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बिहार NDA में बड़ा भाई BJP, आखिर कैसे माने नीतीश? जानें इनसाइड स्टोरी की बड़ी कहानी - Lok Sabha Elections

Lok Sabha Elections : बिहार में बीजेपी के मुकाबले जेडीयू छोटे भाई की भूमिका में दिखने लगी है. सीटों के बंटवारे से यह संकेत साफ दिखने लगा है. बीजेपी ने 17 लोकसभा सीटों पर अपने उम्मीदवारों को उतारने की तैयारी शुरू कर दी है तो वहीं जेडीयू की ओर से 16 सीटों पर सहमति बनी है. ऐसा पहली बार है कि बिहार में जेडीयू ने बीजेपी से कम सीट पर समझौता किया है. इसके पीछे आखिर वजह क्या है? जानने के लिए पढ़ें पूरी खबर

Lok Sabha Elections
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Mar 19, 2024, 8:21 PM IST

छोटे भाई की भूमिका में जेडीयू?

पटना : बिहार एनडीए में जदयू और बीजेपी बड़े भागीदार रहे हैं. 2000 के बाद जितने भी चुनाव हुए या तो जदयू को अधिक सीट मिली है या फिर भाजपा के बराबर सीटों का बंटवारा हुआ. चुनाव चाहे विधानसभा का हो, चाहे लोकसभा का, सभी में बीजेपी और जदयू के बीच इसी तरह का फार्मूला बनता रहा है. लेकिन लोकसभा चुनाव में इस बार जदयू छोटे भाई की भूमिका में साफ दिख रही है. जबकि भाजपा पहली बार बड़े भाई की भूमिका में है.

छोटे भाई की भूमिका में जेडीयू : राजनीतिक विशेषज्ञ कह रहे हैं कि सीट शेयरिंग फार्मूला के माध्यम से बीजेपी ने मैसेज दे दिया है. बिहार में भाजपा जदयू मजबूत साझीदार रहे हैं. एनडीए में जब भी दोनों साथ रहे हैं NDA का स्ट्राइक रेट काफी अधिक रहा है. लोकसभा का चुनाव हो या विधानसभा का चुनाव, दोनों में शानदार प्रदर्शन होता रहा है. पिछले 20 सालों के लोकसभा चुनाव को देखें तो यह स्थिति उसी से स्पष्ट हो जाएगी. जदयू और बीजेपी एक दूसरे की मजबूरी है, लेकिन गठबंधन में रहते हुए भी जदयू बड़े भाई की भूमिका में न केवल सीट शेयरिंग में बल्कि रिजल्ट में भी दिखता रहा है.

सीट शेयरिंग से मैसेज : यही नहीं सीट शेयरिंग में बीजेपी के बराबर ही जदयू सीट लेती रही है. हालांकि अब स्थितियां बदल रही हैं. पहली बार लोकसभा चुनाव में जदयू में बड़े भाई की भूमिका छोड़ दी है और उस भूमिका में बीजेपी दिखने लगी है. राजनीतिक विशेषज्ञ प्रोफेसर अजय झा भी कह रहे हैं कि भाजपा ने लोकसभा चुनाव में सीट शेयरिंग कर साफ मैसेज दिया है. एक सीट से ही सही लेकिन बीजेपी बड़े भाई की भूमिका में आ गई है.

''जदयू को अपने साथ रखना बीजेपी के लिए ही मजबूरी है क्योंकि बीजेपी जदयू को साथ लेकर बिहार में वोटों का बैकवर्ड-फॉरवर्ड होने से बचा लिया है. जदयू को भी बीजेपी का साथ मिलने से सीटों में लाभ मिलेगा क्योंकि नरेंद्र मोदी के नाम पर जदयू को भी वोट मिलेगा.'' - प्रोफेसर अजय झा, राजनीतिक विशेषज्ञ

