सहारनपुर : जगद्गुरु शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानन्द महाराज शनिवार को सहारनपुर में सिद्धपीठ मां शाकम्भरी देवी मंदिर पहुंचे. वह माता शाकम्भरी देवी जयंती कार्यक्रम में शामिल हुए. इसके बाद मीडिया से बातचीत में कहा कि अयोध्या में बनाए जा रहे राम मंदिर पर प्रतीकात्मक शिखर बनाना स्वागत योग्य है. मंदिर समिति को अपनी भूल को स्वीकार करना चाहिए. हालांकि अभी भी शंकराचार्य प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में न जाने की जिद पर अड़े नजर आए.
ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानन्द महाराज शनिवार की देर शाम सिद्धपीठ शाकम्भरी देवी में जन्मोत्सव कार्यक्रम में शामिल हुए. इस दौरान उन्होंने कहा कि आते समय रास्ते में उन्होंने सुना है कि श्री रामलला मंदिर में कपड़े का प्रतीकात्मक शिखर बनाया जा रहा है. इसका मतलब है कि उन्होंने स्वीकार किया है कि बिना शिखर के प्राण प्रतिष्ठा नहीं करना चाहिए. प्रतीक ही सही भूल को सुधारना का प्रयास तो हो रहा है.
अविमुक्तेश्वरानन्द महाराज ने बताया कि यह शास्त्र सम्मत है जो सभी को अच्छा लगेगा. सदियों से हमारा देश हिंदू शास्त्र के अनुसार चलता आ रहा है.
शंकराचार्य ने कहा कि इस बात को मंदिर के कर्ताधर्ताओं को स्वीकार करना चाहिए कि उन्होंने जल्दबाजी में बड़ी भूल की थी. वे स्पष्ट करें कि उन्होंने शास्त्र सम्मत कार्य किया है. इससे हिंदू समाज को भी खुशी होगी. उन्होंने कहा कि चारों शंकराचार्य केवल क्षेत्राधिकार के कारण अलग हैं, बाकि शास्त्र तो सबके एक ही हैं. इससे पहले उन्होंने कहा कि श्रीमद् भागवत गीता में स्पष्ट उल्लेख है कि जैसे दिन और रात एक-दूसरे के पूरक हैं, ऐसे ही देवी संपत एवं आसुरी संपत एक दूसरे के पूरक है. देवी संपत मोक्ष की ओर ले जाने वाला है एवं आसुरी संपत बंधन में डालने वाला है. जो बंधन में होता है वह मुक्त होना चाहता है और जो मुक्त है वह कभी-कभी उसके मन में आता है कि वह भी बंधन में हो. इस मौके पर अखिल भारतीय संत संघर्ष समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं शंकराचार्य आश्रम प्रभारी सहजानंद महाराज और दंडी स्वामी भी उपस्थित रहे.
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