सागर। एक तरफ भाजपा पीएम मोदी के भरोसे अबकी बार चार सौ पार के नारे के साथ लोकसभा चुनाव में भारी जीत का बिगुल बजा रही है. दूसरी तरफ जमीनी हकीकत कुछ और बयां कर रही है. दरअसल, भाजपा में भी गुटबाजी का वही रोग उभर आया है. जो कभी कांग्रेस की परेशानी हुआ करती थी. आलम ये है कि असल भाजपाई अपने आप को ठगा महसूस कर रहे हैं और दूसरे दलों से भाजपा में शामिल हुए लोग इन खांटी कार्यकर्ताओं के नेता बन गए हैं. बुंदेलखंड की सबसे प्रमुख सीट भाजपा की बात करें, तो यहां पर भाजपा में उभरी गुटबाजी सतह पर आ गयी है. आलम ये है कि शिवराज सिंह के करीबी पूर्व मंत्री भूपेन्द्र सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया के करीबी खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री गोविंद सिंह राजपूत आमने-सामने आ गए हैं.
साथ ही बुंदेलखंड के दूसरे दिग्गज नेता इस आग में घी डालने का काम कर रहे हैं. दरअसल इस लडाई की तह में जाएं, तो जिस तरह से भाजपा ने कांग्रेस के नेताओं को रेड कारपेट बिछा कर रखा है. उस रेड कारपेट की वजह से भाजपा का असल और जमीनी कार्यकर्ता अपने आप को ठगा महसूस कर रहा है और ऐसा ही कुछ पूर्व मंत्री भूपेन्द्र सिंह के साथ हुआ है. जिसका नजारा उनके द्वारा दिए गए संकेतों और वायरल वीडियो में मिलता है.
बुंदेलखंड भाजपा में सब कुछ ठीक नहीं
वैसे तो बुंदेलखंड में लोकसभा की महज चार सीटें है, लेकिन खास बात ये है कि ये चारों सीटें एक तरह से बीजेपी के प्रभाव वाली सीटें है. इनमें सबसे महत्वपूर्ण सीट संभागीय मुख्यालय सागर की है. इस सीट पर पार्टी के कुछ फैसलों के चलते नेताओं में आपस में तलवार खिच गयी है. दरअसल, भूपेन्द्र सिंह खुरई से विधायक हैं और पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के सबसे करीबी नेताओं में से एक हैं. पिछले दिनों भोपाल में मुख्यमंत्री मोहन यादव के समक्ष दो कांग्रेस के पूर्व विधायकों ने भाजपा का दामन थामा था. जिनमें से एक भूपेन्द्र सिंह के विधानसभा क्षेत्र खुरई से कांग्रेस के विधायक रह चुके अरुणोदय चौबे हैं, जिनका भूपेन्द्र सिंह में छत्तीस का आंकडा है. कांग्रेस नेताओं को भाजपा में शामिल करने की होड़ में भूपेन्द्र सिंह को बताए बिना अरुणोदय चौबे को भाजपा में शामिल कर लिया गया. इसमें महत्वपूर्ण भूमिका खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री गोविंद सिंह राजपूत ने निभाई. इस बात को लेकर भूपेन्द्र सिंह जमकर नाराज हैं.
संकेतों और वायरल वीडियो से जाहिर कर रहे नाराजगी
पूर्व मंत्री भूपेंद्र सिंह ऐन चुनाव के वक्त अपनी नाराजगी का भी खुलेआम इजहार कर रहे हैं. सबसे पहले उन्होंने सागर में राजकीय विश्वविद्यालय के उद्घाटन समारोह में आए मुख्यमंत्री के कार्यक्रम में मौजूद ना रहकर नाराजगी जतायी. हालांकि उन्होंने पहले ही वायरल बुखार का बहाना देते हुए कार्यक्रम में मौजूद ना रहने की बात कही थी, लेकिन राजनीति में संकेतों के कई मायने होते हैं. इसके बाद भूपेन्द्र सिंह ने खुरई में कार्यकर्ता सम्मेलन आयोजित किया, लेकिन मुख्यमंत्री के हाथों भाजपा में शामिल होने वाले अरुणोदय चौबे को ही नहीं बुलाया. उलटे उनके कार्यक्रम के दो वीडियो वायरल हुए. जिनमें एक वीडियो में वो पिक्चर अभी बाकी है, कहते हुए लोकसभा के बाद हिसाब किताब करने की बात कह रहे हैं, तो दूसरे वीडियो में वो कार्यकर्ताओं को अमित शाह के बहाने समझा रहे हैं कि जो भाजपा में भीड़ आ रही है, इसको 15 दिन में कुछ हासिल होने वाला नहीं, क्योंकि पार्टी में 15 साल से ज्यादा काम करने वालों को कुछ नहीं मिला है.
