नई दिल्ली: संकटग्रस्त बांग्लादेश की राजधानी ढाका में स्थित भारतीय उच्चायोग अभी भी कार्यरत है. सूत्रों ने बुधवार को यह जानकारी दी. शीर्ष सरकारी सूत्रों ने कहा, 'हमारे राजनयिक और अधिकारी ढाका में बने हुए हैं. गैर-जरूरी कर्मचारी और उनका परिवार आज सुबह वापस आ गए.
उन्होंने कहा, 'हम दोहराना चाहते हैं कि ढाका में भारतीय उच्चायोग की सभी हेल्पलाइनें काम कर रही है. लोगों की मदद के लिए हेल्पलाइन नंबर (+8801958383679, +8801958383680, +8801937400591) फिर से शेयर किए गए हैं. यह घटना बांग्लादेश में राजनीतिक उथल-पुथल के बीच हुई है. देश में सरकार गिरने और पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के अपने देश से भाग जाने के बाद यह चिंता बढ़ गई है कि संघर्ष से त्रस्त बांग्लादेश के लिए आगे क्या होगा.
प्रधानमंत्री शेख हसीना फिलहाल नई दिल्ली में सुरक्षित हैं. ब्रिटेन में शरण के उनके अनुरोध को कानूनी बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है. इसलिए उनका प्रवास फिलहाल बढ़ा दिया गया है. मंगलवार को विदेश मंत्री जयशंकर ने संसद के दोनों सदनों को बताया कि भारत राजनयिक मिशनों के माध्यम से बांग्लादेश में भारतीय समुदाय के साथ निकट और निरंतर संपर्क में है.
उन्होंने कहा कि वहां करीब 19,000 भारतीय नागरिक हैं. इनमें से करीब 9,000 छात्र हैं. उच्चायोग की सलाह पर जुलाई के महीने में ही अधिकांश छात्र भारत लौट आए हैं. जहां तक हमारी राजनयिक उपस्थिति का प्रश्न है ढाका में उच्चायोग के अतिरिक्त, चटगांव, राजशाही, खुलना और सिलहट में हमारे सहायक उच्चायोग हैं.
जयशंकर ने संसद के दोनों सदनों को बांग्लादेश की स्थिति के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि हमारी उम्मीद है कि मेजबान सरकार इन प्रतिष्ठानों को आवश्यक सुरक्षा प्रदान करेगी. स्थिति स्थिर होने के बाद हम उनके सामान्य कामकाज की उम्मीद करते हैं. यह बात प्रासंगिक है कि अपने पद से हटाए जाने के बाद शेख हसीना ने बहुत ही कम समय में भारत आने की अनुमति मांगी. भारत को उसी समय बांग्लादेश के अधिकारियों से उड़ान की मंजूरी के लिए अनुरोध प्राप्त हुआ. वह सोमवार शाम को दिल्ली पहुंचीं.
बांग्लादेश में पिछले महीने छात्र समूहों द्वारा सरकारी नौकरियों में विवादास्पद कोटा प्रणाली को खत्म करने की मांग के बाद बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन और हिंसा शुरू हो गई थी. बाद में यह शेख हसीना को हटाने की मांग के अभियान में बदल गया. शेख हसीना ने जनवरी में विपक्ष द्वारा बहिष्कार के बाद चुनाव में लगातार चौथी बार जीत हासिल की थी. देश में हिंसा के चलते हजारों लोगों की जान जा चुकी है.