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65 प्रतिशत मुस्लिम आबादी... कांग्रेस का गढ़, जानें कौन हैं डिप्लू सरमा, जिन्होंने लगाई सेंध

असम में समागुरी उपचुनाव में भाजपा के डिप्लू रंजन सरमा ने 24,501 मतों से जीत दर्ज की, जिसे कांग्रेस का गढ़ माना जाता था.

Assam by-election Results BJP Victory in Samaguri which has 65 percent Muslim population, makes dent in Congress stronghold
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के साथ डिप्लू रंजन सरमा (ANI)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 24, 2024, 5:50 PM IST

गुवाहाटी: असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के नेतृत्व में भाजपा ने विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस के गढ़ समागुरी में सेंध लगाई है, जिसके नतीजे 23 नवंबर को घोषित किए गए. मुस्लिमों की अधिक आबादी वाली इस सीट पर दशकों से कांग्रेस का कब्जा था, 2001 से पूर्व मंत्री रकीबुल हुसैन असम विधानसभा में इस क्षेत्र का प्रतिनिधत्व कर रहे थे.

रकीबुल हुसैन से पहले उनके पिता नूरुल हुसैन दो बार - 1983 और 1991 में - इस सीट से विधायक चुने गए थे. हालांकि 1996 में नूरुल हुसैन असम गण परिषद (एजीपी) के अतुल कुमार सरमा से चुनाव हार गए थे, लेकिन उनके बेटे रकीबुल हुसैन 2001 में 81,000 से अधिक वोटों से विधायक चुने गए थे.

उपचुनाव में मिली हार कांग्रेस के साथ-साथ हुसैन की विरासत के लिए भी बड़ा झटका है, जिनका वर्षों से समागुरी में दबदबा रहा. रकीबुल हुसैन ने लोकसभा चुनाव 2024 में सांसद चुनने जाने के बाद विधायकी से इस्तीफा दे दिया था, जिसके बाद इस सीट पर उपचुनाव कराया गया. कांग्रेस ने रकीबुल हुसैन के बेटे तंजील हुसैन को टिकट दिया था. भाजपा की तरफ से डिप्लू रंजन सरमा मैदान में थे और उन्होंने 24,501 मतों से जीत दर्ज की.

भाजपा के लिए समागुरी की जीत क्षेत्र में मुसलमानों के बीच पैठ बनाने के लिए एक अवसर के रूप में देखा जा रहा है. इस जीत ने पार्टी को मुसलमानों द्वारा गले लगाए जाने वाले के रूप में अपनी छवि पेश करने में भी मदद की.

समागुरी में भाजपा के लिए जीत इतनी महत्वपूर्ण थी कि मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने एक्स पर पार्टी कार्यकर्ताओं को बधाई देते हुए इसका विशेष उल्लेख किया.

सरमा ने पार्टी कार्यकर्ताओं और विजयी उम्मीदवार की प्रशंसा करते हुए पोस्ट में लिखा, 65 प्रतिशत अल्पसंख्यक आबादी वाला निर्वाचन क्षेत्र समागुरी पर 25 वर्षों तक कांग्रेस का कब्जा था, जिसे अब भाजपा ने जीत लिया है. यह ऐतिहासिक जीत हमारे कल्याणकारी एजेंडे में लोगों के भरोसे और विपक्ष की विभाजनकारी राजनीति को उनकी दृढ़ अस्वीकृति की पुष्टि करती है. लोगों के दृढ़ समर्थन के लिए मैं उनका दिल से आभार व्यक्त करता हूं. हम सभी के लिए विकसित असम बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं."

कौन हैं डिप्लू रंजन सरमा
नगांव जिले के कलियाबोर से ताल्लुक रखने वाले डिप्लू रंजन सरमा हाई स्कूल के दिनों से ही संघ परिवार से जुड़े रहे हैं. 1997 में नगांव कॉलेज से कॉमर्स में स्नातक करने वाले सरमा पुस्तक प्रकाशन से भी जुड़े रहे हैं. सरमा अनुवादक भी हैं, उन्होंने भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की कुछ प्रसिद्ध पुस्तकों का अनुवाद किया है. अपने सामाजिक कार्यों के लिए कारोबारी जगत और सामाजिक दायरे में मशहूर सरमा लंबे समय से भाजपा से जुड़े हुए हैं. वर्तमान में वह भाजपा की असम इकाई के प्रमुख पदाधिकारी हैं और राज्य महासचिव का पद संभाल रहे हैं.

