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यूपी मदरसा एक्ट 2004 असंवैधानिक; चेयरमैन ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर जताया अफसोस - MADRASA BOARD ACT STRUCK DOWN - MADRASA BOARD ACT STRUCK DOWN

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन एक्ट 2004 को असंवैधानिक करार दिया है. कोर्ट ने कहा यह एक्ट धर्म निरपेक्षता के सिद्धांत के खिलाफ है.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Mar 22, 2024, 1:06 PM IST

Updated : Mar 22, 2024, 7:30 PM IST

यूपी मदरसा बोर्ड के चेयरमैन इफ्तिखार जावेद ने दी प्रतिक्रिया.

लखनऊः हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 को असंवैधानिक घोषित कर दिया है. न्यायालय ने उक्त अधिनियम को संविधान के पंथ निरपेक्षता के मूल सिद्धांतों, संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता, अनुच्छेद 21 के तहत जीवन व अनुच्छेद 21-ए के तहत शिक्षा के मौलिक अधिकारों के विपरीत करार दिया है. साथ ही न्यायालय ने इस कानून को यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन एक्ट की धारा 22 के भी विरुद्ध पाया है. न्यायालय ने राज्य सरकार को यह आदेश भी दिया है कि मदरसा अधिनियम के समाप्त होने के बाद प्रदेश में बड़ी संख्या में मौजूद मदरसों में पढ़ने वाले छात्र प्रभावित होंगे लिहाजा उन्हें प्राइमरी, हाई स्कूल और इंटरमीडिएट बोर्ड्स से सम्बद्ध नियमित स्कूलों में समायोजित किया जाए. न्यायालय ने कहा कि सरकार पर्याप्त संख्या में सीटें बढ़ाए और यदि आवश्यकता हो तो नए विद्यालयों की स्थापना करे. सरकार यह अवश्य सुनिश्चित करे कि 6 से 14 साल का कोई बच्चा मान्यता प्राप्त विद्यालयों में दाखिले से न छूट जाए.


यह निर्णय न्यायमूर्ति विवेक चौधरी और न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की खंडपीठ ने अधिवक्ता अंशुमान सिंह राठौर की याचिका पर पारित किया. याचिका के साथ न्यायालय ने एकल पीठों द्वारा भेजी गई, उन याचिकाओं पर भी सुनवाई की जिनमें मदरसा बोर्ड अधिनियम की संवैधानिकता का प्रश्न उठाते हुए बड़ी बेंच को मामले भेजे गए थे. याचिकाओं पर न्यायालय ने 8 फरवरी 2024 को ही सुनवाई पूरी कर अपना निर्णय सुरक्षित कर लिया था. सुनवाई के दौरान प्रमुख याचिका के विरुद्ध कुछ मदरसों, मदरसों के शिक्षक संगठन व कर्मचारी संगठन ने भी हस्तक्षेप प्रार्थना पत्र दाखिल किया था. सुनवाई के दौरान अपर महाधिवक्ता अनिल अनिल प्रताप सिंह व न्याय मित्र गौरव मेहरोत्रा इत्यादि ने पक्ष रखा.


न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि स्वतंत्रता के बाद निजी मदरसों का संचालन प्रदेश में होता रहा. ये मदरसे राज्य सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं थे. वर्ष 1969 में पहली बार अरबी व फारसी मदरसा मान्यता विनियम लाया गया. इसके तहत मदरसों के पंजीकरण की व्यवस्था शुरू हुई. वर्ष 1987 में यूपी अशासकीय अरबी तथा फारसी मदरसों की मान्यता नियमावली लाई गई. 12 अगस्त 1995 के शासनादेश के द्वारा प्रदेश में अल्पसंख्यक कल्याण विभाग का गठन हुआ, उक्त विभाग के तहत मदरसों के लिए आने वाली योजनाएं व अन्य क्रिया कलाप किए जाने लगे. वर्ष 2004 में यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन एक्ट बनाया गया.

न्यायालय ने प्रावधानों के सम्बंध में कहा कि उक्त अधिनियम की धारा 2 एफ के तहत ‘संस्थान’ को परिभाषित करते हुए कहा गया कि ‘संस्थान’ से आशय राजकीय ओरिएंटल कॉलेज रामपुर, मदरसा व वे ओरिएंटल कॉलेज जो मुस्लिम अल्पसंख्यकों द्वारा स्थापित किए गए हों और मदरसा बोर्ड द्वारा मान्यता प्राप्त हों. धारा 2 एच में मदरसा शिक्षा के तहत अरबी, उर्दू आदि के साथ इस्लामिक शिक्षा भी आती है. बोर्ड की स्थापना से सम्बंधित प्रावधानों में बोर्ड के सदस्यों के बावत प्रावधान किया गया कि बोर्ड का अध्यक्ष मदरसा शिक्षा के क्षेत्र का मुस्लिम शिक्षाविद होगा. सदस्यों में राजकीय ओरिएंटल कॉलेज, रामपुर का प्रिंसिपल, सुन्नी मुस्लिम विधायक, शिया मुस्लिम विधायक, सुन्नी मुस्लिम द्वारा स्थापित संस्थान के दो प्रमुख व दो अध्यापक, शिया मुस्लिम द्वारा स्थापित संस्थान का एक प्रमुख व एक अध्यापक होंगे.

