपने समुदाय को कुछ वापस देने में विश्वास रखती हैं. अपने जुनून को आगे बढ़ाते हुए, वे दूसरों को कुचिपुड़ी भी सिखाती हैं. वह वंचित बच्चों को निःशुल्क पढ़ाती हैं. वे तनाव दूर करने और पढ़ाई या काम करते समय संतुलन पाने के तरीके के रूप में पारंपरिक कला रूपों में महारत हासिल करने के महत्व पर जोर देती हैं.

भविष्य के लिए साझा जुनून
उनके माता-पिता बाबूराव और धनलक्ष्मी अपनी बेटियों के कुचिपुड़ी के प्रति साझा प्रेम पर बहुत गर्व करते हैं. बदले में, बहनें अपने शिल्प को और अधिक ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए दृढ़ हैं. वे कुचिपुड़ी की समृद्ध परंपरा को संरक्षित करते हुए अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर और अधिक रिकॉर्ड बनाने और नया करने की योजना बना रही हैं.

अपनी ट्रेनिंग से लेकर अपने अवार्ड विनिंग परफोर्मेंस और अकादमिक सफलताओं तक, वामसवर्थिनी और विष्णुवंदना अगली पीढ़ी को भारत की सांस्कृतिक विरासत को अपनाने और उत्कृष्टता के लिए प्रयास करने के लिए प्रेरित करती रहती हैं.

यह भी पढ़ें- युवा डॉक्टरों को ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में सेवा करनी चाहिए: राष्ट्रपति मुर्मू

हैदराबाद: तेलंगाना के हैदराबाद की दो बहनें वामसवार्थिनी और विष्णुवंदना ने कुचिपुड़ी डांस में अपनी असाधारण प्रतिभा से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर रही हैं. बचपन से ही शास्त्रीय नृत्य में ट्रेनिंग लेने वाली दोनों बहनों ने अब तक भारत और विदेशों में 300 से अधिक मंचों पर शानदार परफोर्मेंस दी हैं.

इस दौरान उन्होंने अपने एक्स्परेसिव मूव और त्रुटिहीन तकनीक से दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया है. उनके समर्पण ने उन्हें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार दिलाए हैं, जिसमें गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में मान्यता भी शामिल है.

बचपन से डांस का शौक
मुशीराबाद निर्वाचन क्षेत्र के आदिकामेट के एक दंपति बाबूराव और धनलक्ष्मी ने अपनी बेटियों के डांस के प्रति जुनून को कम उम्र से ही पोषित किया. वे 10-11 साल की उम्र से ही दर्शकों को प्रभावित कर रही हैं और अपने कुशल प्रदर्शन के लिए प्रशंसा प्राप्त कर रही हैं.

अकादमिक रूप से उत्कृष्ट होने के बावजूद दोनों बहनें अपनी कला के प्रति गहराई से प्रतिबद्ध रहीं. उन्होंने अपनी पढ़ाई को कठोर डांस प्रैक्टिस के साथ संतुलित किया और अंततः भारतीय नाट्यमयूरी (2009), नृत्य कला रत्न पुरस्कार (2011) और स्त्री शक्ति पुरस्कार (2023) जैसे कई प्रतिष्ठित पुरस्कार अर्जित किए.

अकादमिक एक्सीलेंस: मास्टर डिग्री से लेकर पीएचडी तक
वामसावर्तिनी और विष्णुवंदना ने अपनी अकादमिक और कलात्मक दोनों ही गतिविधियों में उल्लेखनीय सफलता हासिल की है. अपने शानदार डांस करियर के साथ-साथ, उन्होंने उच्च शिक्षा भी हासिल की है.वामसावर्तिनी के पास इकोनॉमिक और पब्लिक एडिमिनिस्ट्रेशन में एमए की डिग्री है.

साथ ही वह तेलुगु यूनिवर्सिटी से MPA की डिग्री हासिल की है. उन्होंने पीएचडी भी की है. विष्णुवंदना भी उतनी ही निपुण हैं, उनके पास साइक्लॉजी और हिस्ट्री में एमएकी डिग्री है. उन्होंने भी पीएचडी की है. उनकी अकादमिक उपलब्धियां विविध क्षेत्रों में उत्कृष्टता हासिल करने के उनके दृढ़ संकल्प को रेखांकित करती हैं, जो साबित करती हैं कि समर्पण पारंपरिक कला और आधुनिक शिक्षा दोनों में सफलता की ओर ले जा सकता है.

सीमाओं से परे पहचान
दोनों बहनों ने कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्लेटफॉर्म पर परफोर्म किया है, पुरस्कार जीते हैं और रिकॉर्ड बनाए हैं. गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में अपनी जगह बनाने के अलावा, उन्हें सिलिकॉन आंध्र और थाईलैंड कल्चरल ट्रस्ट जैसी संस्थाओं द्वारा मान्यता दी गई है. उनके पास संस्कृति के संरक्षण के लिए ग्रुप डांस का रिकॉर्ड भी है और उन्हें इंटरनेशनल वंडर बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में शामिल किया गया है.

कला और समाज के प्रति प्रतिबद्धता
बहनें अपने समुदाय को कुछ वापस देने में विश्वास रखती हैं. अपने जुनून को आगे बढ़ाते हुए, वे दूसरों को कुचिपुड़ी भी सिखाती हैं. वह वंचित बच्चों को निःशुल्क पढ़ाती हैं. वे तनाव दूर करने और पढ़ाई या काम करते समय संतुलन पाने के तरीके के रूप में पारंपरिक कला रूपों में महारत हासिल करने के महत्व पर जोर देती हैं.

भविष्य के लिए साझा जुनून
उनके माता-पिता बाबूराव और धनलक्ष्मी अपनी बेटियों के कुचिपुड़ी के प्रति साझा प्रेम पर बहुत गर्व करते हैं. बदले में, बहनें अपने शिल्प को और अधिक ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए दृढ़ हैं. वे कुचिपुड़ी की समृद्ध परंपरा को संरक्षित करते हुए अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर और अधिक रिकॉर्ड बनाने और नया करने की योजना बना रही हैं.

अपनी ट्रेनिंग से लेकर अपने अवार्ड विनिंग परफोर्मेंस और अकादमिक सफलताओं तक, वामसवर्थिनी और विष्णुवंदना अगली पीढ़ी को भारत की सांस्कृतिक विरासत को अपनाने और उत्कृष्टता के लिए प्रयास करने के लिए प्रेरित करती रहती हैं.

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