हालांकि डिप्लू रंजन पार्टी द्वारा सौंपी गई सभी जिम्मेदारियों को बखूबी निभा रहे थे, लेकिन वर्ष 2015 में उन्होंने समागुरी में एक विशाल रैली का आयोजन किया था, जिसमें तत्कालीन मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल और वर्तमान मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा शामिल हुए थे. डिप्लू सामगुरी क्षेत्र के पिछड़े इलाकों में जाकर काम कर रहे थे, खास तौर पर मुस्लिम आबादी वाले इलाकों में, जिससे राज्य भाजपा नेतृत्व का ध्यान उनकी ओर गया.

कांग्रेस की हार के कारण?
बताया जाता है कि उम्मीदवार के चयन के कारण कांग्रेस को सामगुरी में नुकसान उठाना पड़ा. हालांकि पार्टी के अधिकांश कार्यकर्ता आधिकारिक तौर पर इस मुद्दे पर चुप रहे, लेकिन उन्होंने उम्मीदवार के चयन पर अपनी नाखुशी जाहिर की. हिंदू, आदिवासी और चाय जनजाति जैसे अल्पसंख्यक मतदाताओं के लिए भाजपा स्पष्ट विकल्प बन गई, वहीं अल्पसंख्यक मतदाताओं में से अधिकांश को तंजील हुसैन को पार्टी का टिकट देने का विचार भी पसंद नहीं आया.

कांग्रेस के एक कार्यकर्ता ने कहा, "कोई बेहतर उम्मीदवार हो सकता था. लेकिन, परिवार की विरासत को बनाए रखने के लिए हुसैन ने पार्टी को अपने बेटे को टिकट देने के लिए मजबूर किया."

पार्टी के कुछ कार्यकर्ताओं ने कहा, "रकीबुल हुसैन ने वर्षों से निर्वाचन क्षेत्र में काम किया है. हालांकि, किसी को यह पसंद नहीं आया कि उनके बेटे को उपचुनाव लड़ने के लिए दिल्ली से समागुरी भेजा गया. तंजील हुसैन को यहां कोई नहीं जानता, वह पिछले कई सालों से दिल्ली में रह रहे थे."

यह भी पढ़ें- Bypolls Results: वायनाड और नांदेड़ उपचुनाव में कांग्रेस जीती, यहां देखें 48 विधानसभा सीटों के नतीजे

गुवाहाटी: असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के नेतृत्व में भाजपा ने विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस के गढ़ समागुरी में सेंध लगाई है, जिसके नतीजे 23 नवंबर को घोषित किए गए. मुस्लिमों की अधिक आबादी वाली इस सीट पर दशकों से कांग्रेस का कब्जा था, 2001 से पूर्व मंत्री रकीबुल हुसैन असम विधानसभा में इस क्षेत्र का प्रतिनिधत्व कर रहे थे.

रकीबुल हुसैन से पहले उनके पिता नूरुल हुसैन दो बार - 1983 और 1991 में - इस सीट से विधायक चुने गए थे. हालांकि 1996 में नूरुल हुसैन असम गण परिषद (एजीपी) के अतुल कुमार सरमा से चुनाव हार गए थे, लेकिन उनके बेटे रकीबुल हुसैन 2001 में 81,000 से अधिक वोटों से विधायक चुने गए थे.

उपचुनाव में मिली हार कांग्रेस के साथ-साथ हुसैन की विरासत के लिए भी बड़ा झटका है, जिनका वर्षों से समागुरी में दबदबा रहा. रकीबुल हुसैन ने लोकसभा चुनाव 2024 में सांसद चुनने जाने के बाद विधायकी से इस्तीफा दे दिया था, जिसके बाद इस सीट पर उपचुनाव कराया गया. कांग्रेस ने रकीबुल हुसैन के बेटे तंजील हुसैन को टिकट दिया था. भाजपा की तरफ से डिप्लू रंजन सरमा मैदान में थे और उन्होंने 24,501 मतों से जीत दर्ज की.

