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बसंत पंचमी पर कांकेर में बंगाली समाज ने बच्चों का कराया "हाथे खोड़ी", जानिए क्या है यह परंपरा ?

Hathe Khodi On Basant Panchami in Kanker: कांकेर में ​बसंत पंचमी के मौके पर बंगाली समाज ने बच्चों का "हाथे खोड़ी" कराया. ये इस समाज के लिए बेहद खास होता है. इस दिन बच्चों की शिक्षा आरंभ कराई जाती है.

Hathe Khodi On Basant Panchami in Kanker
कांकेर में बंगाली समाज ने बच्चों का कराया "हाथे खोड़ी"
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Feb 14, 2024, 6:52 PM IST

हाथे खोड़ी की परंपरा

कांकेर: शास्त्रों के मुताबिक मां सरस्वती ज्ञान, कला, संगीत और प्रकृति की देवी हैं. बसंत पंचमी को देवी सरस्वती की उत्पत्ति यानी कि जन्मदिन के तौर पर मनाया जाता है. आज बसंत पंचमी यानी कि सरस्वती पूजा के दिन कांकेर में बंगाली समाज ने अपने बच्चों के विद्या प्रारंभ की पूजा कराई. बंगाली समाज ने बुधवार को दो से तीन साल की उम्र के बच्चों का आज "हाथे खोड़ी" कराया. "हाथे खोड़ी"का अर्थ है "हाथ में चॉल्क". "हाथे खोड़ी" समारोह बंगालियों के बीच काफी लोकप्रिय है."हाथे खोड़ी" समारोह के लिए लोग आमतौर पर पास के मंदिर या सरस्वती पूजा पंडाल में जाते हैं, जहां पंडित समारोह करते हैं. कभी-कभी इसे घर पर भी आयोजित किया जाता है, जहां पंडित आते हैं और सरस्वती पूजा और हाथे खोड़ी करते हैं.

बंगाली समाज के लोग बच्चों को कराते हैं "हाथे खोड़ी":ईटीवी भारत ने कांकेर के काली मंदिर में सरस्वती पूजा के दौरान बंगाली समाज के लोगों से "हाथे खोड़ी" को लेकर बातचीत की. बातचीत के दौरान बंगाली समाज की अनामिका चक्रवर्ती ने बताया कि हमारे बंगाली समाज में बसंत पंचमी में बसंत ऋतु के आगमन में यह त्यौहार मनाया जाता है, इसकी मुख्य देवी मां सरस्वती है,. मां सरस्वती विद्या की देवी हैं, उनकी पूजा से इस त्यौहार का आरंभ किया जाता है. इसके लिए मां सरस्वती की मूर्ति की स्थापना की जाती है. उनकी विधिवत पूजा की जाती है. मां को मुख्य प्रसाद के तौर पर लाई, दही और बेर चढ़ाया जाता है. मां सरस्वती के आशीर्वाद से बच्चों की पढ़ाई- लिखाई आज शुरू की जाती है. इसके लिए जो बच्चे प्रारंभिक शिक्षा के योग्य हो गए हैं, जिनकी उम्र 3 साल से ऊपर है, उनकी पढ़ाई लिखाई पंडित जी के हाथों से शुरू कराई जाती है. उसके बाद स्कूल में एडमिशन कराया जाता है."

बंगालियों के बीच सरस्वती पूजा का विशेष महत्व है. क्योंकि इस दिन को सीखने और शिक्षा से संबंधित किसी भी चीज़ को शुरू करने के लिए ये एक शुभ दिन माना जाता है. इसलिए लोग इस विशेष दिन "हाथे खोड़ी" समारोह आयोजित करके छोटे बच्चों को औपचारिक शिक्षा से परिचित कराना पसंद करते हैं. "हाथे खोड़ी" के लिए नया स्लेट, चॉक,बोर्ड, किताबें खरीदी जाती हैं.पंडितजी खास पूजा कराते हैं. बच्चे पहली बार देवी सरस्वती के सामने अक्षर और अपना नाम लिखना सीखते हैं. भविष्य के लिए देवी से आशीर्वाद मांगते हैं. -प्रदीप भट्टाचार्य, कांकेर के काली मंदिर के पुजारी

बता दें कि सालों से सरस्वती पूजा के दिन "हाथे खोड़ी" की पूजा की जाती है. इसके माध्यम से पहली बार मां शारदे के सामने बच्चे शिक्षा ग्रहण करते हैं. इस दिन बच्चों का शिक्षा आरंभ के लिए शुभ माना जाता है. आमतौर पर यह संस्कार तब किया जाता है जब बच्चा दो वर्ष का हो जाए और तीसरे वर्ष में प्रवेश कर जाए. बच्चों को औपचारिक शिक्षा देने की यह सही उम्र मानी जाती है. इस उम्र में बच्चों का दिमाग तेजी से विकसित होता है. बच्चे जल्द ही हर चीज समझ लेते हैं.