ईटीवी भारत GFX.
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क्या कहता है विपक्ष? : राजनीतिक विशेषज्ञ अरुण पांडे का भी कहना है कि बीजेपी और जदयू एक दूसरे के पूरक हैं और जरूरत भी हैं. नीतीश कुमार को अपने साथ लाकर बीजेपी ने इंडिया गठबंधन को भी बड़ा झटका दिया है. इधर इस स्थिति पर आरजेडी हमलावर है. जदयू को कम सीट दिए जाने पर राजद ने तंज कसा है. आरजेडी ने कहा है कि ''भाजपा जल्द ही जदयू को समाप्त कर देगी. तेजस्वी यादव ने कहा भी है कि 2024 में जदयू समाप्त हो जाएगी. बीजेपी जो सीट दी है वह भी बीजेपी लेकर चली जाएगी.''

जेडीयू ने साधा आरजेडी पर निशाना : जदयू को कम सीट मिला है इस पर जदयू के प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा कहते हैं कि इसकी चिंता आरजेडी के लोग क्यों कर रहे हैं? सभी 40 सीट एनडीए की है और हम लोग सभी सीट जीतेंगे. यानी आरजेडी और जेडीयू में जुबानी जंग भी जारी है. अंदरखाने से जो खबर है उसके मुताबिक इस एक सीट को बीजेपी अब जेडीयू को दूसरे ढंग से लाभान्वित कर सकती है. एक सीट का जो घाटा हो रहा है उसकी पूर्ति किसी दूसरे राज्य में सीट देकर भी बीजेपी फायदा पहुंचा सकती है.

ईटीवी भारत GFX.
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क्या कहते हैं चुनावी आंकड़े : बहरहाल, बिहार विधानसभा चुनाव में भी जदयू और बीजेपी जब भी गठबंधन में चुनाव लड़ी है जदयू हमेशा बड़े भाई की भूमिका में रही है. वर्ष 2005 और 2010 में जदयू अधिक सीट पर लड़ी और ज्यादा सीटों पर जीत भी हुई. 2020 में जदयू और बीजेपी बराबर बराबर सीटों पर विधानसभा चुनाव लड़ी लेकिन पहली बार ऐसा हुआ कि बीजेपी अधिक सीट जीती. उससे पहले 2019 में लोकसभा चुनाव में भी भाजपा जदयू बराबर सीटों पर लड़ी थी, लेकिन बीजेपी को अधिक सीट पर जीत मिली, लेकिन पहली बार है कि किसी चुनाव में बीजेपी अधिक सीटों पर चुनाव लड़ने जा रही है.

UPA पर भारी रहा है NDA : झारखंड के अलग होने के बाद जितने भी लोकसभा का चुनाव हुआ उसमें एनडीए का पलड़ा 2004 को छोड़कर भारी रहा है. 2004 में पहला लोकसभा चुनाव बिहार में 40 सीटों पर हुआ था, जिसमें यूपीए NDA पर भारी था. 72.5 फ़ीसदी सफलता मिली थी. 2004 में यूपी में कांग्रेस, राजद, लोजपा और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और सीपीएम शामिल थे. 40 में से 26 सीटों पर राजद खुद चुनाव लड़ा था और यूपीए को तब 40 में से 29 सीट मिली थी. NDA में भाजपा और जदयू शामिल थे इस चुनाव में NDA को केवल 11 सीट मिली थी. हालांकि तब भी जदयू 24 और भाजपा 16 सीटों पर लड़ी थीं.

ईटीवी भारत GFX.
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बिना जेडीयू के बीजेपी का आंकड़ा : उसके बाद 2009, 2014 और 2019 में एनडीए का प्रदर्शन यूपीए पर भारी रहा. 2009 में एनडीए की सफलता प्रतिशत 80 फ़ीसदी था. 2014 में 77.5 फ़ीसदी और 2019 में 97.5 फीसदी रहा. केवल 2014 में जदयू एनडीए में शामिल नहीं था और इसीलिए सफलता का प्रतिशत थोड़ा सा गिरा. 2009 में जब भाजपा और जदयू शामिल थे तो एनडीए को 32 सीट मिली थी. जदयू को 20 सीट और भाजपा को 12 सीट पर जीत मिली थी.

