नई दिल्ली: इन दिनों प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट को लेकर देशभर में बहस छिड़ी हुई है. वहीं देश के अलग-अलग शहरों में मस्जिद के नीचे मंदिर होने को लेकर याचिकाएं दायर हो रही हैं और अलग-अलग अदालतों ने सुनवाई भी शुरू की है. इस मुद्दे पर शिक्षाविद् और दिल्ली के पूर्व उपराज्यपाल रहे नजीब जंग ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर कोर्ट से डायरेक्शन देने की मांग की है. इसपर 'ईटीवी भारत' के ब्यूरो चीफ आशुतोष झा ने नजीब जंग से विस्तार से बातचीत की. पेश हैं इसके मुख्य अंश-
सवाल - प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने जो दिशा-निर्देश दिया है, आप इसे किस रूप में देखते हैं?
जवाब - सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जो एक्ट है वह बरकरार रहेगा. यह जो प्रयास हो रहे थे कि मस्जिदों, मजारों का दोबारा सर्वे कराया जाए, इसको रोक दिया गया. यह बरकरार रहेगा.
सवाल - सुप्रीम कोर्ट ने इस संदर्भ में जो बातें कही हैं, यह सही है क्या?
जवाब - हम ही तो गए थे कोर्ट में, यह बिल्कुल सही मांग है. हम गए तो कोर्ट में बताया कि लोग डिस्टर्ब है. इसे नहीं रोका गया तो हिंदुस्तान में और प्रॉब्लम आ सकती है. हमने यह अनुरोध किया था और कोर्ट में हमारी बात मानी गई. सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल के लिए इसपर रोक लगा दी है.
सवाल - जितनी भी मस्जिद हैं उसके नीचे पहले कभी मंदिर हुआ करती थी, इस तरह की चर्चाएं शुरू हो गई हैं. क्या आपको लगता है यह ठीक है? जिस तरह सारे अतीत को मिटाने को कोशिश हो रही हैं, यह कहां तक जायज हैं?
जवाब - यह जो 1800 मस्जिदों की बातें हो रही है, यह हिंदुस्तान को डिस्टर्ब कर देगा. इसीलिए हमने इसकी अपील की है. अलग-अलग अदालतों के आदेश से हिंदुस्तान को जो नुकसान हो सकता है, इसका अंदाज अदालतों को नहीं था. इस फैसले से मुल्क में आग लगने का अंदेशा था. क्या हम संभल पूरे हिंदुस्तान में चाहते हैं या चाहते थे. इसकी हमें बहुत फिक्र हुई. इस पर रोक नहीं लगी तो हमारा संविधान छिन्न-भिन्न हो जाएगा.
सवाल - इस तरह के मामलों से क्या लगता है कि सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़ेगा, क्या मौलिक अधिकार लोगों से छीन जाएगा?
जवाब - आपके सवालों में ही जवाब है. इससे लोग डिस्टर्ब हो रहे हैं. यह रोक नहीं लगती तो हमारा देश एक तबाही की तरफ बढ़ रहा था. संविधान का आर्टिकल 25 जो अल्पसंख्यकों को कुछ हित देता है, उसकी अनदेखी हो जाएगी. हमारे मौलिक अधिकार खत्म हो जाएंगे. माइनॉरिटी जो आज असुरक्षित महसूस करती है एक कोने में चली जाती. हिंदुस्तान को बचाया है सुप्रीम कोर्ट ने.
सवाल - आप सुप्रीम कोर्ट में गए, कई सारे बुद्धिजीवी भी ऐसा चाहते थे, आपको याचिका दाखिल करने का कैसे ख्याल आया?
जवाब - संभल में जो घटनाएं हुई उसमें 5-6 लोग मारे गए हैं, उसके बाद अजमेर शरीफ की बात आई. फिर बदायूं की भी बात आई. इसके बाद यह बढ़ के 10 से 11 मस्जिद हो गई तो हमारे लिए लाजिम था कि हम सुप्रीम कोर्ट जाएं.
