रायपुर : छत्तीसगढ़ में लोकसभा चुनाव की वोटिंग खत्म हो चुकी है.प्रदेश के 11 लोकसभा सीटों के उम्मीदवारों की किस्मत ईवीएम में कैद है. 4 जून को एक-एक करके हर एक उम्मीदवार की किस्मत खुलेगी.लेकिन परिणामों से पहले जिस बात की चर्चा पूरे देश में हो रही है वो है छत्तीसगढ़ में हुए सबसे बड़े नक्सल ऑपरेशन की. बीजेपी अपने चुनाव कैंपेन में छत्तीसगढ़ के नक्सलवाद और उसके खिलाफ अपनाई गई सरकार की रणनीति को जगह दे चुकी है.बीजेपी से जुड़ा हर दिग्गज ये कहते नहीं थक रहा है कि छत्तीसगढ़ में बीजेपी की सरकार बनते ही जिस तरह की कार्रवाई नक्सलियों के खिलाफ अपनाई गई, उसे कमतर नहीं आंका जा सकता.लिहाजा अब ये बात साफ हो चुकी है कि जितने भी राज्यों में चुनाव होने बाकी हैं,वहां छत्तीसगढ़ मॉडल को सामने रखा जा रहा है.जो इस बात का संकेत है कि बीजेपी अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए इस बार गुजरात नहीं बल्कि छत्तीसगढ़ मॉडल को सामने रख रही है.
लाल आतंक को खत्म करने वाला मॉडल : छत्तीसगढ़ में विष्णुदेव साय सरकार बनने से पहले चुनाव के दौरान नक्सली हिंसा में कई नेताओं की हत्या हुई.इसे संयोग ही कहेंगे कि इनमें से ज्यादातर नेता बीजेपी से जुड़े थे. सरकार बनने के बाद भी ये सिलसिला नहीं रुका.इसके बाद सरकार ने नक्सलियों के सामने शांति वार्ता की पेशकश की.बावजूद इसके नक्सलियों का कोई भी वर्ग सरकार के सामने आकर बात करने के लिए राजी ना हुआ.जब पानी सिर से ऊपर हो गया तो सरकार के पास भी जवाबी कार्रवाई करने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा था.
नक्सलियों के खिलाफ सरकार हुई सख्त : छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के खिलाफ सुरक्षाबलों ने चुनाव से पहले ही बड़ा एक्शन लिया. जनवरी 2024 से अभी तक 112 नक्सली ढेर हो चुके हैं. वहीं 375 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है.इसके साथ ही 183 नक्सलियों को पुलिस और फोर्स ने सर्चिंग के दौरान गिरफ्तार किया है.हाल ही में हुए बीजापुर के पीडिया एनकाउंटर में नक्सलियों को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है. इस एनकाउंटर में 12 हार्डकोर नक्सली और उनके साथियों की मौत हुई.इस एनकाउंटर के बाद छत्तीसगढ़ सरकार ने नक्सलियों के खिलाफ अपने इरादे साफ कर दिए हैं.
नक्सलियों के खिलाफ एक्शन का असर : नक्सलियों के खिलाफ हुई इस कार्रवाई का असर अब बीजेपी की चुनावी रैलियों में भी दिखने लगा है. केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह उत्तर प्रदेश, ओड़िशा और झारखंड की बड़ी रैलियों में छत्तीसगढ़ के नक्सल विरोधी अभियान का जिक्र कर चुके हैं.अपने भाषणों में अमित शाह ने कहा कि छत्तीसगढ़ का मॉडल पूरे देश के लिए नक्सल अभियान का एक बड़ा उदाहरण है. जिसमें नक्सलियों के खात्मे के लिए लगातार अभियान चलाया जा रहा है. जिसका परिणाम है कि नक्सलियों से जूझ रहे छत्तीसगढ़ राज्य को अब राहत मिल रही है.अमित शाह ने एक बार फिर दावा किया है कि केंद्र में यदि बीजेपी सत्ता में आई तो 2 साल के अंदर देश से नक्सलियों का नामो निशान मिट जाएगा. .
किसान और धान वाला मॉडल : छत्तीसगढ़ की बड़ी आर्थिक संरचना खेती पर निर्भर है. छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा भी कहा जाता है. ऐसे में किसानों के हितों की बात करना राजनीति में लाजिमी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहली बार जब 8 अप्रैल को बस्तर में हुंकार भरी तो उनकी पहली लाइन ही नक्सली खात्मे के साथ किसानों को आगे लाने की थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में सीएम विष्णु देव साय के काम की जमकर सराहना की.आपको बता दें कि छत्तीसगढ़ सरकार जो सुविधाएं प्रदेश के किसानों को दे रही है,वैसा ही मॉडल पूरे देश में लागू करने की बात अब चल रही है.छत्तीसगढ़ में प्रति क्विंटल धान की कीमत 3100 रुपए किसानों को मिल रहा है.किसानों से 22 क्विंटल प्रति एकड़ धान खरीदी हो रही है.बीजेपी अपने मंच से अब ऐसा ही सिस्टम देश के अन्य राज्यों में लाने की बातें रैलियों में कर रही है.