जेडीयू और बीजेपी एकदूसरे की मजबूरी : 2014 में जब एनडीए में जदयू शामिल नहीं थी तो फिर सीट की संख्या घटकर 31 हो गई. यूपीए को 6 सीट और जदयू को दो सीट मिला था. बीजेपी को जरूर 22 सीटों पर सफलता मिली थी, लेकिन 2019 में जब जदयू फिर से एक बार NDA में शामिल था तो इस बार 40 में से 39 सीट पर रिकॉर्ड जीत मिली और सफलता का रिकॉर्ड 97.5 फ़ीसदी रहा. इस तरह से देखें तो बीजेपी जब अलग चुनाव लड़े तो एनडीए को हमेशा नुकसान हुआ है. यही कारण है कि दोनों एक साथ इसीलिए गठबंधन में रहने के लिए मजबूर होते रहे हैं.

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छोटे भाई की भूमिका में जेडीयू?

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छोटे भाई की भूमिका में जेडीयू : राजनीतिक विशेषज्ञ कह रहे हैं कि सीट शेयरिंग फार्मूला के माध्यम से बीजेपी ने मैसेज दे दिया है. बिहार में भाजपा जदयू मजबूत साझीदार रहे हैं. एनडीए में जब भी दोनों साथ रहे हैं NDA का स्ट्राइक रेट काफी अधिक रहा है. लोकसभा का चुनाव हो या विधानसभा का चुनाव, दोनों में शानदार प्रदर्शन होता रहा है. पिछले 20 सालों के लोकसभा चुनाव को देखें तो यह स्थिति उसी से स्पष्ट हो जाएगी. जदयू और बीजेपी एक दूसरे की मजबूरी है, लेकिन गठबंधन में रहते हुए भी जदयू बड़े भाई की भूमिका में न केवल सीट शेयरिंग में बल्कि रिजल्ट में भी दिखता रहा है.

सीट शेयरिंग से मैसेज : यही नहीं सीट शेयरिंग में बीजेपी के बराबर ही जदयू सीट लेती रही है. हालांकि अब स्थितियां बदल रही हैं. पहली बार लोकसभा चुनाव में जदयू में बड़े भाई की भूमिका छोड़ दी है और उस भूमिका में बीजेपी दिखने लगी है. राजनीतिक विशेषज्ञ प्रोफेसर अजय झा भी कह रहे हैं कि भाजपा ने लोकसभा चुनाव में सीट शेयरिंग कर साफ मैसेज दिया है. एक सीट से ही सही लेकिन बीजेपी बड़े भाई की भूमिका में आ गई है.

''जदयू को अपने साथ रखना बीजेपी के लिए ही मजबूरी है क्योंकि बीजेपी जदयू को साथ लेकर बिहार में वोटों का बैकवर्ड-फॉरवर्ड होने से बचा लिया है. जदयू को भी बीजेपी का साथ मिलने से सीटों में लाभ मिलेगा क्योंकि नरेंद्र मोदी के नाम पर जदयू को भी वोट मिलेगा.'' - प्रोफेसर अजय झा, राजनीतिक विशेषज्ञ

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क्या कहता है विपक्ष? : राजनीतिक विशेषज्ञ अरुण पांडे का भी कहना है कि बीजेपी और जदयू एक दूसरे के पूरक हैं और जरूरत भी हैं. नीतीश कुमार को अपने साथ लाकर बीजेपी ने इंडिया गठबंधन को भी बड़ा झटका दिया है. इधर इस स्थिति पर आरजेडी हमलावर है. जदयू को कम सीट दिए जाने पर राजद ने तंज कसा है. आरजेडी ने कहा है कि ''भाजपा जल्द ही जदयू को समाप्त कर देगी. तेजस्वी यादव ने कहा भी है कि 2024 में जदयू समाप्त हो जाएगी. बीजेपी जो सीट दी है वह भी बीजेपी लेकर चली जाएगी.''

