बस्तर: बीते एक दशक में बस्तर विकास की राह पर तेजी से बढ़ने लगा है. बस्तर की आदिवासी महिलाएं जहां पहले वोट करने के लिए घर से बाहर नहीं निकलती थीं. अब वहीं गांव और खेड़े की महिलाएं मतदान शुरु होते ही लाइनों में लग जाती हैं. वोट के प्रति इनका बढ़ता रुझान देकर चुनाव आयोग और राजनीतिक दल भी खुश हैं. कभी उंगली लगी स्याही को काट देने का फरमान जारी करने वाले नक्सली भी इन महिला वोटरों के आगे अब नतमस्तक हैं. अपने मताधिकार के इस्तेमाल को लेकर जो जागरुकता महिलाओं में आई है उससे जल्द ही बस्तर की फिजा विकास की खुशबू से महकने लगेगी.
वोट से लिख रहे विकास की इबारत: छत्तीसगढ़ बनने के पहले की बात हो या फिर राज्य बनने के बाद की बस्तर सीट पर लोकसभा चुनाव में महिलाओं ने बढ़ चढ़ कर अपने वोट के अधिकार का इस्तेमाल किया है. नक्सल इलाके में तेजी से बढ़ते मतदान का आकंड़ा बताता है कि लोग अब नक्सलियों के खौफ से बाहर निकल गए है. लोगों को बस चुनी हुई सरकार और उनके विकास के काम चाहिए. विकास के लिए अब वो वोट देने निकलते हैं.
बस्तर में महिला मतदान का लगातार बढ़ रहा प्रतिशत: बस्तर में लगातार बढ़ रहे महिला मतदान के वोटिंग प्रतिशत से चुनाव आयोग बेहद खुश है. बात अगर बस्तर लोकसभा सीट की करें तो बस्तर सीट संवेदनशील सीटों की श्रेणी में आता है. बस्तर को नक्सलियों का गढ़ भी मानते हैं. बस्तर के कई जिले और इलाके ऐसे हैं जहां शासन की पहुंच कम और नक्सलियों की उपस्थिति ज्यादा है. ऐसे में वहां पर चुनाव कराना और महिला वोटरों का निकलकर आना मुश्किल माना जाता है. चुनाव आयोग की कड़ी मेहनत के चलते अब उन इलाकों में भी महिलाएं वोट करने के लिए निकलने लगी हैं. विधानसभा चुनाव हो या फिर लोकसभा की जंग. महिला वोटर बड़ी संख्या में वोट करने लगी हैं. साल 2071 से लेकर साल 2019 तक के आंकड़ों पर नजर डालें तो महिला वोटरों के बढ़ते मतदान प्रतिशत लगातार बढ़ते जा रहे हैं.
रंग ला रही चुनाव आयोग की कड़ी मेहनत: साल 2071 के लोकसभा चुनाव की बात की जाए तो उस साल 243787 महिला वोटरों की संख्या थी, जिसमें 92655 महिलाओं ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया. आंकड़ों के मुताबिक 38.01% महिलाओं ने ही मतदान किया. इसके बाद हुए कुछ लोकसभा चुनाव में महिलाओं के मतदान का प्रतिशत काफी कम दर्ज किया गया. 1991 में हुए लोकसभा चुनाव में यह प्रतिशत घटकर 16.64 तक पहुंच गया. साल 1971 से लेकर 2019 तक के मतदान में महिलाओं की सबसे कम भागीदारी रही. इसके बाद लगातार लोकसभा चुनाव में महिलाओं का वोट प्रतिशत बढ़ता रहा. साल 2019 के लोकसभा चुनाव की बात की जाए तो उस साल लगभग 65.1 फ़ीसदी महिला वोटर अपने घर से निकली और मतदान केंद्र पर जाकर वोट किया.
आदिवासी महिलाएं ले रही नक्सलियों से लोहा: नक्सलियों के आतंक की वजह से शासन प्रशासन के लोग जहां नहीं पहुंच पाते हैं उन इलाकों की महिलाएं अब गर्व से अपना वोट देने के लिए निकलने लगी हैं. लोकतंत्र पर बढ़ता उनका विश्वास अब नक्सलियों की सोच पर चोट करने लगा है. सालों तक नक्सलियों ने उनको विकास से कोसों दूर रखा. गांव के लोग अब इस बात को समझ चुके हैं. समाज में सालों से ये सोच रही है कि महिलाएं विकास को लेकर जागरुक नहीं रहती हैं, घर के काम काज और खेती बाड़ी में उलझी रहती हैं. वक्त और हालात दोनों बस्तर में बदल चुके हैं. अब आप जब बस्तर के किसी मतदान केंद्र पर जाएंगे तो आपको वोटरों की कतार में सबसे पहले गरीब आदिवासी महिलाएं ही नजर आएंगी.
जब लोकतंत्र की बात आती है तो आज सोशल मीडिया के जरिए उन तक भी चुनाव से संबंधित सारी जानकारी पहुंच रही है. जिन क्षेत्रों में भी आज मोबाइल जैसी जरूरी सुविधाएं मौजूद हैं उनके मार्फत उनको पूरी जानकारी मिल रही है. उनको समझ आ चुका है कि अगर विकास और अपना विस्तार चाहिए तो वोट करना होगा और विकास को चुनना होगा. लोकतंत्र का हिस्सा बनने पर ही विकास से वो जुड़ पाएंगी. जब उनका अपना चुना हुआ जनप्रतिनिधि होगा तो वो उससे हक से अपने हिस्से का विकास का काम करा सकेंगी. उनको सरकारी दफ्तरों के चक्कर कामों के लिए नहीं लगाने होंगे. - वर्णिका शर्मा, नक्सल एक्सपर्ट, छत्तीसगढ़
बढ़त मतदान प्रतिशत के लिए चुनाव आयोग बधाई की पात्र: पिंक बूथ से लेकर सेल्फी प्वाइंट बनाने तक का जो काम आयोग ने किया उससे महिलाओं में वोटिंग को लेकर जागरुकता आई. आयोग की सूचना घर घर तक महिलाओं के बीच पहुंची. चुनाव आयोग ने गांव गांव में मतदान केंद्र बनाए जिससे लोग वोट देने के लिए पहुंचने लगे. मतदान केंद्रों पर सुरक्षा के खास इंतजाम किए गए. लोगों में सुरक्षा की भावना आई. ऐसी तमाम कोशिशें आज रंग लाने लगी हैं. हम कह सकते हैं कि महिला वोट से आज नक्सलियों की सोच पर चोट होने लगी है.