सवाल - हिंदुस्तान में जो अल्पसंख्यक हैं उन्हें विश्वास दिलाने के लिए और आपसी सौहार्द बरकरार रखने के लिए हमें क्या करना चाहिए?
जवाब - आप हैं, हम हैं, पूरा समाज है. सबको कोशिश करनी चाहिए कि हजारों साल से हिंदू, मुस्लिम, बौद्ध, सिख,जैन सब साथ रहे हैं और उनको रहना पड़ेगा. सौहार्द बनाने के लिए सबको कोशिश करनी है. स्कूलों में, कॉलेज में कोशिश करनी होगी. सबसे बड़ी बात हमारे राजनीतिज्ञों को भी कोशिश करनी होगी.
सवाल - केंद्र सरकार की मंशा इसमें स्पष्ट दिखाई नहीं दे रही है?
जवाब - कोर्ट ने जवाब मांगा है, तो जवाब तो देना पड़ेगा. तब जाकर मंशा स्पष्ट होगी. केंद्र सरकार को इस पर जवाब देना होगा और उनको नीयत स्पष्ट करनी होगी. उनकी नीयत क्या है उनको बताना पड़ेगा कि यह जो एक्ट है इसकी क्या अहमियत है.
सवाल- आप एक प्रशासक, शिक्षाविद् और उपराज्यपाल रहे हैं? इसके अलावा लोगों ने आपको नाटक में भी देखा, किस भूमिका में अपने को बेहतर मानते हैं?
जवाब - मैं तो रिटायर हो चुका हूं. मैं एक समाज सेवक हूं. लोग मेरे पास आते हैं. हमलोग कोशिश करते हैं कुछ बुरा हो रहा है तो दखल दें. मैं हिंदुस्तान का नागरिक हूं. जैसे आप रहते हैं वैसे मैं रहता हूं.
सवाल - आपके उपराज्यपाल पद से हटने के बाद भी दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार में टकराव की स्थिति कायम है, क्या कहेंगे?
जवाब - मैं उपराज्यपाल रह चुका हूं, इसलिए स्टेट और सेंट्रल गवर्नमेंट के ऊपर कोई टिप्पणी नहीं करूंगा. लेकिन आपको मैं जानकारी के लिए बता दूं कि संविधान की आर्टिकल 239 ए को देखें.
सवाल - मस्जिदों के अंदर मंदिर तलाशना कितना सही है?
जवाब - यह बिल्कुल यह बंद होना चाहिए. इसीलिए हम सुप्रीम कोर्ट गए और उस पर स्टे मिला है. केंद्र सरकार की तरफ से जो जवाब आएगा उस पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करेगी.
सवाल - आम लोगों में आपसी सौहार्द कायम रहे इसके लिए क्या करना चाहिए?
जवाब - शरारती तत्व समाज में हमेशा से रहे हैं. उसको कंट्रोल करना बुद्धिजीवियों, पॉलिटिशियंस और ब्यूरोक्रेट्स का काम है. एडमिनिस्ट्रेशन को इस चीज को सीरियसली लेना चाहिए. मैं बार-बार आपसे कह रहा हूं कि आपसी सौहार्द को कभी खत्म नहीं होने देना चाहिए और इसे बचाना हम सब की जिम्मेदारी है.
सवाल - आपसे कोर्ट कोई सुझाव मांगती है तो वह क्या होगा?
उत्तर - जो मौजूदा प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट है, बस उसका पालन होना चाहिए. कोर्ट को आगे जाकर उसको डायरेक्शन देकर उसको मेंटेन करना चाहिए.
क्यों चर्चा में नजीब जंग: गौरतलब है कि कुछ पूर्व नौकरशाहों ने प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली थी. इसमें कहा गया था कि यह संसद द्वारा पारित साधारण कानून नहीं है, बल्कि संविधान के मूलभूत उद्देश्य सेक्युलरिज्म और भाईचारे को सुरक्षित रखने वाला कानून है. याचिका दायर करने वालों में दिल्ली के पूर्व एलजी नजीब जंग भी शामिल थे.
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