क्या नुकसान पहुंचा सकते हैं भूपेन्द्र सिंह
लोकसभा चुनाव में भूपेंद्र सिंह हल्के में लेना भाजपा के लिए परेशानी का सबब बन सकता है, क्योंकि भूपेन्द्र सिंह 2008 के परिसीमन के बाद अस्तित्व में आयी मौजूदा सागर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ चुके हैं. उन्होंने 2009 में सागर लोकसभा सीट से जीत हासिल की थी. इस तरह से भूपेन्द्र सिंह खुद सागर लोकसभा की रग-रग से वाकिफ हैं. इसके अलावा सागर संसदीय सीट में 3 सीटें विदिशा जिले की सिंरोज, शमशाबाद और कुरवाई शामिल है. वहीं सागर बीना, खुरई, सुरखी, सागर और नरयावली है.
फिलहाल भूपेन्द्र सिंह खुरई से विधायक हैं और सुरखी विधानसभा से भी विधायक रह चुके हैं. जहां से फिलहाल मंत्री गोविंद सिंह राजपूत विधायक हैं. इसके अलावा भूपेन्द्र सिंह सागर शहर की राजनीति में खासा दखल रखते हैं. ऐसे में अगर भूपेन्द्र सिंह कुछ दांव पेंच चलते हैं, तो भाजपा को नुकसान हो सकता है.
पिछले 33 साल से सागर सीट नहीं हारी भाजपा
सागर संसदीय सीट की बात करें, तो 1996 से लेकर अब तक सागर से भाजपा को हर बार जीत हासिल हुई है. 1991 में कांग्रेस से आखिरी बार आनंद अहिरवार सांसद चुने गए थे. इसके बाद 1996 से लेकर लगातार 2004 तक भाजपा के वीरेन्द्र कुमार सांसद बने. उसके बाद 2008 के परिसीमन के बाद 2009 में भूपेन्द्र सिंह, 2014 में लक्ष्मीनारायण यादव और 2019 में राजबहादुर सिंह चुनाव जीते हैं. मौजूदा स्थिति में भाजपा को सागर से अपनी जीत सुनिश्चित नजर आ रही है. लेकिन पार्टी के अंदरखाने की गुटबाजी परेशानी का सबब बन सकती है.
मुख्यमंत्री मोहन यादव कर रहे खुद को मजबूत
मुख्यमंत्री बनने के बाद मोहन यादव सागर के तीन दौरे कर चुके हैं. इन दौरों में सबसे पहली बार उन्होंने सागर की बहुप्रतीक्षित स्टेट यूनिवर्सटी की मांग को पूरा किया. दोबारा आए तो सीधे स्टेट यूनिवर्सटी का उद्घाटन किया और तीसरी बार आए तो भाई दूज कार्यक्रम में मंत्री गोविंद सिंह राजपूत के विधानसभा में आयोजित कार्यक्रम में पहुंचे. हालांकि इस कार्यक्रम में भूपेन्द्र सिंह भी पहुंचे थे, लेकिन अंदर की बात ये है कि पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के सबसे करीबी कहे जाने वाले भूपेन्द्र सिंह को कमजोर करने मोहन यादव भूपेन्द्र सिंह विरोधियों को ज्यादा महत्व दे रहे हैं.
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बुंदेलखंड के कई दिग्गज है नाराज
सागर संसदीय सीट तो छोड़िए, इसके अलावा दूसरी सीटों पर भाजपा के दिग्गज नेता नाराज बताए जा रहे हैं. गोपाल भार्गव लगातार 9वां चुनाव जीते. उन्हें मुख्यमंत्री बनने की आस थी, लेकिन मंत्री पद हासिल नहीं हुआ. इसके बाद बेटे अभिषेक भार्गव के लिए सागर, दमोह या खजुराहो किसी भी सीट से लोकसभा चुनाव का टिकट मिल जाए, इसके लिए प्रयासरत रहे, लेकिन वो भी हासिल नहीं हुआ. उमा भारती की बात करें, तो भाजपा की राजनीति में जिस तरह से उन्हें हाशिए पर धकेल दिया गया है. वो भी नाराज हैं, लेकिन समय का इंतजार कर रही हैं. अगर गोपाल भार्गव और उमा भारती की नाराजगी चुनाव में नुकसान पहुंचाने की स्थिति में है, तो दमोह के अलावा खजुराहो और टीकमगढ़ में भी ये नेता दिक्कतें बढ़ा सकते हैं.