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हाथे खोड़ी की परंपरा

कांकेर: शास्त्रों के मुताबिक मां सरस्वती ज्ञान, कला, संगीत और प्रकृति की देवी हैं. बसंत पंचमी को देवी सरस्वती की उत्पत्ति यानी कि जन्मदिन के तौर पर मनाया जाता है. आज बसंत पंचमी यानी कि सरस्वती पूजा के दिन कांकेर में बंगाली समाज ने अपने बच्चों के विद्या प्रारंभ की पूजा कराई. बंगाली समाज ने बुधवार को दो से तीन साल की उम्र के बच्चों का आज "हाथे खोड़ी" कराया. "हाथे खोड़ी"का अर्थ है "हाथ में चॉल्क". "हाथे खोड़ी" समारोह बंगालियों के बीच काफी लोकप्रिय है."हाथे खोड़ी" समारोह के लिए लोग आमतौर पर पास के मंदिर या सरस्वती पूजा पंडाल में जाते हैं, जहां पंडित समारोह करते हैं. कभी-कभी इसे घर पर भी आयोजित किया जाता है, जहां पंडित आते हैं और सरस्वती पूजा और हाथे खोड़ी करते हैं.

बंगाली समाज के लोग बच्चों को कराते हैं "हाथे खोड़ी":ईटीवी भारत ने कांकेर के काली मंदिर में सरस्वती पूजा के दौरान बंगाली समाज के लोगों से "हाथे खोड़ी" को लेकर बातचीत की. बातचीत के दौरान बंगाली समाज की अनामिका चक्रवर्ती ने बताया कि हमारे बंगाली समाज में बसंत पंचमी में बसंत ऋतु के आगमन में यह त्यौहार मनाया जाता है, इसकी मुख्य देवी मां सरस्वती है,. मां सरस्वती विद्या की देवी हैं, उनकी पूजा से इस त्यौहार का आरंभ किया जाता है. इसके लिए मां सरस्वती की मूर्ति की स्थापना की जाती है. उनकी विधिवत पूजा की जाती है. मां को मुख्य प्रसाद के तौर पर लाई, दही और बेर चढ़ाया जाता है. मां सरस्वती के आशीर्वाद से बच्चों की पढ़ाई- लिखाई आज शुरू की जाती है. इसके लिए जो बच्चे प्रारंभिक शिक्षा के योग्य हो गए हैं, जिनकी उम्र 3 साल से ऊपर है, उनकी पढ़ाई लिखाई पंडित जी के हाथों से शुरू कराई जाती है. उसके बाद स्कूल में एडमिशन कराया जाता है."

बंगालियों के बीच सरस्वती पूजा का विशेष महत्व है. क्योंकि इस दिन को सीखने और शिक्षा से संबंधित किसी भी चीज़ को शुरू करने के लिए ये एक शुभ दिन माना जाता है. इसलिए लोग इस विशेष दिन "हाथे खोड़ी" समारोह आयोजित करके छोटे बच्चों को औपचारिक शिक्षा से परिचित कराना पसंद करते हैं. "हाथे खोड़ी" के लिए नया स्लेट, चॉक,बोर्ड, किताबें खरीदी जाती हैं.पंडितजी खास पूजा कराते हैं. बच्चे पहली बार देवी सरस्वती के सामने अक्षर और अपना नाम लिखना सीखते हैं. भविष्य के लिए देवी से आशीर्वाद मांगते हैं. -प्रदीप भट्टाचार्य, कांकेर के काली मंदिर के पुजारी

बता दें कि सालों से सरस्वती पूजा के दिन "हाथे खोड़ी" की पूजा की जाती है. इसके माध्यम से पहली बार मां शारदे के सामने बच्चे शिक्षा ग्रहण करते हैं. इस दिन बच्चों का शिक्षा आरंभ के लिए शुभ माना जाता है. आमतौर पर यह संस्कार तब किया जाता है जब बच्चा दो वर्ष का हो जाए और तीसरे वर्ष में प्रवेश कर जाए. बच्चों को औपचारिक शिक्षा देने की यह सही उम्र मानी जाती है. इस उम्र में बच्चों का दिमाग तेजी से विकसित होता है. बच्चे जल्द ही हर चीज समझ लेते हैं.

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