भाजपा के लिए समागुरी की जीत क्षेत्र में मुसलमानों के बीच पैठ बनाने के लिए एक अवसर के रूप में देखा जा रहा है. इस जीत ने पार्टी को मुसलमानों द्वारा गले लगाए जाने वाले के रूप में अपनी छवि पेश करने में भी मदद की.

समागुरी में भाजपा के लिए जीत इतनी महत्वपूर्ण थी कि मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने एक्स पर पार्टी कार्यकर्ताओं को बधाई देते हुए इसका विशेष उल्लेख किया.

सरमा ने पार्टी कार्यकर्ताओं और विजयी उम्मीदवार की प्रशंसा करते हुए पोस्ट में लिखा, 65 प्रतिशत अल्पसंख्यक आबादी वाला निर्वाचन क्षेत्र समागुरी पर 25 वर्षों तक कांग्रेस का कब्जा था, जिसे अब भाजपा ने जीत लिया है. यह ऐतिहासिक जीत हमारे कल्याणकारी एजेंडे में लोगों के भरोसे और विपक्ष की विभाजनकारी राजनीति को उनकी दृढ़ अस्वीकृति की पुष्टि करती है. लोगों के दृढ़ समर्थन के लिए मैं उनका दिल से आभार व्यक्त करता हूं. हम सभी के लिए विकसित असम बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं."

कौन हैं डिप्लू रंजन सरमा
नगांव जिले के कलियाबोर से ताल्लुक रखने वाले डिप्लू रंजन सरमा हाई स्कूल के दिनों से ही संघ परिवार से जुड़े रहे हैं. 1997 में नगांव कॉलेज से कॉमर्स में स्नातक करने वाले सरमा पुस्तक प्रकाशन से भी जुड़े रहे हैं. सरमा अनुवादक भी हैं, उन्होंने भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की कुछ प्रसिद्ध पुस्तकों का अनुवाद किया है. अपने सामाजिक कार्यों के लिए कारोबारी जगत और सामाजिक दायरे में मशहूर सरमा लंबे समय से भाजपा से जुड़े हुए हैं. वर्तमान में वह भाजपा की असम इकाई के प्रमुख पदाधिकारी हैं और राज्य महासचिव का पद संभाल रहे हैं.

हालांकि डिप्लू रंजन पार्टी द्वारा सौंपी गई सभी जिम्मेदारियों को बखूबी निभा रहे थे, लेकिन वर्ष 2015 में उन्होंने समागुरी में एक विशाल रैली का आयोजन किया था, जिसमें तत्कालीन मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल और वर्तमान मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा शामिल हुए थे. डिप्लू सामगुरी क्षेत्र के पिछड़े इलाकों में जाकर काम कर रहे थे, खास तौर पर मुस्लिम आबादी वाले इलाकों में, जिससे राज्य भाजपा नेतृत्व का ध्यान उनकी ओर गया.

कांग्रेस की हार के कारण?
बताया जाता है कि उम्मीदवार के चयन के कारण कांग्रेस को सामगुरी में नुकसान उठाना पड़ा. हालांकि पार्टी के अधिकांश कार्यकर्ता आधिकारिक तौर पर इस मुद्दे पर चुप रहे, लेकिन उन्होंने उम्मीदवार के चयन पर अपनी नाखुशी जाहिर की. हिंदू, आदिवासी और चाय जनजाति जैसे अल्पसंख्यक मतदाताओं के लिए भाजपा स्पष्ट विकल्प बन गई, वहीं अल्पसंख्यक मतदाताओं में से अधिकांश को तंजील हुसैन को पार्टी का टिकट देने का विचार भी पसंद नहीं आया.

कांग्रेस के एक कार्यकर्ता ने कहा, "कोई बेहतर उम्मीदवार हो सकता था. लेकिन, परिवार की विरासत को बनाए रखने के लिए हुसैन ने पार्टी को अपने बेटे को टिकट देने के लिए मजबूर किया."

पार्टी के कुछ कार्यकर्ताओं ने कहा, "रकीबुल हुसैन ने वर्षों से निर्वाचन क्षेत्र में काम किया है. हालांकि, किसी को यह पसंद नहीं आया कि उनके बेटे को उपचुनाव लड़ने के लिए दिल्ली से समागुरी भेजा गया. तंजील हुसैन को यहां कोई नहीं जानता, वह पिछले कई सालों से दिल्ली में रह रहे थे."

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