वहीं, यूपी मदरसा बोर्ड के चेयरमैन इफ्तिखार जावेद ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर कहा कि ये आश्चर्यजनक है. हालांकि, हमें अफसोस है कि हम कोर्ट में यह नहीं समझा पाए कि अनुदान केवल धार्मिक शिक्षा के लिए नहीं मिलता है.

मदरसा बोर्ड का गठन : बता दें कि यूपी बोर्ड आफ मदरसा एजुकेशन एक्ट का गठन 6 दिसंबर 2004 को किया गया था. उस समय मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री थे. मदरसा बोर्ड के अधीन तहतानिया, फौकानिया, आलिया स्तर के मानक पूर्ण करने वाले मदरसों को मान्यता प्रदान की जाती थीं. समय-समय पर राज्य सरकार आलिया स्तर के स्थाई मान्यता प्राप्त मदरसों को अनुदान सूची में लेती रही है. इसके लिये प्राप्त प्रस्तावों का परीक्षण किया जाता है और अनुदान के लिए मानक एवं शर्तों को पूर्ण करने वाले मदरसों को अनुदान सूची में सम्मिलित किये जाने की संस्तुति की जाती है. वर्तमान समय में आलिया स्तर के स्थायी मान्यता प्राप्त कुल मदरसों की संख्या 560 है.

मदरसों के कार्य: मदरसों का एक महत्वपूर्ण कार्य अनाथ और गरीब बच्चों को शिक्षा और प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए प्रवेश देना था. मदरसे महिला छात्रों का नामांकन कर सकते हैं. हालांकि, वे पुरुषों से अलग अध्ययन करती हैं. इस्लाम में मदरसे की तालीम को काफी अहमियत दी जाती है. माना जाता है कि इस्लाम को जानने का रास्ता मदरसे से होकर निकलता है. मदरसे में दीनी तालीम दी जाती है. मदरसा एक अरबी शब्द है, जिसका मतलब होता है पढ़ने का स्थान.

25000 से ज्यादा मदरसे : आंकड़ों के मुताबिक उत्तर प्रदेश में 25000 से ज्यादा मदरसे चल रहे हैं. इसमें से तकरीबन 16000 यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन से संबद्ध हैं. याचिकाकर्ता ने फंड्स और मदरसों के प्रबंधन के तौर तरीकों पर सवाल उठाते हुए अदालत में याचिका लगाई थी.

यह भी पढ़ें : अनुदानित और मान्यता प्राप्त मदरसों की जांच स्थगित, परीक्षा के बाद हो सकती है जांच

यह भी पढ़ें : मान्यता को लेकर मदरसा बोर्ड के चेयरमैन ने CM YOGI को लिखा पत्र, बोले- अवैध कहने से लगता है दाग

यूपी मदरसा बोर्ड के चेयरमैन इफ्तिखार जावेद ने दी प्रतिक्रिया.

लखनऊः हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 को असंवैधानिक घोषित कर दिया है. न्यायालय ने उक्त अधिनियम को संविधान के पंथ निरपेक्षता के मूल सिद्धांतों, संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता, अनुच्छेद 21 के तहत जीवन व अनुच्छेद 21-ए के तहत शिक्षा के मौलिक अधिकारों के विपरीत करार दिया है. साथ ही न्यायालय ने इस कानून को यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन एक्ट की धारा 22 के भी विरुद्ध पाया है. न्यायालय ने राज्य सरकार को यह आदेश भी दिया है कि मदरसा अधिनियम के समाप्त होने के बाद प्रदेश में बड़ी संख्या में मौजूद मदरसों में पढ़ने वाले छात्र प्रभावित होंगे लिहाजा उन्हें प्राइमरी, हाई स्कूल और इंटरमीडिएट बोर्ड्स से सम्बद्ध नियमित स्कूलों में समायोजित किया जाए. न्यायालय ने कहा कि सरकार पर्याप्त संख्या में सीटें बढ़ाए और यदि आवश्यकता हो तो नए विद्यालयों की स्थापना करे. सरकार यह अवश्य सुनिश्चित करे कि 6 से 14 साल का कोई बच्चा मान्यता प्राप्त विद्यालयों में दाखिले से न छूट जाए.


यह निर्णय न्यायमूर्ति विवेक चौधरी और न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की खंडपीठ ने अधिवक्ता अंशुमान सिंह राठौर की याचिका पर पारित किया. याचिका के साथ न्यायालय ने एकल पीठों द्वारा भेजी गई, उन याचिकाओं पर भी सुनवाई की जिनमें मदरसा बोर्ड अधिनियम की संवैधानिकता का प्रश्न उठाते हुए बड़ी बेंच को मामले भेजे गए थे. याचिकाओं पर न्यायालय ने 8 फरवरी 2024 को ही सुनवाई पूरी कर अपना निर्णय सुरक्षित कर लिया था. सुनवाई के दौरान प्रमुख याचिका के विरुद्ध कुछ मदरसों, मदरसों के शिक्षक संगठन व कर्मचारी संगठन ने भी हस्तक्षेप प्रार्थना पत्र दाखिल किया था. सुनवाई के दौरान अपर महाधिवक्ता अनिल अनिल प्रताप सिंह व न्याय मित्र गौरव मेहरोत्रा इत्यादि ने पक्ष रखा.


