हैदराबाद: भारत सरकार ने शुक्रवार को तीन भारत रत्न का ऐलान किया. पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव, पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह और कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन को भारत रत्न दिया जाएगा. यहां हम आपको बताने जा रहे हैं पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव के बारे में. वह कांग्रेस पार्टी के नेता थे. 1991 में उन्होंने प्रधानमंत्री पद को संभाला था. पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के बाद ही कांग्रेस पार्टी पीवी नरसिम्हा को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया था.
पीवी नरसिम्हा का निजी जीवन: पीवी नरसिम्हा का जन्म 28 जून 1921 को तेलंगाना के करीमनगर में हुआ था. उनके पिता का नाम पी. रंगा राव था. उन्होंने हैदराबाद के उस्मानिया विश्वविद्यालय, मुंबई विश्वविद्यालय एवं नागपुर विश्वविद्यालय से अपनी पढ़ाई की. पीवी नरसिम्हा राव के तीन बेटे और पांच बेटियां हैं.
राजनीतिक करियर: नरसिम्हा राव पेशे से एक कृषि विशेषज्ञ और वकील थे, लेकिन बाद में उन्होंने राजनीति में प्रवेश किया और कई महत्वपूर्ण पदों का कार्यभार संभाला. वे आंध्र प्रदेश सरकार में 1962 से 1964 तक कानून एवं सूचना मंत्री रहे. इसके बाद 1964 से 1967 तक कानून एवं विधि मंत्री रहे. 1967 में स्वास्थ्य एवं चिकित्सा मंत्री और 1968 से 1971 तक शिक्षा मंत्री रहे.
इसके बाद वह 1971 से 1973 तक आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे. वह 1975 से 1976 तक अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के महासचिव, 1968 से 1974 तक आंध्र प्रदेश के तेलुगू अकादमी के अध्यक्ष और 1972 से मद्रास के दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के उपाध्यक्ष रहे. वह 1957 से 1977 तक आंध्र प्रदेश विधान सभा के सदस्य रहे, इसके बाद 1977 से 84 तक लोकसभा के सदस्य रहे और दिसंबर 1984 में रामटेक से आठवीं लोकसभा के लिए चुने गए.
राव भारतीय विद्या भवन के आंध्र केंद्र के भी अध्यक्ष रहे. वह 14 जनवरी 1980 से 18 जुलाई 1984 तक विदेश मंत्री, 19 जुलाई 1984 से 31 दिसंबर 1984 तक गृह मंत्री एवं 31 दिसंबर 1984 से 25 सितम्बर 1985 तक रक्षा मंत्री रहे. उन्होंने 5 नवंबर 1984 से योजना मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार भी संभाला था. 25 सितम्बर 1985 से उन्होंने मानव संसाधन विकास मंत्री के रूप में पदभार संभाला. वह 21 जून 1991 से 16 मई 1996 तक भारत के प्रधानमंत्री रहे.
राजनीतिक करियर में अहम उपलब्धियां: उन्होंने राजनीतिक मामलों एवं संबद्ध विषयों पर संयुक्त राज्य अमेरिका और पश्चिम जर्मनी के विश्वविद्यालयों में व्याख्यान दिया. विदेश मंत्री के रूप में उन्होंने 1974 में ब्रिटेन, पश्चिम जर्मनी, स्विट्जरलैंड, इटली और मिस्र इत्यादि देशों की यात्रा की.
विदेश मंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान राव ने अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के क्षेत्र में अपनी शैक्षिक पृष्ठभूमि एवं राजनीतिक तथा प्रशासनिक अनुभव का सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया. प्रभार संभालने के कुछ ही दिनों बाद उन्होंने जनवरी 1980 में नई दिल्ली में संयुक्त राष्ट्र औद्योगिक विकास संगठन के तृतीय सम्मेलन की अध्यक्षता की.
उन्होंने मार्च 1980 में न्यूयॉर्क में जी-77 की बैठक की भी अध्यक्षता की. फरवरी 1981 में गुट निरपेक्ष देशों के विदेश मंत्रियों के सम्मेलन में उनकी भूमिका के लिए राव की बहुत प्रशंसा की गई थी. राव ने अंतरराष्ट्रीय आर्थिक मुद्दों में व्यक्तिगत रूप से गहरी रुचि दिखाई थी. व्यक्तिगत रूप से मई 1981 में कराकास में ईसीडीसी पर जी-77 के सम्मेलन में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया.
वर्ष 1982 और 1983 भारत और इसकी विदेश नीति के लिए अति महत्त्वपूर्ण था. खाड़ी युद्ध के दौरान गुट निरपेक्ष आंदोलन का सातवां सम्मलेन भारत में हुआ जिसकी अध्यक्षता श्रीमती इंदिरा गांधी ने की. वर्ष 1982 में जब भारत को इसकी मेजबानी करने के लिए कहा गया और उसके अगले वर्ष जब विभिन्न देशों के राज्य और शासनाध्यक्षों के बीच आंदोलन से सम्बंधित अनौपचारिक विचार के लिए न्यूयॉर्क में बैठक की गई, तब पीवी नरसिम्हा राव ने गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों के विदेश मंत्रियों के साथ नई दिल्ली और संयुक्त राष्ट्र संघ में होने वाली बैठकों की अध्यक्षता की थी.