रांची: झारखंड में विधानसभा चुनाव को लेकर बीजेपी मिशन मोड में है. हर हाल में झारखंड में सत्ता में वापसी का टास्क केंद्रीय नेतृत्व के द्वारा प्रदेश भाजपा को दिया गया है. इसकी झलक रविवार को भाजपा प्रदेश कार्यालय में हुई मैराथन बैठक में भी दिखी थी. चुनाव प्रभारी बनने के बाद पहली बार झारखंड दौरे पर आए केंद्रीय मंत्री और मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और सह प्रभारी हिमंता बिश्वा सरमा ने जिस तरह से बैठक की है उससे साफ लग रहा है कि बीजेपी आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर कितनी चिंतित है.
पुरानी गलती से सीख लेकर मिशन मोड में बीजेपी
2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास के नेतृत्व में चुनाव लड़ा था और मुख्यमंत्री का चेहरा भी प्रोजेक्ट किया था. लेकिन जनता ने इसे ठुकरा दिया. हालत यह बनी कि खुद मुख्यमंत्री अपने विधानसभा क्षेत्र से हार गए. पिछले चुनाव में बीजेपी 65 पार का नारा के साथ चुनाव मैदान में उतरी थी, लेकिन फेल हो गई और महज 25 सीटों पर सिमट गई थी.
लोकसभा चुनाव 2024 में बीजेपी को लगा है झटका
वहीं, हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में पार्टी ने देशभर में 400 पार के साथ झारखंड की सभी 14 सीट जीतने का लक्ष्य रखा था. इसमें भी बीजेपी को झारखंड सहित देश के अन्य राज्यों में झटका लगा है. हालांकि बीजेपी नेताओं का मानना है कि लोकसभा चुनाव के दौरान झारखंड के करीब 50 विधानसभा क्षेत्र में आगे रहना शुभ संकेत है और इसी बल पर सत्ता परिवर्तन की उम्मीद की जा सकती है.
बीजेपी इस बार नहीं करेगी सीएम के नाम का ऐलान!
इन सब चुनावी अनुभवों के आधार पर बीजेपी ने फिलहाल सीएम का चेहरा की घोषणा नहीं करने का फैसला किया है, ताकि पार्टी के अंदर अंदरूनी कलह को हवा देने से रोका जाए. हालांकि इस संबंध में बीजेपी प्रदेश प्रवक्ता अनिमेष कुमार सिंह कहते हैं कि जब बाबूलाल के नेतृत्व में जब चुनाव लड़ने की घोषणा हुई है तो निश्चित रूप से मुख्यमंत्री का चेहरा भी बाबूलाल को रखने का पार्टी जरूर सोचेगी. इसके अलावे इस बार सीटों के लक्ष्य को सार्वजनिक भी नहीं करने का निर्णय लिया गया है.
ओबीसी पर बीजेपी की नजर, सवर्ण न हो नाराज इस पर भी फोकस
लोकसभा चुनाव में ट्राइबल सीटों पर हार का सामना करने के बाद भाजपा ने अपनी स्ट्रेटजी में बदलाव करना शुरू कर दिया है.आगामी विधानसभा चुनाव में बीजेपी की नजर ओबीसी वोटबैंक को साधने पर है. इसके अलावे सवर्ण वोट जो बीजेपी की पारंपरिक रही है, वो नाराज न हो इस पर ध्यान दिया जा रहा है. यही वजह है कि ओबीसी का बड़ा चेहरा मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान और असम के मुख्यमंत्री जो सवर्ण हैं हिमंता बिश्वा सरमा को झारखंड की जिम्मेदारी दी गई है.
शिवराज और हिमंता के लिए झारखंड जीतना बड़ी चुनौती
इस साल के अंत में झारखंड में होनेवाले विधानसभा चुनाव को जीतना शिवराज सिंह चौहान और हिमंता बिश्व सरमा के लिए कठिन चुनौती है. वर्तमान राजनीतिक हालात और लोकसभा चुनाव परिणाम स्पष्ट संकेत दे रहा है कि बीजेपी का न केवल ट्राइबल वोट बैंक में कमी आई है, बल्कि सामान्य सीटों पर भी जनाधार में कमी आई है. 2019 की तुलना में 2024 की परिस्थिति और भी खराब है. इसके पीछे कई वजह है. संगठन के अंदर अंदरूनी कलह जो टॉप-टू-बॉटम तक देखी जा रही है. इसे दूर करना दोनों नेताओं के लिए बड़ी चुनौती है.
भ्रष्टाचार के अलावे बीजेपी कोई ऐसा मुद्दा वर्तमान में नहीं बना पा रही है जिसे जनता तक पहुंचा जा सके. इन सबके बीच इंडिया गठबंधन की ओर से चंपाई सरकार द्वारा लगातार लोकलुभावन घोषणा की जा रही है. जिसका काट बीजेपी के लिए कड़ी चुनौती है.
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