जेडीयू ने साधा आरजेडी पर निशाना : जदयू को कम सीट मिला है इस पर जदयू के प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा कहते हैं कि इसकी चिंता आरजेडी के लोग क्यों कर रहे हैं? सभी 40 सीट एनडीए की है और हम लोग सभी सीट जीतेंगे. यानी आरजेडी और जेडीयू में जुबानी जंग भी जारी है. अंदरखाने से जो खबर है उसके मुताबिक इस एक सीट को बीजेपी अब जेडीयू को दूसरे ढंग से लाभान्वित कर सकती है. एक सीट का जो घाटा हो रहा है उसकी पूर्ति किसी दूसरे राज्य में सीट देकर भी बीजेपी फायदा पहुंचा सकती है.

ईटीवी भारत GFX.
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क्या कहते हैं चुनावी आंकड़े : बहरहाल, बिहार विधानसभा चुनाव में भी जदयू और बीजेपी जब भी गठबंधन में चुनाव लड़ी है जदयू हमेशा बड़े भाई की भूमिका में रही है. वर्ष 2005 और 2010 में जदयू अधिक सीट पर लड़ी और ज्यादा सीटों पर जीत भी हुई. 2020 में जदयू और बीजेपी बराबर बराबर सीटों पर विधानसभा चुनाव लड़ी लेकिन पहली बार ऐसा हुआ कि बीजेपी अधिक सीट जीती. उससे पहले 2019 में लोकसभा चुनाव में भी भाजपा जदयू बराबर सीटों पर लड़ी थी, लेकिन बीजेपी को अधिक सीट पर जीत मिली, लेकिन पहली बार है कि किसी चुनाव में बीजेपी अधिक सीटों पर चुनाव लड़ने जा रही है.

UPA पर भारी रहा है NDA : झारखंड के अलग होने के बाद जितने भी लोकसभा का चुनाव हुआ उसमें एनडीए का पलड़ा 2004 को छोड़कर भारी रहा है. 2004 में पहला लोकसभा चुनाव बिहार में 40 सीटों पर हुआ था, जिसमें यूपीए NDA पर भारी था. 72.5 फ़ीसदी सफलता मिली थी. 2004 में यूपी में कांग्रेस, राजद, लोजपा और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और सीपीएम शामिल थे. 40 में से 26 सीटों पर राजद खुद चुनाव लड़ा था और यूपीए को तब 40 में से 29 सीट मिली थी. NDA में भाजपा और जदयू शामिल थे इस चुनाव में NDA को केवल 11 सीट मिली थी. हालांकि तब भी जदयू 24 और भाजपा 16 सीटों पर लड़ी थीं.

ईटीवी भारत GFX.
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बिना जेडीयू के बीजेपी का आंकड़ा : उसके बाद 2009, 2014 और 2019 में एनडीए का प्रदर्शन यूपीए पर भारी रहा. 2009 में एनडीए की सफलता प्रतिशत 80 फ़ीसदी था. 2014 में 77.5 फ़ीसदी और 2019 में 97.5 फीसदी रहा. केवल 2014 में जदयू एनडीए में शामिल नहीं था और इसीलिए सफलता का प्रतिशत थोड़ा सा गिरा. 2009 में जब भाजपा और जदयू शामिल थे तो एनडीए को 32 सीट मिली थी. जदयू को 20 सीट और भाजपा को 12 सीट पर जीत मिली थी.

जेडीयू और बीजेपी एकदूसरे की मजबूरी : 2014 में जब एनडीए में जदयू शामिल नहीं थी तो फिर सीट की संख्या घटकर 31 हो गई. यूपीए को 6 सीट और जदयू को दो सीट मिला था. बीजेपी को जरूर 22 सीटों पर सफलता मिली थी, लेकिन 2019 में जब जदयू फिर से एक बार NDA में शामिल था तो इस बार 40 में से 39 सीट पर रिकॉर्ड जीत मिली और सफलता का रिकॉर्ड 97.5 फ़ीसदी रहा. इस तरह से देखें तो बीजेपी जब अलग चुनाव लड़े तो एनडीए को हमेशा नुकसान हुआ है. यही कारण है कि दोनों एक साथ इसीलिए गठबंधन में रहने के लिए मजबूर होते रहे हैं.

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