सीएम विष्णुदेव साय ने भी छत्तीसगढ़ मॉडल की दोहराई बात : ओड़िशा में चुनाव प्रचार के दौरान छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने कहा कि यदि ओड़िशा में बीजेपी सरकार बनती है तो किसानों से 3100 रुपए प्रति क्विंटल के दर से धान की खरीदी की जाएगी. छत्तीसगढ़ ने इस मॉडल को लागू किया है .किसानों से 31 सौ रुपए प्रति क्विंटल और प्रति एकड़ 22 क्विंटल धान की खरीदी की जा रही है. सीएम साय ने कहा कि छत्तीसगढ़ वाले इस मॉडल को ओड़िशा में भी लागू करना है तो बीजेपी को जिताना होगा. वहीं बात जनता की करें तो इस मॉडल को लेकर ओड़िशा में भी लोगों के बीच चर्चा है.वहीं नक्सलियों के खिलाफ चलाए गए अभियान का प्रचार ओड़िशा के साथ झारखंड में भी बीजेपी बखूबी कर रही है.बीजेपी नहीं चाहती कि नक्सलियों के खिलाफ पनपे गुस्से का फायदा किसी और दल के पास जाए.लिहाजा वो छत्तीसगढ़ की कार्रवाई को सामने रखकर जनता के वोट बटोरने में जुटी है.
क्या है राजनीति विशेषज्ञों की राय : छत्तीसगढ़ मॉडल का देश में बीजेपी को फायदा मिलेगा या नहीं इसका जवाब 4 जून को पता चल जाएगा.लेकिन राजनीति के जानकार इसकी सफलता से इनकार नहीं करते जिस तरीके से छत्तीसगढ़ मॉडल को बीजेपी का हर बड़ा नेता राजनीतिक मंच पर सामने रख रहा है,उसकी चर्चा को एक सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता. इस बारे में जानकारी देते हुए राजनीतिक समीक्षक और वरिष्ठ पत्रकार दुर्गेश भटनागर ने कहा कि यह एक ऐसा दर्द है जिसको सहने वाला एक बड़ी उम्मीद लिए बैठा है कि उनके गांव तक सड़क पहुंचेगी, उनका बेटा भी गाड़ी से जाएगा. उम्मीद की इस डोर को उन आंखों ने जोड़ रखा है जिन्हें विकास के लिए 2 जून की रोटी का जुगाड़ करना ही बड़ी बात है.
ग्रामीण जाएं तो जाएं कहां ?: पत्रकार दुर्गेश भटनागर के मुताबिक नक्सल समस्या देश के लिए बड़ा नासूर बन चुका है. जिसमें ग्रामीण और गरीब आबादी सबसे ज्यादा पिस रही है. जो लोग सक्षम हैं वो शहर में हैं. जिन्हें जीवन को चलाना है वो शहर में खुद को मजदूर बनाकर रखे हुए हैं. क्योंकि यह उनकी मजबूरी है कि खेत और जंगल में हिस्सेदारी होने के बाद भी उनकी भागीदारी वहां ना के बराबर है.बंदूक उनके जीवन पर भारी पड़ रही है. पुलिस की ना माने तो उनकी बंदूक है और नक्सलियों की ना सुने तो बंदूक उनकी . ऐसे में वे लोग कहां जाएं.
नक्सलियों के खिलाफ अभियान ने जगाई उम्मीद : '' नक्सलियों के खिलाफ चलाए जा रहा अभियान उम्मीद की डोर की तरह है. जो लोग नक्सली दंश झेल चुके हैं वो इससे अब बाहर आना चाहते हैं.लिहाजा नक्सलियों से किसी तरह से छुटकारा पाना ही ग्रामीणों का लक्ष्य है.इस लक्ष्य को पूरा करने का सपना बीजेपी दिखा रही है. सुरक्षा एजेंसिया और फोर्स नक्सलियों के खिलाफ कड़ा रुख अख्तियार किए हुए हैं.''
'' लेकिन एक हकीकत ये भी है कि नक्सलियों को भी मुख्य धारा से जोड़ने के लिए जिन मूलभूत सुविधाओं की जरूरत है उस पर भी सरकार को ध्यान देना होगा. क्योंकि गोली,बम और बंदूक का शोर शांत होगा,तो फिर विकास की बात शुरु होगी. उसमें यदि कही गई बातों में जरा सी भी कमी देखी गई तो जो लोग हथियार डालकर वापस मुख्य धारा में लौटे हैं,वे वापस भटककर विपरीत दिशा में चले जाएंगे.'' दुर्गेश भटनागर, वरिष्ठ पत्रकार
वरिष्ठ पत्रकार दुर्गेश भटनागर की माने तो नक्सलवाद को खत्म करने का सपना दिखाना ही काफी नहीं है. इसके लिए एक विकासात्मक बुनियादी संरचना की जरूरत है. इस पर सरकारों को ध्यान देना चाहिए. नक्सलियों के खिलाफ जो कार्रवाई चल रही है,इस पर किसी भी तरह की राजनीति के बजाय हर ओर से समर्थन मिलना चाहिए.देश के विकास में जो भी चीज बाधक बन रहे हैं,उनका सफाया ही एकमात्र लक्ष्य है.
नक्सल प्रभावित राज्यों में बड़ा इम्पैक्ट : आपको बता दें कि हर स्तर पर बीजेपी नक्सलियों के खिलाफ चलाए गए अभियान का फायदा भुनाना चाहती है. पांचवें चरण में छत्तीसगढ़ से सटे ओड़िशा में चुनाव है. ओड़िशा के जिन पांच सीटों पर मतदान होने हैं, वे सभी नक्सल प्रभावित हैं. लिहाजा यहां पर बीजेपी छत्तीसगढ़ का फॉर्मूला लागू करके नक्सलियों को निपटाने का दावा कर रही है.नक्सल समस्या से जूझ रहे लोगों को छत्तीसगढ़ वाले फॉर्मूले से निजात दिलाने की कहानी बताने में बीजेपी के नेता नहीं चूक रहे.वहीं बात विपक्षियों की करें तो उनके पास बीजेपी के इस ब्रह्मास्त्र का कोई तोड़ नहीं है.