न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि स्वतंत्रता के बाद निजी मदरसों का संचालन प्रदेश में होता रहा. ये मदरसे राज्य सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं थे. वर्ष 1969 में पहली बार अरबी व फारसी मदरसा मान्यता विनियम लाया गया. इसके तहत मदरसों के पंजीकरण की व्यवस्था शुरू हुई. वर्ष 1987 में यूपी अशासकीय अरबी तथा फारसी मदरसों की मान्यता नियमावली लाई गई. 12 अगस्त 1995 के शासनादेश के द्वारा प्रदेश में अल्पसंख्यक कल्याण विभाग का गठन हुआ, उक्त विभाग के तहत मदरसों के लिए आने वाली योजनाएं व अन्य क्रिया कलाप किए जाने लगे. वर्ष 2004 में यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन एक्ट बनाया गया.

न्यायालय ने प्रावधानों के सम्बंध में कहा कि उक्त अधिनियम की धारा 2 एफ के तहत ‘संस्थान’ को परिभाषित करते हुए कहा गया कि ‘संस्थान’ से आशय राजकीय ओरिएंटल कॉलेज रामपुर, मदरसा व वे ओरिएंटल कॉलेज जो मुस्लिम अल्पसंख्यकों द्वारा स्थापित किए गए हों और मदरसा बोर्ड द्वारा मान्यता प्राप्त हों. धारा 2 एच में मदरसा शिक्षा के तहत अरबी, उर्दू आदि के साथ इस्लामिक शिक्षा भी आती है. बोर्ड की स्थापना से सम्बंधित प्रावधानों में बोर्ड के सदस्यों के बावत प्रावधान किया गया कि बोर्ड का अध्यक्ष मदरसा शिक्षा के क्षेत्र का मुस्लिम शिक्षाविद होगा. सदस्यों में राजकीय ओरिएंटल कॉलेज, रामपुर का प्रिंसिपल, सुन्नी मुस्लिम विधायक, शिया मुस्लिम विधायक, सुन्नी मुस्लिम द्वारा स्थापित संस्थान के दो प्रमुख व दो अध्यापक, शिया मुस्लिम द्वारा स्थापित संस्थान का एक प्रमुख व एक अध्यापक होंगे.

वहीं, यूपी मदरसा बोर्ड के चेयरमैन इफ्तिखार जावेद ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर कहा कि ये आश्चर्यजनक है. हालांकि, हमें अफसोस है कि हम कोर्ट में यह नहीं समझा पाए कि अनुदान केवल धार्मिक शिक्षा के लिए नहीं मिलता है.

मदरसा बोर्ड का गठन : बता दें कि यूपी बोर्ड आफ मदरसा एजुकेशन एक्ट का गठन 6 दिसंबर 2004 को किया गया था. उस समय मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री थे. मदरसा बोर्ड के अधीन तहतानिया, फौकानिया, आलिया स्तर के मानक पूर्ण करने वाले मदरसों को मान्यता प्रदान की जाती थीं. समय-समय पर राज्य सरकार आलिया स्तर के स्थाई मान्यता प्राप्त मदरसों को अनुदान सूची में लेती रही है. इसके लिये प्राप्त प्रस्तावों का परीक्षण किया जाता है और अनुदान के लिए मानक एवं शर्तों को पूर्ण करने वाले मदरसों को अनुदान सूची में सम्मिलित किये जाने की संस्तुति की जाती है. वर्तमान समय में आलिया स्तर के स्थायी मान्यता प्राप्त कुल मदरसों की संख्या 560 है.

मदरसों के कार्य: मदरसों का एक महत्वपूर्ण कार्य अनाथ और गरीब बच्चों को शिक्षा और प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए प्रवेश देना था. मदरसे महिला छात्रों का नामांकन कर सकते हैं. हालांकि, वे पुरुषों से अलग अध्ययन करती हैं. इस्लाम में मदरसे की तालीम को काफी अहमियत दी जाती है. माना जाता है कि इस्लाम को जानने का रास्ता मदरसे से होकर निकलता है. मदरसे में दीनी तालीम दी जाती है. मदरसा एक अरबी शब्द है, जिसका मतलब होता है पढ़ने का स्थान.

25000 से ज्यादा मदरसे : आंकड़ों के मुताबिक उत्तर प्रदेश में 25000 से ज्यादा मदरसे चल रहे हैं. इसमें से तकरीबन 16000 यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन से संबद्ध हैं. याचिकाकर्ता ने फंड्स और मदरसों के प्रबंधन के तौर तरीकों पर सवाल उठाते हुए अदालत में याचिका लगाई थी.

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Last Updated : Mar 22, 2024, 7:30 PM IST
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