नई दिल्ली : केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मंगलवार को आरोप लगाया कि पश्चिम बंगाल सरकार केंद्रीय धन का दुरुपयोग कर रही है. वह 'अयोग्य' लोगों को कल्याणकारी योजनाओं का लाभार्थी बना रही है. छह दिनों के व्यवधान के बाद मंगलवार सुबह लोकसभा की कार्यवाही शुरू होने पर उनके कनिष्ठ चंद्रशेखर पेम्मासानी ने भी सदन में बात की और इस बात को खारिज कर दिया कि सरकार ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (एमजीएनआरईजीएस) के लिए धन में कटौती की है.
उन्होंने कहा कि एमजीएनआरईजीएस के लिए बजट आवंटन पिछले वर्ष की तुलना में हर साल 10,000 करोड़ रुपये बढ़ाकर 20,000 करोड़ रुपये कर दिया गया है. इसमें कोई कमी नहीं की गई है. उन्होंने प्रश्नकाल के दौरान कहा कि पश्चिम बंगाल सरकार ने वास्तव में 'पात्र' लोगों के बजाय 'अयोग्य' लोगों को लाभार्थी बनाया है. उन्होंने कहा कि ऐसा करके राज्य सरकार ने अपराध किया है.
#WATCH | In the Lok Sabha, Union Minister Shivraj Singh Chouhan says " ...the government of west bengal has committed the crime of benefiting certain people by reducing big works to small ones. under this scheme, ineligible people were made eligible and eligible people were made… pic.twitter.com/EgIdYXMIVA
— ANI (@ANI) December 3, 2024
चौहान ने कानून का हवाला देते हुए कहा कि अगर केंद्र की कोई योजना ठीक से लागू नहीं होती है या उसके फंड का दुरुपयोग होता है, तो केंद्र सरकार राज्यों को मिलने वाली फंडिंग रोक सकती है. मंत्री के मुताबिक, पश्चिम बंगाल सरकार ने प्रधानमंत्री आवास योजना का नाम भी बदल दिया, जो एक ग्रामीण आवास योजना है, जो कानून के मुताबिक अवैध है और अपराध भी है. उन्होंने कहा कि हम देश के संसाधनों का दुरुपयोग नहीं होने देंगे. हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस बयान के प्रति पूरी तरह प्रतिबद्ध हैं- 'न खाऊंगा, न खाने दूंगा'.
केंद्रीय ग्रामीण विकास राज्य मंत्री पेम्मासानी ने कहा कि 2020-21 में मनरेगा के तहत बजट आवंटन करीब 60,000 करोड़ रुपये था. उस वर्ष कोविड महामारी फैलने के बाद मोदी सरकार ने राशि को 60,000 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 1,10,000 करोड़ रुपये कर दिया था - यानी 50,000 करोड़ रुपये अधिक. डीएमके के टी आर बालू के पूरक प्रश्न का उत्तर देते हुए उन्होंने कहा कि ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत आवंटित बजटीय धनराशि को हर साल 10,000 करोड़ रुपये बढ़ाकर 20,000 रुपये किया जा रहा है.
पेम्मासानी ने कहा कि मनरेगा के तहत मजदूरी मुद्रास्फीति के आधार पर तय की जाती है और हर साल इसमें 6-7 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. उन्होंने कहा कि अगर किसी राज्य सरकार को लगता है कि मजदूरी कम है, तो अधिनियम के तहत एक प्रावधान है जिसके तहत राज्य सरकार अतिरिक्त राशि प्रदान कर सकती है और तीन राज्य सरकारें ऐसा कर रही हैं.
योजना में कथित अनियमितताओं की शिकायतों पर पेम्मासानी ने कहा कि कार्यक्रम की निगरानी और कार्यान्वयन करना राज्य सरकार की जिम्मेदारी है. उन्होंने कहा कि यदि जॉब कार्ड ठीक से वितरित नहीं किए जाने जैसी कोई शिकायत है तो राज्य सरकार को जांच कर कार्रवाई करनी चाहिए.